Want To Fix Your Marriage? – Then Try This Ancient Indian Method | Friend Or Foe – Episode 31

भारतीय संस्कृति का यह रिवाज कई शादियाँ बचा सकता है👫

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By Jain Media 62 Views 18 Min Read

पति-पत्नी को लेकर भारत की अद्भुत संस्कृति.
प्रस्तुत है Friend or Foe का Episode 31

एक दूसरे की गलतियों को, भूलों को बार-बार देखकर सोचकर विचारकर पति-पत्नी के बीच में एक बड़ी दीवार खड़ी ना हो जाए, और फिर इस कारण से पति-पत्नी का जीवन ज़हर ना बन जाए, जीना मुश्किल ना हो जाए और इस प्रकार फिर सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त ना हो जाए इसलिए भारत देश की एक सामाजिक संस्कृति थी. 

वह संस्कृति यह थी कि शादी के बाद पत्नी गर्भवती हो या फिर कोई प्रसंग हो या फिर नहीं भी हो तब भी कुछ समय के लिए हर वर्ष वह अपने मायके चली जाती थी. हर साल करीबन 1-2 महीने वह अपने पीहर में रह आती थी. 

EP 30 में हमने ‘दूर से डूंगर लुभावने’ इस विषय को देखा था. एक बार फिर से देखिएगा. Short में कहे तो कोई भी चीज़ दूर से अच्छी ही दिखती है. उदाहरण Mountain. Mountains दूर से अच्छे दिखते हैं, पास जाते हैं या चढ़ते हैं तब ही उबड़ खाबड़ रस्ता, कंकड़, पत्थर, कांटे आदि दिखते हैं. 

इसी सोच से पत्नी के साथ एवं करीब हर समय रहने से, पत्नी की गलतियों को देखना, बार बार भूलों को Note करने का सिलसिला जारी ही रहेगा. यह फिर एक प्रकार की आदत बन जाती है. यह एक Routine बन जाए, और फिर रिश्ता ख़राब हो उससे पहले ही पत्नी 1-2 महीने के लिए आँखों से ओझल हो जाती थी.

भूले बंद, गुण शुरु

ऐसा कहा जाता है कि वस्तु या व्यक्ति के अभाव में ही उसका प्रभाव पता चलता है. हवा चल रही है तो चल रही है, जैसे ही हवा चलनी बंद होती है कि गर्मी लगने लगती है और हवा की Importance समझ में आती है और तुरंत पंखा याद आता है. अर्थात् कोई भी वस्तु जब दूर होती है तो उसकी Importance पता चलती है. 

पत्नी मायके जाती है और उसकी Importance की List तैयार हो जाती है जैसे कि अरे भाई जब पत्नी इधर थी तब कितना-कितना घर का कार्य करती थी, तीन टाइम का भोजन, माँ-बाप की सेवा, गुरु भगवंतों को गोचरी, बच्चों का संस्करण, मेरा पूरा ध्यान रखती थी. 

अब तो कोई चीज़ चाहिए तो तुरंत मिलती ही नहीं, किधर रखी होती है मुझे याद ही नहीं रहता, उसे फ़ोन करता हूँ तो वह बताती है कि इस रूम में इस अलमारी में आपकी वस्तु रखी है, मेरा घर असल में तो उसी से चल रहा है, इस प्रकार के ख्याल आने शुरू हो जाते हैं. 

हमारे साथ, हमारे नज़दीक रहनेवाला एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता है जिसने हमारे लिए तन-मन या धन का बलिदान देकर हम पर छोटा-बड़ा उपकार नहीं किया हो.. लेकिन हम गलतियों को देखने में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि उपकार देख ही नहीं पाते. 

पत्नी जैसे ही दूर हुई नहीं कि पत्नी के उपकार याद आने लगते हैं और फिर इन ख्यालों के कारण फिर से पत्नी के प्रति प्रेम भावना, आदर भावना जागृत होते लगती है अथवा बढ़ने लगती है. 

इंसान साथ में रहते हैं तो खिटपिट होनी ही है, तू तू मैं मैं होती ही है, उस समय पत्नी की गलतियों को देखते रहने के कारण वह ऐसा सोचता है कि उफ़, इसके कारण मैं कितना परेशान हो जाता है, मुझे तो इसकी बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है. 

जैसे ही वह कुछ समय के लिए दूर जाती है वैसे ही वह सोचता है कि नहीं, नहीं, पूरा घर वह संभालती है, मुझे संभालती है, मुझे मेरी पत्नी की आवश्यकता है, पत्नी के बिना तो मेरा गृहस्थ जीवन चल ही नहीं पाएगा. 

इस बात को वो दिल से स्वीकारने लगता है और फिर वह यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि अरे मैं मूर्ख आज दिन तक यह सोचता था कि मेरी पत्नी को कुछ आता ही नहीं है, जीवनभर गलतियाँ ही करती रहती है, एक काम ढंग से नहीं करती, मेरी यह सोच गलत थी, हे भगवान अगर आवेश में आकर उसे अपने जीवन से दूर कर दिया होता तो? बाप रे. मेरी आत्मा कभी भी मुझे इस अक्षम्य अपराध के बदले माफ़ नहीं करती. 

अच्छा हुआ मैंने आवेश में ऐसा-वैसा कुछ नहीं किया. ठीक है, अब वापिस जब श्रीमती पधारेगी, तब शायद कोई भूल दिख भी जाए तो भी मैं किसी आवेश में आकर कुछ गड़बड़ ना कर दूँ इसका मुझे ध्यान रखना पड़ेगा, वह भी तो इंसान ही है, आखिर इंसान से ही तो गलती होती है, मुझे मेरे दिमाग थोडा ठंडा रखना पड़ेगा. 

पत्नी से कुछ समय के वियोग के दौरान वह पति विवेक बुद्धि लगाता है और पति की विचारधारा में सहिष्णुता आती है, Patience बढ़ते हैं, और फिर तो जब पत्नी मायके से लौटती है तब पति के दिल में सद्भाव और प्रेम बढ़ गया है यह Clearly देख पाती है. 

फिर धीरे धीरे ऐसा 2-3 बार होने पर पति पहले की तरह उसकी भूलों को बार-बार कोसता नहीं है, टोकता नहीं है और द्वेष की, क्लेश की दीवार खड़ी नहीं होती. 

आदत बुरी बलाय 

अब मान लो पति आदत से लाचार है, Short Time Span में ही जल्दी से नाराज़ होने लगता है, गलतियाँ देखने लगता है, क्लेश करने लगता है, अनावश्यक पहले की बातों को निकालकर झगडा करते रहता है, और Extreme हो उससे पहले तो भारतीय संस्कृति की रीति के अनुसार पत्नी पीहर पहुँच चुकी होती है. 

फिर तो दूरी के कारण पति के दिल में पत्नी की ओर से जो भी छोटे-बड़े आघात लगे हो उनकी मरहम-पट्टी हो जाती है और सोच बदल भी जाती है. इसी तरह Vice-Versa पत्नी को भी पति से दूर रहने का ऐसा फायदा हो जाता है. यह Same Concept पत्नी पर भी उतना ही Apply होता है, वह भी दूर होते ही अपने पति के प्रति प्रेम भाव सद्भाव उसके ह्रदय में बढ़ने लगते हैं. 

यह सिर्फ पति-पत्नी तक नहीं पूरे घर पर भी इसका असर होता है. इस Process से घर पर रहनेवाले बाकी लोगों की भी मानसिकता Balanced रहती है. सास-ससुर, ननंद, देवरानी, जेठानी आदि के दिल में भी जो कटुता पैदा हो गई हो, झगडा हो जाए वैसी परिस्थिति आई हो वैसा माहौल बन रहा हो वह ठंडा पड़ जाता है. 

जिससे पत्नी चैन और स्वमान से अच्छा जीवन जी सके, वैसी संभावना खड़ी रहती है. जीवन में ज़हर घुलने के बजाय प्रेम का अमृत झरने लगता है. जब वह फिर से आती है तो सबकी आँखों में प्रेम-सद्भाव देखने को मिले तो ‘Life Is Worth Living’ की भावना उसके दिल में अपना स्थान जमा लेती है. 

In Case उसके मन में आत्महत्या के विचार आए हो तो वह दूर भाग जाते हैं. बाकी तो हम जीवन से परेशान होकर मरते हुए लोगों की खबर पढ़ते ही है, सुनते ही है. यह सामाजिक व्यवस्था आज अस्त-व्यस्त हो रही है क्योंकि हमने शायद इस Process को Marriage Life से उड़ा ही दिया है. 

कुछ घर ऐसे होते हैं जहाँ बहुओं को अपनाया ही नहीं जाता, अगर कोई गलती उससे हुई हो तो गलतियों को सुधारने के बजाय उसकी Marketing की जाती है. तो कुछ घर ऐसे भी होते हैं जहाँ बहुओं के Torture के कारण पूरा घर नरक जैसा ही बन जाता है. 

हर प्रकार के Cases देखने को मिलते ही है. समय समय पर लोगों के बीच दूरी आ जाए तो प्रेम बढ़ने लगता है, कमी महसूस होने लगती है और ह्रदय में उस व्यक्ति के प्रति मैत्री बढ़ने लगती है. लेकिन हाँ वह दूरी इतनी भी नहीं होनी चाहिए कि सामनेवाले व्यक्ति को ऐसा लग जाए कि अब तो उसके बिना मेरी Life चल ही सकती है. 

ये Gap का विवेक रखना भी आवश्यक है. ऐसा कहते हैं कि पत्नी को समय समय पर पीहर चले जाना चाहिए लेकिन इतना भी नहीं जाना चाहिए कि ससुराल में पत्नी के बिना काम चल सकता है यह Prove हो जाए. 

भारतीय संस्कृति और मर्यादा के इस पालन से और भी एक सुंदर लाभ होता है. इच्छा से या बिना इच्छा से भी 1-2-3 महीनों का ब्रह्मचर्य का पालन हो जाता है और इस कारण से शरीर का स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है. आज यह संस्कृति लगभग लुप्त होती जा रही है. 

इसलिए भूलों को, गलतियों को देखकर सुनाने का एक बार शुरू हुआ नहीं कि धीरे-धीरे कटुता बढ़ती ही जाती है. No Ending के साथ चलता ही जाता है. एक साथ एक- दो महीनों का विरह हो, वियोग हो वैसा अब बहुत कम हो रहा है. 

अतः उस व्यक्ति के गुणों को देखने का Chance नहीं मिल पाता है क्योंकि जब तक वस्तु-व्यक्ति नज़र के सामने होते हैं तब तक उसके गुण-उसका कार्य-उसकी आवश्यकता आदि लगभग किसी व्यक्ति या समाज के ख्याल में नहीं आते हैं. Surely Exceptional Cases हो सकते हैं लेकिन यहाँ पर Generally बात हो रही है.

शायर ने कहा भी है-‘महेंदी रंग लाती है सूखने के बाद, दोस्ती याद आती है बिछुडने के बाद.’ तभी तो ज्यादातर.. आदमी मर जाता है तब उसके गुणगान किए जाते हैं. वह हमसे बिछुड़ जाता है तभी उसकी महत्ता जगवालों को ख्याल में आती है. 

चश्मा और आँख 

चश्मा आँखों पर न हो तब उसकी Importance, उसकी Need ध्यान में आती है. एक सामाजिक चिंतक ने Workers को, नौकरों को एक सुनहरी सी सलाह दी है ‘आपको हर साल 8-10 छुट्टियाँ तो ले ही लेनी चाहिए जिससे सेठजी को आपकी आवश्यकता याद आती रहे, आपका अभाव उन्हें अखरता रहे.’ 

इस प्राचीन संस्कृति के कारण पति-पत्नी के बीच का रिश्ता Strong हो जाता था. लेकिन यह संस्कृति अब City की Fastforward Life में ख़त्म होती जा रही है. इस कारण से क्लेश, कटुता बढती ही जाती है और दो-चार वर्षों में झगडे इतने हद तक बढ़ जाते हैं कि साथ में रहते हुए भी एक दूसरे को जानी दुश्मन की तरह घूरने लगते हैं अथवा कल्पना भी नहीं कर सके, वैसी कोई भयानक दुर्घटना बन जाती है. 

प्रस्थापित संबंधों के बीच जब दराद पड़नेवाली हो ऐसा लगने लगे तब उस संबंध में कटुता का जहर पैदा होकर वैरभाव खड़ा हो जाए, उससे पहले ही बेहतर है कुछ समय तक उस व्यक्ति से दूर होकर दिल के घाव ठीक हो जाए उसका Wait करना चाहिए. 

कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि ‘उस व्यक्ति के साथ ही रहूँगा और ज्यादा प्रेम-वात्सल्य दिखाकर, समझौता करके संबंधों को सुधार लूँगा.’ यह गणित Rarely ही सही पड़ता है. ज्यादातर तो यह जुआँ महँगा पड़ जाता है और आखिर संबन्ध टूट जाता है. 

‘Being Married Is Easy But Staying Is Very Hard.’ शादी कर लेनी सरल है मगर शादीशुदा रहना बड़ा ही कठिन है क्योंकि संबंध टूट जाए, वैसी एक बार नहीं, हजारों और लाखों बार परिस्थितियाँ खड़ी हो ही जाती है. 

पति ने जोर से कहा कि ‘खिडकी बंद कर दो, हवा आ रही है.’ पत्नी ने बात बीच में काट दी और कहा कि ‘खिडकी खुल्ली रखिए, मुझे शुद्ध हवा चाहिए.’ 

काफी तू-तू-मैं-मैं के बाद, बरामदे की खिड़की खुल्ली रखने का फैसला किया गया. जिससे दोनों को कोई Problem न हो. वैसे एक नहीं, कई प्रसंग आते हैं जीवन में, जिनमें ठंड़े कलेजे से तुरंत हल निकल सकते हैं, मगर व्यक्ति उन तरीकों को अपनाने की बजाय कुछ लोग अपना दिमाग इतना गर्म कर देते हैं कि छोटी-छोटी बात पर बहुत भयानक परिणाम आ जाते हैं. 

ऐसे अवसरों पर 

ऐसे समय में एक काम कर सकते हैं, कोई Problem आए तो Problem किसके कारण आ रही है, तू तू मैं मैं के बजाय Solution पर Focus कर सकते हैं, और उस Solutions में कई ऐसे Solutions हो सकते हैं जिसमें सिर्फ हमें फायदा है, कई ऐसे हैं जिसमें सिर्फ सामनेवाले व्यक्ति को फायदा है और कई ऐसे हैं जिनमें दोनों को फायदा है. तीसरा वाला Best है जिसमें दोनों को फायदा हो. 

आक्षेपात्मक भाषा को छोड़ने में फायदा है जैसे कि तुम्हारे कारण ये सब हुआ, तुमने ये Problem खड़ी की है, और आज्ञा की बजाय प्रश्नात्मक वाक्यों को प्रयोग में ले सकते हैं. For Example-अब तुम ही इस Problem को Solve करो ऐसा नहीं कहकर ऐसा कह सकते हैं कि क्या हम दोनों मिलकर इस Problem को Solve करे? 

क्या लगता है यह Solution से Problem Solve हो जाएगी? Tone भी संभालनी है. सिर्फ इतना सोचना है कि जिस व्यक्ति ने गलती की है वह इंसान है, भगवान नहीं. गलती इंसान से होती है, हो सकती है और होगी ही. शांति से बात करने में फायदा है. 

चिल्लाकर हम व्यक्ति को दबा सकते हैं समझा नहीं सकते, झुका सकते हैं लेकिन प्रेम नहीं पा सकते, हरा सकते हैं लेकिन जीत नहीं सकते. 

हाँ एक बात और, गड़े मुर्दों को यानी पूरानी बातों को उखाड़ने की बच्चों जैसी हरकत रिश्तों में बिलकुल भी उचित नहीं है. अगर इतना Follow किया जाए तो जीवन में कटुता काफी हद तक ख़त्म हो जाएगी.

बहुत कुछ करने के बाद भी यदि जीवन में Problems Solve नहीं हो रही है तब कर्म सिद्धांत को लाकर समाधि रखना ही Final Option होता है.  

बाकी Solutions के मुकाबले यह Best है कि कुछ समय का Gap आ जाए, Physical दूरी आ जाए तो संबंधों में रही हुई कटुता ख़त्म हो जाती है. 

यदि दूर जाने की संभावना ना हो तो सामनेवाले को समझाने की कोशिश करने के बजाय अपने दिल में ही यह बात को बार बार सोच सकते हैं कि ‘मेरे जीवन में इस व्यक्ति का कितना बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है? इस व्यक्ति ने मेरे लिए क्या कुछ नहीं किया? आज छोटी सी बात पर मैं इस व्यक्ति से अलग होने की कैसे सोच सकता हूँ? Etc इस प्रकार विचार कर कटुता ख़त्म हो वैसा प्रयत्न कर सकते हैं. 

जिस बात में उसकी खामी हो उसको आगे करके उसकी गलतियाँ बताने के बजाय उस व्यक्ति में रही हुई अनगिनत खूबियों को आगे करके उसके गुणों की यदि प्रशंसा करते रहते हैं तो उस व्यक्ति पर सद्भाव बना रहता है और रिश्ता बिना टूटे चलता रहता है. इसी में बुद्धिमानी है बाकी बेवकूफी तो हम आस-पास देख ही रहे हैं जहाँ छोटी छोटी बात पर लोग दूर हो रहे हैं. 

कम खाना, गम खाना और नम जाना. ‘गम खाना.’ गम खाना यानी किसी से कोई गलती हुई हो तो उसे भूल जाना. ऐसा करने पर उस समय के लिए तो हमें हमारे अहंकार को झुकाना पड़ता है लेकिन ऐसा करने वाला व्यक्ति भविष्य में कभी पछताता नहीं है.

इस विषय पर Abraham Lincoln की एक घटना पूज्य श्री के द्वारा एक दैनिक पत्र में पढने में आई. जानेंगे अगले Episode में. 

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