दो भाई जब आपस में लड़ते हैं तब क्या होता है?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 16
राजवी वंशों में वैर
कच्छ के उज्ज्वल इतिहास में भदुआ और भाद्राम नाम के दो भाई की बात आती है. उन दोनों के नाम से दो वंश चलें. भदुआ के वंश में आजी और भाद्राम के वंश में पुनराजी नाम के दो भाई जरकाछा नामक स्थान में मिलकर राज्य करते थे, वे दोनों अत्यंत तेजस्वी और बहादुर थे.
एक बार जरकाछा में दुष्काल पड़ा, अपार पशुधन नष्ट होने लगा. जीना बहुत मुश्किल हो गया इसलिए दोनों भाई अपने विपुल पशुधन को लेकर पंजाब की ओर निकल पडे. कई स्थलों में अपना पराक्रम बताते हुए वे सियालकोट तक पहुँचे.
हालांकि सियालकोट के राजा के पास अधिक ताकतवर सेना का बल था, फिर भी इन दोनों भाईओं के आगे वह कमज़ोर साबित हुआ. राजा हार गया और भागकर काबुल के बादशाह की पनाह ली.
बादशाह ने फौरन कहलाया ‘सियालकोट को छोड़ जाओ या फिर शाही सेना से भिड़ने की अपनी पूरी तैयारी कर लो.’ आजी और पुनराजी घबरा गए.
बादशाह से टक्कर लेने की स्थिति उनमें नहीं थी और यदि भिड भी जाए तो विरासत में मिले जरकाछा को भी खोना पड़े, वैसी भी नौबत आ सकती थी. अपना मुल्क खोना पड़े, वैसी उनकी इच्छा नहीं थी और जरकाछा में दुष्काल भी पूरा हो गया था. वहाँ की प्रजा भी इन्हें बहुत याद करती थी.
अतः अब क्या किया जाए?
इस चिन्ता में दोनों डूब गए.
अंत में फैसला किया कि आजी 500 श्रेष्ठ बछडों को लेकर बादशाह के चरणों में नज़राना धरे यानी Gift दे और फिर बादशाह की हुकुमत स्वीकार करनी क्योंकि दूसरा कोई Option नहीं था. निर्णयानुसार आजी काबुल पहुँचा.
नज़राना देखकर बादशाह फिदा हो गया और बोला ‘बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है?’ आजी ने कहा ‘आपकी मीठी नज़र.’ वैसे भी बादशाह ने इन दोनों के पराक्रम-शौर्य की बातों को पहले सुन रखा था.
सियालकोट के राजा को हरा देना यह भी कोई मामूली सी बात नहीं थी. आजी की जीवंत तेजस्विता भी नजरों से देख ली थी. इससे बादशाह को प्रतीत हुआ कि ‘कब ये दोनों भाई मेरे लिए Hurdle बन जाए? कहा नहीं जा सकता.’
अतः साँप मरे नहीं और लकडी टूटे नहीं ऐसी चाल, ऐसी युक्ति उसने सोच ली. ‘इन दो भाईओं के बीच में कुछ ऐसा कर देता हूँ कि ये दोनों आपस में ही लड़ मरेंगे.’ लेकिन, इन दोनों में आग कैसे लगाईं जाए? यह भी एक प्रश्न था. दोनों के बीच बहुत ज्यादा प्रेम और विश्वास था.
लेकिन बादशाह ने इसका भी जवाब सोच लिया कि ‘दोनों उत्तम बलवान है. दोनों के पास एक समान सैन्यबल और पशुधन है. अतः यदि दोनों को एक समान भेंट दूँगा तो मेरा इरादा कामयाब नहीं होगा लेकिन एक को कम दूसरे को ज्यादा दूँगा तो जरूर उनमें अनबन होगी.’
इस प्रकार मन में तय करके आजी को देने के लिए अत्यंत कीमती भेंट तैयार करवाई और पुनराजी के लिए कम कीमती तैयार करवाई. भेंट लेकर आजी लौटा. एक को Costly Gift एक को Cheap Gift.
