क्या हमारी सोच दुनिया बदल सकती है?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 01 – May God Bless You
John Peter का Counter
कुछ वर्ष पहले पूज्य श्री ने कहीं पर America की एक घटना पढ़ी. वह घटना कुछ इस तरह से थी.
New York में सरकारी State bank की एक Branch है, जिसका लेन-देन दुनिया की सारी Banks से हैं. हर दिन लाखों और करोडों Dollars का हिसाब-किताब, लेन-देन चलते रहते हैं. इस Bank में 6 Counters की व्यवस्था है जहाँ से व्यक्ति पैसे ले सके और 6 ही Counters ऐसे थे जहाँ व्यक्ति पैसे Deposit करवा सके.
पैसे लेने के जो 6 Counter थे उसमें एक Counter पर John Peter नाम का Clerk बैठता था. अजीब बात तो यह थी कि अन्य Counter के Comparison में इस एक Counter पर लोगों की ज़बरदस्त भीड जमी की जमी रहती और दूसरे Counter पर Cashiers के मुख पर हवाइयाँ उडने लगती, खाली बैठे रहते.
John Peter हमेशा Busy रहता था. लोग भी अजीबोगरीब थे, अन्य Counter पर जाकर तुरंत अपने Cheque की Clearing हो सकती थी, फिर भी घंटों की Waiting के बावजूद भी Peter के हाथ ही Cheque Clearing हो, ऐसी सबकी जिद्द थी.
यह देखकर Bank Manager के दिमाग में प्रश्न उठने लगे. आखिर मामला क्या है? समय को बरबाद कर Peter के वहाँ Fevicol की तरह चिपकू Americans Bank Manager को मूर्ख लगते थे. उसने पाँच-सात व्यक्तियों को अलग-अलग बुलवाकर Interview लिया.
सभी ने अपने अपने विचित्र अनुभव व्यक्त किए जिन्हें सुनकर Bank Manager दंग रह गया.
एक व्यक्ति ने कहा कि ‘पीटर के हाथों से पैसे लिए और उसे Business में Profit अच्छा हुआ.’ दूसरे ने कहा ‘मेरा मन कहता है कि मैं Peter से ही पैसा लूँ.’ तीसरे ने अपना अनुभव बताया कि ‘Peter से पैसे लिए हो तो काम आसानी से बन जाता है.’
चौथे ने तो आशचर्य वाली बात बताई कि ‘Peter के हाथों से लिए हुए पैसों से भरा Suitcase दो बार खो गया था, फिर भी वापिस मिल गया, एक नोट भी इधर- उधर नहीं हुआ. कलियुग में इससे बढकर और आश्चर्य क्या हो सकता है?’
पाँचवें व्यक्ति से जब पूछा गया तब वह बोला ‘Manager साहब. यदि Peter महाशय का नाम मेरे जीवन से नहीं जुड़ता तो मैं कहीं का नहीं रहता. यदि आपके पास समय हो तो बताता हूँ?’ Manager की उत्सुकता बढ गई. उसको धीरे-धीरे लगने लगा था कि Peter कोई देवदूत है.
वेश्या के चंगुल से बचा
Manager ने Green Signal दिया ‘OK, Go On!’ आँसू पोंछकर खोया-खोया सा वह व्यक्ति बोलने लगा ‘Manager साहब. आज मैं स्वर्ग में हूँ. कारण है Peter महाशय. परंतु भूतकाल में मैं एक भयंकर व्यसनी था यानी Addict था, एक वेश्या के पीछे मैं अपना तन बर्बाद कर रहा था और मेरा मन सत्त्वहीन बन चुका था.
मेरी पत्नी जानती थी और कोशिश भी बहुत करती थी समझाने की पर मैं ठहरा पशु. विवेकहीन जानवर. मुझ पर उस सुशील नारी की अच्छी बातों का कुछ भी असर नहीं होता था. मुझे तो वेश्या के साथ स्वर्ग जैसा सुख और प्रेम का आभास होता था और न जाने कितना धन मैं लुटा चुका था, उस बिना प्रेम की स्वार्थी वेश्या के पीछे.
