Mahapurush Ashadhabhuti’s Incredible Turnaround | Bharhesar Sajjhay | Jain Story

एक लड्डू कैसे बना एक साधु के पतन का कारण?

Jain Media
By Jain Media 55 Views 21 Min Read

क्या एक छोटासा लड्डू किसी की जिंदगी बदल सकता है? 

तो आइए जानते हैं भरहेसर सज्झाय के महापुरुष अषाढ़ाभूति की रोचक कथा, जहाँ एक लड्डू ने उन्हें रास्ते से भटकाया लेकिन उनके गुरु द्वारा दिया हुए नियम उन्हें फिर से सही Track पर ले आया. 

बने रहिए इस Article के अंत तक. 

बालक अषाढ़ाभूति की दीक्षा 

एक बार प.पू. आचार्य भगवंत श्री धर्मरुचि महाराज साहेब की जबरजस्त धर्मदेशना को सुनकर अषाढ़ाभूति नामक एक बालक को वैराग्य के भाव हो गए. वह आचार्य भगवंत के पास आया और बोला ‘गुरुदेव, संसार के बंधनों से मैं मुक्ति चाहता हूँ, कृपया मुझे दीक्षा प्रदान करें.’ 

आचार्यश्री ने बालक अषाढ़ाभूति के शरीर के लक्षणों की जांच की और आचार्यश्री को अषाढ़ाभूति में चारित्र-पालन यानी साधु जीवन जीने की योग्यता दिखी. आचार्यश्री ने अषाढ़ाभूति से कहा ‘तुम अपने माता-पिता से अनुमति ले आओ, मैं तुम्हें जरुर दीक्षा दूंगा.’ 

यह सुनकर अषाढ़ाभूति अपने घर आया और उसने अपने माता-पिता को समझाने की कोशिश की. पहले तो उसके माता-पिता दीक्षा के लिए राजी नहीं हुए लेकिन बाद में अषाढ़ाभूति के अति आग्रह को देखकर राजी हो गए. 

शुभ काम में देर ना करते हुए एक शुभ दिन अषाढ़ाभूति ने आचार्यश्री के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया और दीक्षा जीवन स्वीकार किया. अषाढ़ाभूति से वे अब बालमुनि अषाढ़ाभूति बन गए. 

कुछ ही वर्षों की ज्ञान-ध्यान की साधना के Result से उन्हें अनेक प्रकार की लब्धियाँ प्राप्त हुई यानी Special Powers. अब वे बालमुनि अषाढ़ाभूति नहीं थे. वे युवा अवस्था में Enter हो चुके थे और यौवन के साथ ही उनकी सुंदरता भी Peak पर पहुँच चुकी थी. 

एक दिन अषाढ़ाभूति मुनि राजगृही नगरी में गोचरी के लिए पधारे. दोपहर का समय था और धुप तेज थी जिस कारण नीचे धरती तपी हुई थी. चारों ओर भीषण गर्मी होने पर भी अषाढ़ाभूति मुनि अत्यंत ही शांत और गंभीर थे. 

लड्डू का लालच 

अषाढ़ाभूति मुनि ईर्यासमिति आदि का पालन करते हुए गोचरी वहोर रहे थे. अचानक उन्होंने किसी नट यानी Dancer के भवन में प्रवेश किया और धर्मलाभ कहा. 

धर्मलाभ की ध्वनि सुनते ही नटराज की दो बेटियाँ भुवनसुंदरी और जयसुंदरी एक सुगंधित लड्डू लेकर आई और अत्यंत ही सम्मानपूर्वक उन्होंने अषाढ़ाभूति मुनि को वह लड्डू वहोराया. अषाढ़ाभूति मुनि लड्डू वहोरकर नटराज के भवन से बाहर आए. 