सियालकोट पहुँचकर उसने दोनों भेंट पुनराजी को बताई. बादशाह की Planning कामयाब हुई. Gifts को देखकर पुनराजी के मन में शंका का कीडा रेंगने लगा. उसने आजी से पूछा ‘अपन दोनों एकसमान है. न तुमने मुझसे ज्यादा पराक्रम किया है न मैंने तुमसे. तो फिर बादशाह ने उपहार में ऐसा फर्क क्यों रखा?’
आजी ने सरलता से कहा ‘देख भैया! बादशाह ने ऐसा क्यों किया? यह तो मैं भी समझ नहीं पाया हूँ. मैं तो सिर्फ जो दिया वह लेकर आया हूँ.’ आजी की बात पुनराजी के मन का समाधान नहीं कर पाई.
उसको लगा ‘जरुर इसने मुझे कम पराक्रमी साबित किया होगा और अपनी बड़ाईयाँ हाँकी होगी. वरना यह भेदभाव हो ही नहीं सकता.’ उस समय तो वह कुछ नहीं बोला लेकिन दोनों के बीच चिंगारी लग गई थी.
कच्छ का इतिहास कहता है कि उन दो भाईओं के बीच भयंकर खून-खराबा और बेहिसाब नुकसान हुआ. दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ और आजी की मौत पुनराजी के हाथों हुई. इतना ही नहीं परंतु दोनों वंशों में वह वैर चलता रहा.
‘मुझे क्यों नहीं?’
Materialistic चीजें कम ज्यादा देनी, यह एक कातिल भेदनीति है. जिससे भयंकर वैर भी बंध जाता है. सीता रामचंद्रजी को मिली और मुझे क्यों नहीं? ऐसा रावण ने सोचा और इसी पर रामायण का सर्जन हुआ है न.
‘सेचनक हाथी और दिव्य कुंडल हल्ल-विहल्ल के पास ही क्यों? मैं राजा हूँ, मेरे पास ही रहने चाहिए.’ इस जिद्द से कोणिक अपने ही भाईयों को शत्रु बना बैठा. करोडों आदमियों का जिसमें संहार हुआ उस रथमूसल और कंटकशिला युद्ध की आग भी इसी तरह Materialistic कारण से भड़की थी.
यह पूरी Story हम बहुत पहले देख चुके हैं, आप एक बार फिर देख सकते हैं ताकि बहुत Clarity के साथ सब कुछ समझ में आएगा.
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सिर्फ गृहस्थ ही इसमें फंसे हैं ऐसा नहीं है उत्कृष्ट साधक भी इस जाल में फंसे हैं. ‘सिंहगुफा के बाहर चार महीने तक मैंने निर्जल उपवास किए तो गुरुदेव ने मुझे सिर्फ ‘दुष्करकारक’ कहा और वेश्या के वहाँ रहकर षड्रस भोजन करनेवाले स्थूलिभद्र को ‘दुष्कर-दुष्करकारक’ कहा.’
बस, इसी विचारधारा ने सिंहगुफावासी मुनि के ऊपर अपना शिकंजा कसा तो वे व्यर्थ ही महामुनि स्थूलभद्र के दुशमन जैसे बन गए. यह Story भी हम बहुत पहले Post कर चुके हैं, ज़रूर जानने जैसी है.
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वर्तमान में भी ऐसी घटनाएं कहाँ कम है. बाप की संपत्ति का बँटवारा करने में एक चीज़ आई. दोनों बेटे अड़ गए. इस चीज़ को तो मैं ही रखूँगा. बात बढ़ गई और एक दूसरे से बोलना बंद. एक-दूसरे के घर पर आना-जाना.. अरे, एक दूसरे का मुँह देखना भी बंद.
