Shocking Truth About Enemies – Friend Or Foe : Episode 08

क्या शत्रु, मित्र हो सकता है?

Jain Media
By Jain Media 43 Views 11 Min Read

जिन्हें हम शत्रु मानते हैं क्या वे Actual में हमारे शत्रु है?
प्रस्तुत है,
Friend or Foe Book का Episode 08.

रामलीला

एक नगर में रामलीला का नाटक करनेवाली Team आई. उसमें राम और रावण की Acting इतनी ज़बरदस्त थी कि लोग फिदा हो गए. Actors भी गजब थे, Stage पर Extraordinary Performance. रामलीला पूरी हुई और Audience में से एक व्यक्ति Stage के पीछे पहुँचा. Stage पर खूंखार जंग खेलनेवाले राम और रावण का रोल करनेवाले पास में बैठकर हँसी-मजाक के साथ जोर-जोर से हा हा ही ही करते हुए चाय पी रहे थे. 

यह देख वह पूछ बैठा ‘कमाल है यार! अभी 10 मिनट भी पूरे नहीं हुए हैं, तुम एक दूसरे की बोटी-बोटी काट कर कुत्ते को खिलाने पर उतारू थे और अब मानो कुछ हुआ ही नहीं. मस्ती से हँसते-खेलते हो तो आखिर सत्य क्या है, तुम दोनों मित्र हो या शत्रु?’ उस भोले प्रेक्षक के प्रश्न ने उनके मुँह पर मुस्कान फैला दी. 

उन्होंने उत्तर दिया

तुम भी कैसे भोंदू हो यार! इतना भी नहीं समझ सके? हम दोनों के बीच जो शत्रुता का व्यवहार था वह तो सिर्फ रामलीला के 3 घंटे तक ही सीमित है, आगे पीछे 21 घंटे तो हम Best Friends है. साथ साथ घूमते हैं, खाते हैं, पीते हैं और मौज मजा करते हैं और इन तीन घंटों की शत्रुता में भी कोई दम नहीं है क्योंकि वह दिखावटी है, असलियत उसमें कुछ भी नहीं है. Manager ने इसको राम का Role दिया और मुझे रावण का. यह तो सिर्फ Acting है और कुछ नहीं, हम दोनों तो दोस्त है दोस्त.’

उस भोले प्रेक्षक को तो पता चल गया पर करोड़ों समझदार इंसानों के बीच जीनेवाले हम यह समझ नहीं पा रहे हैं. हैं ना आश्चर्य! सच्चाई यह ही है. कुछ समय के लिए शत्रुता का, दुश्मनी का व्यवहार दिख भी जाए तो भी यदि आगे-पीछे मित्रता का व्यवहार देखा जाता है तो मित्रता ही वास्तविक गिनी जाएगी, शत्रुता तो किसी कार्यवश ही बरती गई. 

भूत-भविष्य 

इससे यह बात Finalize हो जाती है कि Fix Duration के पहले हर एक जीव के साथ अपना मित्रता का व्यवहार था. भविष्य में मोक्ष में जाते ही अनंत अनंत समय तक उन उन जीवों के साथ ही साथ रहनेवाले हैं. एक समान ज्ञान, स्थान और सुख की अनुभूति करने वाले हैं. 

इस तरह आगे-पीछे अनंतानंत पुद्गल-परावर्त के विराट काल तक अपना हर एक जीव के साथ मित्रता का व्यवहार है, तो शायद कोई Selected जीव में एक दम Short Duration के लिए हमारे प्रति शत्रुता का व्यवहार दिख भी जाए तो भी उसे शत्रु मानने की भूल हम कैसे कर सकते हैं? Majority Wins हम कहते ही हैं. Majority of the time मित्रता का ही व्यवहार रहा है.

इसीलिए सभी तारक तीर्थंकर भगवंत हमें संबोधित करके बुलन्दी से कहते हैं : 

सर्वे ते प्रियबान्धवाः न हि रिपुरिह कोपि

यानी ‘हे पुण्यात्मन्! संसार का हर एक प्राणी तेरे बन्धु है, शत्रु कोई भी नहीं.’ और आगे पीछे की यह निगोदावस्था और सिद्धावस्था का विराट काल ही नहीं, मध्यावधि जो व्यवहार राशि का काल है, उसमें भी उन उन जीवों के साथ हमारा अनंतिबार स्नेह संबंध हो चुका है. 