वह लड्डू अत्यंत ही सुगंधित था, उसकी Smell अषाढ़ाभूति मुनि के नाक को छू गई और वे सोचने लगे 

कितना अच्छा लड्डू है. इसकी सुगंध इतनी अच्छी है तो ये लड्डू खाने में कितना बढ़िया होगा लेकिन इस लड्डू पर तो सबसे पहले आचार्य भगवंत का अधिकार रहेगा, मुझे थोड़े ही मिलने वाला है इसलिए क्यों ना कुछ ऐसा करूँ जिससे इस भवन से दूसरी बार लड्डू वहोरकर ला सकूँ. 

एक छोटे से लड्डू के लालच में आए हुए अषाढ़ाभूति मुनि ने रूप परिवर्तन के Power का Use किया और एक दुसरे साधु का रूप लेकर अषाढ़ाभूति मुनि वापस वही नटराज के भवन में गए और अलग आवाज में जोर से ‘धर्मलाम’ कहा. 

नटराज की बेटियों ने दूसरे मुनि को देखकर उन्हें भी एक सुगंधित लड्डू वहोराया. उस लड्डू को लेकर अषाढ़ाभूति मुनि बाहर आए और सोचने लगे ‘यह लड्डू तो उपाध्यायजी भगवंत को मिलेगा, मुझे थोड़े ही मिलने वाला है.’

यह सोचकर उन्होंने लड्डू के लालच में एक बार फिर एक वृद्ध मुनि का रूप लिया और वापस नटराज के भवन में जाकर ‘धर्मलाभ’ कहा. नटराज की बेटी ने वृद्ध मुनि को भी एक लड्डू वहोरा दिया. 

वृद्ध के वेष में रहे अषाढ़ाभूति मुनि नटराज के भवन से बाहर आए और सोचने लगे ‘यह लड्डू भी तो तपस्वी मुनि को मिलेगा, मुझे थोड़े ही मिलने वाला है?’ अब अषाढ़ाभूति मुनि ने एक बालमुनि का रूप किया और वापस नटराज के भवन में पहुँच गए. 

नटराज की बेटियों ने बालमुनि को देख उन्हें भी एक लड्डू वहोरा दिया. अषाढ़ाभूति मुनि बाहर आए और ख़ुशी से सोचने लगे ‘आज तो ऐसा स्वादिष्ट लड्डू मुझे वापरने (खाने) को मिलेगा.’ 

स्वाद की आसक्ति ने यानी Taste के Attachment ने अषाढ़ाभूति मुनि को चारित्र की सीढ़ी से एक कदम नीचे उतार दिया था. 

नटराज की चाल 

अषाढ़ाभूति मुनि के रूप परिवर्तन के इस पूरे Incident को भवन की खिड़की से नटराज ने देख लिया और उसने सोचा ‘इस मुनि के पास अद्भुत शक्तियाँ हैं. यह तो सच में स्वर्णपुरुष है. इसके जैसा व्यक्ति अगर मेरे साथ में हो तो मेरे घर में पैसों की कभी कमी नहीं होगी इसलिए मैं इसे वश में कर लेता हूँ.’

नटराज ने अपनी पत्नी और बेटियों को कहा 

यह साधु रसना यानी स्वाद का लोभी लगता है लेकिन इसके पास रूप परिवर्तन की अ‌द्भुत शक्ति है इसलिए उसे अच्छा अच्छा भोजन देकर प्रभावित करना. रसना का लोभी होने से यह तुरंत फँस जाएगा. यह यदि अपने वश में हो गया तो अपना घर मालामाल हो जाएगा. 

अषाढ़ाभूति मुनि गोचरी वहोरकर अपने गुरुदेव के पास आए. साधु भगवंत गोचरी वहोरने के लिए जरुर जाते हैं लेकिन उस गोचरी में मिली हुई वस्तु पर गुरु का ही अधिकार होता है. 

गोचरी वहोरकर आने के बाद उस गोचरी के दोष आदि की जानकारी गुरु को बताकर गोचरी में लगे दोष गुरुदेव को कहने होते हैं और गुर के पास आलोचना यानी प्रायश्चित करना होता है. 