एक दिन Bank से पैसे लेकर मैं सीधा वेश्या के पास जानेवाला था. योगानुयोग मैं Cheque Clearance के लिए Mr. Peter के पास आया. काफी भीड़ थी उनके Counter पर लेकिन फिर भी किसी Invisible Energy या Attraction से मैं वहीं बैठा रहा. इंतज़ार करता रहा और Bench पर बैठा रहा.
मेरे सामने बस एक ही चेहरा था, उस वेश्या का. स्वर्ग की परी जैसी मेरी सुंदर सुशील पत्नी घर में दुखी होकर आँसू बहा रही थी पर पत्नी का चेहरा मैं अपने दिल में या दिमाग में आने ही नहीं देता था.
Mr. Peter ने मुझे पैसे गिनकर दिए, मैंने पैसे लिए और थोडा चला ही था कि अचानक मेरे मन में बिजली के जैसे एक विचार आया ‘बाप रे! आज दिन तक वेश्या के पीछे मैंने कितना पैसा Waste कर दिया और उसके कारण मैंने प्रेम और स्नेह की दिव्यमूर्ति ऐसी सुशील पत्नी को कितना परेशान किया? धिक्कार हो मुज पापी को, पशु को! और उसी दिन उसी समय मैंने दृढसंकल्प किया कि मर जाना कबूल है पर वेश्या का चेहरा भी नहीं देखूँगा.
Bank से निकलकर मैं सीधा Church में गया और परमात्मा का आभार माना कि ‘हे प्रभु. ऐसा सद्विचार देकर यानी अच्छा विचार देकर आपने सचमुच बहुत बडा उपकार किया है और मेरा जीवन बचा लिया है.’ उसी रात को एक सपना आया और उसमें मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो भगवान मुझे कह रहे है ‘भाई. सद्विचार हमने नहीं, उस Cashier ने दिया है.’
वह व्यक्ति आगे बताता है ‘दूसरे दिन आया सीधा Bank में तो यह भी Notice किया कि बैंक में Mr. Peter के यहाँ, रोज भीड रहती है. तब लगा कुछ न कुछ बात जरूर है, चमत्कार जरूर है. बस उसी दिन से निर्णय कर लिया कि पैसे Peter महाशय के हाथों से ही लेने.’
विश्वासघात से बचाया
बात सुनकर Manager आश्चर्यचकित हो गया. छठ्ठी व्यक्ति महिला थी और उसका नाम था Jimmy Worth. उसने भी अपनी कथा सुनाई ‘मेरे पति का नाम Robert Worth है. हम दोनों का Joint-Account आपकी Branch में है. पैसे उठाने में दोनो की Sign काम लगती है. मैं जिस Office में काम करती हूँ वहीं एक नौजवान को मैं अपना दिल दे बैठी.
हमारी Affair के बीच मेरा पति विघ्न जैसा था यानी Hurdle था इसलिए मेरे यार ने सुझाव दिया ‘तुम्हारी भी तो Sign चलती है. क्यों न Bank से पूरा पैसा उठाया जाए? फिर हम दोनों दूर-दूर प्रदेशों में जाकर शादी कर लेंगे और जीवन का मजा लुटेंगे.’ यार के प्रेम की मैं दीवानी थी, अंधी थी.
मुझे उसकी Idea जच गई, Plan बिलकुल ठीक था. Cheque में बहुत बड़ी राशि लिखकर मैंने अपनी Sign की. सितारें कुछ अच्छे थे, नसीब अच्छा था, इसलिए मेरा Cheque Mr. Peter John के पास गया. पैसे लेकर मैं Bank की सीढी उतर रही थी, उतने में मेरा मन दौडने लगा और विचारों का तूफ़ान मन में उठ गया.
खुद के अंतर से आवाज़ आई “पगली. तू यह क्या कर रही है? जरा विचार तो कर. जीवन के प्रश्नों में जल्दबाजी अच्छी नहीं”. मैं उसी क्षण वापिस मुड़ी और Bank की Bench पर बैठकर सोचने लगी ‘Church में जाकर Jesus की साक्षी में जिसका तुमने हाथ पकड़ा, उस पति के साथ विश्वासघात कर रही है? यह तो सोच, यह पैसा जब ख़त्म हो जाएगा, फिर क्या होगा? शांति से विचार कर और कदम बढा.’
