Why Did A Daughter-In-Law Reject The Offer To Separate From The Joint Family? | FOF – Episode 34

एक बहू ने क्यों ठुकरा दिया Joint Family से अलग होने का Offer?

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By Jain Media 4 Views 12 Min Read

ससुराल में इतना प्यार मिले.
प्रस्तुत है Friend or Foe का Episode 34

Respect पाने लायक बनना है? 

नवसारी के एक बड़ी उम्रवाले पुरुष की बात. उन्हें नियम है-थाली में जैसा आया, जो भी परोसा गया हो, चुपचाप खा लेना. भोजन करते वक्त या करने के बाद भी, उस विषय में एक शब्द भी बोलना नहीं. 

एक दिन की बात है. वे भोजन करने के लिए बैठे. बहू ने एक रोटी परोसी और दूसरे काम में व्यस्त हो गई. उसके बाद रोटी परोसने के बदले चावल परोस दिए. ससुरजी तो खा-पीकर हाथ-मुँह धोकर खड़े हो गए. 

पीछे से बहू को ख्याल आया ‘ओह. आज गड़बड़ हो गई.’ वह दौड़ी और ससुरजी के चरणों में गिर पड़ी ‘पिताजी. मुझे माफ कीजिए, आज मैंने भयंकर भूल की है.’ ससुरजी ने एक दम मधुरता से कहा कि ‘नहीं बेटा, इसमें कौनसी बड़ी भूल हो गई, वह तो कुछ काम आ गया होगा, इसलिए हो जाता है.’ 

बहु बोली कि ‘परंतु आपको भूखे रहना पड़ा न?’ ससुरजी ने कहा कि ‘उसकी कोई चिंता मत करना, शाम कहाँ नहीं आनेवाली?’ क्या बहु के ह्रदय में ससुरजी के लिए सम्मान नहीं बढ़ा होगा? क्या ऐसी घटना ने अच्छी छाप नहीं छोड़ी होगी. सोचने जैसा है.

पूज्य श्री कहते हैं कि घर में देव की तरह आपकी पूजा हो, वैसा चाहते है क्या? तो चाय फीकी आ गई, दाल में नमक ज्यादा डाल दिया गया है, कुछ मत बोलिए. चुपचाप खाकर उठ जाइए. No Complaints. No Comments. No Discussion. 

मनुष्य को Respect पाने लायक बनना है, साथ रहते परिवारजनों में प्रिय बनना है, लेकिन थोडा भी Adjust करना नहीं, थोडा भी बलिदान देने को तैयार नहीं, यह कैसी विचित्रता? 

बेटे ने खेलते-खेलते टीवी तोड़ दिया, या कोई खिलौना तोड़ दिया, या कोई कांच तोड़ दिया. अब उस पुत्र को धमका-धमकाकर रुलाने से टूटी हुई वस्तु सही होनेवाली नहीं है. एक और Situation ले लीजिए नौकर के हाथ से कोई वस्तु टूट गई, अब नहीं सुनाने जैसे शब्दों को सुनाने से वह वस्तु ठीक होने वाली नहीं है. 

यह जानते हुए भी जब पिता या सेठ अपनी जीभ पर Control नहीं रख सकते हो, तो वह पिता या सेठ Respect पाने की Expectations, आदरपात्र बनने की अपेक्षा कैसे रख सकता है?

Normal Situations में अच्छा व्यवहार रखना वह तो फिर भी आसान है और ऐसे में जो छाप पड़ती है उससे भी कई गुना गहरी छाप ऐसी Negative Situations में चुप रहने से पड़ती है, खुद के क्रोध को, खुद के आक्रोश को Control में रखने से पड़ती है. 

उस छाप को सामनेवाला व्यक्ति काफी ज्यादा समय तक याद भी रखता है कि जिस घटना में मुझे डांट पड़ सकती थी, वैसे में भी मुझे कुछ कहा नहीं.. और आदरभाव पैदा होते हैं. 

ससुराल में इतना प्यार

मुंबई के एक Middle-Class Joint Family की घटना. इस परिवार में एक विधवा माँ, चार शादीशुदा बेटे और उनका पूरा परिवार था. कुल 17 लोग एक साथ रहते थे. घर में बस तीन छोटे कमरे और एक Kitchen था. इतने लोगों के लिए जगह बहुत कम थी. 

