Importance Of Gyan Panchami Tap – Mahapurush Yugbahu Muni’s Thrilling Story

ज्ञान पंचमी तप की महत्ता बताती हुई महापुरुष युगबाहु मुनि की अद्भुत कथा.

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Highlights
  • ज्ञान पंचमी की आराधना, तपश्चर्या से मनुष्य को सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति होती है, जिसके Result से मुक्ति सुख यानी मोक्ष प्राप्त होता है. 
  • जिस पुण्यात्मा ने भावपूर्वक तप धर्म की आराधना की है, उसने दान और शील धर्म की भी आराधना की ही है.
  • महापुरुषों के जीवन में भी तप धर्म का क्या Importance था, वह हमें इस कथा से पता चलता है.

आज हम ज्ञान पंचमी तप की अद्भुत महिमा बताती हुई एक ऐसे महापुरुष की कथा जानेंगे जिन्होंने सरस्वती देवी की आराधना के फलस्वरूप विशिष्ट ज्ञान और शक्ति प्राप्त की थी और ज्ञान पंचमी की निर्मल आराधना कर अपने जीवन को सम्यग्‌ ज्ञान से रंग डाला. 

आइए जानते हैं भरहेसर की सज्झाय में आनेवले महापुरुष युगबाहु मुनि की अद्भुत कथा. बने रहिए इस Article के अंत तक. 

महापुरुष युगबाहु का जन्म 

भरत क्षेत्र के पाटलीपुर नगर में विक्रम राजा का राज्य था. राजा की महारानी का नाम मदनरेखा था. एक बार महारानी को Tension में देखकर राजा ने रानी से कहा ‘प्रिये, आज तेरे चेहरे पर चिंता दिखाई दे रही है, क्या कारण है?’ महारानी ने कहा ‘स्वामी! आपके होते हुए मुझे अन्य किसी प्रकार का दुःख नहीं है लेकिन हमारी शादी के इतने साल बीतने पर भी अभी तक मुझे माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है.’ 

यह सुनकर राजा ने कहा ‘प्रिये, तुम चिंता मत करो. इसके लिए मैं योग्य उपाय करूंगा.’ राजा ने त्रिकाल यानी दिन में 3 Time कुल देवता की आराधना शुरू की. आराधना के फलस्वरुप महारानी गर्भवती हुई और एक शुभ दिन उसने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम युगबाहु रखा गया. 

Young Age में आने के बाद युगबाहु शस्त्र यानी Weapons और शास्त्र यानी Scriptures के Skills को अच्छे से सीखने लगा. एक बार राजकुमार युगबाहु के गुरु ने कहा कि शस्त्र और शास्त्र कला में जिसने Expertise हासिल की हो, उसे उत्तम पुरुष यानी Best Man समझना चाहिए.

गुरु की यह बात सुनकर वह राजकुमार युगबाहु नगर के बाहर जंगल में पहुँच गया. जंगल में रहे किसी साधु को युगबाहु ने पूछा कि ‘लोकोत्तर कला यानी लोकों में जिन कलाओं का प्रचलन है, उससे भी उपर की कला यानी वैराग्य कला कैसे मिलती है?’ 

साधु भगवंत ने कहा ‘शुभ कर्म के उदय से सभी शुभ विद्याओं की-Skills की प्राप्ति होती है और अशुभ कर्म के उदय से आत्मा को दु:ख की प्राप्ति होती है. ज्ञान पंचमी की आराधना, तपश्चर्या से मनुष्य को सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति होती है, जिसके Result से मुक्ति सुख यानी मोक्ष प्राप्त होता है. 

जिस तरह सूरज से अँधेरे का नाश होता है, उसी प्रकार तप करने से आत्मा पर लगे हुए भयंकर पापकर्मों का भी नाश हो जाता है.’ गुरु भगवंत के अमृत समान प्रवचन सुनकर युगबाहु ने 6 महीने तक दीर्घ तपस्या की. 