तुरंत उस राशि को Slip Book में लिख ली और पुनः Bank में जमा करवा दी. फिर धीरे-धीरे मैं मेरे मन को स्थिर करने लगी और पति के प्रति वफादार रहने का निर्णय कर लिया. मैं एक बेवफा नीच औरत थी पर Mr. Peter से प्राप्त पैसों ने कमाल किया और मेरे जीवन में ‘Turning Point of the Life’ का चमत्कार हुआ. बस, उसी दिन से मैंने निर्णय कर लिया कि मेरे सभी Cheques की Clearing Mr. Peter से ही करवाउंगी.’
Manager ने घटना सुनकर उस बहन को रवाना तो कर दिया मगर इन सभी अनुभवों के पीछे कौनसी अदृश्य शक्ति काम कर रही है, यह राज़ उसे नहीं मिला. वह इतना ही समझ पाया कि ‘जरूर. Mr. Peter के पास कोई मंत्रशक्ति या दिव्यशक्ति है.’
Mr. Peter का सच
रहस्य का पर्दा हटाने के लिए छुट्टी के दिनों में उसने Mr. Peter को अपने घर Invite किया. उचित मान-सन्मान देकर अत्यंत विनम्रता से उसने Mr. Peter को विनंती की कि आप इस रहस्य को खोलिए.
‘क्या सचमुच ही आपके पास कोई मंत्रशक्ति या दैविक सहाय है क्या?’ तब Cashier ने कहा ‘Manager साहेब. न तो मेरे पास कोई मंत्रशक्ति है, न दिव्य सहाय है और न ही मैं किसी चमत्कारिक जाप को जपनेवाला साधक हूँ. आप देख ही रहे हो मैं तो एक सीधा-सादा सा व्यक्ति हूँ. Bank की नौकरी करके अपना गुज़ारा कर रहा हूँ.
हाँ, इतना जरूर कह सकता हूँ कि मेरे पिताजी Church के पादरी थे, माता संस्कारी थी, दोनों का जीवन पवित्र था. बचपन से ही मेरे पूज्य पिताजी मुझे हररोज Church ले जाते और प्रार्थना करवाते. मेरी माँ ने मुझे यह बात घूँटकर पिला दी थी कि अपने संपर्क में आनेलाले व्यक्ति का हमेशा दिल से भला चाहना, चाहे वह मित्र हो या शत्रु.
इस सुनहरी बात को मैंने जीवन में उतार दी. इसीलिए जब कभी व्यक्ति मेरे पास Cheque Clearing के लिए आता है तब मन ही मन मैं तीन बार प्रार्थना करता हूँ ‘May God Bless You’ यानी परमात्मा आपको आशीर्वाद दे-आपका भला करें.
यह प्रार्थना जब कोई Token दे तब, मैं पैसे की गिनती करूँ तब और जब पैसे सामनेवाले व्यक्ति के हाथों में देता हूँ तब, हर समय यही प्रार्थना करता हूँ और कुछ भी नहीं. इसको आप चाहे वैसा मान सकते हैं. मंत्रजाप कहो या दिव्य सहाय कहो जो कुछ है वह यही है.’
अपने संपर्क में आए हुए व्यक्ति के प्रति सद्भाव रखनेवाले Cashier का भी यदि सौभाग्य, यश, आदेय आदि इतने बढ जाते हैं कि इंतज़ार करना पडे, समय बर्बाद हो फिर भी लोग उसी के हाथों से पैसे लेना चाहते हैं और उस व्यक्ति के हाथों से पैसा मिलने मात्र से ही सद्बुद्धि जग जाती है और ‘Turning point of the life’ आ जाता है.
तो फिर विश्व के हर एक जीव के कल्याण की कामना करनेवाले त्रिभुवनपति श्री अरिहंत परमात्मा के सौभाग्य आदि श्रेष्ठ कक्षा के हो जाए और इन्द्र जैसे इन्द्र उनके पीछे बावरे होकर सुधबुध खोकर घूमने लगे, उनके चरण चूमने के लिए लालायित रहे, उसमें क्या आश्चर्य?
दूसरों का अच्छा सोचने से दुनिया में क्या फायदा हो सकता है, दुनिया किस तरह बदल सकती है उसका यह सटीक उदाहरण था, क्या वैर की शांति, वैर से हो सकती है? क्या “Tit for Tat” सही है? देखेंगे अगले Episode में.