चौकीदार के यहां चातुर्मास परिवर्तन..?
सबसे बड़ा इंसान कौन? वह जिसके पास पैसा ज्यादा हो या वह जिसके पास भक्ति ज्यादा हो? एक साधारण चौकीदार ने जो किया, उसने पूरे श्रीसंघ और शहर को सिखा दिया कि सच्ची शान नोटों से नहीं, नियत से बनती है।
तो आइए जानते हैं एक ऐसी घटना जिसने चातुर्मास परिवर्तन की परिभाषा ही बदल दी। बने रहिए इस Article के अंत तक।
भक्ति का लाभ
गुजरात के गांधीनगर के एक उपाश्रय में करीब 16-17 वर्ष पहले दो साधु भगवंत चातुर्मास के लिए बिराजमान थे। वहां के चौकीदार (Watchman) का नाम था लालसिंह। दो साधु भगवंतों में से बड़े साधु भगवंत को लालसिंह भाई ने विनंती की कि
‘महाराज साहेब, चातुर्मास पूरा होने आया है। एक हफ्ता ही बचा है। मैंने आपको कब से विनती की है कि ‘मेरे घर पगला करें।’ पर्युषण से पहले आपने कहा था कि मेरे घर के पास निगोद (Algae-Moss) उगी हुई है इसलिए बाद में देखेंगे लेकिन अब तो चातुर्मास ही पूरा हो रहा है। आप अब मेरे घर पर कब पधारेंगे?’
यह लालसिंह भाई 22 वर्षों से यहाँ नौकरी पर थे। चातुर्मास के शुरुआत के दिनों में जब साधु भगवंत को आस-पास में गोचरी के लिए अनुकूल घरों का Idea नहीं था, तब लालसिंह भाई ही महात्मा को घर दिखाने ले जाते। 1 KM तक जाना पड़े तो भी पैदल ही महात्मा के साथ जाते और वो भी बिना चप्पल पहने।
एक बार कड़ी धुप के कारण महात्मा ने करुणा भाव से कहा ‘चप्पल पहन लो वरना पैर जल जाएँगे।’ तब हँसते-हँसते लालसिंह भाई बोले ‘साहेबजी, आप महात्मा तो बिना चप्पल के ही चलते हैं ना? मैं कम से कम आपके साथ हूँ, तब तो चप्पल नहीं ही पहनूँगा।’
चातुर्मास शुरू होने के 15 दिन बाद महात्मा ने कहा कि ‘अब तो मैंने सब घर देख लिए हैं, इसलिए तुम्हें साथ आने की जरूरत नहीं।’ तब लालसिंह भाई ने कहा ‘महाराज साहेब रास्ते में कई बार कुत्ते भौंक-भौंककर आपके पीछे पड़कर परेशान करते हैं।
फिर सभी घरों के दरवाजे हर कोई नहीं खोलता। आपको तरपणी नीचे रखनी पड़ती है, फिर खटखटाना पड़ता है, इसलिए मैं दरवाजे खुलवाऊँगा और कुत्तों को रोकूँगा। मैं तो पूरा चातुर्मास रोज़ आपके साथ ही आऊंगा और मुझे आपकी भक्ति का लाभ भी मिलेगा।’
और सच में लालसिंह भाई पूरे चातुर्मास में हर रोज़ दोपहर को आधा घंटा महात्मा के साथ गोचरी के लिए जाते थे और महात्मा को हमेशा खुद के घर पधारने की विनंती भी करते लेकिन महात्मा उस बात को टाल देते क्योंकि लालसिंह भाई के घर जाने के रास्ते में निगोद-घास की विराधना थी।
पैसों की जरुरत..?
Starting में तो महात्मा को लालसिंह भाई पर Doubt हुआ कि ‘यह गरीब है, पैसों की ज़रूरत होगी, इसलिए मुझे खुश करने की कोशिश कर रहा है और फिर मुझसे सहायता माँगेगा।’ लेकिन यह Doubt गलत साबित हुआ।
चातुर्मास के 50 दिन बाद तक भी लालसिंह भाई ने कोई माँग नहीं की। एक दिन महात्मा ने ही लालसिंह भाई को पूछ लिया ‘तुझे कुछ जरूरत है? तेरी दो बेटियाँ हैं, एक बेटा है और पत्नी बीमार है। पगार कम है, तो कुछ जरूरत है?’
लालसिंह भाई ने जवाब दिया ‘प्रभु की दया से सब कुछ ठीक है। मुझे तकलीफ पड़ती है तो संघ के श्रावक मुझे संभाल लेते हैं। इसलिए कोई जरूरत नहीं है।’ महात्मा को लालसिंह भाई के इस जवाब पर बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि 22 साल की नौकरी के बाद 2700 रुपये की Per Month की Salary थी जिसमें 5 लोगों को गुजारा करना था।
और तो और इस परिस्थिति में भी सामने से पैसों का Offer आने पर भी मना करनेवाला और इस संतुष्टि में भी भगवान की कृपा माननेवाला इंसान देखकर महात्मा हैरान रह गए।
मजाक बना इतिहास
जब चातुर्मास पूरा होने में एक हफ्ता बाकी था तब लालसिंह भाई ने फिर से महात्मा को अपने घर पधारने की विनती की। तब महात्मा ने हँसते-हँसते कहा ‘मैं अकेला क्यों? पूरा संघ तुम्हारे घर आएगा। चातुर्मास पूरा होने आया है।
चातुर्मास परिवर्तन हम अपना कहीं भी कर सकते हैं पर तुम अगर विनती करो, तो तुम्हारे घर ही चातुर्मास परिवर्तन कर दें।’ लेकिन मजाक में बोले गए महात्मा के इन शब्दों ने इतिहास रच दिया।
Please Note : चातुर्मास परिवर्तन यानी चातुर्मास पूर्ण होने के बाद कार्तिक पूनम के दिन हर साधु साध्वीजी भगवंत जिस जगह चातुर्मास किया होता है, वहां से विहार करके अन्य किसी जगह पर जाते हैं।
तो, हुआ यूँ कि लालसिंह भाई महात्मा की बात सुनकर सोच में पड़ गए ‘मेरे घर पूरा संघ आएगा? महात्मा संघ के श्रावकों की विनतियों को छोड़कर मेरे घर परिवर्तन करें.. क्या यह Possible है? साहेबजी मजाक तो नहीं कर रहे हैं न?’
लालसिंह भाई ने महात्मा को कहा ‘साहेबजी! मैं तो नौकर आदमी हूँ। मंदिर के पीछे की छोटी-सी कोठरी में रहनेवाला जैनेत्तर आदमी हूँ। मेरे यहाँ आप पूरे संघ के साथ चातुर्मास परिवर्तन करें, क्या यह सचमुच Possible है?’
यह बात बोलते समय लालसिंह भाई के चहरे पर आए भाव देखकर महात्मा चौंक गए। उस समय महात्मा ने लालसिंह भाई के घर चातुर्मास परिवर्तन करने का ऐतिहासिक Decision लिया। महात्मा जानते थे कि चातुर्मास परिवर्तन करवाने में कुछ खर्च तो होता ही है। तो महात्मा ने एक रुपया भी खर्च किए बिना परिवर्तन करने की पूरी तैयारी मन में करली।
फिर भी महात्मा ने लालसिंह भाई के भावों को जानने के लिए परीक्षा लेते हुए कहा ‘देखो, लालसिंह! अगर तुम्हारे घर चातुर्मास परिवर्तन करें तो लगभग 250 जितने लोग तुम्हारे घर आएँगे, तो उन्हें प्रभावना तो देनी ही पड़ेगी।
तुम्हारी खर्च करने की तैयारी है? इतना बड़ा लाभ ऐसे ही नहीं मिलता। श्री संघ तो भगवान है और भगवान तुम्हारे घर पर आएँगे तो तुम्हें उन्हें कुछ देना तो चाहिए ना?’ महात्मा की बात सुनकर लालसिंह भाई का Confusion दूर हो गया कि महाराज साहेब मज़ाक नहीं कर रहे हैं बल्कि Seriously बात कर रहे हैं।
अद्भुत भावना
लालसिंह भाई ने कहा ‘महाराज साहेब वर्ष 2002 में पूज्य हितरूचि विजयजी महाराज साहेब का चातुर्मास था, उनके साथ कोई तपस्वी मुनि थे, मेरी पत्नी के ऑपरेशन वगैरह में उन्होंने प्रेरणा करके बहुत Support किया।
वर्ष 2003 में पूज्य अरुणोदयसागर सूरीजी महाराज साहेब का चातुर्मास था जो राष्ट्रसंत पूज्य पद्मसागरसूरीजी महाराज साहेब के शिष्य है, उनके कारण ही मेरी संतानें कॉलेज की पढ़ाई कर पाए। मेरे गाँव में मेरा घर बना उसके पीछे भी उनका उपकार है। साधुओं की मेरे ऊपर असीम कृपा रही है।
मेरे यहाँ भगवान पधारें, यह तो मेरा सौभाग्य होगा। साहेबजी, मैं सभी को पाँच रुपए की प्रभावना करूँगा और मेरा पूरा परिवार संघ के हर सदस्य के पैर दूध-पानी से धोएगा और उन्हें तिलक लगाएगा।’ महात्मा आश्चर्यचकित हो गए और कहने लगे ‘देखो, लालसिंह! इतनी प्रभावना में तो तुम्हारा आधे से ज्यादा पगार…”
महात्मा को रोकते हुए लालसिंह भाई ने कहा ‘म.सा. आप चिंता मत कीजिए। मुझे इस महीने Rs. 3700 ज्यादा मिले हैं। इसलिए 3000 हजार तक का खर्च भी हो जाए, तो भी चलेगा। मेरे लिए यह प्रसंग बहुत महत्त्वपूर्ण है। बस, आप मुझे Permission दीजिए।’
महात्मा ने कहा ‘देखो, 99% तुम्हारे घर पर ही परिवर्तन करने का Decision पक्का है। एक बार ट्रस्टीयों से बात कर लेते हैं पर तुम्हें सभी को पांच नहीं बल्कि एक-एक रुपए की ही प्रभावना करनी है।
उससे ज्यादा नहीं और इस पूरे प्रसंग का खर्च तुम्हें ही करना है। किसी से भी पैसे लेकर नहीं करना है, जिससे तुम्हें ही सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा। अगर यह मंजूर हो, तभी तुम्हारे घर परिवर्तन करेंगे।’ लालसिंह भाई ने महात्मा की बात मान ली। उन्हें अभी भी यह सब सपने जैसा ही लग रहा था।
तब महात्मा ने लालसिंह भाई के सर पर हाथ फेरते हुए कहा ‘मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। तुम्हारे दिल में भगवान और साधु के प्रति जो प्रेम है, उसी का फल तुम्हें मिल रहा है। मैं तो सिर्फ निमित्त हूँ, माध्यम हूँ।’
संघ का Reaction
लालसिंह भाई ने चातुर्मास परिवर्तन की विनंती लिखकर महात्मा को दी। अगले दिन महात्मा ने प्रवचन में सभी से कहा ‘आज मुझे चातुर्मास परिवर्तन का लाभ लेनेवाले परिवार का नाम Announce करना है। लेकिन मैं जिसका भी नाम लूँगा, क्या आप सभी मेरा Decision स्वीकार करेंगे?’
