10 Amazing Facts About Navpadji

नवपदजी के 10 अद्भुत रहस्य !

Jain Media
By Jain Media 94 Views 14 Min Read
Highlights
  • संपूर्ण धर्म का, शासन का, तीर्थंकरों के उपदेश का सार है नवपद. संसार की हर एक चीज़ जिसमें सार है उसका समावेश नवपद में होता है. जिस भी आत्मा को नवपद में स्थान मिलता है वह आत्मा अक्षय-अजर-अमर बनती है.
  • नवपद ओली का महत्व पर्युषण पर्व से अधिक है, क्योंकि पर्युषण पर्व शाश्वत नहीं है लेकिन नवपद ओली शाश्वत है.
  • शाश्वत नवपदजी में वैसे तो हर एक पद महान है लेकिन अगर अमुक दृष्टी से देखा जाए तो साधु पद सबसे महान होता है. वह कैसे? जानिए इस Article के माध्यम से.

नवपद जी की ओली के बारे में तो हम सब ने सुना ही है लेकिन क्या हम जानते है कि नवपद ओली का क्या महत्व है? तो आइए जानते है 10 Amazing Facts के द्वारा नवपद ओली की अद्भुत महिमा इस Article के माध्यम से.

बने रहीए इस Article के अंत तक. इस Article को अपने Friends और Family के साथ Share करना ना भूलें.

Shashwat Navpad Oli 

हम सभी के लिए पर्युषण पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, पर्युषण के आठ दिन हम अत्यंत भावपूर्वक भगवान की सेवा-पूजा-भक्ति आदि करते हैं लेकिन अगर हमें यह कहा जाए कि पर्युषण से ज्यादा महान नवपद ओली है तो क्या हम विश्वास करेंगे? 

जी हाँ, अपेक्षा अनुसार नवपद ओली का महत्व पर्युषण पर्व से अधिक है, क्योंकि पर्युषण पर्व शाश्वत नहीं है लेकिन नवपद ओली शाश्वत है. शाश्वत का अर्थ है जो कभी मिटता नहीं, अनादि काल से है और अनंत काल तक रहेगा. Yes, It Is Immortal & It Shall Exist Forever! इसलिए जितने हर्षोल्लास के साथ हम पर्युषण पर्व की आराधना करते हैं उतने ही हर्षोल्लास के साथ हम नवपद ओली की भी आराधना कर सकते हैं.

Original Nature Of Soul

ऐसा कहा जाता है कि इस दुनिया में जितनी भी वस्तु है उनमें कीमती से कीमती, श्रेष्ठ से श्रेष्ठ, दुर्लभ से दुर्लभ जो वस्तु है वह है नवपद की आराधना. संपूर्ण धर्म का, शासन का, तीर्थंकरों के उपदेश का सार है नवपद. संसार की हर एक चीज़ जिसमें सार है उसका समावेश नवपद में होता है. जिस भी आत्मा को नवपद में स्थान मिलता है वह आत्मा अक्षय-अजर-अमर बनती है. 

गुरु भगवंत पूछते हैं कि हमारे जीवन में भौतिक सुखों की बहुत इच्छा होती है कि हमे यह Post चाहिए और उसे पाने के लिए जितनी मेहनत हमें करनी पड़ती है हम करते भी हैं लेकिन क्या हमने किसी दिन यह विचार किया कि मुझे नवपद में स्थान चाहिए? मेरा भी नंबर नवपद में लगना चाहिए?

जैसे संसार में पैसे कमाना सहज है, वैसे नवपद ओली की आराधना करते वक्त यह पद मुझे मिलना चाहिए ऐसी कामना हमने की है? नवपद में जो भाव है वह आत्मा के मूल भाव है. आत्मा से बिछड़े हुए Original भावों को मिलाने के लिए व्यक्ति नवपद ओली की आराधना करते हैं.

9 Qualities In Navpad 

नवपद की महिमा तो हमने जानी, अब जानते हैं नव पदों का जो क्रम है उसकी क्या विशेषता है. 

पहला पद अरिहंत
अरिहंत का अर्थ है जिसने आंतरिक शत्रुओं पर विजय पा ली हो. अरिहंत परमात्मा के हम पर अनंत उपकार हैं इसलिए उनका पहला स्थान है.

दूसरा पद सिद्ध
सिद्ध का अर्थ है मुक्त आत्मा. सिद्ध इस ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति है इसलिए उनका दूसरा स्थान है.

तीसरा पद आचार्य
आचार्य धर्म के चक्र को चलाने वाले होते हैं इसलिए उनका तीसरा स्थान है. 

चौथा पद उपाध्याय
उपाध्याय.. आचार्य के मुख्य सहायक होते हैं इसलिए उनका चौथा स्थान है.

पांचवा पद साधु
साधु अपनी आराधना के बल पर धर्म की प्रभावना करतें है इसलिए उनका पांचवा स्थान है.

छठा पद सम्यक दर्शन
यह इन पांच पदों पर श्रद्धा बनाता है इसलिए इसका छठा स्थान है.

सातवा पद सम्यक ज्ञान
यह इस श्रद्धा को मज़बूत बनाता है इसलिए इसका सातवा स्थान है.

आठवा पद सम्यक चारित्र
सम्यक चारित्र मतलब आचरण. मोक्ष को प्राप्त करने के लिए सही आचरण चाहिए इसलिए इसका आठवा स्थान है.

नवमा पद सम्यक तप
सम्यक तप मोक्ष पाने के लिए कर्म निर्जरा का साधन है इसलिए इसका नवमा स्थान है.

Why Is Navpadji Immortal?

नवपद शाश्वत क्यों है? क्योंकि नवपद में कोई व्यक्ति नहीं लेकिन पद है. पद मतलब आध्यात्मिक गुणमय अवस्था. नवपद के प्रथम पांच पद साधना की उपलब्धियां है और अंतिम चार पद वह उपलब्धि तक ले जाने वाले गुण है. 

भरत क्षेत्र, महाविदेह क्षेत्र, एरावत क्षेत्र और भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल – ऐसे 3 क्षेत्र और 3 काल के किसी भी तीर्थंकर का शासन ऐसा नहीं है जहां नवपद या उसकी आराधना नहीं है. सिर्फ नवपद नहीं उसकी आराधना का काल भी शाश्वत है! नवपद की आराधना से जो सुख मिलता है वो भी शाश्वत है, नवपद ओली करते वक्त जो भाव पैदा होते हैं वो भी शाश्वत है!

Connection Between Navpad & Ayambil Tap

इस श्रेष्ठ नवपद की आराधना करने के लिए तीर्थंकर परमात्मा ने जो मार्ग बताया है वो है आयंबिल ओली तप. 

आयंबिल में छः विगई का त्याग किया जाता है. बिना स्वाद के बिना रस के जब इंसान अपनी मन की वृत्तियों को नियंत्रित करते हुए भोजन करता है और तप पूर्वक करता है, एक समय के लिए करता है तो ऐसा आयंबिल इंसान के अंदर कई सुंदर शक्तियों का निर्माण करता है. समभाव की साधना करना यही आयंबिल ओली का मूल है. तीर्थंकर परमात्मा ने इच्छा निरोध में ही सुख कहा है और आयंबिल की ओली उस सुख का Medium है.

Mayna Sundari & Shripal Raja’s Story

आज से 11 लाख 86 हजार साल पहले बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के शासन काल में आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरीजी महाराजा हुए थे. उन्होंने मयणा सुंदरी और श्रीपाल राजा को दृष्टिवाद नामके अंग में से विद्याप्रवाद नाम के पूर्व में से यह नवपद ओली की आराधना बताई थी. श्रीपाल राजा और मयणा सुंदरी ने श्रद्धा से, विधिपूर्वक और बहुमानपूर्वक इसकी आराधना भी की जिसके कारण श्रीपाल राजा का रोग और उनके साथ 700 कुष्ट रोगियों का भी रोग दूर हुआ था. 

