Mahasati Sita’s Wisdom : Mastering Life Through Karma | Friend or Foe – Episode 25

महासती सीताजी का Reaction मिसाल बन गया.

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सीताजी का Reaction मिसाल बन गया.
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 25.

महासती सीता

गर्भवती सीता जी को रामचंद्र जी ने जंगल में भेज दिया था. यह पूरी घटना हम Episode 21 में देख चुके हैं. सीताजी को अयोध्या में जब फिर से प्रवेश कराना था, उस वक्त सतीत्व की परीक्षारूप अग्निदिव्य हुआ. उससे सौ टच सोने की तरह सीताजी खरी उतरी. संपूर्ण शुद्ध जाहिर हुई. 

लोग ‘जगदम्बा महासती.’ आदि शब्दों से उनका जयजयकार कर रहे हैं. रामचंद्रजी शरमिंदे बनकर माफी माँग रहे हैं, उस वक्त भी सीताजी के मुँह से ऐसे शब्द नहीं निकले कि ‘सिर्फ एक पक्ष की ही बात सुनकर मुझे भीषण जंगल में छोड़ दिया आपने. मेरी भी बात तो सुननी थी न.’ 

अथवा ‘मेरी बातों से यदि विश्वास नहीं आता तो उस वक्त भी अग्नि परीक्षा करने की मेरी कहाँ मना थी? बाकी ऐसे भीषण जंगल में जहाँ प्रतिपल मौत सर पर मंडरा रही थी और तब भी मैं जीवित रही. क्षेमकुशल रह सकी और ऐसे पराक्रमी पुत्रों को तैयार किया. यह सब क्या मेरे सतीत्व का प्रभाव नहीं था? जो यह दिव्य करना पड़ा?’ ऐसा कोई भी व्यंग्य-कटाक्ष उन्होंने नहीं किया.

ऊपर से रामचंद्रजी माफी माँगने के लिए बढे तब उन्हें रोकती हुई महासती सीता बोली ‘स्वामिनाथ. यह आप क्या कर रहे हैं? इसमें आपका या प्रजाजनों का ज़रा सा भी अपराध नहीं है. अपराध मेरे पूर्व जन्म के कर्मों का है, पूर्वकृत दुष्कृतों का है. 

यह तो उपकार आपका हुआ कि आपके प्रभाव से परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई. आपको मैंने अपने दिल में बसाया, कैद कर रखा इसीलिए मुझे इस भीषण आग ने जला कर खाक नहीं किया. आपके बदले यदि मैंने किसी दूसरे व्यक्ति को दिल में रखा होता तो यह आग रहम नही खाती. मुझे जला कर खाक कर डालती, तब आपको सीता नहीं, सीता की खाक हाथ में आती.’ 

कैसे अद्भुत हैं सती के ये वचन. कैसी धीरता-गंभीरता और स्वस्थता. थोड़ा कुछ सुना देने की भी आतुरता नहीं. लेकिन यह सब किसके बूते? बचपन में उन्होंने तत्त्वज्ञान और कर्म Theory का सुंदर और सुचारु रूप से अध्ययन किया था और उसी के बलबूते वह ऐसी विकट परिस्थितिओं में भी Relax रह सकी. 

‘मेरे कर्म यदि गड़बड़ वाले नहीं हो तो इन्द्र की भी कोई ताकत नहीं कि मेरा बाल भी बांका कर सके.’ और ‘मेरे कर्म यदि गड़बड़ वाले है तो माँ-बाप क्या इन्द्र की भी ताकत नहीं कि मुझे बचा सके.’ 

अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी ने पूर्ण बन्दोबस्त कर रखा था लेकिन फिर भी उसका Murder हुआ. श्रीमती इन्दिरा गाँधी को उन्हीं के Guards ने खत्म किया. कोई डॉक्टर उस बीमारी से मरता है जिसका वह खुद इलाज में Expert है. कोई Cancer Expert Cancer से मरा हो ऐसा भी हुआ है.

Heart Specialist की Heart की बीमारी से मृत्यु हुई हो ऐसा भी होता है. एक आदमी पूरी सावधानी के साथ Footpath पर चल रहा है. Cycle आती है और उससे Accident कर उसे मौत की नींद सुला देती है. 

एक आदमी Car में बैठकर Airport जा रहा था. Flight की Ticket जेब में थी. Car का Tire Burst हो गया. आदमी Flight के Time पहुँच नहीं पाया और उधर Flight उड़ी और थोडी ही देर में उसके Crash होने के समाचार चारों ओर फैलने लगे.

Car का Tire Burst हुआ और अपने आप उसका बचाव हो गया नतीज़ा है कि यदि ख़राब कर्म बंधा हुआ है तो उसका दुःख विपाक भुगतना ही पड़ेगा. लाख बचने के उपाय करें बच नहीं सकते और यदि ख़राब कर्म बंधे हुए नहीं है तो किसी माय के लाल की ताकत नहीं कि उस व्यक्ति को कोई दुःख दे सके यानी कि छोटे-बड़े किसी भी ख़राब घटना में उसके मूल में अपनी ही भूल रही हुई है, ऐसा निश्चित रूप से मानना जरूरी है. 

हमने ही पूर्व जन्म में कोई ऐसा ख़राब काम किया हुआ है जिसके पापकर्मोदय से हमें गाली सुननी पड़ती है और यदि ख़राब कर्म द्वारा पूर्व जन्म में ख़राब कर्म न बांधा होता तो कोई चाहे लाख मेहनत क्यों न करे लेकिन हमारा कोई-कुछ बिगाड़ने वाला नहीं है. 

बाल अकबर 

एक बार हुमायु घोडे पर सवार होकर भाग रहा था. बाल अकबर को कपडे में लपेटकर पीठ पर बाँधा हुआ था. दुश्मन का सेनाधिपति पीछा कर रहा था. दोनों के बीच Distance थोडा कम हुआ और उसने भयंकर तीर चला दिए. अपने सुरक्षित किले में पहुँचने के लिए हुमायु ने घोडे की लगाम खींची. 

घोडा जैसे-तैसे बहुत तेज़ी से सुरक्षित किले में पहुँचा. 

काफी घायल हो चुके थे दोनों यानी घोडा और घुडसवार. हुमायु के हाथ पर और पीठ पर भी कोई-कोई बाण लगे थे. हुमायु ने सर्वप्रथम पीठ पर बंधे अकबर को खोला. वह आश्चर्यचकित था क्योंकि बाल अकबर को एक खरोंच भी नहीं आई थी. इतने तीर छोड़े गए लेकिन एक भी नहीं लगा.

‘मेरे कर्म यदि टेढ़े न हो तो मेरा कोई भी बुरा कर नहीं सकता है. अर्थात् मुझे पसंद न आए ऐसा बर्ताव अन्य कोई भी करता है उसमें भी मुख्य कारण मेरे पूर्व में किए गए कर्म ही है.’ ऐसा निर्णय जिस व्यक्ति ने कर लिया हो, वह कैसी भी परिस्थिति क्यों न आए, शत्रुता को मोल नहीं लेगा. 

मैत्रीभाव को वह खूब आसानी से टिकाऊ बना सकता है. क्योंकि उसको Realise हो जाता है कि जो हो रहा है उसके पीछे कारण वह खुद ही है, कोई और नहीं. 

महासती अंजनासुंदरी 

इनकी Story हमने बहुत पहले Jailer Series के Episode 18 में देखी है. एक बार वह फिर से देख सकते हैं. 22 वर्ष तक पति पवानंजय ने अंजनासुंदरी का मुंह तक नहीं देखा. युद्ध के वक्त निकलते समय भयंकर अपमान किया. इतना होते हुए भी अंजनासुंदरी के दिल में पवनंजय के प्रति थोड़ी भी रोष की मात्रा नहीं थी. 

पतिदेव के प्रति अहोभाव और श्रद्धा वैसी ही अटूट थी. ऐसा एक भी विचार उनके मन में नहीं उठा कि मेरे पति मेरे साथ अन्याय कर रहे हैं अथवा पीड़ा दे रहे हैं.

क्योंकि वह अपने दुःख का, पीड़ा का कारण पवनंजय को नहीं बल्कि अपने ही कर्मों को मानती थी कि ‘मैंने ही पूर्व भव में ऐसी कोई गलती की है, जिसकी सजा मुझे भुगतनी पड रही है.’ ऐसी Situation में अत्यंत पीड़ा पहुंचाने वाला व्यक्ति भी शत्रु नहीं लगेगा और न ही उससे किसी भी प्रकार की शत्रुता करने का मन भी होगा. 

लिंकन अपने शत्रुओं की प्रशंसा कर रहा था. मित्र ने पूछा ‘राष्ट्रपति महाशय, आप यह क्या कर रहे हैं?’ लिंकन ने कहा कि ‘मैं ठीक कर रहा हूँ, शत्रुओं को मार रहा हूँ क्योंकि शत्रुओं को मारने का तरीका यह नहीं कि आप उनके शरीर को मार दो. उनके दिल में पनप रही शत्रुता मार दो तो शत्रु मर गया. शत्रु मिटकर मित्र बन गया.’ 

पूज्य श्री कहते हैं कि सामनेवाले की भूल देखना, यही मैत्री का खून कर शत्रुता पैदा करने की मूर्खता है. खुद की भूल देखकर दिल में रही शत्रुता ख़त्म कर सकते हैं. उस शत्रुता का अंत होते ही मैत्री का निर्माण होगा. हम अपने आप को तनावमुक्त, आवेशमुक्त महसूस करेंगे और काफी Relax हो जाएंगे.

Stress नहीं होगा तो Heart Rate Increase नहीं होगी, Blood Pressure भी Normal रहेगा और Breathing भी Normal रहेगी. मन शांत हो जाएगा. Mental Peace ही तो हमें चाहिए जीवन में. इस प्रक्रिया को Psychologists ‘Parasympathetic Response’ कहते हैं. 

शत्रुता पैदा नहीं होने देना यह Life का बहुत बड़ा Achievement होता है. ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बंसूरी’ शत्रुता ही नहीं खड़ी होने दी तो सामने वाले व्यक्ति को शत्रु मानकर उसकी ऐसी-तैसी करने का मन ही नहीं होगा. 

अग्निशर्मा की Story Jailer Series के Episode 12 में हमने देखी थी. 

तापस अग्निशर्मा का दो बार पारणा नहीं हुआ उस वक्त तक गुणसेन की भूल नहीं देखी, इसलिए गुणसेन के प्रति शत्रुता के भाव पैदा नहीं हुए. अच्छे-अच्छे महर्षिओं को भी झुकना पड़े वैसी अद्भुत आत्मभूमिका में वह पहुँच गया था क्यों? क्योंकि गुणसेन की गलती नहीं देखी थी. 

लेकिन तीसरी बार वह मार खा गया. पारणा चुका उसमें भूल उसने गुणसेन की देखी. आ गई शत्रुता और सद्गति के Door पर उसके लिए No Entry के Board लग गए. दुर्गति में जाना पड़ा. सामनेवाले की शत्रुता देखी और हो गया Downfall.

महासती मृगावती

साध्वी चंदनबालाजी और साध्वी मृगावतीजी की दीक्षा के बाद की घटना बहुत Famous है. दोनों ही प्रभु महावीर की देशना सुन रहे होते हैं. सूर्यास्त होने को होता है तब आर्या चंदनबालाजी समय की मर्यादा को ध्यान में रखकर उपाश्रय लौटते हैं लेकिन देशना में ही सूर्य और चंद्र विमान होने से दिन और रात का, सूर्यास्त का पता नहीं चलता तो मृगावतीजी देशना सुनने में इतने लीन हो जाते हैं कि समय का ख्याल नहीं रहता. 

देरी से जब मृगावतीजी उपाश्रय लौटते हैं तब आर्या चंदनबालाजी उन्हें उपालम्भ देते हैं कि ‘कुलीन ऐसी तुम्हें सूर्यास्त के बाद बाहर रहना उचित नहीं है.’ 

प्रत्युत्तर में साध्वी मृगावतीजी ने ऐसा कोई भी Reaction नहीं दिया कि  ‘ह्म्म्म… मैं तो परमात्मा की देशना सुनने में लीन थी इसलिए मुझे ख्याल नहीं आया. आपको तो ख्याल था न? आपने इशारा क्यों नहीं किया या किसी अन्य के पास क्यों नहीं कराया? गुरुणी हुए तो इतनी भी आपकी Duty नही क्या?’ 

इत्यादि ऐसा कुछ कहना तो दूर, मन में सोचा भी नहीं क्योंकि ऐसा करने से गुरु के दोष देखने की एक बुरी Quality तुरंत खड़ी हो जाती. इसके बदले अपना खुद का दोष देखकर आत्मभाव में लीन बनी तो उन्हें केवलज्ञान भी मिल गया और अपनी पूज्य गुरुणी को भी उसकी भेंट दी यानी फिर साध्वी चंदनबालाजी को भी केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है. 

इस कथा को Detail में फिर कभी देखेंगे लेकिन इतना समझने जैसा है कि अन्य की भूल अथवा दोष देखा होता तो केवलज्ञान नहीं होता, खुद की भूल देखी तो केवलज्ञान हो गया. कुदरत भी केवलज्ञान उन्ही तो देती है जो खुद की भूल देखते हैं. 

नागकेतु की कहानी हमने Jailer Series के Episode 39 में देखी है. एक बार फिर से देखने जैसी है. उस कहानी से भी यही Analysis निकलेगा. 

सौतेली माँ से परेशान होकर वह लड़का अपने श्रावक मित्र के पास जाता है. लेकिन वह श्रावक मित्र उसको सौतेली माँ के दोष नहीं दिखाता बल्कि खुद का दोष देखने को कहता है कि ‘दोस्त. पूर्वभव में तपश्चर्या कम की, इसलिए सहन करना पडता है.’ 

उस लड़के को बात जच गई. तभी तो सौतेली माँ ने उसे आग में जलाकर खाक कर दिया लेकिन फिर भी उसके मन में द्वेष नहीं आया और वही लड़का अगले जन्म में नागकेतु बन कर मोक्ष को प्राप्त करता है. 

आज की दुनिया में क्या हमारे पास ऐसे कोई कल्याण मित्र है जो हमें हमारा दोष दिखाए?

बाकी लड़ाने के लिए तो पूरी दुनिया Ready ही बैठी है. एक Husband Wife की ज़बरदस्त कहानी अगले Episode में देखेंगे जो कई Families के माहौल को बदलकर रख देगी. 

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