Protect Yourself : Boil And Filter Your Water – A Scientific Breakthrough That Will Change Your Life

आखिर क्यों दुनिया अपना रही है जैनधर्म का उबाला और छाना हुआ पानी पीने का सिद्धांत?

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By Jain Media 144 Views 17 Min Read

BOILED + FILTERED WATER Orthodox नहीं बल्कि Super Scientific है. 

Normally कुछ Jains उबाला हुआ पानी पीते हैं और बाकी के Jains पानी छानकर यानी Filter करके पीते हैं. इतना ही नहीं Travelling में चुस्त जैन लोग अपने पास ऐसा गरना रखते ही है जिससे पानी Filter किया जा सके. 

शायद कई लोगों को ऐसा लगता होगा कि जैनों की यह Boiled + Filtered किए हुए पानी को पीने की मान्यता Orthodox है, इसमें Scientific जैसा कुछ नहीं है. 

तो आज हम जो Research आपके सामने रखनेवाले हैं, वह आपके दिमाग को सिर्फ हिलाएगा ही नहीं बल्कि प्रभु की आज्ञा एवं गीतार्थ गुरू भगवंत के निर्णय एवं वचन कितने Practical-Scientific है वह भी Prove कर देगा. बने रहिए इस Article के अंत तक. 

Feb 2024 में American Chemical Society द्वारा एक Study Publish की गई जिससे हैरान कर देनेवाली बातें सामने आई है. 

Harmful Effects of Plastic

पूरी दुनिया Plastic पर Dependent हो चुकी है तो किसी न किसी माध्यम से, Mainly जो पानी हम पीते हैं और जो हम खाते हैं, उसके जरिए हमारे शरीर में Plastic प्रवेश कर रहा है और Plastic सेहत के लिए खराब है यह बताने की आवश्यकता नहीं है सबको पता है. 

संक्षेप में कहे तो Plastic के कारण शरीर की Antibiotic Resistance की शक्ति और Gut Microbiome पर उसका गहरा Effect होता है यानी Short में कहे तो हम बीमार पड़ सकते हैं. 

हमारी रोग प्रतिकारक शक्ति यानी Resistance Power में गड़बड़ हो सकती है. Cancer का खतरा बढ़ जाता है. इतने में समझ सकते हैं कि Effects क्या है. 

Problem

China के Guangzhou Medical University और Jinan University की एक Team ने इस Problem को Solve करने के लिए Research किया और उन्हें जो Solution मिला वह सभी व्यक्तियों को खास कान खोलकर सुनने जैसा है. 

उन्होंने नल का Normal पानी जिसे Hard Water कहते हैं और जिसमे Minerals ज्यादा मात्रा में होते हैं, उस पर और Soft Water यानी कि हम जिसे Purified Mineral Water के नाम से पीते हैं, उस पर यह प्रयोग किया था. 

कुछ Researchers का कहना है कि पानी की Plastic की 1 Litre वाली Bottle में 240,000 के करीब Nanoplastic Particles होते हैं. Microplastic और Nanoplastic particles छोटी छोटी Size के Plastic Particles होते हैं, Nanoplastic तो खुली आँखों से दिखते ही नहीं और हमारे शरीर में आसानी से चले भी जाते हैं. 

जिससे Cancer जैसी बीमारियाँ हो सकती है. अब खुद खुद का हिसाब लगाकर हमें Comment में ज़रूर बताइयेगा कि पिछले एक महीने में या फिर 6 महीनों में आपने कितनी बार Plastic Bottle में पानी पीया था.

Shocking Solution

उन Scientists ने उन दोनों प्रकार के पानी को गर्म किया, उबाला यानी Boil किया और उन्हें छाना यानी Filter किया और फिर उन्होंने उन पानी के Samples को देखा तो इस Boiled + Filtered-दो Processes में 90% Nano Plastic और 90% Micro Plastic निकल गए थे. 

90% NMP’s यानी Nano + Micro Plastic निकल गए थे. जी हाँ 90%. इतना ही नहीं, इस पानी को उबालने से पहले उन्होंने भी थोड़ा Nano + Micro Plastic (NMP’s) उसमें Add किया था जिससे Experiment और अच्छे से हो सके. 

Result

Scientists को भी आश्चर्य हुआ और उन्होंने Research Paper में यह Conclude किया कि 

This simple boiling-water strategy can “decontaminate” NMPs from household tap water and has the potential for harmlessly alleviating human intake of NMPs through water consumption.

पर आखिर यह Plastic उसमें से निकले कैसे? यह प्रश्न हम सभी को होगा और होना ही चाहिए. 

Technical Findings

जैसे-जैसे हम पानी को उबालते हैं और Temperature 0 Degree Celsius से 100 Degree Celsius की तरफ यानी पानी के Boiling Point की तरफ बढ़ते हैं, वैसे-वैसे Limescale यानी Calcium Carbonate एक साथ इकट्ठा होते जाता है और यह चीज हमें हमारे घरों में देखने भी मिलती है. 

हमारे Kitchen में जो चाय की Kettle Use करते हैं, उसमें हमें White Colour की Chalk जैसी चीज लगी हुई दिखती है कि जिसे हम Limescale कहते हैं. होता यह है कि पानी का Temperature इस Calcium Carbonate को पानी से बाहर निकालता है और उसे और Plastic के छोटे-छोटे Fragments को एक Crust यानी Group में इकट्ठा कर देता है. 

limescale formation

लगभग तो Limescale खुली आँखों से नहीं दिखता लेकिन जब यह ज्यादा मात्र में इकठ्ठा होता है तब यह कुछ इस तरह से दिखता है. Bottle का पानी या नल का पानी जिस किसी में यह Limescale उबलने पर इकट्ठा होता है, उसे फिर हम जिसे छाननी कहते हैं उससे छानने पर निकल जाता है और हमारा पानी 90% Plastic Free हो जाता है, ऐसा Research में दिखाया गया है. 

Local to Global

Researchers ने और एक Line उस Research में लिखी थी 

Drinking boiled water however is often regarded as a local tradition and prevails only in a few regions. 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हाल ही में BMC ने एक Advisory जारी की है जिसमें उन्होंने मुंबई के कई इलाकों में गंदे पानी की Complaint आने के बाद मुंबई निवासियों को पानी को छानकर और उबालकर पीने का सुझाव दिया है. 

आज भी अनेकों जैन लोग जैन धर्म के नियम को पालते हुए पानी को छानकर + उबालकर ही पीते हैं. अक्सर ऐसे आराधकों का मज़ाक उड़ाया जाता है. विडंबना यह है कि कई लोग प्रभु द्वारा बताई गई बातों में If-Why-But आदि प्रश्न करते हैं, लेकिन जब वही बात Science या सरकार कहती है तो उस पर आंख बंद करके विश्वास हो जाता है. 

BMC की बात माननी या परमात्मा की, जो भी हो लेकिन जैन धर्म का यह सिद्धांत पूरी दुनिया को आज नहीं तो कल अपनाना ही होगा. लेकिन क्या ये हम जैनों के लिए गौरव की बात होगी? खुद से पूछने जैसा है. आज जिसे हम Local बोल रहे हैं, वही कल Global होनेवाला है और यह बात भी उस Research में Mention की गई है. 

Alarming issue for all of us!

हम जो बिना उबाला हुआ-बिना छाना हुआ पानी पीते हैं, उसमें Polystyrene, Polyethylene, Polypropylene और Polyethylene Terephthalate के अंश होते ही है. ये हमारी सेहत के लिए बहुत Harmful है. 

बड़े दुःख की बात है कि आजकल जैनों का कोई भी Program हो, धार्मिक या सामाजिक, सभी में एक खतरनाक Trend शुरू हुआ है – Plastic Water Bottles और अनछना पानी यानी बिना Filter किया हुआ पानी आने लगा है.

Plastic की Bottles में Mineral Water के नाम से जो पानी दिया जा रहा है, वह और कुछ नहीं बल्कि Plastic की पेट में प्रभावना है और शायद कड़क शब्दों में कहने जाए तो मेहमानों को और संघ के सभी लोगों को रोगों की प्रभावना है.

आजकल पूरी दुनिया चाहते ना चाहते हुए भी Plastic पर जी रही है. पूरी दुनिया में शायद एक भी घर ऐसा नहीं मिलेगा कि जहां Plastic ने अपना अड्डा जमाया ना हो. Disposable Bottles हो या Disposable Cutlery इन सभी को आज Status गिना जाता है और ‘हम दुनिया से कुछ ऊपर है’ यह बताने का एक जरिया बन चुका है. 

