माँस मच्छी या अंडे आदि का सेवन नहीं करना चाहिए, यह चीज़ें नहीं खानी चाहिए, यह तो समझ आता है लेकिन सब्जियों में भी रोक टोक है ऐसा क्यों? प्रश्न यह है कि पंचिन्द्रिय जीवों के वध से बनी चीज़ खाने में पाप लगे वह समझ सकते हैं लेकिन एकीन्द्रिय जीवों का भोजन में निषेध क्यों? यानी अनंतकाय भक्षण जैसे आलू, गाजर, मूली, प्याज, लहसुन, अदरक, कच्ची हल्दी, सलगम, अर्वी, सकरकंदी इत्यादि जमीकंद खाने में क्या पाप लगेगा? वो भी तो सब्जी ही है ना. दूसरी सारी सब्जियां अथवा फल खा सकते हैं तो ये सब क्यों नहीं?
जैनधर्म में कंदमूल (जमीकंद) पर निषेध के पीछे का कारण जानने के लिए बने रहिए इस Article के अंत तक.
इस आलू प्याज को लेकर जैनों का बहुत मज़ाक उड़ाया जाता है, लेकिन हम दावे के साथ कह सकते हैं कि इन सबके पीछे का कारण जानकर आप सभी को जैन धर्म पर गर्व महसूस होगा कि किस तरह प्रभु महावीर ने सूक्ष्मता से हमारा ध्यान रखा है, हमारी आत्मा का ध्यान रखा है. इस जमीकंद नहीं खाने के पीछे का कारण समझने के लिए सम्पूर्ण Focus के साथ पूरा Article पढना होगा.
इस गंभीर विषय को Deeply समझने का प्रयास करते हैं.
श्रावक जीवन में हिंसा का स्वरुप
देखिए इसका उत्तर जानने से पहले हमें कुछ और चीज़ें जाननी होगी. जीव इस प्रकार होते हैं-एक इन्द्रिय वाले जीव, दो इन्द्रिय वाले जीव, तीन इन्द्रिय वाले जीव, चार इन्द्रिय वाले जीव, पांच इन्द्रिय वाले जीव. इन्द्रिय यानी Senses. हम मनुष्य पांच इन्द्रिय वाले जीव है. इसी तरह पानी, फल, फूल, सब्जी, दाल, अन्न आदि एक इन्द्रिय वाले जीव हैं.
जैन धर्म में साधु साध्वीजी भगवंत जब दीक्षा लेते हैं तब एक इन्द्रिय जीवों की भी हिंसा नहीं करने का व्रत ले लेते हैं, इसलिए उनका जीवन निर्दोष कहा जाता है, अर्थात् वो आहार भी घर घर जाकर थोडा थोडा लेते हैं, इसलिए उसे निर्दोष आहार कहा जाता है, यानी जो भी भोजन बनता है वो साधु साध्वीजी भगवंतों के लिए नहीं बनाया जाता, किसी और के लिए बनाया जाता है और उसमें से थोडा थोडा यहाँ वहां से लेकर अपना निर्दोष जीवन चलाते हैं.
इसी जैन धर्म में जो दीक्षा नहीं लेते हैं, वो श्रावक श्राविकाएं कहे जाते हैं, वो संपूर्ण तरीके से अहिंसा यानी कि हिंसा नहीं करने का व्रत नहीं लेते हैं, लेकिन श्रावक श्राविकाओं का प्रयास यह रहता है कि कम से कम हिंसा हो, और कम से कम हिंसा में जीवन बीते.
किसी भी सजीव अर्थात् जीवित वस्तु की हिंसा करके खाने में पाप तो लगता ही है, फिर चाहे वह सजीव पंचेंद्रिय हो या एकेंद्रिय. लेकिन परमात्मा महावीर स्वामी के शासन में विवेक प्रधानता एवं जयणा प्रधानता जहाँ पर होती है, वहां धर्म माना गया है, जहाँ पर विवेक एवं जयणा नहीं होती वहां पाप होना शुरू होता है. विवेक हमें सिखाता है कि छोटे पाप करने से, बड़े पाप यदि टल सकते हो तो छोटे पाप करना सयानापन है, Common Sense है, विवेक है.
