महापुरुष मेघकुमार की अद्भुत कथा
हमारे जैन शास्त्रों में जीवदया का Importance बताती हुई एक ऐसी कहानी आती है जो करुणा की-Compassion की Extreme मिसाल है. आइए जानते हैं भरहेसर सज्झाय के महापुरुष मेघकुमार की अद्भुत कथा.
बने रहिए इस Article के अंत तक.
मेघकुमार की दीक्षा
राजगृही नगरी, जहाँ प्रभु महावीर स्वामी के सबसे ज्यादा चातुर्मास हुए हैं. एक बार विहार करते करते प्रभु महावीर राजगृही नगरी में पधारे. प्रभु महावीर देशना दे रहे थे.
उस देशना को, Preachings को सुनकर राजगृही के महाराजा श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार के मन में वैराग्य भाव आया और वे अपने माता-पिता यानी महाराजा श्रेणिक और धारिणी रानी के पास गए और उनसे दीक्षा लेने की Permission मांगी.
मेघकुमार को वे बहुत प्यार करते थे, मेघकुमार की इस इच्छा को सुनकर श्रेणिक राजा और धारिणी रानी ने कहा :
बेटा, तू तो बहुत कोमल है, राजमहल की सुख सुविधाओं में पला बड़ा है. दीक्षा जीवन बहुत कठिन होता है और संयम जीवन में आनेवाले उपसर्गों का-कठिनाइयों का सामना करना तेरे बस की बात नहीं है.
मेघकुमार ने कहा :
पिताजी-माताजी, हो सकता है कि संयम जीवन का पालन करना मुश्किल हो, लेकिन मैं अब इस संसार से थक चुका हूँ और एक पल भी अब इस संसार में मैं नहीं रहना चाहता हूँ. आपका मुझ पर अत्यंत राग है, स्नेह है लेकिन मौत तो माता-पिता के पास से भी पुत्र को छीन लेती है और इसलिए मैं प्रभु की शरण में जाकर दीक्षा जीवन का स्वीकार करके मौत पर विजय करना चाहता हूँ. मेरे भावों को इतना मजबूत करना चाहता हूँ कि मौत भी मेरे परभवों को यानी आनेवाले जन्मों को बिगाड़ ना पाए.
मेघकुमार की यह बातें सुनकर और उनके Strong वैराग्य भाव को देखकर आखिरकार श्रेणिक महाराजा और धारिणी रानी ने उन्हें दीक्षा की Permission दे दी और बहुत ही Excitement और Happiness के साथ मेघकुमार ने प्रभु महावीर के हाथों से जैन दीक्षा स्वीकार की.
संयम छोड़ने का विचार
दीक्षा लेने के बाद एक बार मेघकुमार मुनि रात के समय में संथारा करने के लिए यानी सोने के लिए जगह ढूंढ रहे थे और उन्होंने बाहर आने-जाने के Gate के पास जगह मिलने पर वहीं संथारा कर लिया यानी Gate के पास सो गए.
रात में दुसरे साधु भगवंतों के आने जाने से मेघ मुनि को बारबार अन्य साधुओं के पैर लगते रहे, जिस कारण उन्हें पूरी रात नींद नहीं आई. यहाँ पर मिट्टी लगने की, बार बार आने जाने की आवाज़ के कारण Disturbance की संभावना रहती है.
आखिर तो वे एक राजकुमार थे, उन्हें इन सभी चीजों की आदत नहीं थी और 1st Day ही ऐसा Experience हो गया. राजमहल की सुख सुविधा में रहने के कारण, आलिशान Bed पर Without Disturbance सोनेवाले मेघ मुनि को इस तरह नींद खराब होने के कारण एक अशुभ विचार आया :
‘अहो, राजमहल में मैं कितने आराम से सो सकता था और यहाँ तो पूरी रात परेशानी में गई. यह सब कठिनाइयाँ मुझ से सहन नहीं होगी. बस, कल सुबह होते ही, मैं यह रजोहरण, यह ओघा प्रभु महावीर को देकर वापस अपने घर चला जाऊंगा.’
इस तरह का Decision लेकर मेघ मुनि जैसे ही अगली सुबह प्रभु महावीर के पास आए तब सर्वज्ञ ऐसे प्रभु महावीर ने मेघ मुनि से कहा :
‘हे मेघ मुनि, तुमने रात्रि में जो गलत विचार किया था, वह ठीक नहीं किया. अनादिकाल से इस संसार में नरक और तिर्यंचगति (Animals, Birds, Reptiles etc) में भटकते हुए आत्मा ने कैसी कैसी भयंकर कष्ट-पीड़ा को सहन किया है.’
प्रभु महावीर-मेघकुमार मुनि को उनका पूर्व भव यानी Past Life के बारे बताते हैं, जो कि कुछ इस प्रकार थी.