श्रीपाल राजा ने जो आराधना की थी उसके कारण उनको हर फल 9 के अंक में मिला जैसे 9 बार राज्य की प्राप्ति हुई, 9 कन्याओं के साथ उनका विवाह हुआ, उनके पास 9 हजार हाथी थे, 9 लाख घोड़े थे, 9 करोड़ पैदल सैनिक उनके पास थे. 9 हजार रथ थे, 9 पुत्रों के साथ 9 सौ साल तक राज्य का पालन किया. वे मरकर 9वें देवलोक में गए और आनेवाले 9वे भव में वे मुक्ति सुख यानी मोक्ष को प्राप्त करेंगे.

Jain Acharya Mandev Suriji’s Story

आयंबिल का तप इंसान का सुरक्षा कवच होता है. हर समस्या का समाधान आयंबिल से हो सकता है. इसे हम एक सच्ची घटना के आधार पर समझते हैं. लघु शान्ति सूत्र के रचियता मानदेवसूरी महाराजा थे. उन्होंने नाडोल राजस्थान में जया विजया देवी की साधना कर लघु शान्ति सूत्र की रचना की. मानदेवसूरी महाराजा के दोनों कंधो पर लक्ष्मी और सरस्वती के चिन्ह थे. 

मानदेवसूरीजी के आचार्य पदवी की विधि करते समय जब ऊपर का वस्त्र निकाला गया और गुरु से वासक्षेप लेने के लिए जब वे झुके तब गुरु ने कंधे पर बने लक्ष्मी और सरस्वती के चिन्ह देखे और गुरु ने आचार्य पद देने से इन्कार कर दिया. मानदेवसूरीजी ने गुरु के सामने करबद्ध होकर गुरु से पूछा कि ‘क्या हुआ गुरुदेव? क्या मुझसे कोई गलती हुई है?’

गुरु ने कहा कि ‘नहीं! गलती कुछ नहीं हुई लेकिन आपके कंधे पर जो लक्ष्मी और सरस्वती के चिन्ह है, वे यह बताते है कि आपके पास विद्याऐं भी बहुत आएंगी और लक्ष्मी भी. धनवान लोग आपके आस पास घूमेंगे, आप एक चीज बोलेंगे और लोग दस खरचेंगे और इसलिए लक्ष्मी आपके जीवन में उत्पात कर सकती है और विद्याऐं भी बहुत आएंगी, ये विद्याएं आपको परेशान कर सकती है. यह लक्ष्मी और सरस्वती का सुमेल तुम्हारा जीवन बर्बाद न कर दे इसलिए में आपको आचार्य पदवी नहीं दे सकता.’ 

मानदेवसूरीजी ने कहा कि ‘गुरुदेव अगर आपकी आज्ञा हो तो में आज से जब तक जीवंत रहूँगा तब तक आयंबिल का तप करूँगा.’ उनके गुरु को भी यह उचित लगा कि अगर आयंबिल का सुरक्षा कवच अगर मानदेवसूरीजी के साथ होगा तो कुछ भी गलत घटित नहीं होगा. गुरुदेव ने मानदेवसूरीजी को वासक्षेप डाला और बड़े ही धूम धाम से आचार्य पदवी हुई. उसके बाद मानदेवसूरीजी ने जीवन भर आयंबिल किया और उसके प्रभाव से उन्हें बिलकुल भी परेशानी नहीं हुई.

यह है आयंबिल का प्रत्यक्ष चमत्कार.

Benefits Of Navpad Oli

अब देखते हैं नवपद ओलीजी का क्या फल होता है. 