It is like Speedbreaker बनवाने से Accident न हो तो Speedbreaker बनवाने चाहिए. उसी में सयानापन है. अब यदि कोई कहे कि Speedbreaker में इतना Cement Waste होता है, इतने Resources Waste होते हैं, Accident होते हैं तो होने दीजिये लेकिन Speedbreaker में हम इतने Resources Waste नहीं कर सकते, तो हम उसे मूर्खता ही कहेंगे Right.
इसलिए जीवन में विवेक बहुत महत्वपूर्ण है यही विवेक हमें मोक्षमार्ग में हर कदम पर प्रकाश देता है और आगे बढाने का कार्य जयणा करती है.
Quality or Quantity?
अब Practical दृष्टांत से यह बात समझेंगे. प्रभु महावीर के दो सिद्धांत समझने की यहाँ ख़ास ज़रूरत है.
Situation A
जब हमारे जीवन में जीवों को ख़त्म करके यानी हिंसा करके भोजन करने की मजबूरी आए और उन जीवों में Quality और Quantity में Choose करना पड़े तो Quality को बचाकर Quantity की हिंसा करने पर कम पाप लगेगा.
Situation B
जब हमारे जीवन में जीवों को ख़त्म करके यानी हिंसा करके भोजन करने की मजबूरी आए और उन जीवों में Same Quality के जीव हो लेकिन अलग अलग Quantity में हो तब बड़ी Quantity को बचाना वह धर्म है यानी दोनों में से एक Group की हिंसा करनी ही पड़ेगी कोई दूसरी Choice नहीं है, तब छोटी Quantity को बचाने के बजाय बड़ी Quantity को बचायेंगे तो वहीँ धर्म है.
सरल भाषा में कहे तो Quality जीव और Quantity जीव के बीच में हम Quality जीव को बचायेंगे और Quantity जीव और Quantity जीव के बीच में हम बड़ी Quantity को बचाएंगे. Quality को बचाने के लिए Quantity की हिंसा करनी पड़े तो भी वह जायज़ है, बड़ी संख्या में जीवों की हिंसा हो तो भी पाप कम लगता हैं यदि गुणवान या पुण्यवान यानी Quality जीव बचता है तो.
दूसरी ओर यदि Same Quality के जीव के दो Group हमारे समक्ष हो जिसमें एक ग्रुप की संख्या बड़ी है और एक की छोटी तो बड़ी संख्या में जीव मारने पर पाप ज्यादा लगता है क्योंकि हमने वहां पर विवेक का उपयोग नहीं किया और छोटी संख्या वाले जीवों की हिंसा से काम चल सकता था तो बड़ी संख्या में जीवों की हिंसा करने की आवश्यकता क्या थी.
हो सकता है अभी भी यह Points Clear नहीं हुए तो इसी बात को अब हम Live Example के साथ समझेंगे.
Situation A: Quality VS Quantity
देश के राष्ट्रपतिजी की स्पीच चल रही है, हजारों की तादाद में जनसंख्या आई हुई है, किसी आतंकी ने AK 47 से हमला बोल दिया, और वो भी कुछ नागरिकों की आड़ में. तब सुरक्षा कर्मी का पहला कर्तव्य राष्ट्रपति को बचाना होगा, भले ही उस जनता की आड़ में छिपे आतंकी को मारने में आम आदि की जान से भी खेलना पड़े. एक राष्ट्रपति को बचाने के लिए 20-22 नागरिकों की जान भी जाए तो भी वह सुरक्षाकर्मी 20-22 नागरिकों को न बचाकर राष्ट्रपति को बचायेंगे.
राष्टपति Quality जीव है, क्योंकि वो एक पद पर बिराजित है, देश के राष्ट्रपति है. दूसरी तरफ आम नागरिक है. यानी Quality और Quantity के Choice में, किसी एक को बचा सकते हैं तब Quality को ही चुना जाता है.
Situation B: Higher Quantity VS Lower Quantity
राजधानी या शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन का चालक पटरी पर 8-10 मुसाफिर को देखता है. बहुत ज्यादा स्पीड में ट्रेन दौड़ रही है. दौड़ती ट्रेन में ब्रेक लगाने की कोई गुंजाइश नहीं है. यह वो 8-10 लोगों को मरने से बचाए तो ट्रेन में बैठे 500-600 नागरिकों की जान जा सकती है. यहाँ पर दोनों ग्रुप Same Quality के हैं, अब यहाँ पर चालक अपने विवेक का उपयोग करके आँख बंद कर लेगा. 500 की जान बचाएगा लेकिन 8-10 को नहीं बचा पाएगा.
यहाँ पर उसके पास दो Choices थी Higher Quantity और Lower Quantity के बीच एक को बचा सकता था, तो उसने Higher Quantity को बचाया. इसी बुद्धि को हम विवेक बुद्धि कहते हैं, विवेक कहते हैं.
Higher Quantity But Lower Quality
अनंत तीर्थंकरों ने यही सिद्धांत, धर्म में बताया है. पंचेन्द्रिय जीव को मारकर उसकी हिंसा करके खाने में सिर्फ एक जीव की हत्या का पाप लगता हो और उसी के सामने लाखों एकेंद्रिय जीवों की हिंसा करके खाने में भले लाखों एकेंद्रिया जीवों की हिंसा का पाप लगता हो तो भी पंचेंद्रिय जीव को मारना महापाप होगा. ये वाला है Situation A.
एक पंचेन्द्रिय जीव-Higher Quality, उसके सामने, हजारों लाखों एकेंद्रिय जीव जो Higher Quantity But Lower Quality है. अर्थात् व्यक्ति एक हाथी को मारकर खाए और कहे मैंने सिर्फ एक जीव की हत्या की और दूसरी तरफ एक व्यक्ति अनेकों सब्जियां खाए जिसमें हजारों लाखों एकेंद्रिय जीवों की हिंसा हुई. तो इस Situation में हाथी को मारकर खानेवाले को ज्यादा पाप लगेगा. क्योंकि उसने विवेक का उपयोग नहीं किया.
अब Situation B की तरफ चलते हैं-अनंत जीवों का जिसमें वास हैं, ऐसे अनंतकाय के भक्षण में बड़ी संख्या में जीवों का कत्लेआम होने से, हिंसा होने से महापाप लगता है. लौकी, ककडी, मटर, टमाटर, मिर्ची, मूंग, दाल, आदि में कम जीव होने से कम पाप लगता है. यहाँ पर आलू, प्याज आदि जमीकंद सब एकेंद्रिय जीव ही है, सामने ककडी लौकी, टमाटर आदि भी एकेंद्रिय जीव ही है.
अर्थात् दोनों Same Quality के जीव है, लेकिन दोनों में Quantity अलग है, तब हमारा विवेक हमसे कहेगा कि कम Quantity वाले जीव की हिंसा से यदि काम चलता हो तो क्यों ज्यादा Quantity वाले जीव की हिंसा करना.
अनंत जीव मतलब कितने?
अब प्रश्न उठ सकता है कि दोनों एकेंद्रिय जीव है तो दोनों में रहे जीव भी Same Quantity के होंगे, अर्थात् जितने जीव ककडी में हैं उतने या उससे थोड़े ज्यादा आलू प्याज में होंगे, ज्यादा Quantity का थोड़ी कोई ज्यादा फर्क होगा?
एक दम सही प्रश्न. इस प्रश्न का उत्तर जानते हैं.
देखिए दो पांच हज़ार जीवों का अंतर होता तो शायद इतनी मगजमारी कोई नहीं करता लेकिन हमें यह जानकर हैरानी होगी कि परमात्मा ने अपने केवलज्ञान में देखा है और हमें बताया है कि आलू प्याज गाजर आदि अनंतकाय के पिंड है, अर्थात् इनमें अनंत जीव है.
अनंत मतलब हम गिन नहीं सकते उतने, इसको एक Example के साथ Match करने का Try करते हैं.
एक आलू में यदि सूई डालकर निकाली जाए, और उस सूई में जितना आलू चिपका हो, सिर्फ उस सूई के अग्रभाग पर चिपके हुए आलू में जितने जीव हैं उन जीवों को यदि राई का स्वरुप दे दिया जाए तो पूरा Earth भर जाए और ऐसे करोड़ों-अरबों Earth राई से भर जाए उससे भी कई गुना ज्यादा जीव सिर्फ सूई के अग्रभाग में रहे हुए आलू में होते है. अब सोचिए इस पृथ्वी में कितने राई के दानों Fit होंगे, अब सोचिए करोड़ों पृथ्वियां कितने राई के दानों से भर सकते हैं इससे भी कई गुना ज्यादा जीव सिर्फ सूई के Tip पर चिपके हुए जमीकंद में होते हैं. रोंगटे खड़े हो जाते हैं यह सब सुनकर.
चलिए एक और Example से Match करने का Try करते हैं.
यदी एक व्यक्ति के दो हाथों के बदले 2000 हाथ हो जाए, और खाना चबाने के लिए 100 मुंह हो, और उम्र 100 नहीं बल्कि एक करोड़ वर्ष की आयु हो जाए और यदि वह व्यक्ति 24x7x365 खाते रहे यानी पूरे 1 करोड़ साल तक बिना रुके 2000 हाथों से, 100 मुंह से ककडी, टमाटर, मटर, पपीता आदि चीज़ें खाते रहे तो भी जो पाप ना लगे, इससे अनंत गुना ज्यादा पाप सिर्फ सूई के अग्रभाग में रहे जमीकंद के अंश को खाने में लग सकता है, तो सोचिए पूरे एक जमीकंद को यानी पूरे एक गाजर को आलू को प्याज को खाने में कितने जीवों की हिंसा होगी.
भले वह एकेंद्रिय है लेकिन संख्या बहुत बहुत बहुत बहुत अधिक है. हमारी सोच जहाँ तक ना जाए उतनी है, शायद बुक लेकर 1 के आगे दस मिनट तक Zero लिखते रहे, उससे भी ज्यादा संख्या में जीव जमीकंद में हैं. बहुत ज्यादा अंतर है जीवों की संख्या का इसलिए परमात्मा ने अनंतकाय के भक्षण का निषेध किया है.
जीभ के स्वाद के लिए जीवों की हिंसा
अब प्रश्न यह है कि सिर्फ जीभ के स्वाद के लिए अथवा खुद की जिद्द के लिए इतने सारे जीवों की हिंसा का Account हमारे सर पर चढ़ाना सही है या गलत? परमात्मा का हम पर अनंत उपकार है. छोटी से छोटी चिंता परमात्मा में हमारी की है. इतने जीवों की हिंसा करके यदि हम अपना पेट भरेंगे तो क्या हमारा दिमाग निष्ठुर नहीं बनेगा? और पता होते हुए भी यदि उसका भक्षण करें तो क्या हम में निष्ठुरता नहीं बढ़ेगी.
अब से यदि कोई पूछे कि तुम जैन लोग कंदमूल अथवा जमीकंद अथवा आलू प्याज क्यों नहीं खाते हो तो उनके साथ यह Article Share कर सकते हैं. मज़ाक उड़ानेवाले तो उड़ाते रहेंगे. पानी में जीव है पानी में जीव हैं बोलते थे तब कई वर्षों तक मज़ाक उड़ाया गया होगा, जब विज्ञान ने खोजा तो कईयों के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई होगी. खैर.
