आखिर महासती मदनरेखा ने कैसे की अपने शील की रक्षा?
प्रस्तुत है, महासती मदनरेखा की कथा का Episode 02.
बने रहिए इस Article के अंत तक।
युगबाहु को समाधि देकर मदनरेखा ने किस तरह एक सच्ची पत्नी और अच्छे कल्याण मित्र होने का कर्तव्य निभाया यह हमने Ep 01 में जाना लेकिन अब उसके सामने अपने शील की रक्षा की बड़ी मुश्किल आ गई।
मदनरेखा का फैसला
मदनरेखा ने सोचा ‘अगर मैं राजमहल जाऊंगी तो वह दुष्ट मणिरथ मेरे साथ जबरदस्ती कर सकता है। क्यों न मैं राजमहल छोड़कर जंगल में चली जाऊं?’ ऐसा सोचकर वह घोर अंधेरी रात में ही भयंकर जंगल की ओर निकल पड़ी और तेजी से आगे बढ़ती गई।
मदनरेखा को नहीं मालुम था कि मणिरथ की मृत्यु हो चुकी है।
एक महासती के लिए उसका शील उसके प्राणों से भी ज्यादा प्यारा होता है। अपने शील की रक्षा के लिए मदनरेखा ने अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की।
जब उसने जंगल की ओर कदम बढ़ाए तब वह गर्भवती थी, प्रसव यानी Delivery का समय भी पास आ रहा था फिर भी उसके लिए शील की कीमत सबसे बड़ी थी।
मदनरेखा ने सब सुखों को त्याग दिया। नर्म बिस्तर, सेवक-सेविकाएँ, अच्छा खाना, अच्छे कपड़े, महल आदि सब कुछ। क्यों? अपने शील की रक्षा के लिए।
मदनरेखा ने जंगल में फल-फूल खाकर, झरने का पानी पीकर सात दिन वहां बिताए। आठवें दिन उसने चांद जैसे सुंदर चेहरे वाले बेटे को जन्म दिया।
‘एक से दो भले’ कहावत के अनुसार बेटे को पाकर मदनरेखा थोड़ी खुश हुई लेकिन उसे कहाँ पता था कि कर्म की ताकत उस पर एक और मुसीबत लाने वाली है।
वासना का जाल
मदनरेखा ने अपने बच्चे को एक कपडे में लपेटा और नहाने के लिए नदी के किनारे गई। उसने नहाने के लिए नदी में प्रवेश किया और उसी वक्त एक हाथी ने अपनी सूंड से मदनरेखा को पकड़कर ज़ोरदार आकाश में उछाल दिया।
संयोग से उसी समय एक विद्याधर यानी एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास कई विद्याएँ यानी Divine Powers होते हैं, वह आकाश मार्ग से नंदीश्वर द्वीप की ओर जा रहा था। उसने आकाश से गिरती हुई मदनरेखा को देख लिया और उसे अपने विमान में बैठा लिया।
मदनरेखा का रूप और सुंदरता देखकर वह विद्याधर भी वासना में अंधा हो गया। महासती मदनरेखा एक मुसीबत से बची ही थी कि अब दूसरी मुसीबत आ गई।
मदनरेखा अपने बेटे से बिछड़ने के ग़म में जोर-जोर से रोने लगी। तब उस विद्याधर ने पूछा ‘तुम क्यों रो रही हो?’ मदनरेखा बोली ‘कुछ समय पहले मैंने एक बच्चे को जन्म दिया है। वह जंगल में एक पेड़ के नीचे सो रहा है। वह मेरे बिना कैसे रहेगा? मुझे उसके पास ले चलो।’
विद्याधर बोला ‘हे सुंदरी। पहले तुम मुझे अपने पति के रूप में स्वीकार करो, फिर जो कहोगी मैं कर दूंगा।’
मदनरेखा की बुद्धिमानी
मदनरेखा ने सोचा ‘हाय! कर्म की चाल कैसी अजीब है। मणिरथ के जाल से बचने के लिए जंगल आई और अब यहाँ ये नई मुसीबत आ गई। मुझे किसी तरकीब से अपना शील बचाना होगा।’
मदनरेखा ने विद्याधर से पूछा ‘आप कौन हैं और कहाँ जा रहे हैं?’
विद्याधर ने कहा ‘मैं मणिप्रभ हूं। वैताढ्य पर्वत के रत्नावह नगर के राजा मणिचूड़ का बेटा हूँ। मेरे पिता मणिचूड़ ने राजपाट छोड़कर दीक्षा ले ली है। वे नंदीश्वर द्वीप जा रहे हैं।
मैं भी उन्हीं से मिलने और उन्हें प्रणाम करने के लिए जा रहा था। तभी तुम्हें आकाश से गिरते देखा और तुम्हारे रूप पर मोहित हो गया। तुम मुझे पति मान लो, मैं तुम्हें पटरानी बनाऊंगा।’
यह सब सुनकर इतनी Critical Situation में भी मदनरेखा ने दिमाग लगाया और सोचा ‘इसका खानदान अच्छा है। इसके पिता ने दीक्षा ली है। अगर ठीक से समझाया जाए तो यह भी धर्म के रास्ते पर आ सकता है।’
यह सोचकर मदनरेखा ने कहा ‘मैं अपने बेटे के बिना नहीं रह सकती। पहले मेरे बेटे को यहाँ ले आओ।’ मणिप्रभ विद्याधर बोला ‘मेरे पास प्रज्ञप्ति विद्या यानी किसी भी जगह से एक Special जगह को देखने की शक्ति है। उससे मैंने तुम्हारे बेटे की जगह देखी है।
मिथिला के राजा पद्मरथ जंगल में अपने घोड़े से भटक गए थे। उन्होंने उस बच्चे की रोने की आवाज सुनी और उसे देखा। उनकी कोई संतान नहीं थी और इसलिए बच्चे को देखकर वे खुश हुए और उसे अपने महल ले गए।
उन्होंने अपनी रानी पुष्पमाला को तुम्हारा बालक सौंप दिया है। वह बच्चे को पाकर बहुत खुश है और तुम्हारा बच्चा उनके महल में सुखी है। तुम्हें उसकी कोई चिंता नहीं करनी चाहिए।’
मणिप्रभ की बात सुनकर मदनरेखा ने समय निकालने के लिए कहा ‘पहले मुझे नंदीश्वर द्वीप ले चलो और अपने पिता मुनि के दर्शन करा दो। उसके बाद तुम्हारी बात सोचूंगी।’
नंदीश्वर द्वीप की यात्रा
मदनरेखा के इन वादों से मणिप्रभ खुश हो गया और उसे लगा उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी। उसने अपना विमान नंदीश्वर द्वीप की ओर मोड़ दिया और कुछ ही समय में वे वहाँ पहुँच गए।
दोनों विमान से उतरे। मदनरेखा ने नंदीश्वर द्वीप में रहे 32 जिनमंदिरों के दर्शन किए।
ये मंदिर बहुत विशाल और सुंदर थे। उनमें 4 शाश्वत यानी Immortal परमात्मा यानी श्री ऋषभ, श्री चंद्रानन, श्री वारिषेण और श्री वर्धमान स्वामी की प्रतिमाएँ थीं।
मदनरेखा ने बहुत श्रद्धा से दर्शन किए और फिर वे दोनों मणिप्रभ विद्याधर के पिता मणिचूड़ मुनि के पास पहुँचे। मुनिराज धर्म देशना दे रहे थे। दोनों बैठकर देशना सुनने लगे। मुनिराज ने अपने ज्ञान से बेटे मणिप्रभ के मन की बात जान ली।
वे समझ गए कि उसका मन पाप की तरफ जा रहा है और इसलिए मणिचूड़ मुनि ने वैराग्य भरी बातों में पुत्र को समझाते हुए कहा
‘हे भव्य आत्माओं। अगर तुम अपने कल्याण की चाह रखते हो तो पराई स्त्री की इच्छा से बचो। परस्त्री से संबंध चाहने वाला पुरुष नरक में जाता है और जो स्त्री परपुरुष से संबंध बनाती है, वह भी नरक में जाती है।
भोग में तो थोड़ी देर की खुशी है लेकिन उसका फल बहुत दर्दनाक होता है। बिल्ली दूध देखती है लेकिन डंडे को नहीं। पक्षी दाना देखते हैं पर पत्थर नहीं देखते। वैसे ही जीव को भोग में सुख दिखता है लेकिन उसका दुखद परिणाम नहीं दिखता।’
यह सुनकर मणिप्रभ का दिल कांप उठा और उसे अपनी गलती समझ आ गई। वह मदनरेखा के पास गया और बोला ‘हे मदनरेखा। आज से तुम मेरी बहन जैसी हो। मुझे माफ कर दो। बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?’