ऐसे देखें तो बड़ी परेशानी थी, लेकिन उनके पास कोई और रास्ता नहीं था. उनकी कमाई इतनी नहीं थी कि दूसरी जगह जा सकें. चार भाइयों में से तीसरा भाई इंजीनियर था. उसे एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई. 

समय के साथ उसकी तरक्की हुई और कंपनी ने उसे एक अलग 1BHK घर का Offer दिया. उसने अपनी पत्नी से कहा, ‘चलो, हम वहाँ रहने चलें.’ लेकिन पत्नी ने साफ मना कर दिया. 

पति ने कहा, ‘यहाँ इतनी भीड़ है और बहुत परेशानियाँ हैं. अगर हम वहाँ चले जाएँ, तो हमें भी आराम मिलेगा और बाकी भाइयों को भी.’ पत्नी ने जवाब दिया, ‘हाँ, यहाँ भीड़ और परेशानियाँ हैं, मानती हूँ कि पूरा दिन शोर आवाज़ है, परेशान हो जाते हैं कभी कभी तो. फिर भी मुझे अलग रहना पसंद नहीं.’

पति ने बहुत समझाया कि यहाँ नींद भी ठीक से नहीं आती, घर में हर वक्त शोर रहता है, जैसे कोई बाजार हो. उसने पत्नी से मना करने का कारण पूछा. तब पत्नी बोली, ‘देखो, अगर माँ हमारे साथ आएँगी, तो मैं चलूँगी, वरना नहीं.’

सभी चारों भाइयों की पत्नियों को अपनी सास के प्रति बहुत सम्मान और प्यार था. सास को सभी बहुओं पर गर्व था, सभी संस्कारी थी और सब बहुए खुद को खुशकिस्मत मानती थी. लेकिन इंजीनियर को यह जानकर बहुत हैरानी हुई कि ऐसे तो नारियों को साथ रखना थोडा Difficult Task होता है, ऐसे में उसकी पत्नी को इस घर के प्रति और खासकर माँ से इतना लगाव था.

उसने पत्नी से इसका कारण पूछा. पत्नी बोली, ‘मुझे भी इसका सही कारण नहीं पता. लेकिन कभी-कभी सोचती हूँ तो हैरान होती हूँ. इस घर में मुझे 10 साल हो गए, पर माँ ने कभी मुझे ताना नहीं मारा. मेरे मायके के बारे में कभी बुरा नहीं कहा. 

मेरी छोटी-बड़ी गलती पर कभी दूसरों के सामने कुछ नहीं बोला. जब मेरे द्वारा कोई गलती हो जाती और दूसरी बहुओं के बीच कहा-सुनी शुरू होती, तो माँ बीच में आकर गलती अपने ऊपर ले लेतीं. 

वे कहतीं, ‘जो कहना है मुझे कहो, गलती मेरी है.’ ऐसा वो हर बहू के साथ करती थीं. जब भी कोई गलती होती, माँ उसे अपने ऊपर ले लेतीं. इस खूबी ने हम सबका दिल जीत लिया.’

माँ तीन बेटों को छोड़कर कहीं और जाने को तैयार नहीं हुईं. इसलिए Engineer की पत्नी ने उस छोटे से घर में ही रहना चुना. 

उसने सारी परेशानियों को हँसते-हँसते स्वीकार किया और वहाँ सालों बिताए. घर हो तो ऐसा. बाकी आस-पास हम देख ही रहे होंगे, जैसे थोड़े पैसे हुए नहीं कि तुरंत अलग होने की Planning शुरू हो जाती है.

परस्पर मेल है तो जीवन एक खेल है,
और परस्पर मेल नहीं, तो जीवन एक जेल है. 

मान लो बेटे ने टीवी तोड़ दिया, नौकर ने घड़ी तोड़ दी, या बहू ने घी गिरा दिया. टीवी टूटने या घी गिरने से जो नुकसान होता है, वो तो ठीक है. लेकिन इससे भी बड़ा नुकसान ये है कि बेटे, नौकर या बहू का दिल टूट जाए. 

उनके मन में हमारे लिए जो प्यार और सम्मान है, वो खत्म हो जाए. ये नुकसान बहुत खतरनाक है. इस नुकसान के बारे में हम सोचते ही नहीं है. इसलिए बेटे, नौकर या बहू को बार-बार डाँटना उनकी गलती से भी बड़ी गलती है. 

