Friend or Foe?
Foe यानी दुश्मन!
किसी को मित्र मानना या शत्रु?
मानसरोवर तो वही है मगर हंस के लिए वह मोतिओं का खजाना है तो बगुलों के लिए मच्छलियों का. इसी तरह हंस दृष्टिवाले जीवों के लिए यह जीवों का विश्व मैत्री का सरोवर है तो बगुले की दृष्टिवालों के लिए शत्रुता का सरोवर है.
चन्द्रमा में सौम्यता, सागर में गंभीरता और गुलाब में सौन्दर्य का दर्शन करना हंस की दृष्टि है. जबकि इन्हीं तीनों में अनुक्रम से कलंक, खारापन और काँटे देखना बगुले की दृष्टि है. ठीक, उसी तरह हर एक जीवों में मैत्री को देखना, मित्रता को देखना हंसदृष्टि है और शत्रुता को देखना यह बगुले की दृष्टि है.
गुलाब में काँटों का ही जो दर्शन करता है उस इंसान को बदकिस्मत कहा जाएगा क्योंकि वह उसकी सुंदरता और सुगंध को पा नहीं सकेगा. गुलाब को उससे कोई भी नुकसान नहीं है. इसी तरह जो व्यक्ति जीवों को शत्रु मानता है, नुकसान उसी व्यक्ति को है.
इसलिए तो ज्ञानीभगवंत कहते हैं कि ‘जड का राग तोड़ो और विश्व की तमाम जीवसृष्टि के साथ मैत्री जोड़ो, सभी जीवों को मित्र रूप से देखो, शत्रुरूप से किसी को भी नहीं. फिर देखो कि दुखःनाश कितना सरल बनता है और सुख प्राप्ति कितनी सहज हो जाती है.’
जीवों के साथ शत्रुता को घटा दे और मित्रता को जमने दे ऐसी अनेक बातें इस पुस्तक में हमें मिलेगी. जीवों के साथ दुश्मनी सिर्फ विश्व युद्धों में ही नहीं, बल्कि अनादिकाल से यानी Infinite Time से इस जीव के साथ जुडा हुआ रोग है. उस रोग की पराकाष्ठा ही युद्ध हैं.
किसी की भी भूल और अपराध को देखकर दिल में द्वेष या तिरस्कार होने लगे तब यह सोचना कि उसके स्थान पर यदि मैं होता तो क्या करता? आज जो कठोर और निष्ठुर दिखता है वही जीव शायद कल उठकर अपने से पहले भी मोक्ष में चला जाए.
सिद्धावस्था की Raw Material है और उसको भी मैं सिद्ध रूप में नमस्कार करता हूँ, फिर उस पर दुर्भाव क्यों? ‘यह हीरे की कच्ची रफ है’ ऐसा जाननेवाला ज़ौहरी उस रफ को पाँव तले रौंदता नहीं है. चाहे उस रफ में उस वक्त कितने ही दाग-धब्बे या ऊबड-खाबड़पन भी क्यों न नज़र आते हो क्योंकि वह उस रफ को हीरे की नज़रों से देखता है.
किसी भी जीव में आज चाहे कितने भी दोष क्यों न दिखते हो, आखिर वह भी तो सिद्धात्मा है. उसमें भी केवलज्ञानादि प्रकृष्टगुणों का खजाना छुपा पड़ा है. तो क्यों उस पर द्वेष या तिसस्कार बरसाया जाए?
अतः चलिऐ हम हमारे आत्माराम को यानी हमारी ही आत्मा को कहे ‘हंसा! तू झील मैत्री सरोवर में.’
अगले हफ्ते से लगभग हर Saturday 1 Episode Publish करेंगे. यह पुस्तक का हिंदी में नाम है ‘हंसा! तू झील मैत्री सरोवर में!’ और English में है Friend or Foe. सब अपने अपने जीवन में यह Book को Relate कर पाए इसलिए हम इस Series का नाम FRIEND OR FOE रख रहे हैं.
दुनिया में कहे या हमारे अपने जीवन में, जो Negativity फ़ैल रही है, जो लोगों में आपसी शत्रुता बढती जा रही है, उसका यह पुस्तक सटीक इलाज है. Anger, Depression, Anxiety, Stress, HyperTension जैसे अनेक Problems का यह पुस्तक एक One Point Solution हो सकता है, यदि सुनकर जीवन में Apply करने में आए तो.
Please Note : हम As it is नहीं बल्कि, थोड़े बहुत Changes करके एवं जहाँ उचित लगे वहां पर कुछ बातें Add करके भी Present करेंगे जिससे Readers आसानी से और सरलता से सारे Topics को समझ पाए.
यदि आप अपने पूरे परिवार के साथ इस Series Articles Share करेंगे और हर Episode पढ़कर आपस में वही Topic Discuss करेंगे तो फायदा ज्यादा हो सकता है. तो बने रहिए Jain Media के साथ.
यह पुस्तक Friend or Foe English, हिंदी, गुजरती, तीनों भाषा में www.hrudayodgaar.com Website पर Available है.