मणिप्रभ के मन बदल जाने से मदनरेखा बहुत खुश हो गई और उसने सोचा ‘परमात्मा की कृपा से मेरा शील बच गया।’ मदनरेखा ने मणिप्रभ विद्याधर से कहा ‘तुमने मुझे इस तीर्थ यात्रा का मौका दिया। तुम मेरे सच्चे भाई हो।’
युगबाहु का पुनर्जन्म
फिर मदनरेखा ने मणिचूड़ मुनि से अपने बेटे की कुशलता पूछी। मुनि उसके बेटे की सुख-शांति की बातें कर ही रहे थे तभी आकाश से एक चमकदार विमान उतरा।
उसमें से एक बहुत तेजस्वी देव निकला। उसने मदनरेखा को तीन बार प्रदक्षिणा दी और उसके चरणों में झुककर वंदन किया और फिर मुनि के चरणों में भी वंदन किया।
उस देव द्वारा पहले मदनरेखा को वंदन करने पर मणिप्रभ को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सोचा ‘मुनिवर तो महान तपस्वी और ज्ञानी हैं। मदनरेखा तो एक सामान्य श्राविका है। देव ने पहले उसे क्यों वंदन किया?’
उसने अपने पिता मुनि से पूछा ‘गुरुवर, यह देव पहले मदनरेखा को प्रणाम क्यों कर रहा है?’
मुनिराज ने कहा ‘यह देव गलती नहीं कर रहा। यह उचित ही है। यह देव पूर्व जन्म में मदनरेखा का पति युगबाहु था। जब मणिरथ ने उस पर वार किया तब मदनरेखा ने उसे धर्म समझाकर समाधि दी।इसी कारण वह मरकर देव बना।
जो किसी को धर्म में स्थिर करता है, वह चाहे गृहस्थ हो या साधु, वह उसका गुरु होता है। जिसने सम्यक्त्व दिया है, उसने मोक्ष का सुख दिया है। उसका उपकार कभी चुकाया नहीं जा सकता।’
यह सुनकर मणिप्रभ का Doubt Clear हो गया और उसने उस देव से माफी मांगी।
संयम स्वीकार
अच्छे लोग अपने उपकारी का उपकार चुकाने की कोशिश करते हैं और युगबाहु जो अब देव बन गया था उसने भी मदनरेखा का उपकार चुकाना चाहा। देव ने मदनरेखा से कहा ‘तुम अपनी इच्छा बताओ, मैं पूरी करने की कोशिश करूंगा।’
यह सुनकर मदनरेखा ने कहा ‘हे देव, असली रूप से तो आप मेरा उपकार नहीं कर सकते। मुझे मोक्ष चाहिए, जो आप नहीं दे सकते लेकिन अगर आप सच में उपकार करना चाहते हो, तो मुझे मिथिला ले चलो। मैं अपने बेटे को एक बार देखकर, फिर दीक्षा लेना चाहती हूं।’
देव ने तुरंत हाँ कर दी और कुछ ही देर में वे मिथिला पहुँच गए।
Please Note : जानकारी के लिए बता दें कि मिथिला नगरी में 19वें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ भगवान के जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए हैं।
वहाँ के जिनमंदिरों में दर्शन कर मदनरेखा और वह देव एक साध्वीजी भगवंत के पास पहुँचे।
उन्होंने साध्वीजी भगवंत को वंदन किया।
साध्वीजी ने वैराग्यपूर्ण उपदेश देते हुए कहा कि
‘हे पुण्यात्माओं, मनुष्य जन्म पाकर भी प्रमाद यानी आलस नहीं करना चाहिए। आत्मा का भला इसी जन्म में हो सकता है। पुत्र, पत्नी और शरीर के मोह में फंसकर आत्मा पाप करती है और नरक भोगती है। यह जीवन बहुत छोटा है। हमें अमृत जैसे धर्म को अपनाना चाहिए, न कि विष जैसे पाप को।’