कभी-कभार तो हद हो जाती है. दोनों भाई Court में भी आमने-सामने हो जाते हैं, संपूर्ण बरबाद भी हो जाते हैं. Court में Case चलता रहे और वकीलों का पेट पलता रहे, सरकारी कर्मचारियों की जेबें गर्म होती रहें, घर फूँक कर तमाशा कर देते, मगर भाई पर मुकद्दमा वापिस नहीं खींचते.
अरे, जिस भाई के साथ एक माँ की गोद में खेले-कूदे-पढ़े-लिखे बड़े हुए. कभी एक ने दूसरे के लिए मारपीट खरोंचें खाई, कभी दूसरे ने पहले वाले के लिए लिए मार खाई. अवसर आए तब एक दूसरे के लिए प्राण देने तक की बातें भी किया करते थे, वही भाई आज आँखों के सामने उसका चेहरा भी आ जाए तो नफरत की आग भड़क जाती है.
दुनिया का हर एक इन्सान अच्छा लगता है और भाई लगता है खराब से खराब.
दूसरा आदमी कदाचित् मुसीबत में आ फँसे तो मदद करने जैसी लगती है, मगर खुद का यदि किसी आफत में फँस जाए तो किसी भी हालात में Help नहीं करनी ऐसे विचार मन में घूमने लगते हैं.
उल्टा ऐसे ख़राब विचार भी आ जाते हैं कि ‘उसको तो ऐसा ही होना चाहिए, वह इसी के लायक है.’ वाह रे वाह. एक ही माँ-बाप के दो बेटों के बीच भी Materialistic नश्वर चीज के लिए कैसा वैर-विरोध और फिर?
फिर तो एक पराई वस्तु के लिए, Materialistic चीज़ के लिए, ज़मीन जायदाद के लिए-सगे भाई के साथ तीव्र द्वेषवाले उस व्यक्ति को कर्मसत्ता बुरी रीत से परेशान करने में सफल हो जाती है. कर्मसत्ता ने संपत्ति का लालच दिया और दो भाई लालच के जाल में फंस गए.
बस कर्मसत्ता को यही चाहिए था और वही हुआ.
कहीं पर दहेज़ को लेकर पति अपनी पत्नी को परेशान करता है, तो कहीं पर Alimony के नाम से पत्नी Cases करके अपने ही पति को Torture करती है. दोनों Situation में कारण Materialistic चीज़ें ही है, पैसा गाडी बंगला आदि.
इनमें से एक भी वस्तु मृत्यु के बाद कोई भी लेकर जानेवाला नहीं है. लेकिन लेकिन लेकिन.. कर्मसत्ता तो यही चाहती है कि दोनों लड़ते रहे ताकि वैर होता रहे, कर्मों का बंधन होता रहे और दोनों जीव भटकते रहे.
जेठानी देवरानी में भी इसी तरह की लड़ाइयाँ देखने को मिलती है, सास ससुर ने उसे इतना दिया, मुझे इतना दिया, उसको इतनी कीमती साडी मुझे इतनी सस्ती, उसके पीहरवालों को इतना सम्मान और मेरे पीहर वालों को कम सम्मान, उसकी इतनी तारीफ, मेरी थोड़ी भी नहीं.
सास ससुर का मुंह देखने लायक होता है. दोनों जेठानी देवरानी लड़ किसलिए रहे हैं? Materialistic चीज़ के लिए. और लड़ किससे रहे हैं? जीव से. जो Materialistic चीज़ अपनी है नहीं और हो सकती नहीं उसके लिए अपनी ही देवरानी के साथ यानी एक अन्य जीव के साथ लड़ रहे हैं.
हैं ना कर्मसत्ता का मोहजाल का भयानक खेल. जीवों को पुद्गल का आकर्षण होना चाहिए, जीवों को इन Materialisitc चीज़ों का Attraction होना चाहिए बस-कर्मसत्ता तो लड़ाने के लिए तैयार बैठी है.
देवरानी जेठानी की इस लड़ाई में हंसती-खेलती Joint Family हो जाती है Separate-Nuclear Family और फिर तो बातचीत बंद, बोलना तो दूर की बात, चेहरा भी नहीं देखना है. पुद्गल के कारण यानी Materialistic चीज़ के कारण खुद के परिवार से दूर हो गए.
कहाँ गई हमारी समझदारी?
भाई-भाई में भी ऐसा होता है, छोटे भाई के मन के विचार ऐसे कि ‘दुकान से बड़ा भाई ज्यादा पैसे उठाता है, उसको कोई हिसाब नहीं पूछता, और मैं थोड़े पैसे भी लू तो हिसाब मांगते हैं, उस पर आँख बंद करके विश्वास करते हैं और मुझे पर शक करते रहते हैं.
बड़े Decisions में उसके Ideas लेते हैं और मुझे तो पूछते भी नहीं, जैसे उसी को सब आता है और मैं तो जैसे अनपढ़ गवार हूँ. वो 2-3 घंटे दुकान पर लेट आए तो कोई कुछ नहीं कहता मैं 15 मिनट लेट आऊ तो मेरे खिलाफ आँखें लाल होने लगती है, मेहनत मैं करता हूँ और हर जगह तारीफ उसकी होती है.’
बस ऐसे विचारों के कारण Family में भूकंप के झटके आने शुरू हो जाते हैं और फिर India Pakistan जैसे दो टुकड़े हो जाते हैं. इस तरह की परेशानियां हर घर में देखने को मिलती है. पहले हिलमिल कर रहते थे, आज अलग.
पहले इतना प्रेम था कि परिवार के बिना रह नहीं पाते थे, आज तो भड़ास निकालने का मौका मिलना चाहिए बस. अपने ही भाई के परिवार में छोटी-बड़ी परेशानियों को देखकर जो खुश होते हैं ऐसी अनेक Families पर Research किया जाए तो इन सब लड़ाइयों के Base में एक ही चीज़ नज़र आएगी-भौतिक चीज़ें, Materialistic चीज़ें, जो ना कभी किसी की Permanent हुई है और ना ही कभी हो सकती है.
धन संपत्ति एवं मान सन्मान आदि ही इन Problems की जड़ है. और सिर्फ मात्र Families में ही नहीं-समाज, राज्य, देश और दुनिया में भी यही सत्य छुपा हुआ नज़र आएगा. हर घटना के पीछे यही भौतिक चीज़ें होगी.
दो दोस्त
एक किस्सा किसी Magazine में पूज्य श्री ने पढ़ा था.
इलाहाबाद की Court ऐतिहासिक कहलाती है. कई पुराने-पुराने महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक Cases वहाँ चले हैं. उसकी पुरानी Building में Court के Hall के Entry Gate पर दोनों ओर दो Statues लगे हुए हैं.
Statue किसी दानदाता के नहीं, बल्कि दो जमीनदारों के हैं. Statues के नीचे उन दोनों का इतिहास लिखा हुआ है.
वे दोनों मित्र थे, पास पास दोनों की जमीन जायदाद थी. एक बार थोड़ीसी जमीन के लिए दोनों के बीच तकरार हुई. दोनों उस जमीन पर अपना-अपना हक जमाने की मेहनत करने लगे, बात बढ़ गई और मामला बिगड़ गया और Case इस High Court में आया.
अब बात जमीन की नहीं रही, नाक का सवाल हो गया. दोनों में भयंकर वैर की आग भड़क गई थी. Case चलता रहा. विवादास्पद जमीन के सिवाय सारी जमीन जायदाद अदालत के चक्करों में साफ़ हो गई. दोनों के परिवार बर्बाद हो गए.
दोनों कंगाल जैसे हो गए और जब Court ने फैसला दिया उस वक्त जो व्यक्ति जीता था उसके पास सिर्फ वह जमीन का टुकड़ा हाथ लगा और जो हारा उसके पास शून्य यानी कुछ भी नहीं-अर्थात् बाकी सब कुछ दोनों परिवारों ने खो दिया. अब इतने से टुकड़े का करेंगे भी क्या.
इस इतिहास को लिखकर नीचे लिखा है ‘इस बात को बराबर पढ लो और फिर इस अदालत में आना हो तो आओ.’ Ego पहले ही Side में रख लिया होता तो इतना सब कुछ हारना नहीं पड़ता. जो व्यक्ति Case जीता उसका अहंकार भी जब थम गया होगा तब लगा होगा कि भाई केस तो जीत गए लेकिन बाकी सब तो हार गए.
कर्मसत्ता ने ज़मीन का लालच दिया. दोनों मित्र उसमें फंस गए. मित्रता गई साइड में, लड़ पड़े. संपत्ति भी गई और दोनों परिवार कंगाल हुए. शत्रुता Bonus. यही तो कर्मसत्ता का खेल है ‘Divide and Rule’. लालच का जाल फेंको और जीवों को फंसाओं.
अब बताइए Materialistic चीज़ों के लिए अपनों के साथ या फिर जीवों के साथ लड़ना सही है या गलत?
खतरनाक खेल
किसीको ज्यादा मान-सम्मान दिलाती है तो किसीको कम, किसी को सुन्दर सौभाग्य दिलवाती है, तो किसी को भयंकर दुर्भाग्य, किसीको माल-मिष्ठान्न, तो किसी को रूखा-सूखा भोजन, किसी को सुंदर चीज तो किसी को भद्दी चीज, किसी को यश तो किसी को अपयश, किसी को सत्ता मिलने का आनंद तो किसी को सत्ता खोने का दुःख.
यह सब कुछ कर्मसत्ता का कमाल है.
इसलिए जिस व्यक्ति को ऐसे विचार आते हैं कि ‘मुझे यहाँ कम मान-सम्मान मिलता है, मेरी तो बिलकुल कीमत ही नहीं. मुझे कम या घटिया चीज दी और दूसरों को बढ़िया दी, मुझे यश देते नहीं परंतु दूसरों को देते हैं.’
इस तरह के विचार जब आते हैं तब उसे ऐसा सोचना चाहिए कि कर्मसत्ता की भेदनीति ‘Divide and Rule’ का मैं बलि-बकरा बनकर खुद के परिवार आदि का त्याग करके यदि उनका दुश्मन बना तो शत्रुता के बीज बोये जाएँगे, कर्मसत्ता को इससे बहुत फायदा होगा और मैं तबाह हो जाऊँगा.’
इससे मन में चल रहा घमासान शांत होगा और यदि यह भी सोच लिया जाए कि ‘मेरा वैसा पुण्य नहीं, उसका वैसा पुण्य है इसलिए Difference होगी ही. तो इसमें Complaint क्यों करना?’ तब तो सोने में सुहागा. स्वप्न में भी अलग होने का विचार ही नहीं आएगा.
आया भी होगा तो इन शुभ विचारों को देख वह कुविचार भाग जायेगा और फिर? न होगा Division, न होगा Separation, न होगी ईर्ष्या, न होगा द्वेष, न क्लेश, न शत्रुता, न वैर, न विरोध. बस, सिर्फ मैत्री से उभरता हुआ हृदय रहेगा. प्रेम की ठंडी हवा बहेगी, जीवों के बीच मैत्री बनी रहेगी और कर्मसत्ता को बार बार हारना पड़ेगा.
इसलिए जब कभी कोई नापसंद घटना घट जाए और मन में विभाजित होने के, Divide होने के, Separate होने के विचार आने लगे और वे विचार तूफ़ान मचाने की तैयारी करें, उस समय कर्मसत्ता की कुटिल नीति का शिकार नहीं बनना है, इसकी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए.
इस Article को बार बार पढ़कर उन विचारों के तूफ़ान को शांत कर सकते हैं.
ऐसे में प्रश्न उठ सकता है कि इस तरह सहन करते रहेंगे तो अन्याय होता रहेगा ना.
तो जो हमारे साथ गलत करेगा उसका क्या?
इस Problem का Solution जानेंगे अगले Episode में.