युगबाहु का अपहरण?

6 महीने के तप को पूर्ण करने के बाद अचानक एक दिन आसमान बादलों से घिर गया और भयंकर बारिश हुई. बारिश के पानी से नदी-तालाब सब भर गए. इस प्रकार बादलों की वृष्टि को देखकर किसी ने राजा को कहा ‘राजन्‌! गंगा नदी में बारिश के कारण पानी Overflow होकर नगर में फैल रहा है.’ 

गंगा के Overflow को रोकने के लिए जैसे ही राजा तैयार हुआ, वैसे ही राजकुमार युगबाहु ने कहा ‘पिताजी, इस काम के लिए आपको जाने की जरुरत नहीं है, आप मुझे आदेश दीजिए, यह काम तो मैं ही पूर्ण कर दूंगा.’ राजा ने कहा ‘तुम स्वर्ण पुरुष को लेकर गंगा तट पर जाना और वहाँ इसकी पूजा करके इसे नदी के पानी में डाल देना.’ 

स्वर्ण पुरुष यानी जंगल में साधना करके किसी मरे हुए व्यक्ति को सोना बनाने की विधि से सोने का बना देना, उसे स्वर्ण पुरुष कहते हैं. राजकुमार ने राजा की आज्ञा का स्वीकार किया और वह सुवर्ण पुरुष को लेकर गंगा नदी के तट पर गया. वहाँ उसने विधिपूर्वक गंगा नदी की पूजाविधि की, जिसके फलस्वरूप पानी Overflow होने से जो उपसर्ग आया था, वह शांत हो गया. 

उसी समय युगबाहु को किसी स्त्री की दर्दनाक आवाज सुनाई दी. वह स्त्री नदी के Overflowing पानी में प्रकट होकर बोली ‘क्या कोई राजा या राजकुमार है जो मुझे डूबने से बचा सके? हे पृथ्वी! रत्नगर्भा यानी रत्नों को जन्म देनेवाली होने पर भी क्‍या तू वंध्या यानी बाँझ है? मेरे प्राणों को बचा सके, ऐसे किसी पुत्र को तुमने जन्म नहीं दिया क्या?’

उस स्त्री के इन पीड़ा से भरे शब्दों को सुनकर युगबाहु उस स्त्री को बचाने के लिए नदी में कूद गया और तैरता हुआ वह राजकुमार जैसे जैसे उस स्री के पास जाने लगा, वैसे वैसे वह स्री नदी में उससे और दूर जाने लगी. नदी के तट पर खड़े सैनिक यह दृश्य देख ही रहे थे कि थोड़ी ही देर में राजकुमार युगबाहु अदृश्य हो गया. 

इधर Sunset भी हो गया था. उस समय युगबाहु के अपहरण को देखकर सभी लोग शोर मचाने लगे. सैनिकों ने जाकर राजकुमार के Kidnapping की बात राजा को बताई, तब राजा के Shock का कोई पार न रहा. पुत्र से बिछड़ने के दुःख से राजा बेहोश होकर जमीन पर गिर गया और ठंडा पानी छांटने पर जैसे ही राजा होश में आया, वह राजकुमार को याद करते हुए रोने लगा. 

तब सांत्वना देते हुए किसी मंत्री ने राजा को कहा ‘राजन्‌! आप व्यर्थ ही शोक न करें. इस संसार में सभी जीव अपने-अपने कर्म के अनुसार सुख या दुःख Experience करते हैं. पसंदीदा चीज़ से बिछड़ना सज्जनों के लिए वैराग्य का कारण बनता है, जबकि वही चीज़ मोह से ग्रसित व्यक्ति के लिए शोक का कारण बनती है. इस संसार में किसी की Destiny Change करना, किसी के लिए भी कैसे Possible है?’ 

मंत्री की यह बातें सुनकर राजा को गुस्सा आ गया और गुस्से में आकर राजा ने कहा ‘तुम मेरी नजरों से दूर हट जाओ.’ राजा की यह बात सुनकर मंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा ‘राजन्‌! मेरी भूल को माफ़ करें, आपका पुत्र आपको जरुर वापस मिल जाएगा.’

सरस्वती माता से मुलाकात  

अगले दिन सुबह होते ही किसी ने आकर राजा को समाचार दिए ‘हे राजन्‌! भाग्य योग से राजकुमार युगबाहु मिल गए हैं और वे आपके पास आ रहे हैं. यह सुनकर राजा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. राजकुमार युगबाहु ने महल में प्रवेश करते ही राजा के चरणों में प्रणाम किया.

राजा ने युगबाहु को गले लगाते हुए पूछा ‘बेटा, तुम कहाँ चले गये थे? अभी तुम कैसे और कहाँ से आ रहे हो?’ युगबाहु ने कहा ‘पिताजी, गंगा नदी के तट पर मैंने किसी डूबती हुई स्त्री को रोते हुए देखा और मैं उसे बचाने के लिए मैं नदी में कूद गया. कुछ ही समय बाद मैं बेहोश हो गया और थोड़ी देर बाद जब मुझे होश आया तब मैंने अपने आपको नदी की रेती में खड़े देखा. 

वहाँ ना तो गंगा थी और ना ही कोई तट, ना वह कन्या थी और ना ही अन्य कोई आवाज़! मैं सोच में पड़ गया कि ‘अरे! यह क्या? यह कोई इंद्रजाल यानी इंद्र महाराज द्वारा बनाई गई दुनिया, जो Real में होती नहीं है पर दिखती है यानी एक Illusion तो नहीं है?’ 

इस प्रकार सोचते हुए मैं जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ा, मैंने वहाँ कल्पवृक्षों का Garden देखा और आगे बढ़ने पर सात मंजिल का एक महल देखा. Curiosity से मैं उस महल के अन्दर गया और 6th Floor तक चढ़ा, तब मुझे बहुत ही सुरीला, मीठा संगीत सुनाई दिया. 

उसी समय वहाँ एक प्रतिहारी यानी चौकीदार आ गया और बोला ‘मैं शारदा देवी का प्रतिहारी हूँ और आपको बुलाने के लिए ही मैं आया हूँ.’ वह मुझे शारदा देवी के पास ले गया. वहाँ मैंने शारदा देवी यानी माँ सरस्वती को देखा. मैंने आदर पूर्वक सरस्वती माँ को नमस्कार किया और देवी ने मुझे एक सिंहासन पर बिठाया. 

सरस्वती माँ ने मुझसे कहा ‘तुम्हारे सत्त्व की परीक्षा करने के लिए मैंने ही गंगा नदी पर वह कन्या भेजी थी और अपने ही प्रतिहारी को भेजकर तुम्हे यहाँ बुलाया गया है. तुम सत्त्वशाली हो, तुम्हारे तप से मैं खुश हूँ. तुम्हारे द्वारा पूर्वभव में की गई आराधना से मैं प्रसन्न हूँ.’

ज्ञान पंचमी तप की महत्ता

इतना कहकर देवी सरस्वती ने युगबाहु को उसका पूर्वभव बताते हुए कहा ‘पिछले भव में तुम पुष्पपुर नगर में अत्यंत ही निर्धन यानी गरीब पुरुष थे. एक बार कौमुदी महोत्सव में जाते हुए समृद्ध यानी अमीर लोगों को देखकर तुमने सोचा ‘अहो! मैं कितना दुर्भागी हूँ. इस धरती पर मेरे जैसा दुःखी कोई नहीं होगा. 

