तारीख 18 February 2024 को जिनशासन के एक महान तेजस्वी सूर्य के समान आगम ग्रंथों के ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले महापुरुष संघ स्थविर, श्री सागर समुदाय के वर्त्तमान गच्छाधिपति, दीर्घ संयमी प.पू. आचार्य भगवंत श्री दौलतसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब ने 103 वर्ष का आयुष्य और 85 वर्ष का सुदीर्घ दीक्षा पर्याय पूर्णकर देवलोक की ओर महाप्रयाण किया. पूज्यश्री वर्त्तमान में सबसे अधिक दीक्षा पर्याय वाले आचार्य भगवंत थे. दीक्षा पर्याय यानी कि दीक्षा लेने के बाद का Timespan.
पूज्यश्री ने ‘जैन जन्म से नहीं कर्म से बना जाता है’ इस बात को 100% Prove करके बताया है. जन्म से अजैन होने के बावजूद भी वर्तमान समय में संघस्थविर पद पर बिराजित हुए. आइए जानते हैं पूज्यश्री के जीवन से जुड़ी अद्भुत बातों को.
जन्म और दीक्षा जीवन
पूज्यश्री का जन्म गुजरात के मेहसाणा जिले के जेतपुर गाँव के एक पटेल परिवार में हुआ था. पिता मलदास भाई और माता दिवाली बहन ने पुत्र का नाम शंकर रखा था. लगभग 13-14 वर्ष की उम्र में धन उपार्जन के उद्देश्य से शंकर भाई अहमदाबाद आए और एक जैन दंपति के यहाँ रहने लगे. उस समय 14 वर्ष की उम्र में पहली बार शंकर भाई ने श्राविका चंपा बहन के मुख से नवकार महामंत्र सुना था. जैन परिवार में रहते हुए प्रतिदिन परमात्मा के दर्शन आदि प्रसंग आने के कारण उनके जीवन में धार्मिक संस्कारों का सिंचन होता गया.
पूज्यश्री ने (दीक्षा से पहले शंकर भाई) 18 साल की उम्र में पहली बार जैन गुरु भगवंत के दर्शन किए थे. उस समय अहमदाबाद में आगमोद्धारक पू. आचार्य श्री आनंदसागरसूरीजी महाराज साहेब के शिष्यरत्न पू. आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरीजी महाराज साहेब का चातुर्मास था और चातुर्मास के दौरान नित्य आराधना आदि में जुड़ने से शंकर भाई के मन में वैराग्य भाव उत्पन्न हो गए.
पूज्यश्री ने 19 वर्ष की उम्र में वि.सं. 1996 में कार्तिक वदि 10 के दिन घर से भागकर मध्यरात्री के समय पू. आनंदसागरसूरीजी म.सा. के हाथों से रजोहरण प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण की थी और दीक्षा के तुरंत बाद ही 67 KM का प्रथम विहार किया था. पूज्यश्री शायद एक मात्र ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने दीक्षा के बाद सर्वप्रथम राई यानी सुबह का प्रतिक्रमण किया था. दीक्षा के समय पूज्यश्री को सिर्फ नवकार महामंत्र और करेमि भंते-यही 2 सूत्र ही आते थे.
पूज्यश्री को वि.सं. 2042, वैशाख सुदि 06 के दिन उपाध्याय पद,
वि.सं. 2044, फागण वदि 03 के दिन आचार्य पद,
वि.सं 2066, फागण सुदि 01 के दिन गच्छाधिपति पद प्रदान किया गया.
स्वाध्याय और आगम प्रीती
क्षयोपशम के धनी पूज्य आचार्य श्री का स्वाध्याय एवं आगम ग्रंथों के प्रति अद्भुत लगाव था. इनका अलग Level का Memory Power था. शायद हमें चमत्कार लगेगा. पूज्यश्री ने दीक्षा के बाद सिर्फ 12 दिन में पंच प्रतिक्रमण सूत्र पक्के किए थे. मात्र 6 दिन में 6 कर्मग्रंथ याद किए थे. 36 घंटे में नवस्मरण, 24 घंटे में वीतराग स्तोत्र की 225 गाथा, 108 अट्ठम यानी 3 उपवास फिर पारणा फिर से 3 उपवास ऐसे एक साथ 108 बार 3 उपवास करके संवेगरंगशाला ग्रंथ के 10 हजार श्लोक कंठस्थ किए थे.
पूज्यश्री ने पू. सागरानंदसूरीजी म.सा. के पास 9 साल में 45 आगमों का अध्ययन किया था. जिन्हें पढ़ने में या फिर गाथा करने में Interest नहीं होता ऐसे व्यक्तियों को इनसे सच में Inspiration लेने जैसा है. क्या इनकी Brain की Capacity रही होगी. सोचने जैसा है. पूज्यश्री में आगम अध्ययन के प्रति ऐसा अद्भुत सत्त्व था कि उन्होंने यह नियम लिया था कि जब तक वे 45 आगमों का वांचन नहीं करते तब तक उन्हें 6 विगई का त्याग रहेगा.
पूज्यश्री ने आज तक 9 नए आगम मंदिरों का निर्माण करवाया है, जिसके लिए पूज्यश्री ने 45 मूल आगमों को ताम्रपत्र में अंकित करवाया जिससे लंबे समय तक आगम उपलब्ध रहेंगे. ऐसे कई कार्य हमारे दिमाग में ना बैठे वैसे इन्होने किए और दिन रात एकाग्रता के साथ श्रुतभक्ति करते हुए पूज्यश्री को ‘जिनागमसेवी’ बिरुद दिया गया.
आगम ह्रदय में इस प्रकार कंठस्थ थे कि 90 साल की उम्र में भी पूज्यश्री भगवती सूत्र पर प्रवचन देते थे. पूज्यश्री ने अपने जीवन काल में लगभग 70 से भी अधिक बार 45 आगमों का वांचन किया. हाथ में माला, ह्रदय में आगम और होठ पर प्रभु वचन-आचार्य श्री इस त्रिपुटी के साक्षात्कार थे.
परमात्मा एवं गुरु भक्ति
पूज्यश्री की परमात्मा के प्रति भक्ति भी अद्भुत थी. पूज्यश्री दीक्षा के बाद 55-60 साल तक जिस भी जिनालय में दर्शन हेतु जाते, उस जिनालय में जितनी प्रतिमाएं होती, वे सभी के सामने खड़े-खड़े पूर्ण विधि के साथ 3 खामासमण अवश्य देते थे. पूज्यश्री ने श्री शत्रुंजय गिरिराज पर तलहेटी से लेकर मुख्य श्री आदिनाथ के जिनालय तक बीच में जितनी भी प्रतिमाएं हैं, सभी के समक्ष पूज्यश्री चैत्यवंदन कर चुके हैं. नमो अरिहंताणं पद का 20 करोड़ से अधिक जाप पूज्यश्री ने किया था.
यहाँ पूज्यश्री की अद्भुत परमात्मा भक्ति से जुडी एक छोटी सी घटना जानने जैसी है.
आचार्य पदवी के कुछ महीनों बाद पूज्यश्री ने श्री शत्रुंजय की यात्रा की. सुबह लगभग 6.30 बजे वे श्री आदिनाथ प्रभु के सामने बैठे और चैत्यवंदन शुरू किया और शाम के लगभग 4 बजे तक वह एक ही चैत्यवंदन चलता रहा और उसमें भी सिर्फ 5-6 स्तवन ही पूज्यश्री ने गाए थे. हम सोच भी नहीं सकते हैं कि लगभग 1-1 घंटे तक एक ही स्तवन को गाते हुए पूज्यश्री भावों की किस गहराई में पहुंचे होंगे.
रोजाना 15 से 16 घंटे तक आगमों का स्वाध्याय पूज्यश्री करते थे और अगर उसमें कभी Break लेने जैसा लगे तो इधर उधर बात करना या पंचायती करना या अन्य जगह Time Waste करने की जगह वे जिनालय में पहुँच जाते और प्रभु को प्रदक्षिणा देना शुरू कर देते थे. पूज्यश्री ने अपने जीवन काल में लगभग 37 से अधिक जिनालयों की प्रतिष्ठा करवाई है.
गुरु भक्ति
पूज्यश्री की गुरु के प्रति भक्ति भी Top Level की थी. एक बार पूज्यश्री पुणे-कात्रज में विराजमान थे. उस समय उन्हें समाचार मिले कि अहमदाबाद में विराजमान उनके गुरुदेव श्री देवेंद्रसूरीजी म.सा. अस्वस्थ हैं यानीं Unhealthy हैं और अगले ही दिन पूज्यश्री ने कात्रज से अहमदाबाद की तरफ विहार शुरू किया और मात्र 18 दिन में 800 KM का विहार कर वे अहमदाबाद अपने गुरु की सेवा में उपस्थित हो गए. यानी दिन का लगभग 45 KM का विहार. कैसा अद्भुत गुरु सेवा का भाव.
सुविशुद्ध संयम जीवन
पूज्यश्री संयम जीवन के सुविशुद्ध पालक भी थे. दीक्षा जीवन के दुसरे ही वर्ष से पूज्यश्री ने संलग्न यानी Continuous 27 वर्षों तक प्रतिदिन सुबह 3 बजे उठकर 1008 खामासमण और 500 लोगस्स सूत्र के काउसग्ग करने के बाद राई प्रतिक्रमण करने की अद्भुत आराधना की है. 80 साल की उम्र तक पूज्यश्री पैदल चलकर ही विहार करते थे. पूज्यश्री ने छट्ठ के पारणे छट्ठ में 5 विगई का त्याग करके वर्षीतप की अद्भुत आराधना की. छट्ठ यानी 2 उपवास एक साथ. पूज्यश्री ने दीक्षा जीवन के 50 साल तक एक Diary का भी परिग्रह नहीं रखा.
यहाँ पर पूज्यश्री के मन में चारित्र धर्म के सिद्धांतों की कितनी जागृति थी, उसे जानने के लिए एक छोटी सी घटना जानते हैं.
एक बार पूज्यश्री ने लगातार 12 घंटे तक कायोत्सर्ग किया. एक महात्मा द्वारा पूज्यश्री को कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘कल मेरे पैर पर 15 किलो की आगम की एक Plate गिरी थी जिस कारण मेरे मुंह से चीख निकली. उस समय मुझे ख्याल आया कि इस शरीर पर कितना ममत्व भाव है, राग है?’ यह बात पूज्यश्री के मन में चुभ गई और अगले ही दिन उस ममत्व भाव को तोड़ने के भाव से सुबह 5 बजे से लगातार शाम को 5 बजे तक पूज्यश्री ने Continuous काउसग्ग किया था. साधु जीवन की कैसी अद्भुत जागृति थी पूज्यश्री के ह्रदय में.
ब्रह्मचर्य का उत्कृष्ट पालन
पूज्यश्री के सभी गुणों में से उनका ब्रह्मचर्य पालन का गुण Top पर था. पूज्यश्री ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने अपने Lifetime में कभी भी विजातीय यानी Opposite Gender जैसे साध्वीजी भगवंत या किसी भी श्राविका बहन का नाम शुद्ध नहीं लिखा. पूज्यश्री विजातीय की तरफ देखते भी नहीं थे.
102 वर्ष की उम्र में एक बार एक बहन उपाश्रय में वंदन करने के लिए आए. बहन ने पूज्यश्री से कहा कि ‘एक बार मेरी तरफ देख लीजिए साहेबजी, कृपा होगी.’ उस समय पूज्यश्री ने नम्रता के साथ हाथ जोड़कर स्पष्ट रूप से कहा कि ‘बहन. मैं विजातीय की तरफ नहीं देख सकता. अगर आपने वंदन कर लिया है तो आप जा सकते हैं.’
साल 1954 में सूरत में एक आचार्य भगवंत चातुर्मास के लिए विराजमान थे. एक दिन एक अजैन बहन आए और नमन करके उन्होंने उन आचार्य भगवंत से कहा ‘महाराज. आपका धर्म महान है. आपके साधुजी हमारे यहाँ कई बार आहार के लिए आते हैं. आज भी आए थे. मैंने एक बात गौर से देखी कि वे साधुजी कभी मेरे सामने भी नहीं देखते हैं, बात भी नहीं करते हैं. कुछ पूछो तो सिर्फ ‘हम्म’ में उत्तर मिलता है. उनकी आँखे हमेशा झुकी हुई ही रहती हैं. ऐसी साधुता मैंने कहीं नहीं देखी.’
वह आचार्य भगवंत ने उन महात्मा को बुलाया और पूछा कि ‘क्या आप इन बहन के यहाँ गोचरी के लिए गए थे?’ तब उन महात्मा ने कहा कि ‘मैंने गोचरी के समय किसी के सामने नहीं देखा इसलिए मैं नहीं बता पाउँगा.’ अपने शिष्य की इस निर्विकारिता को देखकर आचार्य भगवंत की आँखों से आंसू छलक आए.
कुछ दिन बाद वो अजैन बहन अपने पति के साथ उपाश्रय आए और उन्होंने उन आचार्य भगवंत से कहा ‘साहेबजी. इनकी भी सहमती है और हम तैयार भी हैं इसलिए आप हमें आजीवन के लिए ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा दे दीजिए.’ उन आचार्य भगवंत ने सहर्ष उस अजैन Couple को आजीवन का ब्रह्मचर्य का पच्चक्खान दिया.
ये मुनि जो गोचरी के लिए गए थे, और बहन का चेहरा भी नहीं देखा था वो मुनि और कोई नहीं बल्कि श्री दौलतसागर जी महात्मा ही थे. कैसा अद्भुत ब्रह्मचर्य का पालन रहा होगा. सोचने जैसा है. 103 वर्ष की उम्र में भी विजातीय के सामने देखते नहीं थे, बात भी नहीं करते थे. हम किन लोगों को Idol बनाते हैं और किन्हें बनाना चाहिए सोचने जैसा है. कैसा अद्भुत ब्रह्मचर्य पालन इनका, हमारा सर नतमस्तक हो जाए.
देवलोकगमन
इस दुनिया में कई लोगों का जन्म इतिहास बनाने के लिए होता है लेकिन हम यह बात पूर्ण विश्वास एवं श्रद्धा के साथ कह सकते हैं कि संघ स्थविर महापुरुष, गच्छाधिपति प.पू. आचार्य भगवंत श्री दौलतसागरसूरीजी म.सा. का जन्म जिनशासन में इतिहास रचने के लिए हुआ था. जीतेजी इतिहास रच दिया ऐसा कह सकते हैं, इनके जीवन पर अनेकों Books लिखी गई है इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह महापुरुष ने जिनशासन के लिए कितना कुछ किया है.
85 वर्ष के संयम जीवन और 103 की आयु में 18 February 2024 को पुणे में पूज्य श्री का देवलोकगमन हुआ. परमात्मा पूज्यश्री की आत्मा को जल्द से जल्द मोक्ष सुख प्रदान करें यही प्रार्थना.
जय जय नंदा.. जय जय भद्दा.. 🙏🏻🙏🏻
पूज्य गच्छाधिपतिश्रीजी के चरणों में कोटि कोटि नमन वंदन 🙏🏻🙏🏻