संघ ने कहा ‘साहेबजी, आप बिलकुल चिंता न करें और नाम बताएं।’ महात्मा ने सभी को चौंकाते हुए कहा ‘मैं इस संघ के मंदिर के चौकीदार लालसिंह के घर चातुर्मास परिवर्तन करना चाहता हूँ। चौकीदार के यहाँ परिवर्तन करने का कारण यह है कि पूरे चार महीने उसने भरपूर भाव से रोज़-रोज़ साथ घूमकर गोचरी में सहायता की है।
उससे भी अधिक उसकी तीन विशेषताएं हैं कि
- वो पिछले तीन महीनों से रोज़ नवकारशी करता है।
- रोज़ चौवीहार करता है और
- रोज़ परमात्मा की पूजा करता है।
कल शाम को आँखों के आँसुओं के साथ उसने जो विनंती की, उसे देखकर ही मुझे यह विचार आया है। उसकी साधारण सी भक्ति भी हमारे लिए बहुत होगी। उसकी बिल्कुल छोटी सी कोठरी में परिवर्तन करना हमें मंजुर है पर इस सब के लिए श्रीसंघ की भी सम्मति चाहिए।’
महात्मा की बात सुनकर पूरा संघ भावुक हो गया। ट्रस्टीगण ने खड़े होकर कहा ‘साहेबजी! हमें कोई ऐतराज नहीं है। हम सभी लालसिंह के यहाँ संघ के सदस्य के रूप में आएँगे। अब वह हमारा नौकर नहीं, हमारा साधर्मिक है।’
महात्मा ने कुछ सोचते हुए कहा ‘एक काम कीजिए, अभी इसी समय लालसिंह को यहाँ बुलाइए। संघ की मौजूदगी में ही वह हमें और पूरे संघ को अपने घर पधारने की विनती करे।’ कुछ ही समय में लालसिंह भाई श्रीसंघ के सामने आए और बहुत ही नम्रता और भावों के साथ विनती की कि ‘सभी मेरे घर पधारें, चातुर्मास परिवर्तन का लाभ मुझे दें।’
पति-पत्नी : दोनों रत्न
अगले दिन सुबह लालसिंह भाई महात्मा को मिलने आए और कहा ‘आज मुझे आपसे 3 बाधा लेनी है यानी नियम लेते हैं। मेरी इच्छा है कि आपने, श्रीसंघ ने मुझ पर इतना बड़ा उपकार किया है तो मुझे भी कुछ करना चाहिए।
- मैं पूरी ज़िंदगी के लिए रात्रिभोजन त्याग का नियम लेना चाहता हूँ। सिर्फ बाहर-गाँव जाना पड़े तब और बीमारी के समय में छूट।
- रोज़ प्रभु पूजा करने का नियम और
- पूरी ज़िंदगी के लिए कंदमूल का त्याग करने का नियम लेना है।
लालसिंह भाई के भावों को देखते हुए महात्मा ने कहा ‘हजारों जैन भी जिन Basic नियमों को पूरी तरह से निभा नहीं पाते, उन्हें तुम जीवन भर के लिए ले रहे हो। आज तुम सच में जैन बन गए हो।’ महात्मा ने लालसिंह भाई को वासक्षेप के साथ यह 3 प्रतिज्ञाएँ दीं लेकिन सोच समझकर कुछ छूट के साथ दी।
उसी दिन दोपहर में लालसिंह भाई फिर से महात्मा के पास आए और कहा ‘म.सा. रात्रिभोजन के नियम में बदलाव करना है। आपसे नियम लेने के बाद मैं घर गया और पत्नी को ‘बाहर गाँव की छूट’ रखकर नियम लिया है यह बताया तो वह तो मुझ पर ही नाराज़ हो गई।
वह बोली ‘म.सा. हमारे लिए कितना कुछ करते हैं और आपने छूट रख ली। आपको शर्म नहीं आई कि आप आधा-अधूरा नियम लेकर आए हो? बाहर गाँव तो हम कभी कभार ही जाते हैं। उस समय थोड़ा संभाल लेना।’
म.सा. उसने मुझे जो प्रेरणा दी है, उसके अनुसार ‘बाहर गाँव की छूट’ रद्द करके नया नियम लेने आया हूँ।’ साधु भगवंत तो Shock रह गए और सोचने लगे ‘यह चौकीदार गज़ब का व्यक्ति है, इसके भाव कैसे और तो और इसकी पत्नी के भी भाव कैसे.. दोनों ही रत्न हैं।’
The Interview
अगले दिन संघ के एक ट्रस्टी ने महात्मा से कहा ‘महाराज साहेब हम हर साल चातुर्मास प्रवेश और परिवर्तन की एक छोटी-सी घोषणा ‘गांधीनगर समाचार’ नाम के अख़बार में देते हैं। कल हमने परिवर्तन की घोषणा के लिए Press में Article भेजा तो वहाँ के एक पत्रकार (Journalist) को बहुत आश्चर्य हुआ।
महाराज साहेब वह आपका और लालसिंह का Interview लेना चाहता है। तो क्या उसे कल प्रवचन के बाद बुलाऊँ?’ महात्मा ने शासन प्रभावना ने इस अवसर के लिए स्वीकृति दी और अगले दिन प्रवचन के बाद Interview शुरू हुआ।
पत्रकार ने पूछा ‘आपने चौकीदार के यहाँ जाने का निर्णय क्यों किया? क्या जैनों ने आपको परिवर्तन के लिए विनंती नहीं की थी?’
महात्मा ने उत्तर दिया ‘बहुत विनतियाँ आई थी पर हम जैन साधु जैनों के ही घर जाएँ, उसमें भी श्रीमंतों के ही घर जाएँ, ऐसा नहीं है। यदि सब लोग ऐसा मानते हों, तो वह मान्यता दूर करने के लिए मैंने यह कदम उठाया है। हमारे लिए सब समान हैं। हम तो केवल भावना के भूखे हैं।’
पत्रकार ने आगे पूछा ‘पर आपके श्रावकों को, बड़े लोगों को बुरा नहीं लगेगा? आपने उनकी विनंती ठुकरा दी है, तो उन्हें तो अच्छा नहीं लगेगा ना?’
महात्मा ने कहा ‘आपने इस संघ के लोगों की उदारता नहीं देखी? वे जैसे पैसों में उदार हैं, वैसे ही यह सब चीज़ों में भी उदार हैं। हाँ, उन्हें सही रास्ता दिखाना पड़ता है। आप अगर परिवर्तन वाले दिन आएँगे, तो अपने-आप ही सारा माहौल देखकर समझ जाएँगे। चौकीदार लालसिंह सबके मस्तक पर तिलक करेगा और पूरा संघ हाथ जोड़कर उस तिलक का स्वीकार करेगा।’
पत्रकार ने पूछा ‘दूसरे सभी साधु ऐसा आदर्श खड़ा नहीं करते? ऐसा क्यों?’
महात्मा ने समझाते हुए कहा ‘यह मत मानिए कि उनमें भाव नहीं है पर वर्षों से जो व्यवस्था चल रही है, उसी के अनुसार सभी सोचते हैं। उसके अलावा कुछ और भी किया जा सकता है-यह शायद मन में सूझता नहीं है और इसलिए कई लोग ऐसा कोई निर्णय नहीं लेते हैं। फिर भी जैसे-जैसे यह बात पता चलेगी और इसके फायदे दिखेंगे, वैसे-वैसे ऐसे निर्णय भी लिए जाएँगे।’
कुछ छोटे मोटे Questions और पूछने के बाद Interview पूरा हुआ और अगले दिन ‘गांधीनगर समाचार’ Newspaper में आधा Page भरकर यह पूरा समाचार Detail में छापा गया। गांधीनगर की जनता यह सब पढ़कर आश्चर्यचकित हो गई।
चातुर्मास परिवर्तन का दिन
अब आया कार्तिक सुदी पूर्णिमा का दिन यानी चातुर्मास परिवर्तन का दिन। दोनों महात्मा ने चतुर्विध संघ के साथ मंदिर के पीछे रही छोटी सी कोठरी और रसोई वाले घर में रहनेवाले लालसिंह भाई के यहाँ पगलिये किए। लालसिंह भाई की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं रहा।
वे संघ के सभी सदस्यों का हाथ जोड़कर स्वागत कर रहे थे। उनके घर के दरवाज़े के बाहर साड़ियों से सजावट की गई थी यानी साड़ियों को तोरण के आकार में बाँधा गया था और चौखटें भी सजी हुई थी। श्रीसंघ की बहनें ‘गहुली’ करके तैयार खड़ी थीं और उनके साथ लालसिंह भाई की पत्नी और दोनों बेटियाँ भी थी।
महात्मा ने सभी से कहा ‘संघ के हर एक सदस्य के पैर मेरे घर में पड़ें-यह लालसिंह की भावना है और इसे ध्यान में रखते हुए सभी एक Line में घर में प्रवेश करें। रास्ता एक ही है तो उसी में आने-जाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी इसलिए सभी सहयोग कीजिए।’
एक एक करके पूरा संघ लालसिंह भाई के घर में आए और उनके परिवार ने सभी के चरण दूध–पानी से धोए, मस्तक पर तिलक किया और प्रभावना दी और उसके बाद आँगन में प्रवचन रखा गया।
लालसिंह भाई ने चाँदी की गिन्नियों से दोनों महात्माओं का गुरुपूजन किया और पूरे संघ का आभार माना। प्रवचन के बाद दोनों महात्मा कुछ समय और लालसिंह भाई की कोठरी में रुके और परिवार के लोगों को शक्ति अनुसार छोटे-बड़े नियम दिए और फिर उपाश्रय में आए।
उसी दिन दोपहर में लालसिंह भाई महात्मा को मिलने आए। तब महात्मा ने उनसे पूछा ‘लालसिंह, चाँदी की गिन्नियाँ और इतनी सुंदर साड़ियों के तोरण कहाँ से लाए?’ लालसिंह भाई ने कहा ‘म.सा. हमारे संघ के एक श्रावक ने मुझे कल ही Force करके ये गिन्नियाँ दी।
उन्होंने कहा कि इन्हीं से गुरु पूजन करना और वे साड़ियाँ तो कल रात को मेरे घर पर आकर हमारे संघ के ही साड़ियों की दुकान वाले भाइयों ने बाँध दी और मुझे कहा कि तेरे घर यह अनमोल प्रसंग आया है, तो उसका थोड़ा-बहुत लाभ हमें भी लेना है। अभी साड़ियाँ बाँध देंगे और प्रसंग पूरा होने पर ले जाएँगे। मुझे लगा कि यही उचित होगा इसलिए मैंने मना नहीं किया।’
भक्त > धनवान
यह घटना अपने आप में एक जीवंत उदाहरण है कि सच्चा धर्म पैसे से नहीं, भावना से जीता जाता है। जिस लालसिंह भाई ने अपने जीवन में कभी धर्म का दिखावा नहीं किया, ना कोई बड़ा पद था, ना कोई बड़ी पहचान। फिर भी उनके भीतर जो भक्ति थी, वही उन्हें उस ऊँचाई तक ले गई, जहाँ आज करोड़पति भी नहीं पहुँच पाते।
आज हम सभी के लिए यह घटना एक आइना है जहाँ हम देख सकते हैं कि असली महानता ऊँचे पद या पैसों से नहीं, बल्कि सच्चे भाव, सच्ची नीयत और सच्ची सेवा से बनती है। धनवान बनना आसान है लेकिन भक्त बनना दुर्लभ है।
Current Life
आज लालसिंहजी की Age लगभग 63 साल की है। गांधीनगर Sector 22 से निवृत्त होने के बाद वहां से 18-20 KM दूर आए हुए रांधेजा नाम के गाँव में वे अब रहते हैं। आज वो स्थानकवासी संघ में Job करते हैं।
आज पिछले 16-17 साल से लालसिंह जी ने रात्रीभोजन नहीं किया है, हाँ महीने में उन्हें कभी कभी 2-3 दिन छूट लेनी पड़ती है। रोज़ नमस्कार महामंत्र की दो माला गिनते हैं। रांधेजा से मंदिर दूर होने के कारण प्रभुपूजा फिलहाल नहीं हो पा रही है।
16th Oct 2025 गुरूवार के दिन वह महात्मा ने श्रावक के माध्यम से Call करवाया तो वर्षों के बाद महात्मा का संपर्क होने से वो बहुत खुश हो गए, वे कहने लगे “महाराज साहेब मैं रोज़ आपको याद करता हूँ, आज भी मैं वो प्रसंग भूल नहीं पाया हूँ।
उस वक्त गांधीनगर समाचार में संदेश में वो प्रसंग छापा गया था, वो Cuttings भी मैंने मेरे पास रखे हैं। मुझे आपको वंदन करने भी आना है लेकिन मेरे पास कोई Contact ही नहीं था जो आपकी जानकारी दे पाए तो आपके पास आना कैसे वह भी मेरे लिया मुश्किल था।’
जब महात्मा ने उसके परिवार की जानकारी ली तब वो रो पड़े कि ‘महाराज साहेब दोनों बेटियों की शादी करवाई थी, उसमें से एक दामाद कोरोना के समय गुज़र गया, दूसरी का Divorce हो गया है।
पत्नी के कुल 5 Operations हुए हैं, आज हम दो+दो बेटियां+बेटा इस तरह से कुल 5 लोग साथ में रहते हैं। दूसरा तो कुछ नहीं लेकिन दो बेटियों के लिए मन में बहुत दर्द है।’ एक पिता अपनी दो युवान बेटियों के दुखों में आंसू तो बहाएगा ही।
Sorry! कड़वा सच यह है कि यह परिवार गरीब ज़रूर है लेकिन भिखारी नहीं है। आज भी लालसिंहजी और उनका बेटा Job करके परिवार को संभाल रहे हैं। दोनों बेटियां Job करना चाहती है लेकिन आजतक उन्हें Job मिली नहीं है।
The Dark Reality
अब कडवी बात यह है कि हम सभी के पास शादी वगैरह में फ़ालतू के अनावश्यक सिर्फ दिखावा करने के लिए लाखों करोड़ों रुपये हैं, धर्मक्षेत्र में भी ज़रूरत के अलावा, आवश्यकता से ज्यादा खर्च करने के लिए लाखों करोड़ों रुपये हैं, रविवार की Movie, Hotel का खाना, इन सबके लिए हज़ारों रुँपये हैं।
छुट्टियों के दिनों में इधर उधर घूमने जाना, मज़ा करना, Parties के लिए हज़ारों लाखों रुपये हैं। लेकिन ऐसे खानदानी गरीब परिवारों के लिए हमारे मन में भक्ति-करुणा कब जागेगी? हालांकि आज तो हजओं जैन-जैनेत्तर करुणाशाली बनकर, दान की गंगा बहा ही रहे हैं, उनकी जितनी अनुमोदना की जाए उतनी कम है।
हम क्या कर सकते हैं? हम हमारे मौजशौक में जितना खर्च करते हैं उसमें से 10% खर्च तो ऐसे खानदानी परिवारों के लिए कर सकते हैं। लालसिंह महाराज को वंदन करना चाहते हैं लेकिन दूर बिराजमान महाराज साहेब के पास आने-जाने का खर्च करना भी शायद उनके लिए बहुत कठिन होगा यह एक कड़वा सच है।
प्रभु से यही प्रार्थना है कि इनका पूरा परिवार अच्छे से सेटल हो जाए और इन्हें मन की प्रसन्नता प्राप्त हो.. अभी भी प्रसन्न तो है ही लेकिन बहुत बहुत बहुत बढे ऐसी प्रार्थना।
इतनी बात Clear कर देते हैं कि अमीरों के घर पर चातुर्मास परिवर्तन करने में भी फायदें तो है ही, शासन के बहुत सारे कार्य होते हैं, उनकी संतानें भी धर्म से जुडती है। उलटी बात को पकड़ने वाले ऐसा ना समझ ले कि हम उसके विरोध में हैं।
बिलकुल नहीं, लेकिन मध्यम परिवार या गरीब परिवारों के घर पर भी चातुर्मास परिवर्तन हो सकता है और कभी कभी महात्मा ऐसा लाभ भी देते ही है तो वह भी उचित है।
अपना शासन अनेकांतमय है यह भूलना नहीं है।