पर इस Status की भूख में हम अपनी Health की कब्र खोद रहे हैं. Status बताने के लिए शरीर ही नहीं रहेगा, ऐसी हालत हमारी होनेवाली है. Travelling में भी Plastic Bottle में ही पानी पीने की आदत हमें कहीं Hospital के Destination पर ना पहुंचा दे. 

ये हमारी साधर्मिक भक्ति है या कमबख्ती पता नहीं. अगर ऐसे Functions में कोई Plastic की Bottle के पानी को खुद की Glass में छानने जाता है तो उसे लोग धर्म की पूंछ कहते हैं. पर उन्हें पता नहीं है कि यह व्यक्ति सेहत की पूंछ है और बाकी सभी लोग रोग की पूंछ है. 

उसे Orthodox कहनेवाले खुद ही Orthodox हैं क्योंकि वे Science से भी समझते नहीं है और Science को भी समझते नहीं है.

जीवरक्षा = स्वरक्षा

हमारे प्रभु ने, हमारे गुरु भगवंतों ने छानकर हर चीज वापरने की यानी Use करने की यह बात त्रस जीवों की रक्षा के लिए बताई थी और किसी भी ऐसे दूसरे जीवों की रक्षा की बात में स्व-रक्षा यानी खुद की रक्षा की बात तो छिपी हुई होती है. 

हम कहेंगे कि तब Plastic नहीं था तो Health की बात कहां से आई? पर ऐसे तो क घट रही है. आइए कुछ घटनाएं जानते हैं. शायद सबकी आँख खुल जाए.

पानी में छिपकली

कुछ महात्मा Karnataka में विहार करके जा रहे थे और एक School में वे रुके. उस छोटीसी स्कूल में दोपहर को सांभर-चावल दिए जाते थे. एक महात्मा पानी गरम करवाने के लिए उस स्कूल के Kitchen में गए और उन्हें दाल में ऊपर कुछ उबलते हुए दिखा. 

उन्होंने खाना बनानेवाली को बुलाया और उस तरफ इशारा किया तो एक मरी हुई छिपकली बाहर निकली और पानी + दाल के साथ वह बफ गई थी. Can के पानी में गिरी हुई इस छिपकली का मरण हो चुका था. 

पानी को नहीं छानने के कारण कितने ही बच्चों में इस छिपकली के अंश जाते, सोचने जैसा है और उसके कारण उन सभी की Health कितनी हद तक बिगड़ती, वह भी समझने जैसा है. छिपकली ज़हरीली हो तो मृत्यु के भी Chances हो सकते हैं.

घर की बात

एक बड़े जैन जीमनवार में खाने के बाद बहुत से लोगों को Food Poisoning जैसा हुआ. उनके शरीर पर अलग-अलग तरह की Allergies होने लगी. तलाश करने पर, Test करने पर पता चला कि पानी के अंदर नल के जरिए एक छोटा सा सांप आ गया था कि जिसे रसोइयों ने दाल में उबाल दिया था और उसी ने यह रोग फैलाया था. 

हालांकि आयोजकों ने इस बात को दबा दिया था कि जो सदियों से होता आ रहा है. यदि कोई जयणा मंडल या जयणा श्रावक भाई होते तो शायद ऐसा ना होता लेकिन Unfortunately ये जयणा हमें आज खटकने लगी है क्योंकि हम जयणा से ज्यादा Taste को Preference देते हैं. 

शास्त्रों की बात

शास्त्रों में भी ऐसी ही एक घटना आती है कि जिसमें अंधेरे में सांप के उबले हुए पानी से पूरी Family मर गई थी और इसलिए ही जैन शास्त्रों में यह स्पष्ट विधान है कि पानी को छानकर ही Use करना चाहिए. 

हमारे चौदस को बोले जाते अतिचार सूत्र में भी ‘संखारे’ की बात आती है कि जो यह सूचित करती है कि पानी को छानने के बाद उनमें आए हुए सूक्ष्म त्रस जीवों को विधिपूर्वक दूसरे पानी में अनछना छोड़ देना चाहिए, वरना दोष लगता है. 

यानी छानने के बाद की प्रक्रिया बताई है तो समझना है कि छानना is Must.

Time for some Revolution

ऐसा कहा जाता है कि जयणा यानी पानी छानना, जयणा यानी ठीक से उबालना आदि यह सब धर्म का प्राण है पर सिर्फ वह धर्म का ही नहीं, हमारे जीवन का भी प्राण है, ऐसा आज Science भी बोल रहा है और हम तो आजकल Doctors की और Science की ही भाषा समझते हैं ना? 

इसलिए अब तो उबालकर + छानकर ही पानी पीना शुरू करना होगा. आज बड़े बड़े संघों में भी Plastic Bottles का प्रचालन बढ़ते हुए दिख रहा है, अगर बड़े बड़े संघों द्वारा यह निर्णय लिया जाता है कि “साधर्मिक की Health को नज़र में रखते हुए Plastic Water Bottles का यह So called Unhealthy Modern System बंद किया जाए” तो सभी को प्रेरणा मिलेगी और बाकी के जैन संघ भी प्रेरणा लेकर बंद करेंगे. 

हम क्या कर सकते हैं?

ये Plastic Bottles का प्रचालन इसलिए है क्योंकि हम सब Plastic Bottle में पानी पीते हैं, इस System को Accept करते हैं. मान लो 1000 मेहमान आए हो और 800-900 लोग Plastic Bottle वाले पानी को Reject करे तो आयोजकों को भी सोचना पड़ेगा, अपने आप Trend Change होगा. 

तो शुरुआत हमें खुद से ही करनी होगी. 100 लोग भी पूछने लग जाए कि भैया मटके का पानी नहीं है क्या? तो तुरंत मटका लाया जाएगा. आपका इस विषय पर क्या कहना है Comments Section में ज़रूर बताइयेगा.

Change Begins From Home. 

अक्सर Indian घरों में और खासकर Kitchen में हमारी माताओं की Favourite Item Plastic के डब्बे होते हैं भले ही वह School का Tiffin हो या दाल चावल भरकर रखने वाले Containers हो. 

Personal Level पर हम Plastic का जितना Usage Avoid कर सकते हैं, खासकर खान पान से Related मामले में उतनी ही हमारी Health Safe रह सकती है. ऐसा कहा जाता है कि मम्मीयों के हाथ में घर के Members की Health Safety होती है. 

जब वे ही Plastic को Promote करेंगी तो Health Safety की हम बात ही कैसे कर पाएँगे? मम्मीयों को सुधरना होगा वरना बीमारियाँ दरवाज़े पर खड़ी है ऐसा समझ लीजिए! 

Red Alert

Science के इतने Red Alert भी अगर हमें प्रभु की आज्ञा मानने के लिए Convince ना कर पाए और हम अपनी Status की धुन में ही रहना चाहते हैं तो प्रभु भी नीचे आकर हमें सुधार नहीं पाएंगे और हम इस दुनिया के लोगों को जल्दी यमलोक पहुंचाने के कारण बनेंगे. 

कम से कम अभी तो गुरु भगवंत की सावधानियां सुन लेनी चाहिए. जयणा का पालन करानेवाले मंडल या श्रावक भाइयों को Motivate करना चाहिए, भले Items थोड़ी कम Tasty बनेगी क्या ही हो जाएगा लेकिन फिर भी जयणा का पालन होगा उसका हमें गौरव महसूस होना चाहिए. 

उन्हें धिक्कारना यानी खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मरने जैसा है. फिर से बता देते हैं भूल से भी रसोइयों के भरोसे हमारे पवित्र स्वामीवात्सल्य या धार्मिक Functions छोड़ने नहीं चाहिए क्योंकि उन्हें तो काम पूरा करने से मतलब है, कमाई से मतलब है, जयणा से नहीं, प्रभु की आज्ञा से नहीं, Science की Theory से भी नहीं और हमारी Health से तो बिलकुल भी नहीं. 

सोए हुए व्यक्ति को जगाया जा सकता है, जागते हुए जो सोने की Acting करे उसे जगाना Impossible है. बदलाव लाते हैं तो प्रभु की आज्ञा का पालन होगा और Health भी Safe रहेगी वरना बर्बादी तो साफ़ साफ़ दिख ही रही है. अंत में धर्म को इतना सचोट बताने के लिए-Scientific बताने के लिए प्रभु को अनंत अनंत वंदन. 

अब बताइए Jainism Scientific है या Science Jainified है? 

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