एक प्रश्न सभी का हो सकता है कि जमीकंद अथवा कंदमूल में क्या क्या आता है जिससे हम वो सब खाने से बच सके तो आपकी जानकारी के लिए बता दें अनंतकाय भक्षण यानी आलू, प्याज, गाजर, मूली, लहसुन, अदरक, कच्ची हल्दी, सलगम, अर्वी, सकरकंदी आदि.
स्वाद या स्वास्थ?
मूंगफली भी तो ज़मीन के नीचे से आती है तो फिर वो कैसे Allowed है? और जैन हल्दी और अदरक का प्रयोग तो करते ही है. वो कैसे Allowed है? वो भी तो जमीन के नीचे से ही प्राप्त होता है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मूंगफली में तेल की मात्रा ज्यादा होने से उसमें इतने जीव नहीं होते जितने बाकी जमीकंद में होते हैं इसलिए वो Allowed है. रही बात अदरक की या हल्दी की तो कच्ची हल्दी, या कच्ची अदरक Allowed नहीं है, सूखी हल्दी और सूखी अदरक यानी सौंठ Allowed है. कच्ची हल्दी की सब्जी या उसका आचार Allowed नहीं है. और अदरक जब सूख जाती है तो उसे सौंठ कहा जाता है वो Allowed है और यह दोनों सामग्री औषधि के रूप में हमें Allow की गई है.
अब कोई कहे कि आलू भी सूखकर खा सकते हैं तो आपको बता दें वो Allowed नहीं है. ये खुद को मूर्ख बनानेवाली बात है आलू के औषधि के रूप में कोई गुण नहीं है, उल्टा ज्यादा हानिकारक है. और आलू Taste के लिए ही खाए जाते हैं. इसी के साथ मूली की पत्तियां एवं Spring Onions की पत्तियां तो ज़मीन के ऊपर उगती है तो क्या वो खा सकते हैं? यह प्रश्न भी कईयों को आता होगा तो जानकारी के लिए बता दें वो भी Allowed नहीं है क्योंकि वो उसी का अंश है.
आसक्ति में उत्पत्ति
जैन धर्म का एक बड़ा सिद्धांत है आसक्ति में उत्पत्ति. अर्थात् जिसमें बहुत ज्यादा आसक्ति हो, Taste हो, मन हो, उसी में उत्पत्ति होने की सबसे ज्यादा संभावना होती है, Chances होते हैं, जैसे कोई Taste से आलू का सेवन करें तो आलू में ही अगला भव हो सकता है, अगला जन्म हो सकता है. इसलिए श्री निशीथ सूत्र में अनंतकाय भक्षण यानी ऊपर बताए गए सभी जमीकंद पदार्थों के सेवन का निषेध किया गया है.
अब कोई कहे कि मैं तो इसे नहीं मानूंगा तो उसका तो कुछ नहीं किया जा सकता. व्यक्ति अपनी सोच के लिए स्वतंत्र है. जमीकंद जो निषेध किए गए हैं उनमें बहुत आसक्ति होती है, हमने देखा होगा कई बार लोगों को ऐसा होता है जिन्हें आलू के बगैर नहीं चलता अथवा कांदे के बगैर नहीं चलता, क्योंकि उस Taste के बिना उनको भोजन करने का मन नहीं करता. इसलिए दुर्गति से बचाने के लिए यह व्यवस्था हमारे लिए जैन धर्म में की गई है.
अब कोई कहे कि मेरे कई दोस्त है जो जैन है लेकिन दबाकर आलू प्याज खाते हैं तो देखिए किसी के खाने से नहीं खाने से जैन धर्म के सिद्धांत नहीं बदल जाते. जैन धर्म के ये सिद्धांत है कोई माने या न माने उससे जैन धर्म के सिद्धांत नहीं बदल जाते.
तो ये था जवाब कि जैन धर्म में कंदमूल का निषेध क्यों बताया गया है.