इस प्रकार का महोत्सव होने पर भी मुझे भिक्षा भी नहीं मिल रही है. मेरे प्राण भी मुझे नहीं छोड़ रहे हैं. सचमुच मेरे पाप कर्म का उदय है कि जिसके कारण मुझे भिक्षा भी नहीं मिल रही है. मैंने पूर्वभव में कुछ भी सुकृत नहीं किया है, उसी का यह परिणाम है कि आज मैं दुःखी हो रहा हूँ. अब मैं कहाँ जाऊँ?’

इस प्रकार सोचकर तुम आत्महत्या करने के लिए किसी पर्वत यानी Mountain पर चढ़ गए और इष्ट देवता को नमस्कार कर कूदने के लिए तुम चारों ओर देख रहे थे, तभी तुम्हें किसी साधु भगवंत के दर्शन हुए. तुमने पांचों अंगों को झुकाकर साधु भगवंत को वंदन किया. 

अपना ध्यान पूर्ण कर साधु भगवंत ने तुम्हें धर्मलाभ का आशीर्वाद दिया और अवधिज्ञानी ऐसे उन महात्मा ने तुम्हारे कल्याण के लिए प्रवचन देने से पहले तुम्हें पूछा ‘तुम कौन हो और कहाँ से आए हो?’ तुमने कहा ‘मैं अत्यंत ही गरीब हूँ और मरने के लिए यहाँ आया हूँ. परंतु अब आपके दर्शन से मैं धन्य धन्य हो गया हूँ गुरुवर.’

साधु महात्मा ने कहा ‘हे भाग्यशाली! इस जगत में धन-धान्य आदि सब कुछ सुलभ यानी Easily Available हैं लेकिन चिंतामणि रत्न की तरह यह मनुष्य जन्म दुर्लभ यानी Rare है. यह शरीर तो एक दिन नष्ट हो जानेवाला है लेकिन तुम तप-साधना आदि करके इस मनुष्य भव को सफल करो. पाप कर्मों के नाश के लिए तप तो अग्नि के समान है. पूर्व भव के दुष्कर्मों के नाश के लिए तुम्हें ज्ञान पंचमी की आराधना करनी चाहिए. 

यह तप तो पूर्व भव के दुष्कर्म रूपी पेड़ को काटने के लिए तीखी धारवाली आरी के समान है. जिस पुण्यात्मा ने भावपूर्वक तप धर्म की आराधना की है, उसने दान और शील धर्म की भी आराधना की ही है. इस पंचमी तप से तुम्हारे सारे अंतराय कर्म दूर होंगे और तुम्हारे सारे मनोरथ यानी इच्छाएँ पूर्ण होंगी.’ 

इस प्रकार मुनि की धर्मदेशना सुनकर तुमने आत्महत्या का विचार छोड़ दिया और उसके बाद तुमने सद्भाव पूर्वक ज्ञान पंचमी तप की आराधना कर अपने जीवन को सफल बनाया है. उसी पंचमी तप की आराधना के प्रभाव से तुम मरकर युगबाहु के रूप में पैदा हुए हो.’ इस तरह से देवी ने सारी कथा बताई.

युगबाहु ने कहा ‘इस प्रकार सरस्वती देवी के मुख से अपने पूर्वभव को सुनकर मैं खुश हो गया.’ आगे देवी ने कहा ‘तुम शस्त्र और शास्त्र कला में निपुण बनोगे.’ उसी समय सभी प्रकार की Skills में Expertise हासिल करनेवाला एक ‘काममंत्र’ सरस्वती देवी ने युगबाहु को दिया. 

देवी के मुख से ‘काममंत्र’ पाकर मैं खुश हो गया और तभी एक चमत्कार जैसा हुआ और मैं वापस गंगा तट पर आ गया. यह सारी बात युगबाहु ने अपने पिता को बताई. युगबाहु से इस घटना को सुनकर राजा की ख़ुशी और आश्चर्य का पार नहीं रहा. अत्यंत खुश होकर राजा ने युगबाहु को युवराज की पदवी प्रदान की. 