वसुधैव कुटुम्बकम् 

आज जिसे हम जानी दुश्मन मान रहे हैं, वही जीव कभी कभार हमारा दिलोजान मित्र भी बन चुका है. वही जीव कभी वात्सल्यपूर्ण पिता, तो कभी ममतामयी माँ, कभी स्नेहालु भाई, तो कभी प्रेमयुक्त बहन, कभी प्राण से भी प्रिय पत्नी तो कभी विनीत पुत्र भी बन चुका है. ऐसा संसार में एक भी संबंध नहीं है जो हमारा उस जीव से स्थापित न हुआ है. 

चाचा-चाची, जीजा-जीजी, ताउ-ताई, ननंद-ननदोई, फूफा-फूफी, मौसा- मौसी, समधी समधीन, सास-ससुर, साला-साली, नाता-नातिन, पोता-पोती, भतीजा-भतीजी, भानजा आदि आदि. पूर्व के जन्मों में अनेकों रिश्ते हमने उस जीव के साथ निभाए हैं. अरे! कोश में दिए गए रिश्तेदार का ऐसा एक भी शब्द नहीं है जिससे हमने उसे न बुलाया हो या उसने हमे न बुलाया हो. 

शत्रु नहीं, मित्र! 

अर्थात् जो आज हमारे मार्ग में काँटे बिखेर रहा है वही आदमी कई बार फूल भी बिखेर चुका है. जिस व्यक्ति को देखकर आज हमारे अंग अंग में आग लग रही है, उसी ने हमें चंदन सी शीतलता भी पहुँचाई है. जो व्यक्ति आज हमें काँटों की तरह चुभ रहा है, फूटी आँख न भाता है, उसकी Presence बिलकुल पसंद नहीं आती है, वही व्यक्ति एक समय में हमें सुहाता था, उसके लिए हमने अपनी जान गंवाई थी, उसने हमारे लिए एक नहीं अनेकबार कुर्बानी की थी. 

जिस बाघिन ने सुकोशल मुनि का लहू गटा गट पिया, क्या उसी ने अपना अमृत तुल्य दूध माँ के Role में पिछले जन्म में सुकोशल को नहीं पिलाया था? जिस बाघिन ने सुकोशल मुनि के देह को चने की तरह चबा दिया, क्या उसी ने अपनी गोद में उसका लालन-पालन कर खिलाया पिलाया नहीं था? जो बाघिन आज सुकोशल मुनि के खून की प्यासी है, मारने पर उतारू है, क्या उसी ने एक समय में नौ-नौ महीने की वेदना सहकर उसे जन्म नहीं दिया था? 

सब कुछ संभव है

अजीब बात है! आज जो लहू पी रहा है, वही दूध पिलानेवाला हो सकता है. शरीर को खानेवाला, झूलानेवाला हो सकता है. प्राण लेनेवाला, देनेवाला भी हो सकता है. सब कुछ संभव है इस दुनिया में! 

आज जूते मारकर भयंकर Insult करनेवाला, कल का फूलों की माला से सम्मान करनेवाला हो सकता है. आज जो मुझे बदमाश कह रहा है, हो सकता है कल उसी ने मुझे Gentleman कहकर बुलाया हो. आज वह प्रहार कर रहा है, कल उसी ने मुझे गले लगाया था, पुचकारा था, प्यार-दुलार किया था. आज WhatsApp आदि पर बदनाम कर रहा है, हो सकता है कल उसी ने मेरी भरी हुई सभा में तारीफ की थी. आज संबंधों को बिगाडनेवाला स्वजन कल संबंध प्रस्तोता था, स्थापनकर्ता था. 

आज Business में वह Flop हो रहा है वह, पर उसी ने एक नहीं हजारों बार एक से एक Opportunities दी थी और ज़बरदस्त कमाई करवाई थी. लाखों का धन हड़पने वाला, कल का करोड़ों की तादाद में धनदाता कुबेर था. आज जो व्यक्ति हमारी इज्ज़त पर कीचड उछाल रहा है, उसी ने हमें कई बार Credit देकर Famous कर चुका है. 