धर्मोपदेश सुनने के बाद देव ने मदनरेखा से कहा ‘चलो, अब राजमहल चलकर अपने बेटे से मिल लो।’ लेकिन तब मदनरेखा ने कहा कि ‘अब मुझे बेटे के दर्शन की भी इच्छा नहीं है। यह मोह तो संसार बढ़ाने वाला है।
इस अनंत संसार में यह मेरा अनंत बार बेटा हुआ है और मैं अनंत बार माँ बनी हूं। भूतकाल के वे सब रिश्ते कौन याद करता है? यह संसार तो सपने जैसा है, Illusion जैसा है।
अगर सोचें कि मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाना है? तो मोह खत्म हो जाता है। अब मुझे संसार में नहीं रहना। अब ये साध्वीजी भगवंत ही मेरे गुरु हैं।’
ऐसा कहकर मदनरेखा ने वह जैन साध्वीजी भगवंत के पास जैन दीक्षा ले ली और वह देव भी देवलोक में चला गया।
रुकिए। कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है। आगे बहुत कुछ होनेवाला है लेकिन यहाँ पर Episode 02 पूरा होता है। महासती मदनरेखा से सीखने जैसी ऐसी-ऐसी बातें हैं जिसे जानकर हमारे रोंगटे खड़े हो जाएंगे और वह महासती के पैरों में हम नतमस्तक हो जाएंगे।
Moral Of The Story
1. वासना कितनी भयानक चीज़ है ना..
विमान में मदनरेखा ने कहा कि मैंने कुछ समय पहले ही बच्चे को जन्म दिया फिर भी वह विद्याधर उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता है। Reality यह है कि वासना हमारे अंदर रही दया, करुणा, मानवता ऐसी अनेकों Qualities ख़त्म कर देती है।
इतना ही नहीं.. वासना हमें क्रूर, निष्ठुर भी बना देती है। प्रश्न यह है कि क्या वासना को हम शत्रु मानते हैं?
2. गुरु तत्त्व की श्रद्धा..
महासति मदनरेखा को पता था कि मुनि के दर्शन से और वो भी पिता मुनि के दर्शन से मणिप्रभ की वासना शांत हो जाएगी।
‘साधु का सत्संग भल भले कामी को भी अकामी बना देता है’ – ये गुरु तत्त्व की श्रद्धा मदनरेखा महासति के मन में गजब की थी।
3. शील से ऊपर कुछ नहीं..
मदनरेखा अपने शील की रक्षा के लिए एक झटके में सब कुछ छोड़ने को तैयार हो गई.. महल, सुख, संपत्ति आदि का त्याग कर जंगल, कष्ट आदि को चुना।
बुरा मत मानिएगा लेकिन आज का Social Media Environment और Fame-Driven Mindset कई लड़कियों को ऐसे Choices की ओर ले जा रहा है जहाँ उनका Character, उनका शील पीछे छूट जाता है।
यह आज की DARK REALITY और BITTER TRUTH बन चुका है लेकिन एक चीज़ हमेशा ध्यान रखने जैसी है कि Character Is NOT NEGOTIABLE – Even If Money, Comfort, Luxury, Promotion Or Fame Is At Stake.
शील के साथ किसी का सौदा नहीं किया जा सकता। सुख, संपत्ति, नाम या Job कुछ भी दांव पर लगा हो तो भी शील के साथ समझौता नहीं ही किया जा सकता।
4. समाज और माता-पिता की भूमिका..
आज इन सब सुविधाओं को पाने के लिए, Luxurious Lifestyle जीने के लिए कई लडकियां एक झटके में अपने शील की धज्जिया उड़ाने के लिए तैयार हो जाती हैं। बेटियों को बचपन से ही यह सीख देनी चाहिए कि शील से ऊपर कुछ नहीं है।
सिर्फ एक बार नहीं बार-बार.. इतनी बार कि शील को लेकर कोई भी Situation में वह कभी भी Compromise ना करे। दूसरी तरफ बहुत Strongly बेटों को भी यह सीख देनी चाहिए कि किसी भी नारी को बुरी नज़र से देखना ही नहीं।
हो सके तो नारियों के शील की रक्षा करनी। ना हो सके तो कम से कम ऐसा कोई कार्य नहीं करना जिससे किसी भी नारी का शील खतरे में आए।
Major Role Parents और Society का आएगा। लेकिन हाँ, बच्चों को सिखाने से पहले हमें खुद को आयने में देखना होगा। Society के तौर पर, एक Parent के तौर पर क्या हमें इतना अधिकार है कि हम शील का पाठ बच्चों को पढ़ा सकते हैं?
अगर नहीं तो पहले खुद की आँखों को, खुद के मन को, खुद को Control करना सीखना होगा फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला। ताली दोनों हाथ से बजती है।
बहनों को Social Media के Trap में नहीं फंसना है। यह Trap हमारे दिमाग में यही बात डाल रहा है कि जितने कपडें कम होंगे उतनी Popularity, Views, Fame ज्यादा होगी। इस Trap में पड़ने जैसा नहीं है।
साथ ही पुरुषों को भी अपनी आँख पर Control लाना है। कोई अश्लील Video आए तो हमारे हाथ कांपने चाहिए, हमारी आँख बंद हो जानी चाहिए, हमें तुरंत पश्चाताप होना चाहिए।
कोई कुछ भी पहनें, कुछ भी दिखाए… हमें तो खुद पर नियंत्रण करना सीखना होगा। हम अगली पीढ़ी के लिए किस तरह का माहौल बनाना चाहते हैं यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
एक ऐसा माहौल जहाँ पर शील बेचकर कुछ भी हासिल किया जा सकता है और एक ऐसा माहौल जहाँ शील रक्षा के लिए सब कुछ न्योछावर किया जा सकता है।
क्या शिक्षा देनी है, वह हमारे हाथ में है। लेकिन फिर वही बात कि शिक्षा देने से पहले हमें खुद को शिक्षित करना होगा, वरना उस शिक्षा का कोई ज्यादा असर नहीं होगा।
कुलमिलाकर मदनरेखा को नतमस्तक होकर एक संकल्प बहनें ले सकती हैं कि “शील से ऊपर कुछ नहीं।”
सभी भाई यह संकल्प कर सकते हैं कि “किसी भी स्त्री के शील की रक्षा करने का भाव रखें। ना हो सके तो कम से कम उसका शील खतरे में आए ऐसा कुछ भी न करें।”
हो सकता है यह बातें आज की Generation को बहुत कडवी लगे, जल्दी से मन Accept ना करे ऐसा भी हो सकता है।
सिर्फ इतना सोचिए कि हमें किस हद तक Brainwash किया गया है कि हमारे पूर्वजों का जो Mindset था, जो Basic Principles थे, जिस तरह की सोच उनकी थी वह भी हमें आज Acceptable नहीं लग रही है।
इसी को Brainwashing कहते हैं…
5. सच्चा वैराग्य…
एक समझने जैसी बात इस एपीसोड में है। जब मदनरेखा को वैराग्य जागृत हुआ तब उसने अपने बेटे से मिलने की तीव्र इच्छा को भी Side में रख दिया और दीक्षा के राजपथ पर निकल पड़ी।
वैरागी आत्मा के मन में दुनिया के पदार्थ Waste होते हैं और प्रभु की आज्ञा Best होती है। यह खास समझने जैसा है।
मदनरेखा की कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है, अभी तो एक और युद्ध साध्वी महासती मदनरेखा के जीवन में आने वाला था और वो भी उनके ही बेटों के बीच।
एक साध्वीजी युद्ध भूमि में जाकर कैसे रोकेगी अपने ही बेटों का रक्तपात? क्या वो रोक पाएगी वो भयानक युद्ध? जानेंगे अगले Episode में।