इस प्रकार निष्कपट भाव से गोचरी की आलोचना करने से शिष्य गोचरी संबंधी लगे दोषों के पापों से मुक्त हो जाता है. अषाढ़ाभूति मुनि ने स्वाद की आसक्ति के कारण अपने Powers का Use करके लड्डू प्राप्त किए थे लेकिन यह बात उन्होंने अपने गुरु को नहीं बताई. 

गुरुदेव के आगे उन्होंने यह बात स्पष्ट नहीं की और वास्तविक हकीकत को छुपा लिया. इस प्रकार रसना की आसक्ति ने अषाढ़ाभूति मुनि से माया का पाप करवाया. अगले दिन अषाढ़ाभूति मुनि वापस गोचरी के लिए निकले. 

इधर उधर घूमकर वे उसी नटराज के भवन में आए और उन्होंने धर्मलाभ कहा. पिता का आदेश होने से नटराज की बेटी भुवनसुंदरी, जयसुंदरी ने अषाढ़ाभूति मुनि को रिझाते हुए स्वादिष्ट भोजन वहोराया और बोली ‘गुरुदेव, हमारे भाग्य खुल गए, आप हम पर कृपा करते रहें.’

अषाढ़ाभूति मुनि का पतन 

रसना में आसक्त अषाढ़ाभूति मुनि नटराज की बेटियों के भाव को नहीं समझ सके. अषाढ़ाभूति मुनि प्रतिदिन नटराज के घर गोचरी के लिए जाने लगे. नटराज की बेटियाँ भी अद्भुत रूप, लावण्य, हास्य और कटाक्ष आदि के द्वारा अषाढ़ाभूति मुनि का दिल जीतने लगी. 

इस प्रकार Daily उन कन्याओं से मिलने और बातचीत होने के कारण अषाढ़ाभूति मुनि का मन भी उन दोनों कन्याओं पर आ गया. 

एक बार उन दोनों स्त्रियों ने अषाढ़ाभूति मुनि से कहा ‘हे मुनिवर, इतनी कम उम्र में संयम जीवन की कठिनाइयां आपको शोभा नहीं देती है. यह उम्र तो भोग-सुखों के लिए सही है. हम दोनों बहनें अपना जीवन आपके चरणों में समर्पित करना चाहती हैं. आप हम पर कृपा कीजिए.’ 

दोनों सुंदर कन्याओं की यह बात सुनकर अषाढ़ाभूति मुनि का मन दीक्षा जीवन से भटक गया. उन्होंने कहा ‘मैं अपने गुरुदेव की आज्ञा लेकर जल्दी तुम्हारे पास आऊंगा.’ गोचरी लेकर अषाढ़ाभूति मुनि उनके गुरु के पास आए और बोले 

हे गुरुदेव, मैं संयम जीवन की कठिनाइयों को अब और सहन नहीं कर सकता हूँ इसलिए मेरा यह राजोहरण आप वापस ले लीजिए. मैं उन नट कन्याओं से विवाह करना चाहता हूँ. आप मुझे जाने के लिए अनुमति दीजिए. 

अषाढ़ाभूति मुनि की यह बात सुनकर आचार्य भगवंत सोचने लगे ‘पवित्र ऐसे दीक्षा जीवन का त्यागकर यह जहर का घूँट क्यों पीना चाहता है? यह सब मायापिंड का यानी कि वेशपरिवर्तन कर लाइ हुई गोचरी का ही प्रभाव लगता है.’ 

आचार्यश्री ने अषाढ़ाभूति मुनि को समझाने की कोशिश की लेकिन अषाढ़ाभूति मुनि नहीं माने. तब आचार्यश्री ने सोचा ‘अषाढ़ाभूति अब साधु जीवन में रह नहीं रह पाएगा फिर भी साधु जीवन का त्याग करने के पहले मेरी आज्ञा लेने आया है इसलिए इस आत्मा में योग्यता का बीज तो पड़ा हुआ है.’ 