1. नवपद ओली की आराधना करने से तमाम रोग दूर होते है. 
2. श्री सिद्धचक्रयंत्र के स्नात्रजल के पानी से 18 प्रकार के कुष्ट रोग दूर होते है. 
3. 84 प्रकार के Gas Problems मिट जाते है. 
4. फुंसी और फोड़े भी ठीक हो जाते है. 
5. भयानक फिशर जैसी बिमारी भी ठीक हो जाती है. 
6. जलोदर और पेट फूलने जैसे रोग भी ठीक हो जाते है. 
7. हर प्रकार की व्याधि शांत होती है. 
8. Slow Poison यानी मंद ज़हर का असर ख़त्म होता है.
9. बुखार ख़त्म होता है. 
10. नासुररोग यानी जो रोग ठीक न हो सके ऐसे रोग, सन्निपात यानी दिमागी बुखार का रोग भी ठीक होता है. 

ऐसी तो बहुत लम्बी List है.

Importance Of Sadhu Pad 

शाश्वत नवपदजी में कौनसा पद सबसे महान होता है? वैसे तो हर एक पद अपने स्थान पर महान ही है लेकिन अमुक द्रष्टि से देखें तो साधु पद सबसे महान है. अरे! अरे! अरिहंत पद होते हुए साधु पद सबसे महान कैसे? यही प्रश्न उठा होगा मन में. इसके अनेक कारण है. 

अरिहंत परमात्मा भी पहले दीक्षा लेकर साधु ही बनते हैं उसके बाद अरिहंत बनते है और साधु तो वे है ही. सिद्ध भगवंत भी पहले साधु ही बनते हैं उसके बाद ही साधना करके सिद्ध बनते है. आचार्य और उपाध्याय भी पहले तो साधु ही होते है न? और आचार्य और उपाध्याय बनने के बाद भी वह हैं तो साधु ही. दर्शन-ज्ञान-चारित्र और तप यह चार गुणों का समावेश साधु में ही तो है. साधु के बिना इन गुणों का कोई आधार नहीं है. साधु है तो यह गुण है. 

इन सब के आधार पर हम कह सकते है कि साधु पद सबसे महान पद है. 

Science Of Navpadji   

क्या हमने कभी सोचा है कि नवपद की ओली सिर्फ अश्विन और चैत्र के महीने में ही क्यों आती है? इसके पीछे Science Of नवपद है. जी हाँ, जैन धर्म के सिद्धांत विज्ञान से Connected है, जुड़े हुए हैं. जैन शास्त्रों में जो भी लिखा होता है उसका कुछ न कुछ Scientific Significance होता ही है. 

अश्विन और चैत्र महीने के दिनों में दिन और रात की अवधि नहीं बदलती रहती है यानी English Calendar के हिसाब से लगभग March-April और September-October  महीनों के दौरान रात और दिन की अवधि लगभग Same होती है. 

The Length Of The Days And The Length Of The Nights Are Almost Equal!

इसलिए नवपद ओली इन दिनों में होती है. चूँकि दिन और रात की अवधि लगभग समान होती है, इन दिनों में प्रकृति संतुलन में रहती है. The Nature is in Balance. इन दिनों ना ही ज्यादा गर्मी होती है, ना ही ज्यादा ठंडी होती है. यह मध्यम ऋतू है जो ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्तियों की साधना करने के लिए बिल्कुल उपयुक्त है, Relevant है. इसलिए नवपद ओलीजी की आराधना इन दिनों की जाती है. 

“नवपद यानी निर्वाण का सर्वश्रेष्ठ साधन.
नवपद यानी सकल जीवराशि की पालक माता.
नवपद यानी आधी व्याधि और उपाधि रूप,
संसार का नाश करने वाला एक अद्वितीय परिबल.”

ऐसे महान नवपद ओलीजी की आराधना करके हम भी मुक्ति सुख की तरफ एक कदम बढ़ा सकते हैं.

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *