Non-Stop 10000 Ayambil | Jain Acharya Shri Hemvallabh Suriji’s Inspirational Story

आजीवन आयंबिल के तपस्वी आचार्य श्री हेमवल्लभसूरीजी म.सा. पूर्ण करेंगे अखंड 10,000 आयंबिल.

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Highlights
  • वढवाण की पावन भूमि पर 6 जून 1962 के मंगलमय दिन पर बालक हरेश वोरा (पू. हेमवल्लभसूरिजी म.सा.) का जन्म हुआ था.
  • पूज्य आचार्य श्री हिमांशुसूरीश्वरजी महाराज साहब के स्वमुख से युगादिदेव आदिनाथ दादा के समक्ष पू. हेमवल्लभसूरिजी म.सा. ने 22nd February 1999 के दिन संघ एकता के लिए अखंड आयंबिल का अभिग्रह ग्रहण किया था.
  • तारीख 30th November 2024 को श्री शंखेश्वरजी महातीर्थ से गिरनारजी महातीर्थ के छःरी पालित संघ के अंतर्गत वढवाण शहर में पू. हेमवल्लभसूरिजी म.सा. 10,000 आयंबिल Complete करके एक जबरदस्त Milestone Achieve करने जा रहे हैं. 

रचा जाएगा एक नया इतिहास!
प.पू. आचार्य भगवंत श्री हेमवल्लभ सूरिजी महाराज साहेब द्वारा Non Stop 10000 आयंबिल! 

जी हां, आज हम पूज्य हेमवल्लभ सूरिजी महाराज साहेब के जीवन के छोटे से अंश को जाननेवाले हैं, जो हम सभी के लिए सेवा-समर्पण-निस्पृहता और समभाव की Extreme मिसाल है. 

आज वे जहाँ पर हैं वहां पर कैसे पहुंचे?
आखिर क्या है उनकी इस साधना का रहस्य? 

उनके जीवन की कई सारी अनकही अनसुनी बातें आज हम जानेंगे, अंत में एक महत्वपूर्ण जानकारी भी सभी के लिए है इसलिए बने रहिए इस Article के अंत तक. 

पूज्यश्री का जन्म

वर्तमान शासनपति प्रभु महावीर के चरण कमल से पावन बनी हुई गुजरात के वर्धमानपुरी अर्थात् वढवाण शहर से जिनशासन को अनेक विभूति प्राप्त हुई है. जैसे कि 

  • गच्छाधिपति प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय धर्मसूरीश्वरजी महाराजा,
  • गच्छाधिपति प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय महोदयसूरीश्वरजी महाराजा,
  • हस्तगिरी तिर्थोद्धारक प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय मानतुंगसूरीश्वरजी महाराजा,
  • विश्व विक्रमी 100 + 100 + 100 + 74 वर्धमान तप की ओली के साधक तप प्रभाविका प.पू. साध्वीजी भगवंत श्री हंसकीर्तिश्रीजी म.सा.आदि की प्राप्ति हुई है. 

उसी वढवाण की पावन भूमि पर 6 जून 1962 के मंगलमय दिन पर पिता चंपकलाल वोरा और माता कमलाबेन की कुक्षी से बालक हरेश वोरा का जन्म हुआ था.

संसार से संयम

बालक हरेश में बचपन से पूजा के संस्कार थे लेकिन School वगैरह के कारण धर्म प्रवृत्तियां छूट गई थी और 21 साल की उम्र तक धर्म की कोई विशेष आराधना नहीं की थी. एक बार विक्रम संवत 2040 में माता को जैसलमेर की यात्रा करनी थी, तब उनकी सहाय में वे साथ गए थे और तभी से धर्म क्षेत्र में थोड़ा प्रवेश हुआ और 21st September 1984 के दिन वर्धमान आयंबिल तप का पाया डालने की मंगल शुरुआत की थी. 

धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए और पूज्य गुरुमाँ की शिविर, व्याख्यान नियमित सुनने लगे. ‘मनुष्य जन्म लेकर दीक्षा ही लेनी चाहिए.’ ऐसा समझ में आया लेकिन धार्मिक अभ्यास न होने के कारण हिम्मत नहीं कर पा रहे थे. 

तो एक बार अखंड 108 आयंबिल करने की भावना से आयंबिल शुरू किए और अंदाजन 60 आयंबिल होते ही एक ऐसी घटना घटी कि एक दिन वे Business से वापस आए तब रात को माता ने उनसे पूछा कि ‘लोग तुम्हारी शादी के लिए पूछ रहे हैं, तो क्या जवाब देना है? क्या करना है?’ 

वे तब Mumbai की Diamond Market के Business में Involved थे. उनके जीवन का वह स्वर्णिम क्षण था. उस समय उन्होंने शादी करने से मना किया, फिर दीक्षा की भावना व्यक्त की और सिर्फ साढ़े 3 महीने में 17 June 1988 के दिन परम पूज्य पंन्यास प्रवर श्री चंद्रशेखरविजयजी महाराज साहब के पास दीक्षा ग्रहण करके प.पू. मुनिराज श्री धर्मरक्षितविजयजी महाराज साहब के शिष्य “प.पू. मुनिराज श्री हेमवल्लभविजयजी” का नाम पाया. 

दीक्षा के बाद प्रतिक्रमण सूत्र-श्रमण क्रिया सूत्र आदि का अभ्यास हुआ और सत्त्वशाली महात्मा ने दीक्षा के दिन से ही ज्ञान-दर्शन-चारित्र की विशिष्ट आराधना करने के लिए 100 से अधिक अभिग्रह ग्रहण किए जिसमें 

  • आजीवन एकाशने के नीचे पच्चक्खान नहीं करना,
  • पांचम-आठम-चौदस तिथि पर उपवास करना,
  • आयंबिल या एकाशने में भी 5 द्रव्य से ज्यादा नहीं वापरना और उसमें भी मिठाई, फरसाण, बादाम के सिवा Dry Fruit, केले के सिवा Fruit, दूध, हरी सब्जी आदि कई चीजों का त्याग किया एवं स्वावलंबी जीवन जीने के अनेक अभिग्रह लिए थे.
  • पूज्यश्री साल में 7 बार छट्ठ करते थे, छट्ठ यानी 2 उपवास एक साथ करते थे. 

महात्माओं की उत्कृष्ट सेवा

29th November 1989 के दिन प.पू. गुरुमाँ चंद्रशेखरविजयजी महाराज साहब ने उनको पू. मुनिराज श्री धर्मरक्षित विजयजी महाराज साहब और पू. मुनिराज श्री कल्परक्षित विजयजी महाराज साहब के साथ तपस्वी सम्राट प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय हिमांशुसूरिश्वरजी महाराज साहब एवं उनके संसारी पुत्र प.पू. आचार्य भगवंत श्री नररत्नसूरिश्वरजी म.सा. की सेवा में भेजा था.

पू. हेमवल्लभ म.सा. की दिन प्रतिदिन हर तरह से सेवा करने की भावना बढ़ती रहती थी. वे पूरे दिल से आचार्य भगवंत की सेवा कर रहे थे. 2 साल के लिए सेवा में रहे हुए महात्माओं को जब Change करने की बात चली तब पूज्य हिमांशुसूरीजी म.सा. ने पूज्य चंद्रशेखरविजयजी म.सा. को कहा कि ‘मुनि हेमवल्लभविजयजी मुझे ज्यादा ही अनुकूल है.’ 

तब पूज्य चंद्रशेखरविजयजी म.सा. ने हेमवल्लभ म.सा. को पूछे बगैर ही आचार्यश्री को कह दिया कि ‘आप चिंता मत करना, हेमवल्लभ विजयजी आपकी अंतिम सांस तक आपके साथ रहेंगे.’ मुनिराज श्री हेमवल्लभ विजयजी म.सा. ने भी कोई संकल्प विकल्प, If but किए बगैर ही ‘तहत्ति’ कहा यानी गुरु आज्ञा का स्वीकार किया और अपने जीवन में स्वाध्याय को गौण करके भी वैयावच्च को, सेवा को Priority दी

पूज्य हेमवल्लभ म.सा. दिन रात देखे बगैर आचार्यश्री की सेवा में लग गए थे. आचार्य भगवंत की भावना के अनुसार निर्दोष गोचरी के लिए 1.5 – 2 KM दूर जाते थे और भावपूर्वक गोचरी वपराने के लिए अनुकूल गरम द्रव्य लेकर आते थे. 

तब शासन के विविध कार्यों में व्यस्त आचार्यश्री 2-3 बजे तक वापरने नहीं बैठते तो भी यह महात्मा के चेहरे की लकीर भी नहीं बदलती और जब तक पूज्यश्री वापरने नहीं बैठते, उसके पहले खुद कभी पच्चक्खान नहीं पारते थे. 

विहार में और छरी पालित संघ में जब आचार्यश्री थक जाते और कहीं बैठ जाते तब पूज्य हेमवल्लभ म.सा. बार-बार उनके पैर की मालिश करते-करते मुकाम पर पहुंचाते थे. कभी-कभी रास्ते में अटक जाते तो महात्मा 3 KM दूर संघ के पड़ाव से गोचरी लाकर आचार्यश्री को वपराते थे और फिर वापस वे 3 KM का विहार कराके पड़ाव में पहुंचाते थे. 

आचार्यश्री का विहार सामान्य से सुबह 9:30 के आसपास शुरू होता था और सामने मुकाम पर 2-3 बजे पहुंचता था. उस विहार में पूज्य हेमवल्लभ म.सा. अपने Right Hand पर आचार्यश्री को पकड़कर उनका पूरा वजन अपने हाथ के ऊपर ले लेते थे जबकि उनके कंधे के ऊपर करीबन 22 किलो वजन के उपधि के 5-6 Bags रहते थे. 

तपस्वी सम्राट आचार्य भगवंत श्री हिमांशुसूरिश्वरजी महाराज साहब के संसारी पुत्र पू. आचार्य भगवंत श्री नररत्नसूरिश्वरजी म.सा. की भी 5 साल तक सेवा करके यह महात्मा ने अद्भुत अंतिम समाधि प्रदान की थी. आज पूज्य हेमवल्लभ सूरिजी महाराज साहेब जहाँ है वे वहां तक पहुंचे उसके Foundation में वैयावच्च है, इस तरह की सेवा है. 

आजीवन आयंबिल की साधना 

16th July 1997 के शुभ दिन अहमदाबाद के वासणा उपाश्रय में पूज्य हेमवल्लभ म.सा. ने 74वी वर्धमान तप की ओली का प्रारंभ किया था. आचार्य भगवंत हिमांशुसूरीजी म.सा. के श्री संघ की एकता के लक्ष्य से अखंड यानी Non-Stop आयंबिल चल रहे थे. 

उनके दिल में और पूज्य चंद्रशेखरविजयजी म.सा. के दिल में जो शासन सेवा और संघ एकता की आग लगी थी उसकी एक चिंगारी ने पूज्य हेमवल्लभ महाराज साहब के दिल को भी चपेट में ले लिया था. यह महात्मा भी संघ एकता और शासन हित के कार्य में कुछ करने के लिए तत्पर बने थे. 

20th February 1999 को उन्होंने पूज्य चंद्रशेखरविजयजी म.सा. के समक्ष संघ एकता के लिए अखंड आयंबिल करने की भावना व्यक्त की और पूज्यश्री की सहमति से उन्होंने पूज्य आचार्य श्री हिमांशुसूरीश्वरजी महाराज साहब के स्वमुख से सिद्धाचल तीर्थधाम, माणेकपुर (तालुका माणसा) की स्वर्ण गुफा में विराजमान युगादिदेव आदिनाथ दादा के समक्ष 22nd February 1999 के दिन संघ एकता के लिए अखंड आयंबिल का अभिग्रह ग्रहण किया था. 

उस वक्त उनके अखंड 700 के आसपास आयंबिल हो चुके थे, फिर भी सेवा में कोई कमी नहीं रखते थे. उस समय पूज्य हिमांशुसूरीजी म.सा. लोगों को कहते थे कि ‘इसने (यानी पूज्य हेमवल्लभ म.सा. ने) सगे बेटे से भी बढ़कर मेरी सेवा की है. इसका ऋण में किस भव में चुका पाऊंगा?’

विक्रम संवत 2057 में सिद्धगिरी की छत्रछाया में चातुर्मास करके पूज्यश्री गिरनार महातीर्थ छ’री पालित संघ के साथ पहुंचे. विक्रम संवत 2058 में गिरनार के वर्तमानकालीन इतिहास में पहला सामूहिक चातुर्मास आचार्यश्री की निश्रा में हुआ. 

चातुर्मास के बाद आचार्यश्री का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. एक-एक रात भयंकर पीड़ा के साथ गुजर रही थी. तब 21st December 2001 की सुबह को पूज्य हेमवल्लभ महाराज साहेब के लगभग 1990 के आसपास Non-Stop आयंबिल हुए थे. 

पूज्य हिमांशुसूरीजी म.सा. ने सभी महात्मा को बुलाकर, अपने स्वास्थ्य की स्थिति को समझकर अपने उत्तराधिकारी का पद पू. मुनिराज श्री हेमवल्लभविजयजी को देकर तीर्थ-शासन एवं ट्रस्ट की विविध जिम्मेदारियां सौंपी. उसका स्वीकार करते हुए पूज्य हेमवल्लभ म.सा. ने स्थिति को नजरअंदाज में रखकर आचार्य श्री को पूछा ‘आपकी और कोई अंतिम इच्छा है?’ 

तब आचार्यश्री ने कहा कि ‘तुम आजीवन आयंबिल करना.’ जरा भी देर किए बिना उसी क्षण यह समर्पित महात्मा ने दो हाथ जोड़कर पच्चक्खान मांगे और आचार्यश्री ने पच्चक्खान दिए. उस समय महात्मा ने वापस पूछा ‘और कोई इच्छा है?’ तब आचार्यश्री ने बोला ‘हो सके तो जीवन के अंत तक चुस्त संयम जीवन जीने का प्रयास करना.’ 

उस वक्त हेमवल्लभ म.सा. ने कहा 

साहेबजी! मेरी इतनी छोटी उम्र है, आजीवन आयंबिल के पच्चक्खान करने की और यह सब जिम्मेदारी संभालने की मेरी कोई ताकत नहीं है. आप जैसा सत्व और सामर्थ्य मुझमें नहीं है. आप वचन दो कि देवलोक में जाकर आप मुझे सहाय करेंगे, तो ही मैं यह सब कर पाऊंगा. 

तब आचार्यश्री ने खुश होकर महात्मा के सर पर वासक्षेप डाला, जैसे कि ऐसा भाव व्यक्त किया कि ‘तुम चिंता मत करना. मैं तुम्हारे साथ रहूंगा.’ 18th December 2002 को आचार्यश्री के कालधर्म के करीबन 22 साल पसार होने के बावजूद आज भी पू. हेमवल्लभ म.सा. आचार्यश्री की वैसी ही उपस्थिति का एहसास कर रहे हैं. 

साधु का पारणा

आचार्यश्री के देवलोकगमन के बाद पूज्य हेमवल्लभ म.सा. अपनी गुरुमाँ यानी पू. चंद्रशेखरविजयजी म.सा. की पावन निश्रा में आ गए थे. अब उनके तप-ज्ञान की आराधना शुरू हो गई थी. 23rd June 2003 के दिन दोपहर को पूज्य हेमवल्लभ म.सा. गोचरी लेकर पूज्यश्री को दिखा रहे थे. 

तब उन्होंने पूज्यश्री से कहा ‘गुरुदेव! आशीर्वाद दीजिए, आज मेरा नया पाया शुरू हो रहा है. गुरुदेव बोले ‘क्या?’ महात्मा ने बोला ‘हां! आज मेरी 100 ओली पूर्ण हो रही है और नया पाया शुरू हो रहा है.’ पूज्यश्री की आंखें खुशी के आंसुओं से उभर आई और कहा कि ‘शाबाश! साधु के पारणे ऐसे ही होने चाहिए. साधु का तप ऐसा ही गुप्त होना चाहिए.’. 

अब पूज्य हेमवल्लभ म.सा. की कोई योग्यता देखकर पूज्यश्री ने उनको एकांत जाप की आराधना में बिठा दिया. 6 महीने का एकांत, कोई स्त्री का दर्शन नहीं, संपूर्ण मौन, दिन के 16 घंटे जाप-कायोत्सर्ग की आराधना नवसारी तपोवन में सिर्फ 8 फूट x 5 फुट के भोयरे में करवाई थी. तारंगा की गुफा में भी 20 दिन की आराधना करवाई थी और गिरनार की पवित्र भूमि में भी कई आराधनाएं करवाई थी. 

शेर के साथ अनुभव 

गिरनार के जंगल में परिक्रमा के दौरान एक बार रास्ते की Side में करीबन 15 Steps दूर पर एक शेर बैठा था और आगे 300 Steps पर एक शेरनी जा रही थी. एकदम से शेरनी रुकी और पीछे मुड़कर देखने लगी, महात्मा रुक गए और फिर शेरनी वापस चलने लगी. 

ऐसे 3-4 बार रुकना चलना अंदाजित 2 – 2.5 KM तक चला. फिर शेरनी रास्ते की Side पर जमीन पर लोटने लगी और महात्मा उसकी बाजू में से निश्चिंत होकर चल दिए. 

ऐसे एक बार 15 फीट की दूरी पर 5 शेर-शेरनी मिले थे, एक बार 3, एक बार 2 ऐसे 5-5 बार एकदम नजदीक से शेर को देखने के बावजूद भी महात्मा निडरता से उनके पास से पसार होते थे. इससे यह समझ मिलती है कि अगर हम ऐसे जंगली पशुओं को भी हैरान ना करें तो वे हमको कोई नुकसान नहीं करते हैं. 

Non-Stop 10,000 आयंबिल

पूज्य हेमवल्लभ म. सा. पिछले करीबन 15 साल से गिरनार महातीर्थ के विकास एवं उत्थान के लिए गिरनार में रहकर 3570 से अधिक यात्रा करके गिरनार के 14 जिनालयों एवं सहसावन के जीर्णोद्धार का मार्गदर्शन देकर चातुर्मास – छ’री पालीत संघ – परिक्रमा – 99 यात्रा – चैत्र महीने की ओली आदि विविध अनुष्ठान एवं साहित्य के आलंबन से लोगों को गिरनार का महात्म्य समझाकर समस्त विश्व के जैनों के घर-घर में और घट-घट में गिरनार और श्री नेमिनाथ प्रभु के प्रति प्रीति-भक्ति जगाकर लाखों लोगों को साधना की ओर, मुक्ति की ओर ले जा रहे हैं. 

20th December 2018 के मंगल दिन पूज्य हेमवल्लभ म.सा. का 100 + 100 ओली का पारणा गिरनार महातीर्थ में नेमिनाथ दादा की दीक्षा एवं केवलज्ञान कल्याणक भूमि यानी सहसावन में सिर्फ एक शिष्य की उपस्थिति में कच्चे पौंए, बाजरी का आटा और लुखे खाखरे से आयंबिल करके हुआ था.

विक्रम संवत 2075 के चातुर्मास के दौरान एक साथ सूरि मंत्र की 5 पीठिका सम्पूर्ण मौन, सम्पूर्ण एकांत (कोई शिष्य को भी नहीं मिलना) के साथ अहमदाबाद तपोवन में की थी. दीक्षा जीवन के 13006 दिनों में सिर्फ 250 एकाशना, 1700 से अधिक उपवास, बाकी 11100 से अधिक दिन आयंबिल के साथ 100 + 100 + 64वी ओली पूर्ण हो रही है.  

तपस्वी सम्राट प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय हिमांशुसूरीजी म.सा. एवं युगप्रधान आचार्यसम प.पू. पंन्यास प्रवर श्री चंद्रशेखरविजयजी म.सा. की दिव्य कृपा से आजीवन आयंबिल के इस कठिन अभिग्रह का पालन पू. हेमवल्लभविजयजी म.सा. आज भी बिना रुके बिना थके कर रहे हैं. 

तारीख 30th November 2024 को श्री शंखेश्वरजी महातीर्थ से गिरनारजी महातीर्थ के छःरी पालित संघ के अंतर्गत वढवाण शहर में 10,000 आयंबिल Complete करके एक जबरदस्त Milestone Achieve करने जा रहे हैं. 

पूज्यश्री के संलग्न यानी Non Stop 10,000 आयंबिल पूर्ण करने की यह ऐतिहासिक घटना Recent के सैंकड़ों वर्षों के इतिहास में लगभग नहीं हुई है. इस Historic Moment को हम देख पाएंगे यह हमारे लिए बहुत बड़े सौभाग्य की बात है.

जिनशासन में सुकृत को करन, करावन और अनुमोदन करने के लिए कहा जाता है. पूज्य हेमवल्लभसूरीजी म.सा. ने करन यानी तप करने का कार्य किया है, पू. हिमांशुसूरीजी म.सा. ने करावन यानी तप करवाने का कार्य किया है और अब हमें इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बनकर इसकी अनुमोदना करने का कार्य करना है.

महत्वपूर्ण संदेश

प्रशांतमूर्ती पूज्य गच्छाधिपति श्रीमद् विजय राजेंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा यह संदेश श्री संघ के लिए है कि आचार्य भगवंत श्री हेमवल्लभ सूरिजी महाराजा साहेब के आजीवन आयंबिल की प्रतिज्ञा के अंतर्गत 10000 आयंबिल पूर्ण होने जा रहे हैं. 

30th November 2024 को Non-Stop 10000वां आयंबिल होगा और इसलिए 21st November से 29th November तक, गाँव-गाँव में, शहर-शहर में, संघ-संघ में यह 9 दिन आयंबिल की आराधना की प्रेरणा पूज्य श्री द्वारा की गई है. 

ये क्षण, ये Chance फिर से कब आएगा पता नहीं इसलिए श्री संघ की एकता के संकल्प के साथ, जिनशासन की सुरक्षा एवं विश्व में अहिंसा की स्थापना एवं विश्व शांति के संकल्प के साथ हर कोई यह 9 दिन आयंबिल कर सकते हैं. 

Golden Chance है, यदि 9 आयंबिल संभव ना हो तो जितने Possible हो उतने कर सकते हैं. 

कई लोगों को शायद ऐसा लगता है कि पूज्य हेमवल्लभ सूरीश्वरजी महाराज साहेब आजीवन आयंबिल गिरनार तीर्थ के लिए कर रहे हैं, लेकिन ये आधी जानकारी है, दरअसल श्री संघ एक हो जाए, संघ में एकता हो इस उद्देश्य से पूज्यश्री ने आजीवन आयंबिल का भीष्म अभिग्रह लिया था जो आज भी चल रहा है. 

पूज्य हेमवल्लभसूरीजी म.सा. का यह कठिन अभिग्रह सुख, शाता एवं समाधि पूर्वक आगे बढे, पूज्यश्री द्वारा आजीवन आयंबिल के पीछे जो उद्देश्य है वह पूर्ण हो और उनका यह अभिग्रह निर्विघ्न, सुखमय, शातामय और समाधिमय चलता रहे यही परमपिता परमात्मा नेमिनाथ दादा से प्रार्थना.

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