आचार्यश्री ने अषाढ़ाभूति मुनि को प्रेरणा देते हुए कहा 

अषाढ़ाभूति, संयम जीवन को तू छोड़ने के लिए तैयार हो गया है तो कम-से-कम मद्य यानी शराब और मांस यानी Nonveg, यह दोनों का पूरी तरह त्याग करना और मद्य-मांस खानेवाले से भी हमेशा दूर रहना.

‘गुरुदेव, आपकी इस आज्ञा का मैं जीवन के अंत तक पालन करूंगा.’ इतना कहकर अषाढ़ाभूति ने रजोहरण और मुहपत्ती गुरुदेव को वापस लौटा दी और सीधे ही नटराज के भवन की ओर बढ़ने लगा. 

नटराज तो अषाढ़ाभूति के आने का Wait ही कर रहा था. बस थोड़ी ही देर में अषाढ़ाभूति वहाँ आ गए. नटराज ने उनका अच्छे से स्वागत किया. अषाढ़ाभूति को सुंदर नए कपडे दिए और एक दिन अपनी दोनों बेटियों के साथ अषाढ़ाभूति का विवाह करा दिया. 

शादी से पहले ही अषाढ़ाभूति ने शराब और मांस से दूर रहने की बात सभी को Clearly बता दी थी और इसलिए ही नटराज ने भी अपनी दोनों बेटियों को यह बात समझा दी कि तुम भी शराब और मांस से हमेशा दूर रहना. 

नियम का स्मरण 

धीरे-धीरे समय बीतने लगा. अषाढ़ाभूति उन दोनों स्त्रियों के साथ संसार के भोग सुखों में मस्त बन गए. अपनी Dancing Skills से बहुत पैसे भी कमा लिए थे. एक दिन राजगृही के महाराजा की राजसभा में कोई विशिष्ट कलाकार आया. 

उसने अपने जीवन में अनेक Dancers को हराया था. राजसभा में आकर उसने उससे Competition करने के लिए सभी को ललकारा. राजा ने उस नट को हराने के लिए अषाढ़ाभूति को बुलाया. 

Competition से पहले अषाढ़ाभूति ने अपनी दोनों पत्नियों से कहा ‘मैं बाहर से आए नाट्यकार को हराने के लिए जा रहा हूँ.’ पत्नियों को कहकर अषाढ़ाभूति Competition के लिए राजसभा में आया. बाहर से आए नाट्यकार ने अनेक कलाओं का प्रदर्शन किया. 

उसके बाद अषाढ़ाभूति ने सभी को चौंका देनेवाली कई अ‌द्भुत कलाओं का प्रदर्शन किया, जिसे देखकर उस नाट्यकार ने अपनी हार स्वीकार कर ली और अषाढ़ाभूति जीत गए. 

इधर अषाढ़ाभूति की पत्नियों ने सोचा ‘हमारे पति तो बड़े Competition के लिए गए हैं, अतः उन्हें वापस आने में कम-से-कम छह महीने तो लग जाएंगे. बहुत दिनों से हमने उनके डर से शराब और मांस नहीं खाया पिया है इसलिए उनकी गैरहाजरी में, उनकी Absence में क्यों ना शराब पी जाय?’ 

यह सोचकर उन दोनों स्त्रियों ने शराब पी ली और शराब के नशे में बेकाबू होकर बिस्तर पर गिर पड़ी. कुछ ही समय बाद अषाढ़ाभूति Competition में जीतकर अपने भवन में वापस आए. 

आते ही उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों को शराब के नशे में चकचूर देखा. यह दृश्य देखते ही अषाढाभूति चौंक गए, हैरान रह गए ‘अहो! यह क्या! इनके मुख से शराब की बदबू कैसे आ रही है?’ 

अषाढ़ाभूति को अपने गुरु के वचन याद आ गए ‘शराब और शराबी से हमेशा दूर रहना.’ ‘अब मैं इनके साथ कैसे रह सकता हूँ? यहाँ रहने से तो गुरुदेव का दिया हुआ नियम टूट जाएगा.’ 