स्तंभनी विद्या का प्रयोग

उसके बाद युगबाहु माता पिता की भक्ति के साथ पंचमी तप की आराधना एवं प्रभुभक्ति करता हुआ समय बिताने लगा. एक बार युगबाहु रात के समय अपने Room में सोया हुआ था, तभी उसे किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी. उसी समय हाथ में नंगी तलवार लेकर युगबाहु उस दिशा की ओर चल पड़ा. जंगल में जाकर उसने एक अत्यंत ही सुंदर कन्या को देखा. 

वहाँ एक लड़का भी था जो उस कन्या के सामने कामभोग की प्रार्थना कर रहा था. उनके बीच चल रही बातों को सुनने के लिए युगबाहु किसी पेड़ के पीछे छिप गया. उस युवक ने कन्या से कहा ‘तुम यदि मुझे स्वीकार नहीं करती हो तो तुम इस नंगी तलवार को देख लो और अपने इष्ट देव का स्मरण कर लो यानी मरने के लिए तैयार हो जाओ.’

कन्या ने कहा ‘मेरे दिल में युगबाहु कुमार का वास है, इसलिए उन्हें छोड़कर मैं अन्य किसी को याद नहीं करती हूँ. मेरे दुर्भाग्य से उनके मुझे दर्शन नहीं हुए तो आनेवाले जन्म में मेरा उनके साथ मिलन हो, यही मेरी इच्छा है.’ उस कन्या के मुख से अपने नाम को सुनकर युगबाहु एकदम Shock हो गया. 

वह सोचने लगा ‘अहो! यह कन्या कौन है? यह कन्या तो मुझे पहचानती है.’ उसी समय हाथ में नंगी तलवार लेकर युगबाहु उस युवक के सामने आ गया और बोला ‘अरे पापी! स्त्री हत्यारा! तू कहाँ जाएगा?’ उस युवक ने कहा ‘तुम यहाँ से हट जाओ. तुम बिना कारण ही क्यों मरना चाहते हो?’  

युगबाहु ने कहा ‘प्राण तो आज नहीं तो कल जाने ही वाले हैं, परंतु प्राण जाने के पूर्व कोई परोपकार का कार्य हो जाए तो अच्छा ही है ना. तुम इस लोक या परलोक में भी जो दंडनीय है, वैसे अपराध को क्यों करने जा रहे हो?’ उस युवक ने कहा ‘तुम मुझे उपदेश देनेवाले कौन हो?’ 

इस प्रकार कहकर वह युगबाहु के साथ लड़ने के लिए तैयार हो गया. कुछ ही देर में दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया. उस युवक ने कुमार पर दंदशुक नामक Weapon फेंका. उसी समय युगबाहु ने सरस्वती माता द्वारा दिए गए मंत्र को यादकर ‘स्तंभनी’ नामक एक विद्या का उपयोग किया यानी एक ऐसी विद्या जो किसी भी चीज़ को Stop कर देती है, Statue कर देती है, उस विद्या के द्वारा उसे स्तंभित यानी Statue कर दिया. 

अनंगसुंदरी की प्रतिज्ञा 

युगबाहु के अद्भुत रूप और लावण्य को देख वह कन्या सोचने लगी ‘क्या ये वो ही राजकुमार युगबाहु तो नहीं आए हैं, जिन्होंने इस कपटी युवक को सबक सिखाया है?’ उसके बाद युगबाहु ने उस युवक को मुक्त किया और वह युगबाहु के चरणों में गिर पड़ा. तभी आकाशमार्ग से एक विमान वहाँ आया. 

उस विमान में से एक विद्याधर बाहर आया और उसने युगबाहु से कहा ‘हे युगबाहु! मेरी बात आप ध्यान पूर्वक सुनिए. भरत क्षेत्र में आए वैताढ्य पर्वत के उत्तर में गगनवल्लभ नाम का एक श्रेष्ठ नगर है. उस नगर में मणिचूड़ नाम का विद्याधर रहता है और उसकी पत्नी का नाम मदनावली है और पुत्री का नाम अनंगसुंदरी है. युवावस्था में आने के बाद अनंगसुंदरी ने स्त्रियों की 64 कलाओं में Expertise हासिल की है. 

उस अनंगसुंदरी ने एक प्रतिज्ञा की है कि ‘जो मेरे चार प्रश्नों का जवाब देगा, वो ही मेरा पति होगा.’ अनंगसुंदरी की इस शर्त को सुनकर इसके रूप सौंदर्य से मोहित बने अनेक राजकुमार वहाँ पर आए परंतु एक भी विद्याधर या राजकुमार उसके प्रश्नों का संतोष प्राप्त हो जवाब नहीं दे पाया. 

पुत्री की शादी की Tension से चिंतित बने राजा ने एक बार किसी नैमित्तिक यानी उस समय के ज्योतिषी कह सकते हैं, उन्हें पूछा कि ‘इस कन्या का पति कौन होगा?’ नैमित्तिक ने कहा ‘इसका पति राजकुमार युगबाहु होगा.’ नैमित्तिक की यह बात सुनकर यह कन्या जिसे आप बचाने आए थे यानी अनंगसुंदरी, युगबाहु को पाने की इच्छुक बनी. 

यह युवक जिसे आपने स्थंभित किया था, वह शंखपुर का स्वामी पवनवेग विद्याधर है. इसका मैं मामा हूँ और यह मेरा भांजा है. मेरा नाम मणिचूड़ है. हे युगबाहु! मुझे मेरी पुत्री प्राणों से भी अधिक प्यारी है. नैमित्तिक को पूछने पर उसने कहा था कि युगबाहु इसका पति बनेगा. अतः आपके साथ अपनी पुत्री का विवाह कराने में मुझे बहुत ख़ुशी होगी लेकिन मेरी पुत्री की प्रतिज्ञा का भी पालन हो जाए तो बहुत अच्छा रहेगा.’ 

4 प्रश्नों के उत्तर!

उसी समय युगबाहु के पिता विक्रमबाहु राजा भी वहाँ पर आ पहुंचे. पवनवेग विद्याधर ने युगबाहु के चरणों में नमस्कार करके कहा ‘स्त्रीहरण का मैंने जो पाप किया है, उसे आप क्षमा करें.’ मणिचूड़ सभी विद्याधरों को अपने नगर में लाया और वहाँ उसने भव्य मंडप की रचना की. अनंगसुंदरी भी सज धज कर विवाह के मंडप में आ गई.

मणिचूड़ ने घोषणा की कि ‘मेरी पुत्री के चार प्रश्नों का जो भी जवाब देगा, वही इसका पति होगा. अनंगसुंदरी ने सभी के समक्ष अपने चार प्रश्न किये 

1. कला सहित कौन है?
2. सद्बुद्धिमान्‌ कौन है?
3. सौभाग्यशाली कौन है?
4. विश्वजयी कौन है?

सभा में से अन्य कोई भी इन प्रश्नों के जवाब नहीं दे सका. उस समय युगबाहु जिसके पास माता सरस्वती की शक्ति रूप काममंत्र था, जिसके प्रभाव से वह जिस किसी चीज़ से जो कुछ कराना चाहता था, वह करा सकता था. युगबाहु खड़ा हुआ और उसने सोने की पुतली का स्पर्श किया और वह पुतली बोल उठी : 

1. जो सुकृतरुचि वाला है, वह कलावान है.

2. जो करुणा में तत्पर है, वह बुद्धिशाली है.

3. जो अच्छा बोलता है, वह सौभाग्यशाली है.

4. जो क्रोध का विजेता है, वह विश्वविजेता है.

इन जवाबों को सुनकर अनंगसुंदरी खुश हो गई और उसने युगबाहु के गले में वरमाला डाल दी. चारों ओर जय जयकार होने लगी और शुभ वेला में भव्य महोत्सव के साथ युगबाहु और अनंगसुंदरी का विवाह हुआ. कुछ समय बीत जाने पर एक शुभ दिन विक्रमबाहु राजा ने जिनभक्ति महोत्सव कर युगबाहु को राजगद्दी सौंपकर गुरुचरणों में भागवती दीक्षा अंगीकार कर ली. 

दीक्षा स्वीकार 

राजा बनने के बाद युगबाहु ने पितृविद्या यानी वशीकरण करने की एक विद्या से अनेक राजाओं को अपने वश में कर लिया. दीक्षा के लिए इच्छुक बने अनंगसुंदरी के पिता मणिचूड़ ने भी युगबाहु को विद्याधरों का नायक बनाया और दीक्षा ग्रहण की. 

एक शुभ दिन अनंगसुंदरी ने एक तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम ‘रत्नबाहु’ रखा गया. बड़ा होने पर रत्नबाहु भी अपने पिता के समान सभी कलाओं में यानी Skills में Expert बना. आचार्य पद पर आने के बाद विक्रमबाहु आचार्य का आगमन पाटलीपुर नगर में हुआ. 

आचार्य विक्रमबाहु की वैराग्य से ओतप्रोत प्रवचन सुनकर युगबाहु भी संसार से विरक्‍त हो गए. युगबाहु राजा ने अपने पुत्र राजकुमार रत्नबाहु को राज्य सौंपकर विक्रमबाहु गुरुदेव के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया और निरतिचार संयम धर्म का पालन कर छट्ठ, अट्ठम, मासक्षमण आदि तप कर सभी कर्मों का क्षयकर शाश्वत अजरामर मोक्षपद प्राप्त किया.

महापुरुष युगबाहु मुनि की कथा से हमें कुछ सीखने को मिलता है. आइए देखते हैं इस कथा की Learnings.

Moral Of The Story 

1. आजकल दुनिया में पैदा होनेवाले कई बच्चे Autism नामक बिमारी का शिकार हो रहा है. अगर युगबाहु कि जो पूर्वभव में एकदम दीनक्षीण था, वह भी अगले भव में ज्ञान पंचमी तप के प्रभाव से सरस्वती देवी का कृपा पात्र बन सकता है, तो ये बच्चे क्यों नहीं बन सकते? 

उन बच्चों को सरस्वती देवी की साधना एवं ज्ञान पंचमी का तप करवाना चाहिए, ऐसा यह घटना से लगता है. 

2. जब पुण्य बलवान हो, धर्म-श्रद्धा एवं मजबूती से किया हो, तब बुद्धि, पैसा, स्त्री/पुरुष सब कुछ मिलता है और पहले भिखारी जैसे लोग भी मालामाल हो जाते हैं. 

3. जिसने साधना की हो, उस व्यक्ति को सामने से सभी साधन यानी Opportunities आती है और साधनों से उसको फायदा ही फायदा होता है. 

4. हमको युगबाहु कुमार आज की Movie में बताए गए Hero जैसे लगेंगे पर वह Hero बनने के पीछे रहा हुआ सत्त्व धर्म की ही देन है, Gift है.  

5. गुरु भगवंत के दर्शन भी Suicide जैसी बड़ी घटनाओं को टाल देते हैं. इसलिए साधुओं का संग करना जरुरी है, तो ही हम हमारे जीवन के रंग में रंग सकते हैं. जीवन कैसे जीना, उसका मार्गदर्शन भी अच्छे साधु भगवंत देते ही हैं, इसलिए साधु भगवंतों का संग करना बहुत जरुरी है.  

और हाँ! एक और बात, जब कभी भी ऐसा लगे कि जीवन अब अंत कर देना चाहिए, Suicide कर लेनी चाहिएतब एक बार कोई भी साधु-साध्वीजी भगवंत के दर्शन कर उनसे एक बार बात कर लेनी चाहिए.

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