Heart Melting Story Of A Son And Step Mother | Friend or Foe – Episode 35

जिसे माँ नहीं माना, उसी ने माँ की परिभाषा बदल दी 👩‍🍼

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By Jain Media 45 Views 10 Min Read

सौतेली माँ के बलिदान की अद्भुत घटना.
प्रस्तुत है Friend or Foe पुस्तक का Episode 35

सौतेली माँ का बलिदान

एक 32 साल के अमीर आदमी की पत्नी की मौत हो गई. दोस्तों और रिश्तेदारों ने उसे दूसरी शादी करने की सलाह दी. लेकिन उसे डर था कि सौतेली माँ आएगी, तो उसका 5 साल का बेटा दुखी होगा. खुद के सुख के लिए बेटे को तकलीफ देने का उसका मन नहीं था. 

इसलिए उसने शादी की बात टाल दी. वह खुद ही बेटे की देखभाल करने लगा. दो साल बीत गए. फिर उसे लगा कि Business में Busy होने के कारण वह बेटे को पूरा समय नहीं दे पा रहा है. एक माँ.. जितना प्यार और संस्कार दे सकती है, उतना वह अकेले नहीं कर सकता. 

इसलिए उसने बेटे के भविष्य के लिए दूसरी शादी का फैसला किया. उसने अखबार में शादी के लिए Advertisement दी और साथ में लिखा कि ‘मेरे पहले बेटे को अपने बच्चे की तरह प्यार करने वाली महिला मुझसे संपर्क करे.’ 

एक साधारण परिवार की लड़की ने यह पढ़ा और उसने चुनौती स्वीकार की. उसने उस आदमी से मुलाकात की. आदमी ने कहा, ‘मैं ये शादी अपने लिए नहीं, बेटे के लिए कर रहा हूँ.’ लड़की ने वादा किया, ‘मैं आपके बेटे को अपने बच्चे से भी ज्यादा प्यार दूँगी.’

शादी हो गई. पड़ोसियों ने 7 साल के बच्चे के कान भर दिए, ‘तेरी सौतेली माँ आएगी. बाहर से प्यार दिखाएगी, लेकिन सच में वो तेरी माँ नहीं है. उसका प्यार नकली होगा.’ ये बात बच्चे के दिमाग में बैठ गई. उसे सौतेली माँ से पहले से ही नफरत हो गई.

शादी के बाद नई माँ घर आई. उसने बच्चे को सच्चा प्यार देना शुरू किया. अपनी इच्छाओं को छोड़कर वह उसकी देखभाल में लग गई. लेकिन बच्चा उसे ‘माँ’ नहीं मानता था. वो जितना प्यार देती, बच्चा उतना ही दूर भागता. 

उसे लगता, ‘पड़ोसी सही थे. ये नकली प्यार है. मैं इसे माँ नहीं मानूँगा.’ वह माँ को बेटे का प्यार नहीं मिलने से दुखी थी. फिर भी उसने हार नहीं मानी. चार साल तक उसने कोशिश की कि बच्चा उसे ‘माँ’ कहे, पर ऐसा हुआ नहीं. एक दिन बच्चे से गलती से Flowerpot टूट गया. 

यह Flowerpot पूर्वजों से विरासत में मिला हुआ था तो उसकी कीमत इसके पिता के लिए अनमोल थी. उसे पता था कि पापा को वो बहुत पसंद था और वे बहुत गुस्सा होंगे. वह डर से काँपने लगा और अलमारी के पीछे छिप गया.

शाम को पापा आए. फूलदान न देखकर पूछा कि Flowerpot किधर है. किसी ने भी जवाब नहीं दिया तो गुस्से में चिल्लाए, ‘Flowerpot कहाँ है? किसने तोड़ा?’ बच्चा डर से चुप रहा. सौतेली माँ ने देखा कि बच्चा डर रहा है. 

सौतेली माँ ने अपने सर पर लेते हुए कहा कि ‘ये गलती मुझसे हुई है, मैं रजाई साफ कर रही थी, उस समय मेरे हाथ से Flowerpot गिरकर टूट गया.’ पिता का गुस्सा फूट पड़ा. जो मन में आया वैसा सब बोलकर वो रूम में चले गया. सौतेली माँ एक जगह पर चुपचाप बैठ गई.

बच्चे ने सब देखा. वह दौड़कर आया और रोते हुए बोला, ‘माँ! माँ! तुमने मेरे लिए कितना सहा’ माँ ने खुशी से कहा, ‘बेटे, तूने मुझे ‘माँ’ कहा. ये सुख मेरे लिए बहुत बड़ा है. आज मुझे सच में बेटा मिल गया.’ उसने बच्चे को गले लगाया. चार साल की मेहनत एक पल में रंग लाई. 

उसकी एक गलती को अपने ऊपर लेकर उसने बच्चे का दिल जीत लिया.

वह महान है 

ज्यादातर लोग जब अपनी खुद की गलती को भी स्वीकारने को तैयार नहीं होते हैं तो अवसर पर अन्य की भूल को अपने माथे पर लेनेवाला व्यक्ति आम लोगों से अलग दिखने लगता है. वह Great कहलाता है. वह अवश्य ही लोगों में आदरपात्र बनता है, Respectable बनता है. 