मेघ मुनि की Past Life.
मेघमुनि अपनी Past Life में एक हाथी थे और उस भव में उन्होंने बहुत समतापूर्वक तकलीफ सहन की थी, जिसके Result से उनका जन्म महाराजा श्रेणिक के यहाँ पर हुआ था. पूर्व के तीसरे भव में मेघमुनि वैताढ्य पर्वत के जंगल में मेरुप्रभ नाम के हाथी थे.
एक बार जंगल में भयानक आग लगी और मेरुप्रभ हाथी को बहुत ज्यादा प्यास लगने से वह पानी पीने के लिए एक तालाब में गया और वहाँ पर रास्ता भटक जाने से कीचड़ में फँस गया.
तभी पिछले जन्म के किसी वैरी हाथी ने मेरुप्रभ हाथी पर दाँतों से बहुत जोर से मारा और 7 दिन तक भयंकर दर्द सहन करने के बाद मेरुप्रभ हाथी की मौत हुई. मेरुप्रभ हाथी मरकर विंध्याचल पर्वत में 700 हथिनियों का स्वामी चार दाँतवाला हाथी बना.
इस जंगल में भी एक बार आग लग गई, जंगल की आग को देखकर मेघमुनि के जीव को यानी कि इस हाथी को जातिस्मरण ज्ञान हो गया. जाति स्मरण ज्ञान यानी Past Life Memories याद आना.
उस Forest Fire से बचने के लिए हाथी ने एक योजन प्रमाण यानी लगभग 12 KM जितनी जमीन को एकदम साफ कर दिया, Clear कर दिया यानी पेड़ आदि सब वहां से हटा दिए. जो भी नई घास उगती, उसे भी वह हाथी उखाड़कर फेंक देता.
एकबार उसी जंगल में अचानक चारों तरफ आग लग गई. आग से बचने के लिए जंगल के सभी जानवर यह हाथी की बनाई हुई उस Plain Safe जगह पर आ गए. मेघमुनि का जीव यह वह हाथी का जीव भी वहीं पर एक Side में खड़ा था.
जंगल में तो अनेकों पशु रहते हैं तो सब बचने के लिए यहाँ इकट्ठा हो गए. खचाखच पूरा Plain Ground भर चुका था. हिलने के लिए भी जगह नहीं थी. अचानक उस हाथी के पैर में खुजली आ जाने के कारण उसने अपना एक पैर ऊपर किया, ऊँचा किया और उसी समय खाली जगह देखकर एक खरगोश आकर वहाँ पर बैठ गया.
जैसे ही हाथी अपना पैर नीचे रखने लगा, तब उसने पैर रखने की जगह पर बैठे इस खरगोश को देख लिया और हाथी के मन में करुणा भाव आ गया. मेघमुनि का जीव यानी यह हाथी का जीव सोचता है कि ‘अगर मैंने अपना पैर नीचे रखा तो यह बेचारा खरगोश मर जाएगा.’
और इस प्रकार दया के-Kindness के कारण उस हाथी ने अपना पैर ऊँचा ही उठाए रखा, हवा में ही रखा. लगभग 2 & Half Days तक आग बुझी नहीं और सभी जानवर उसी Safe जगह पर रहे. ढाई दिन के बाद आग के शांत हो जाने के बाद सभी जानवर वापस अपनी अपनी जगह जाने लगे.
लेकिन इस हाथी ने खरगोश की रक्षा के भाव से जो 2 & Half Days तक लगातार पैर को उंचा उठाए रखा था इस कारण से हाथी का पैर अकड़ गया. पैर को नीचे रखने की कोशिश में हाथी का Balance बिगड़ गया और वह धडाम से नीचे गिर गया.
उसके बाद तीन दिन तक भूख और प्यास की पीड़ा को सहते हुए हाथी की Life पूरी हो गईऔर खरगोश पर की गई जीवदया के प्रभाव से, इस Result से वह हाथी का सीधा श्रेणिक महाराजा के पुत्र मेघकुमार के रूप में जन्म हुआ.
एक हाथी होते हुए भी इतनी करुणा-दया-Compassion का गुण उसमें था कि खुद की चिंता किए बिना, उस Rabbit की रक्षा की.
संयम जीवन में पुनः स्थिरता
तो वही हाथी का जीव जन्म लेता है श्रेणिक महाराजा के पुत्र मेघकुमार के रूप में और प्रभु महावीर से दीक्षा ग्रहण कर और रात में नींद अच्छी नहीं होने के कारण यही मेघमुनि रजोहरण लौटाने प्रभु महावीर के पास जाते हैं और प्रभु महावीर मेघमुनि को उनके पूर्व जन्मों की यह पूरी Story बताते हैं.