माँ-बाप, मालिक या सास अक्सर ऐसा करते हैं और फिर शिकायत करते फिरते हैं कि ‘मेरा बेटा मेरी बात नहीं मानता’, ‘नौकर को मैंने इतना कुछ दिया, फिर भी वो मेरे प्रति वफादार नहीं’, ‘बहू को मेरे लिए कोई सम्मान नहीं.’

जब सास के द्वारा अपने खुद के पैर से घी गिर जाता है, तो वो बहू को कहती है, ‘अरे बहू! घी को रास्ते में यूँ ही रखते हैं क्या? जरा भी ध्यान नहीं रखती, देखो मेरा पैर लगा और घी गिर गया!’ 

लेकिन वही सास जब खुद घी को इधर-उधर रख देती है और बहू के पैर से वो गिर जाता है, तो बहू को ताने मारती है, ‘तुम्हारे मायके वालों ने कुछ सिखाया नहीं क्या? घर में नीचे देखकर नहीं चल सकती? रसोई में तो चीजें इधर-उधर पड़ी रहती हैं, ध्यान नहीं रख सकती क्या?’

ऐसी सास को समझना चाहिए कि अपनी ताकत का गलत फायदा उठाकर वो अपने अहंकार को खुश कर लेती है. लेकिन ऐसा करने से वो बहू के दिल में अपनी जगह हमेशा के लिए खो देती है और आगे चलकर बेटा अलग रहने की सोचने लगे, इसका बीज वो खुद बो देती है. 

भविष्य में मान लो ऐसा कोई मौका आए जहाँ अलग होने की चर्चा हो तो बहु किस पक्ष में रहेगी वह कहने की ज़रूरत नहीं है. 

लेकिन जो सास इसके उल्टा करती है और कहती है, ‘गलती मेरी है’ या बहु से गलती होने पर ‘अरे कोई बात नहीं दुखी क्या होना लाओ हम दोनों मिलकर साफ़ कर देते हैं, घर है, काम करते हैं तो बनना बिगड़ना तो होता रहेगा, इसको लेकर दुखी क्या होना’ ऐसा बोलने में उस सास को शायद थोड़ी देर के लिए अपने अहंकार को छोड़ना पड़े, लेकिन बदले में वो बहू के दिल में बहुत ऊँची जगह बना लेती है. 

बेटे के अलग होने का दुख भी उसे भविष्य में सहना नहीं पड़ता. ये सुख क्या छोटा है? लेकिन यह सुख पाने के लिए अहंकार को छोड़ना पड़ता है, क्रोध को छोड़ना पड़ता है. भविष्य में अलग होने की चर्चा हो तो बहु सीधा बोल उठेगी कि मैं सास से अलग होने का सोच भी नहीं सकती. इसकी संभावना ज्यादा रहती है. 

Golden Rules For Peace

अगर लड़ाई-झगड़ों से बचना है, शत्रुता से बचना है, आपस में प्रेम और सद्भाव से रहना है, मन को हल्का-फुल्का रखना जीना है तो इन बातों को अपने हृदय की Dairy में कुरेदना जरुरी है-

  • सामनेवाले की भूल देखनी नहीं,
  • सामनेवाले की गलती दिख जाए तो याद करनी नहीं,
  • सामनेवाले की गलती उसे सुनानी नहीं या स्वीकार करवाने की कोशिश करनी नहीं,
  • अपनी भूल को, गलती को तुरंत स्वीकार करना, किसी भी प्रकार का बचाव करना नहीं.’ 

ये Points ऐसे Brakes है जो संघर्ष की, लड़ाइयों की, शत्रुता की गाडी को रोक सकते हैं.

Condition Simple है-अहंकार को नमो अरिहंताणं कहना पड़ेगा. 

इसलिए पूज्य श्री कहते हैं कि अपनी गलती को दूसरों पर डालने का कायरता का सरेआम प्रदर्शन करने के बजाय अन्य की गलतियों को मौका मिलने पर खुद के ऊपर लेने का शौर्य प्रकट करना चाहिए. 

दुसरे अनेकों कार्यों के मुकाबले इस वीरता वाले कार्य को करने से अन्य लोगों के दिल में हमारे प्रति प्रेम और सद्भाव पैदा हो और बढे, यह बहुत आसानी से हो जाता है.

ऐसी ही एक सौतेली माँ की रोंगटे खड़े कर देनेवाली घटना है.
जानेंगे अगले Episode में.

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