ऐसा सोचकर अषाढ़ाभूति अपने भवन की सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे और नटराज से बोले ‘तुम्हारी बेटियों ने मेरे नियम को तोडा है इसलिए अब मैं यहाँ नहीं रह सकता.’ इतना कहकर अषाढ़ाभूति तुरंत ही चल पड़े. 

स्त्रियों की शर्त 

नटराज ने फटाफट अपनी दोनों बेटियों को उठाया और कहा ‘अरे बेटियो, तुमने यह क्या कर डाला, तुमने शराब पीकर अपने पति के नियम को तोड़ दिया? अब वे तुम्हें छोड़कर जा रहे हैं. तुम जल्दी जाओ और उनके चरण पकड़ो. मनाने पर भी यदि वे न रुकें तो उन्हें कहना ‘हे प्राणनाथ, यदि आपको जाना ही है तो हमारे भरण-पोषण की व्यवस्था कर बाद में जाओ.’ 

यह बात सुनते ही नटराज की बेटियाँ एकदम सावधान हो गई और अषाढ़ाभूति के पास जाकर बोली ‘हे स्वामी, हमारे एक अपराध को आप माफ़ कीजिए. हां आगे से ध्यान रखेंगे, ऐसी गलती नहीं करेंगे.’ 

अषाढ़ाभूति ने कहा ‘तुमने शराब का सेवन कर मेरे नियम को तोडा है इसलिए अब मैं यहाँ एक पल भी नहीं रह सकता हूँ.’ यह सुनकर स्त्रियों ने कहा ‘अच्छा! यदि आप जाना ही चाहते हैं तो हमारे भविष्य के लिए भरण पोषण की व्यवस्था करके जाओ ताकि हम अपना बाकी का जीवन शान्ति से बीता सकें.’ 

आखिर अषाढ़ाभूति ने अपनी पत्नियों की इस Request को Accept किया और उनके भरण-पोषण की व्यवस्था की जिम्मेदारी ले ली. अषाढ़ाभूति वापस नटराज के घर आए लेकिन उनका मन, उन कन्याओं से उठ चुका था. 

भरत चक्रवर्ती का नाटक 

एक बार अषाढ़ाभूति सिंहस्थ राजा के पास गए और बोले ‘मैं आपको भरत चक्रवर्ती का नाटक बताना चाहता हूँ.’ राजा ने अषाढ़ाभूति के Offer को Accept किया और अषाढ़ाभूति ने 7 दिन में भरत चक्रवर्ती का नाटक तैयार किया. 

Note : भरत चक्रवर्ती यानी प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान के सबसे बड़े बेटे. 

उनकी Story हमने Jain Media पर पहले जानी थी. 

Life Story Of Bharat Chakravarti 

अषाढ़ाभूति स्वयं भरत चक्रवर्ती बने और आयुधशाला यानी Weapon Room में चक्र की उत्पत्ति, छह खंड पर विजयप्राप्ति, बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओं के द्वारा प्रणाम आदि का हूबहू चित्रण प्रस्तुत करने के बाद एक दिन भरत चक्रवर्ती के वेष में रहे अषाढ़ाभूति आदर्श-भवन में गए. 

वहाँ अचानक भरत चक्रवर्ती बने अषाढ़ाभूति की अंगुली में से एक अंगूठी निकल गई. उस नाटक में अषाढ़ाभूति ने अंगूठी के बिना की अपनी अंगुली को देखा. सादी अंगुली को देखकर वे अनित्य भावना में चढ़ गए और उसी अनित्य भावना में आगे बढ़ते हुए अषाढ़ाभूति क्षपक श्रेणी पर चढ़ गए और समस्त घातिकर्मों का क्षय कर केवलज्ञान की प्राप्ति होने पर केवली बन गए. 

भरत चक्रवर्ती के नाटक में शामिल 500 राजकुमारों को भी प्रतिबोध देकर अषाढ़ाभूति केवली ने दीक्षा प्रदान की और अन्य भव्य जीवों को प्रतिबोध देने लगे. भरत महाराजा के नाटक में नटराज को भी खूब पैसे कमाने का मौका मिला जिससे उसकी Life भी Set हो गई. 

अषाढ़ाभूति के गुरु को जब इस बात का पता चला तब वे भी आश्चर्यचकित हो गए और सोचने लगे ‘चक्रवर्ती की बाहरी शोहरत को प्रदर्शित करने की ताकत तो देवताओं में भी है लेकिन ऐसी आत्म-ऋद्धि का सच्चा प्रदर्शन अषाढ़ाभूति ने कर दिया. सचमुच, वे धन्य हैं, वंदनीय हैं.’ 

अनेक भव्य जीवों को प्रतिबोध देकर केवली अषाढ़ाभूति मुनि निर्वाण पद को प्राप्त हुए. इस प्रकार माया पिंड के कारण अषाढ़ाभूति मुनि का चारित्र से पतन हुआ और गुरु द्वारा दिए गए नियम के पालन से एवं भरत चक्रवर्ती के नाटक से अषाढ़ाभूति मुनि का उद्धार हो गया. 

Moral Of The Story

1. महापुरुष अषाढ़ाभूति मुनि की कहानी से हमें यह पता चलता है कि छोटे-छोटे लालच हमें बड़े Goals से Distract कर सकते हैं. एक लड्डू की चाह ने उन्हें साधु के रास्ते से हटा दिया, लेकिन गुरु के वचन ने, उनके द्वारा दिए गए नियम के पालन ने उन्हें बचा लिया.

आजकल हम भी Reels, Tasty Food, Crush आदि के चक्कर में अपने सपनों से भटक जाते हैं. जैसे मान लो कि अगर कोई Healthy Diet पर हो और कोई अन्य व्यक्ति उसे कहे ‘अरे भाई, एक समोसा खा ले, क्या फर्क पड़ता है?’ 

एक समोसा खाओगे, फिर Pizza, फिर Ice Cream और Diet बर्बाद! तो अगली बार जब हमें कोई ‘लड्डू’ देकर लुभाए, यानी कि लड्डू के रूप में हुक्का, सिगरेट, Junk Food, Drinks ऐसे अलग अलग Distractions अगर आए तो पहले यह सोचना है कि क्या ये सचमुच इसके लायक है? कि क्या मुझे इन Distractions में फंसना चाहिए?

छोटी चीजों पर Control करना होगा जिससे बड़े सपने पूरे हो सके.

2. दुनिया में सच्चा Actor उसे कहा जाता है जो Acting करते करते खुद कौन है, वह ही भूल जाए, जिस रोल को वह Play कर रहा हो, उस रोल में ही वह एकमेक हो जाए और अषाढ़ाभूतिजी ने भी वह ही किया और नाटक में ही केवलज्ञान पाया. 

नाटक नाटक होता है लेकिन बहुत से नाटक ऐसे होते हैं जो जीवन बदल देते हैं.

3. अषाढ़ाभूतिजी की योग्यता समझने जैसी है. हर चीज़ गुरु को पूछकर करने की उनकी आदत ने, उनके संस्कारों ने उनके भव का, संसार का अग्नि संस्कार कर दिया. गुरु ने दिए हुए नियम के दृढ़ पालन ने पटरी से उतरी हुई गाडी को वापस Track पर ला दी.

4. एक व्यक्ति के ह्रदय का सच्चा वैराग्य कितना Powerful होता है, वह हमें इस घटना से पता चलता है. अषाढ़ाभूति के नाटक में हुए सच्चे वैराग्य ने दूसरे 500 राजकुमारों को भी दीक्षा के भाव करा दिए. 

एक मौन साधु भगवंत या साध्वीजी भगवंत की भी कितनी शक्ति होती है, वह हमें यहाँ से पता चलता है.

5. लोभ को एक अपेक्षा से सबसे बड़ा पाप कहा गया है. लोभ पाप का बाप है. जिसका मोक्ष उसी भव में होनेवाला है, वो भी लोभ के कारण कितना अनर्थ कर सकता है, उसका संदेश यह घटना हमें देती है. तो हमारी तो क्या हालत होगी. सोचने जैसा है.

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *