How Lincoln’s Donkey Ended A Farmer’s Fight? Friend or Foe – Episode 32

एक टट्टू 🫏 ने किस तरह बदल दी किसान की सोच?

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Lincoln-The Man Of America!

प्रस्तुत है Friend or Foe का Episode 32 

Abraham Lincoln एक गरीब वकील थे. मध्यम वर्ग के लोग उनके पास दौड़े आते और Abraham Lincoln उनके लिए Case लड़ते. गलत Cases को वे Touch भी नहीं करते थे. वकालत ही उनकी रोजी-रोटी दिलाती थी फिर भी वे अपने आपको पहले मानव गिनते थे फिर वकील. 

इसलिए जब कोई छोटे-बड़े झगडों की बात होती, दोनों व्यक्तिओं का आपस में ही समाधान करा देते. इसमें शायद उनकी रोजी-रोटी टूटती थी मगर वे बेफिक्र रहते. मानवता के नाते उन्होंने जो काम लगन से किया उसके लिए वे पछताते नहीं थे. 

Lincoln महाशय एक टट्टू रखा करते थे. टट्टू यानी एक प्रकार का छोटा घोड़ा. उस पर वे Books लाद देते और एक गाँव से दूसरे गाँव जाते. टट्टू सामान्य जाति का था और थोड़ासा जिद्दी भी था. कभी-कभार गधे की तरह चलने का साफ-साफ इन्कार भी कर देता फिर भी काम चल ही जाता. 

एक बार रास्ते में एक किसान मिला. Lincoln ने अभिनंदन किया

‘Hello Uncle Tommy. आनंद में तो है?’
‘अरे, Abraham. तुम्हारे पास ही मैं आ रहा था.’
‘क्यों Uncle? मेरी ऐसी कौनसी जरुरत पड़ी?’

‘देखो न, Court में एक Case करना है. मैं जिस खेत में खेती करता हूँ, वहाँ का पडोसी अभी-अभी मुझे बहुत परेशान कर रहा है. मैंने निश्चय किया है कि जमीन-जायदाद बेचनी भी पड़े तो भी फिक्र नहीं. एक बार उस बच्चे को लोहे के चने चबवा दूँ, आसमान में तारे बता दूँ कि जो हमसे टकराएगा वह मिट्टी में मिल जाएगा.’ किसान ने पूरे जोश में अपने हृदय का उबाल उगल दिया. 

Lincoln ने कहा ‘Dear Uncle. आज दिन तक आप दोनों के बीच कोई तकरार झगडा नहीं हुआ, बात सच है?’
‘हाँ…’

‘तो उस दृष्टि से उसे एक अच्छा पडोसी कहा जा सकता है न?’
‘अच्छा तो नहीं, परंतु ठीक.’ 

‘फिर भी आप दोनों एक दूसरे के पडोसी बनकर वर्षों से रह रहे हैं, सच?’
‘हाँ, करीबन 15 साल तो हो गए.’
‘उन 15 सालों में कई अच्छे-बुरे प्रसंग बने होंगे?’  

‘अरे भैया, यह तो संसार है, चलता है.’
‘उन प्रसंगों में आप दोनों एक दूसरे की सहायता करते थे, है न?’
‘देखो Lincoln, वह तो पड़ोसी की फर्ज है न.’ 

Lincoln ने कहा कि ‘तो देखिए Uncle, यह मेरा जो टट्टू है वह कोई बहुत ऊँची जाति का नहीं है, कुछ जिद्दी भी है, शायद मैं इससे भी सुंदर दूसरा टट्टू खरीद सकता हूँ परंतु मैं इसकी खूबियों से परिचित हूँ. इसकी खामियों से मैं भलीभांति परिचित भी हूँ और आदी भी हो चुका हूँ. 

इससे अपना काम कैसे निकलवाना उन तरीकों से भी मैं अच्छे से परिचित हो चुका हूँ अतः मेरा काम भी कहीं रुका नहीं पड़ा रहता. दूसरा टट्टू लाऊँगा तो शायद वह इससे अच्छा भी मिले फिर भी उसमें यह नहीं तो वह कुछ-न-कुछ खामियाँ-कसर अवश्य रहेगीं ही क्योंकि हर एक टट्टू में कुछ-न-कुछ खामी तो होगी ही. 

मुझे फिर से बारहखड़ी सीखनी पड़ेगी अर्थात् उस नए टट्टू की नए सिरे से खामी और खूबी से परिचित होना पड़ेगा, उससे कैसे काम निकलवाना इस कला में भी माहिर होना पड़ेगा. अतः मुझे ऐसा महसूस होता है कि Old is Gold. जो है सौ सुंदर, इसीसे काम चला लेना उसमें मेरा और इस टट्टू का हित है.’ 

Lincoln का तीर निशाने पर लगा. किसान Lincoln का आशय समझ गया. खेत-खलिहान को लेकर पडोसी से लड़ने-झगड़ने में सर खपाने की बजाय उससे संधि करना, उसकी छोटी-मोटी भूलों को निभा लेना, उसीमें मेरा भला है एवं शांति और समाधि भी उसी में है यह आशय उसके हृदय को छू गया. 

Divorce-तलाक 

भारत संस्कृति, धर्म एवं मर्यादा प्रधान देश है, अतः तलाक Divorce जैसी चीज़ बच्चों का खेल नहीं माना जाता है, परंतु विदेश में ‘He For The Third Time And She For The Fourth’ यह आम बात है. दुःख की बात यह है कि आज भारत में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. 

छोटी छोटी बातों को लेकर तलाक विदेशों में हो वह समझ में आता था लेकिन भारत में हो तो आश्चर्य की बात है. एक बार विदेश में शादी के तुरंत बाद Court में Divorce के लिए अर्जी भरनेवाले Couple को पूछने पर पता चला कि ‘‘पत्नी ने पति से Signature बड़ा कर दिया, इसलिए तलाक चाहिए.’ विडंबना यह है कि आज भारत में भी इसी तरह छोटी छोटी बातों पर तलाक हो रहे हैं. 

एक विदेशी घटना 

विदेश की एक महिला ने न जाने कितनी बार Divorce लिए और शादी की. आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसने एक ही व्यक्ति के साथ पाँच-पाँच बार शादी की क्योंकि हर मनुष्य में कुछ-न-कुछ भूल तो अवश्य दिखेगी ही. तब उसे लगता कि इससे तो वह ठीक था, वापिस वही चक्कर. 

पुनः तलाक-शादी-पुनः तलाक-शादी. आख़िर उस महिला ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे ऐसा कोई आदमी नहीं मिला जिसमें कोई भूल ही नहीं हो और वह भूल देखने की इतनी आदी हो चुकी थी और इतनी ही असहिष्णु हो चुकी थी कि वह तुरंत ही तलाक ले लेती. 

उसे इस रीति को अपनाने से शांति के बदले अशांति की आग मिली. सुख के बदले दुःख की असह्य ज्वालाएँ मिली. काश, वह अपनी दृष्टि को ही सुधार लेती. मन को यदि वह मना लेती कि ‘If I Am Ok Everything And Everyone Is Ok.’ यानी यदि मैं ठीक हूँ, मेरी दृष्टि ठीक है तो सारी दुनिया ठीक है. 

बड़ा ही आश्चर्य है 

जिस व्यक्ति के साथ संबंध से जुड़कर काफी समय बीत चुका है और उस संबंध के कारण हमें काफी आनंद भी प्राप्त हुआ है. उसी व्यक्ति के साथ किसी छोटीसी बात को लेकर मन खट्टा हो गया और हम उस व्यक्ति की भूलों को देखने लगे. 

जो व्यक्ति पहले गुणियल लगता था, अच्छा लगता था वही व्यक्ति अब दोष से भरा हुआ लगता है. खूबियों से भरा हुआ वही व्यक्ति खामियों से भरा हुआ नज़र आता है.

मन भी कमाल का जादू करता है. जो दो Second के पहले खुशबू से मघमघायमान लग रही थी, वही अब बदबूदार लग रही है. हमें खामियाँ नज़र आने लगती है और हम उस व्यक्ति से संबंध तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. 

अब ठहरिए 

पूज्य श्री कहते हैं कि चित्त को थोडा स्वस्थ कीजिए ‘सोच विचारे जो करे, वो फिर ना पछताय.’ शायद अपनी कल्पनाएँ सच भी हो और उस व्यक्ति में कुछ खामियाँ हो भी सही फिर भी इसका मतलब यह तो बिलकुल नहीं निकल सकता कि मात्र हम फरियाद ही किया करें या उससे दूर भागते फिरें? 

जैसे उसकी अमुक खामियों को लेकर हमें किसी हद तक सहना पड़ा, नुकसान उठाना पड़ा. वैसे ही उसकी खूबियों से हमें कुछ-न-कुछ लाभ भी तो अवश्य हुआ है. कुछ रीति से वह हमारा नुकसानकर्ता है तो कुछ अपेक्षा से वह हमारा लाभकर्ता भी तो है. परंतु एक बार मन में एक आग्रह बंध गया फिर उस व्यक्ति के लिए चाहे कितने भी विचार क्यों न करे, हमारे विचार गलतियों को ही देखते हैं. 

पूर्वग्रह यानी किसी व्यक्ति, समूह या चीज़ के बारे में पहले से ही बिना उचित विचार या जानकारी के बनी हुई राय या धारणा. 

Tiles के ऊपर एक बार पानी को बहाया जाए उससे जो रेला चलता है, वह रेला सूखने के बाद भी Tiles के ऊपर एक ऐसा असर छोड़ जाता है जिससे बाद में जब कभी पानी उंड़ेला जाता है तब उस पूर्व रेले की रेखाओं पर ही वह अपने आप को फैलाता है. पानी का बहाव उसी झुकाव में ढलता है. 

उसी प्रकार एक बार बंधा हुआ पूर्वग्रह हमारे मन पर ऐसी एक संस्काररेखा अंकित कर देता है कि उसके बाद जब कभी कोई व्यक्ति के बारे में हम सोचते हैं तो उस पूर्वग्रह का Impact स्पष्ट रहता है. क्योंकि हमारी सोच उन्हीं संस्कारों की अंकित रेखाओं पर दौड़ रही होती है. 

जमीन के ऊपर एक बार Railway Track बिछा दी जाए, फिर चाहे हजारों KM क्यों न हो जाए, Train एक Inch भी Track से इधर-उधर नहीं होगी. उसी तरह, एक बार मनोभूमि पर पूर्वग्रह की एक Track खड़ी हो गई, फिर चाहे घंटों तक हम विचार क्यों न करेंगे, हम पाएँगे कि हमारी विचारधारा उस पूर्वग्रह के Track से एक Inch भी इधर-उधर नहीं है. 

इस एक तरफी बेरोकटोक चल रही मानसिक विचारधारा को रोक कर कुछ हम मध्यस्थ बनें, Neutral बने तो हमारी दृष्टि बदल जाएगी. फिर हमें सामनेवाला व्यक्ति इतना न तो खराब लगेगा, न इतना खामियों से भरा हुआ भी लगेगा. उसकी खूबियाँ भी हमारे समक्ष आने लगेगी और हमें वह व्यक्ति खूबसूरत लगेगा, द्वेष करने जैसा नहीं लगेगा. बल्कि अपार प्रेम और मैत्री का अधिकारी लगेगा. 

खूबियाँ देखने लगे तो खामियाँ देखने का कार्यक्रम अपने आप बंद हो जाएगा. खामियाँ दिखनी बंद होगी तो सहज है कि स्थापित प्रेम-वात्सल्य के संबंध अटूट रहेंगे, वरना वे भी टूट कर चूर-चूर हो जाते हैं और शत्रुता के भाव पैदा हो जाते हैं. एक व्यक्ति के साथ भी हम मैत्री संबंध को कर नहीं पाए या प्रस्थापित संबंधों को टिका नहीं पाए तो सर्वजीवों के साथ मैत्री संबन्ध कितना मुश्किल हो जाएगा? 

याद रखना होगा कि-मैत्री भावना को अखंडित रखने के लिए हमें एक महत्त्वपूर्ण काम करना पड़ेगा. अन्य की भूलों को भूल जाना. यह कोई छोटा काम नहीं है. सत्त्व की पराकाष्ठा को छुए बिना यह सिद्धि हासिल नहीं की जा सकती क्योंकि अन्य की भूल भूलने योग्य है फिर भी उसे भूलना यह बहुत कठिन काम है. कायर लोग नहीं इसे तो शौर्यवंत ही कर सकते हैं. 

Napoleon भी कायर 

Saint Helena के टापू पर कैद किया गया खूंखार शहंशाह Napoleon Bonaparte को जब उसके दोस्तों ने कहा ‘जब तक तू Nelson को शत्रु मान रहा है, जब तक तू उसे माफ नहीं करता, तब तक तुम्हारी प्रार्थना में दम नहीं आएगा. एक बार तू उसे माफ कर दे, तू उसे भूल जा और फिर देख तेरी प्रार्थना कैसी होती है?’ 

धरती को धुजानेवाले उस Napoleon ने अपनी कायरता को बताते हुए उस वक्त क्या कहा था पता है?-‘I Can Forgive Him But I Can’t Forget Him.’ यानी ‘मैं उसे माफ जरूर कर सकता हूँ मगर उसे भूल तो कभी नहीं सकूँगा.’ जिसकी Dictionary में Impossible शब्द नहीं था वैसे इस Napoleon के लिए भी सामनेवाले की भूल को भूल जाना कितना अशक्य था. 

सचमुच, वह उसके लिए एक Impossible कार्य था. अतः पराक्रम तो जरुर चाहिए होगा. अरे, बहुत चाहिए होगा. अद्भुत आनंद की अनुभूति होगी और यह छोटी बात नहीं है, यह एक बड़े इनाम जैसा है जो बिना पराक्रम के नहीं मिलेगा. दुनिया को जीत लेना फिर भी आसान है. खुद को जीतना, खुद के Ego को जीतना, खुद के अहंकार को जीतना बहुत बहुत बहुत मुश्किल कार्य है. 

मान लेते हैं हमारे सामने किसी न बहुत बड़ी गलती कर दी, और सबके सामने उसकी गलती को Expose करने का हमें मौका भी मिल गया ऐसी Situation में हम क्या करेंगे? अरे भाई ऐसा मौका कौन छोड़ेगा Right. लेकिन इस Situation में करना क्या चाहिए जानेंगे अगले Episode में. 

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