अन्य की गलती को अपने सर पर लेनेवाला जब डाँट-फटकार, भयंकर अपमान, अन्य के आक्रोश आदि को सह लेता है तब, वह व्यक्ति-गलती करनेवाले व्यक्ति अथवा जानने वाले व्यक्ति के दिल में एक अत्यंत आदरणीय स्थान बना लेता है. 

पूज्य श्री कहते हैं कि अनेक सुंदर कार्य करने पर भी जो सुंदर छाप Create नहीं की जा सकती वैसी गहरी छाप इस कार्य से उत्पन्न की जा सकती है. 

क्योंकि बाह्य तपश्चर्या, सामायिक, प्रतिक्रमण अथवा दानादि फिर भी सरल हैं, परंतु अन्य की भूल को जानते हुए भी न कहना एवं स्वयं ने थोड़ा-बहुत सहन किया हो उसे न कहना, यह बहुत बड़ी कठिन बात है. यह लगभग हर एक व्यक्ति अपने अनुभव से जान सकता है. 

एक महात्मा की महत्ता 

मालेगाँव में एक बार पूज्य आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज साहेब की निश्रा में एक दिन बहुत बड़ी संख्या में साधु भगवंतों की गोचरी मांडली यानी भोजनमांडली बैठी हुई थी. उसमें गोचरी कम पड़ी यानी भोजन कम पड़ गया. 

एक महात्मा फिर से गोचरी के लिए गए और लाकर पूज्य भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज साहेब को बताई. रोटी-दाल-चावल के साथ कुछ Fruits भी थे. आचार्य श्री कड़क हो गए. वे खुद तो त्यागी थे ही, साथ ही शिष्य महात्मा में भी त्याग की भावना बनी रहे, त्याग के आदर्श जीवित रहे इसके लिए हमेशा जागृत रहते थे. 

आचार्य श्री ने कड़क होते हुए कहा कि ‘जो मिला वो उठाकर ले आते हो? दूसरी बार जाते हैं तब रोटी-दाल-चावल ही लाना चाहिए या फिर जो मिला-जितना मिला सब लेकर आना? ऐसा तो बिलकुल नहीं चलेगा. खाने की चीज़ें तो हज़ार मिल जाएगी- मना करना ही नहीं क्या? हम साधु त्यागी है या भोगी?’

वे महात्मा जो गोचरी लेकर आए थे उनके मुंह से सिर्फ इतने ही शब्द निकले कि गुरुदेव मुझसे भूल हो गई. हुआ ऐसा था कि एक अन्य महात्मा बीमार हुए थे, तो डॉक्टर ने उन्हें Fruits ग्रहण करने की सलाह दी थी. 

इसलिए उन्होंने ही गोचरी जानेवाले महात्मा को कहा था कि Fruit मिले तो लाना, इसलिए उन्होंने लाया था. एक तो बाहर घूम-घूमकर गोचरी लाए, खुद के लिए Fruits लाए भी नहीं, खुद की गलती नहीं फिर भी गुरुदेव ने 40-50 साधु भगवंतों के बीच कड़क शब्दों में Class ले ली. 

ऐसे में हमारे जैसा कोई होता तो तुरंत जो सच है वह कह देते. हम सोचेंगे कि ‘अगर मैं सच नहीं बताऊंगा तो गुरुदेव और अन्य सहवर्ती महात्माओं के मन में मेरे लिए कैसी Image बन जाएगी.’ शायद इतना सोचते भी नहीं सीधा कह देते कि ‘गुरुदेव ये महात्मा ने कहा था इसलिए लाया है’, बात ख़त्म.

लेकिन वे अद्भुत महात्मा थे. जिस Routine में हम चलते हैं उससे अलग. मानो उन्होंने मन में ऐसा सोचा होगा कि ‘मुझे तो ये खाना नहीं है, सिर्फ लेकर आया हूँ फिर भी गुरुदेव ने इतने कड़क शब्द कहे हैं तो ऐसे में अगर मैं कहूँगा कि यह महात्मा ने मंगवाया था, ऐसा जानकर तो ना जाने उन्हें कितने कड़क शब्दों में कहेंगे इसलिए अच्छा यही होगा कि मैं ही गुरुदेव का आक्रोश सह लूँ.’ 

थोड़ी देर के बाद अन्य महात्मा ने स्पष्टता की कि ‘गुरुदेव. यह साधु भगवंत ने मँगवाया था इसलिए इन्होंने लाया था और उन्होंने भी Doctor ने कहा था इसीलिये मँगवाया था.’ फिर तो पूज्य भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज साहेब ने भी उन महात्मा को कहा ‘भला, पहले ही यह बात कह देते, डाँट तो सुनानी नहीं पड़ती.’ 

गोचरी लाने वाले महात्मा ने एक बार कुछ देर के लिए डाँट-फटकार सुन ली, लेकिन पूज्य भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज साहेब के, मँगवाने वाले महात्मा के और अन्य सभी उपस्थित महात्माओं के दिल में जो गहरी छाप अंकित की वह क्या कभी मिट सकती है? 

पूज्य अभयशेखर सूरीश्वरजी महाराज साहेब भी उस मांडली में उपस्थित थे. आज बरसों बीत गए लेकिन आज भी पूज्य श्री को वह घटना याद है और जब भी उन्हें यह घटना याद आती है वे उन महात्मा को अहोभाव से याद करते हैं. 

धन धन मुनिवरा. 

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