Everything is Possible!

शास्त्रों में प्रदेशी राजा की कथा आती है, जिसमें प्राणों से भी ज्यादा प्रिय ऐसे पतिदेव प्रदेशी राजा को उसकी ही रानी सूर्यकान्ता ज़हर दे देती है. जहर पिलाकर गला घोटनेवाली रानी सूर्यकान्ता, प्राणप्रिय पतिदेव प्रदेशी राजा के लिए अपनी जान बिछाने के लिए तैयार प्रेमप्यासी सूर्यकान्ता नहीं थी क्या? 

बहुत चिंतन करने जैसा है. हम सामनेवाले आदमी को आज जैसा है, वैसा ही जीवनभर होगा, यह सोचने लगते हैं. यही हमारी बहुत बड़ी भूल है. इसी मिथ्यापन ने हमारी दृष्टि धुंधली कर दी और समझ छोटी कर दी. 

पूज्य श्री कहते हैं कि हमें एतराज है उसके आज से, हमें फरियाद है उसके आज से तो कल का उसका रूप हम सामने क्यों नहीं ला देते? दृष्टि को साफसुथरी बनानी जरुरी है. दृष्टि की संकुचितता को तोडनी जरुरी है. 

अतीत में, Past में खो जाओ 

वही व्यक्ति आज क्या और कल क्या? इस चिंतन को सत्य के साथ जोड़कर सोचना होगा कि ‘किसको पत्थर मारूँ? कौन यहाँ पराया है? शीशमहल में रहनेवाला हर एक चेहरा अपनासा लगता है.’ नग्न सत्य हमारे सामने है. 

जो आज शत्रु है, वह पहले न वैसा था न वैसा रहेगा. अर्थात् हमारी सोच को बड़ी और सही करने की ज़रूरत है. यह शत्रु है यह मित्र है, ऐसा Limitation कर देने से हर जीव के साथ जो अपनेपन का संबंध है उस पर लांछन लगाने जैसा है. जिसकी विचारधारा सीमित है, संकीर्ण है, वह छोटी सोचवाला है. जिसने अपनेपन की अपनी सोच उस अनंत तक बढ़ा ली वह महान है. 

इन तथ्यों से यह स्पष्ट हो चुका है कि व्यक्ति के अतीत में जान होगा, ‘आज क्या है? क्या कर रहा है?’ इस संकुचितता से दूर होना पड़ेगा. ‘आज मुझे परेशान कर रहा है न?’ इस बात को मारो गोली. Past में यही जिगरजान मित्र था इस तथ्य को सामने रखना होगा. आधा गिलास खाली है? नहीं, आधा गिलास भरा है. यह दृष्टि व्यक्ति को Cheerful, खुश और स्वस्थ रखेगी.

अर्थात् हमारे व्यक्तिगत जीवन में कोई शत्रु है ही नहीं, और हमें किसी को अपना शत्रु मानना ही नहीं. यही बड़ी सोच रखनी है कि सब मेरे मित्र है. जिसे शत्रु मान रहे हैं उसके Past में जाकर भी उसकी मित्रता देखनी. भविष्य की सिद्धावस्था देखनी. 

गीतार्थ गुरु भगवंत बताते हैं कि किसी एक जीव के साथ भी यदि हमारी शत्रुता है, कटुता है, द्वेष है तो हमारा मोक्ष नहीं होनेवाला. इसलिए किसी को शत्रु मानना यानी खुद के आत्मविकास को रोकने जैसा है. अर्थात् खुद के मोक्ष को रोकने जैसा है. यानी किसी को शत्रु माना तो हम खुद ही हमारे शत्रु बन बैठेंगे. 

प्रश्न उठता है कि जिसे शत्रु मान रहे हैं उसने भूतकाल में तो या पूर्व के जन्मों में शायद मित्रता रखी होगी लेकिन वर्तमान में तो परेशान कर रहा है ना, तो अभी उसका Present देखकर शत्रु क्यों नहीं मानना? जानेंगे अगले Episode में.

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