प्रभु महावीर मेघमुनि को समझाते हुए कहते हैं
‘हे मेघमुनि, जब एक हाथी के भव में भी जीवदया के लिए तुमने इतना कष्ट सहन किया तो फिर ऐसे त्यागी-संयमी महात्माओं के मात्र पैर लगने से कैसे तुम इतने बेचैन हो रहे हो? तुमने हाथी के भव में खरगोश को अभयदान-जीवनदान देने का फल इस भव में मेघकुमार बनकर हासिल किया है.
अब तो तुम दुनिया के सभी जीवों को अभयदान देनेवाले जैन साधु बने हो और इसलिए इस दीक्षा जीवन का अच्छे से पालन करो और अपने आपको इस भव-सागर से पार उतारो-मोक्ष में जाने का अपना रास्ता बनाओ. मोक्ष में जाने के लिए यह मनुष्य जन्म लेना जरुरी है और मनुष्य जन्म बहुत ही दुर्लभ यानी Rare है.’
इस तरह प्रभु महावीर से एक बार फिर प्रतिबोध पाकर मेघमुनि वापस संयम में स्थिर बने यानी Stable हुए और दीक्षा जीवन में लौट गए. मेघमुनि ने गलत विचार करने के द्वारा जो पाप कर्म बांधे थे, उनका ‘मिच्छामि दुक्कडम्’ मांगकर, एक दृढ़ संकल्प किया कि ‘आज के बाद मैं आँखों को छोड़कर शरीर की सार-संभाल यानी Care नहीं करूंगा.’
इस तरह कठिन अभिग्रह लेकर निरतिचार संयम जीवन का पालन करते हुए अपनी Life के End में मेघमुनि का समाधिमरण हुआ और उनकी आत्मा विजय नाम के अनुत्तर देवलोक में देव बनी. वहाँ से मेघमुनि की आत्मा महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष में जाएगी.
Moral Of The Story
1. हाथी ने खुद Plain Land बनाया था, लेकिन जब आग लगी तो जंगल के सभी पशु उधर सहारा लेने पहुँच गए, तब हाथी के जीव ने ऐसा नहीं सोचा कि जब मैं मेहनत कर रहा था तब तो किसी ने Support किया नहीं अब आ गए सब.
2. 5 दिन के बाद जब सब निकल गए होंगे तब हो सकता है कि किसी ने भी धन्यवाद नहीं दिया होगा लेकिन फिर भी हाथी के जीव को बुरा नहीं लगा.
हाथी का जीव जब नीचे गिर पड़ा, तब भी कोई भी Help करने नहीं आया, भूख प्यास से हाथी तड़प रहा था, लेकिन कोई पानी पिलाने तक नहीं आया, हाथी ने ऐसा नहीं सोचा कि मैंने इनकी जान बचाई और पानी भी नहीं पिला रहे हैं हाथी का जीव इतना सब कुछ होते हुए भी प्रसन्न था.
कारण क्या? Simple – No Expectations.
इतना बड़ा उपकार करने के बाद भी No Expectations. जीवों को बचाने का जो आनंद था उसमें वह हाथी का जीव इतना खो गया कि भूख, प्यास, पीड़ा उस हाथी को दुखी ही नहीं कर पाई.
कोई भी Situation हमें सुखी या दुखी नहीं कर सकती बल्कि हम उस Situation में क्या सोचते हैं उस पर निर्भर करता है कि हम सुखी होंगे या दुखी. हमें भी एक बार तो लग जाएगा कि बाकी पशु कितने मतलबी निकले कोई Help करने भी नहीं आया लेकिन खुद हाथी के जीव को ज़रा सा भी नहीं लगा.
उल्टा वह तो आनंद में था कि इतने जीवों की रक्षा हो पाई.
Specially उस खरगोश की.
2. हमें लगेगा कि हाथी के जीव ने अपना एक पैर हवा में रखकर खरगोश को बचा लिया, बात सही भी है लेकिन इस दृश्य को एक अलग Angle से भी देखा जा सकता है. No Doubt हाथी ने खरगोश को बचाया लेकिन सच यह है कि हाथी ने खुद को बचाया है.
“कैसे?”
हाथी ने खरगोश को बचाकर खुद का अनंत संसार सीमित कर दिया, Next 3 भव में मोक्ष. हमें नहीं पता कि और कितने जन्म-मरण यह हाथी के होनेवाले थे लेकिन खरगोश को बचाकर खुद की जन्म-मरण की Cycle यह हाथी ने Stop कर दी. अर्थात् हाथी ने खरगोश को नहीं बल्कि खुद को बचाया है.
हम किसी को Cheat करते हैं तो ऐसा सोचते हैं कि हमने उसे उल्लू बना दिया. लेकिन सच यह है कि हम खुद को उल्लू बना रहे हैं क्योंकि आज नहीं तो कल हम उल्लू बनने ही वाले हैं यानी किसी और को नहीं बल्कि खुद को उल्लू बनाने की Advance Booking कर रहे हैं, कर्म फिर से आने ही वाले हैं.
इसी तरह किसी जीव को जब हम बचाते हैं तो Actual में उसे नहीं बल्कि हम खुद को बचाते हैं, खुद को बचाने की Advance Booking कर रहे हैं और जब हम किसी जीव की हिंसा करते हैं तब हम उस जीव की नहीं बल्कि खुद की हिंसा करते हैं, खुद की आत्मा की हिंसा करते हैं, खुद की हिंसा की Advance Booking करते हैं.
हम जो कुछ भी किसी अन्य जीव के साथ कर रहे हैं वो उस जीव के साथ नहीं बल्कि खुद के साथ कर रहे हैं, खुद के साथ Advance Booking कर रहे हैं ऐसा सोचना है. फिर चाहे वह माया हो, क्रोध हो, अभिमान हो, झूठ हो या फिर हिंसा.
3. जो सहन करता है उसे कुदरत पुरस्कार देती ही है. इसलिए जैन धर्म में सहनशीलता को बहुत Importance दिया गया है.
आज भले लोग सहन नहीं करना चाहते, वापस जवाब देना चाहते हैं, ईंट का जवाब पत्थर से देने की इच्छा रखते हैं, एक के बदले चार सुनाने का Attitude रखते हैं, Flower नहीं Fire बनना चाहते हैं लेकिन Reality यह है कि कुदरत इस Attitude को Accept नहीं करती है.
हाथी के भव में इतना कुछ सहन किया तो कुदरत ने सीधा राजकुमार बना दिया.
4. कई बार गुरु भगवंतों के द्वारा प्रेरणा पाकर, Motivation पाकर हम धर्म में 1 Step आगे बढ़ते हैं और कई बार अलग अलग प्रतिज्ञाएँ भी ले लेते हैं, लेकिन सत्व कम पड़ने पर शायद उन प्रतिज्ञाओं का पालन नहीं कर पाते.
ऐसे कठिन समय में हम खुद ही Decision लेकर उन प्रतिज्ञाओं को भूल जाते हैं. मेघमुनि को दीक्षा जीवन कठिन लगा लेकिन उन्होंने खुद से Decision नहीं लिया, खुद से दीक्षा नहीं छोड़ी, प्रभु महावीर ने दीक्षा दी थी तो प्रभु महावीर के पास गए और Motivate करने पर फिर से दीक्षा जीवन में स्थिर बन गए.
अगर खुद से ही Decision लेकर दीक्षा छोड़ दी होती तो शायद बहुत बुरा परिणाम हो सकता था. इसलिए यदि गुरु भगवंत से कोई प्रतिज्ञा ली है और प्रतिज्ञा Follow नहीं हो पा रही है तो गुरु भगवंत के पास जाकर ही उसका Solution लेना चाहिए.
5. जीवों को बचाने से भी मोक्ष हो सकता है.
मेघमुनि का जो मोक्ष होगा उसके मूल में कहीं ना कहीं जीवदया है. इस मामले में श्राविकाएं बहुत Lucky है ऐसा कह सकते हैं क्योंकि जो बहनें जयणा पूर्वक रसोई का अद्भुत कार्य संभालती है उनके द्वारा हर रोज़ अनेकों जीव बचते हैं.
कई बार श्राविकाओं के Alertness के कारण धान्य, फल, सब्जी आदि में आती लटें आदि जीव यदि दिख जाए तो श्राविकाएं उनको बचाने का हर संभव प्रयास करती है. इस बचाने के आनंद में भी शायद मोक्ष का Goal Achieve हो सकता है.
6. हमें ये बात भी मन में आ सकती है कि ये Story-हाथी की Story Fake है. एक हाथी के पास क्या इतनी बुद्धि-इतने जीवदय के Emotions हो सकते हैं? तो आपको बता दें कि एक बार Google Search करके देखिएगा.
Emotions In Animals डालकर देखना होगा. इंसान को भी Selfishness के लिए अपना सर झुका देना पड़े इतनी Selflessness यानी मदद करने की भावना Animals में भी होती है.
हमारी Stories, Fictional, काल्पनिक नहीं है, Imagination नहीं REALITY है.
7. एक ही जीव में कर्म और परिस्थिति के अनुसार कितना Change आ सकता है, उसका मेघकुमार का जीवन एक Example है. जो जीव हाथी के भव में सहन करने के लिए Ready है, वह ही जीव मुनि के भव में बिलकुल सहन नहीं कर सकता.
इसलिए किसी भी जीव को Judge करने का अधिकार हमें है ही नहीं.
अच्छा-बुरा हो सकता है, बुरा-अच्छा भी हो सकता है.