Mahapurush Mooldev’s Thrilling Story
ऐसा कहा जाता है कि जो मनुष्य मन की शुद्धि के साथ साधु संतों को सद्भावपूर्वक दान देता है, वह भविष्य में महापुरुष मूलदेव की तरह राज्य आदि सुख-संपत्ति को प्राप्त करता है. लेकिन आखिर ऐसा क्यों कहा गया है?
जुआ, वेश्यागमन आदि पाप जीवन में होने पर भी यदि सद्गुरु का सत्संग हो जाए तो पापी आत्मा भी महान आराधक आत्मा बन सकती है. उसका अद्भुत उदाहरण है महापुरुष मूलदेव.
तो आइए जानते हैं महापुरुष मूलदेव की अद्भुत कथा.
बने रहिए इस Article के अंत तक.
देवदत्ता और मूलदेव
गौड़ देश में पाटलीपुर नाम का एक नगर था. उस नगर में जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था, जिसका मूलदेव नामक पुत्र था जो कलाओं में Expert था. मूलदेव सभी धूर्त यानी खराब विद्याओं में भी Expert था. वह चोरों के बीच चोर जैसा था तो सरल व्यक्ति के साथ सरल था.
एक विद्याधर की तरह वह अनेक प्रकार की कलाओं के द्वारा नगरजनों को खुश करता था. मूलदेव में अनेक गुण होने पर भी ‘सोने की थाली में लोहे की कील’ की तरह उसमें एक बड़ा दुर्व्यसन था जुआ खेलने का.
राजा ने बहुत कोशिशें की लेकिन मूलदेव यह व्यसन को छोड़ नहीं पाया तो गुस्से में राजा ने पुत्र मूलदेव को महल छोड़कर जाने का आदेश दिया.
उसी नगर में देवदत्ता नाम की गणिका यानि वेश्या रहती थी. वह बहुत बुद्धिशाली थी और इस गणिका को Impress करने के लिए मूलदेव उसके भवन के पास ही एक मकान के ओटले पर बैठकर वीणा बजाने लगा.
वीणा की Soulful Music को सुनकर देवदत्ता गणिका Attract हो गई. उसने अपनी एक दासी माधवी को भेजा. दासी ने जाकर देखा.मूलदेव ने गुटिका यानी एक ऐसी गोली जिससे मन में इच्छित कार्य पूरे होते हैं, ऐसी गुटिका का Use करके वामन यानी Short Heighted व्यक्ति का रूप लिया था.
दासी ने देखकर यह बात गणिका को बताते हुए कहा ‘कोई गंधर्व यानी Musician मधुर गीत गा रहा है, वह शरीर से वामन है लेकिन गुणों से विराट है.’
यह बात सुनकर देवदत्ता प्रभावित हुई और उसने अपनी कुबड़ी यानी आगे से Bend रही हुई माधवी दासी को भेजा ‘तू जाकर उस गंधर्व को बुलाकर ला.’ दासी मूलदेव के पास गई, लेकिन वह नहीं माना और माधवी की पीठ पर उसने मुट्ठी का प्रहार किया जिससे पीठ का कुबड़ापन दूर हो गया. वो एक दम Normal हो गई.
माधवी जब गणिका के पास पहुँची तो उसने पूछा ‘यह तेरी पीठ सीधी कैसे हो गई?’ दासी माधवी ने कहा कि ‘उस वीणावादक पुरुष ने मेरी पीठ पर प्रहार किया और मेरी पीठ ठीक हो गई.’
यह जानकर देवदत्ता और खुश हो गई और उसने माधवी को कहा ‘तू एक बार वापस जाकर Force करके विनंति कर एक बार उन्हें बुलाकर ला.’ दूसरी बार बुलाने पर मूलदेव भवन में आया, उसी समय वहाँ पर एक अन्य वीणावादक आया और वीणा बजाने लगा.
मधुर आवाज सुनकर देवदत्ता खुश हो गई लेकिन तभी मजाक करते हुए मूलदेव ने कहा ‘उज्जयिनी नगरी के लोग वस्तु की परीक्षा करने में बहुत ही चतुर होते हैं.’ गणिका ने कहा ‘क्या इस वीणावादन में कुछ भूल है?’ मूलदेव ने कहा ‘इस वीणा के गर्भ में कंकड़ है और उसके तार में बाल है.’
मूलदेव ने वीणा अपने हाथ में ली और उसमें छिपे हुए कंकड़ और बाल को बाहर निकालकर देवदत्ता को बता दिया. मूलदेव ने वह वीणा ठीक कर दी और स्वयं वह वीणा बजाने लगा.
वीणा के मधुर संगीत को सुनकर गणिका ने कहा ‘अहो! यह सामान्य मानव नहीं है, यह तो मनुष्य के रूप में साक्षात् सरस्वती देवी का ‘अवतार’ है.’ जो दूसरा वीणावादक वहां आया था, वह मूलदेव के चरणों में गिरकर बोला ‘मैं आपके पास वीणावादन की कला सीखना चाहता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें और मुझे सिखाएं.’
मूलदेव ने कहा ‘वीणावादन कला में मैं Expert नहीं हूँ, इसके सच्चे ज्ञाता तो मेरे गुरुदेव हैं. पाटलीपुर में रहनेवाले विक्रमदेव आचार्य मेरे गुरूदेव हैं और मैं उनका शिष्य हूँ.’ इसी बीच वहाँ पर विश्वभूति नाम के कलाचार्य यानी Skills के एक Expert आए.
उसी समय देवदत्ता बोली ‘अहो! पधारो! आप तो साक्षात् सरस्वती देवी के अवतार हो.’ मूलदेव ने सोचा ‘यह अपने आपको अत्यंत ज्ञानी मान रहा है, अतः इसका गर्व दूर करना चाहिए.’
इस प्रकार विचारकर मूलदेव ने नाट्यशास्र यानी Dancing Skills के बारे में कुछ Questions पूछे लेकिन विश्वभूति उन Questions का सही समाधान नहीं कर सके, जिससे विश्वभूति को गुस्सा आ गया और वहाँ से रवाना हो गए.
उसके बाद मूलदेव ने देवदत्ता की सहाय की जिससे उसकी सम्पूर्ण थकावट दूर हो गई और तब उसने मूलदेव से कहा ‘आप गुणों से महान हो तो अब कपट करके अपने असली स्वरूप को क्यों छिपाते हो? कृपा करके आप अपने असली स्वरूप से मुझे दर्शन दीजिए.’
देवदत्ता के अति आग्रह को देख मूलदेव ने अपने मुंह में से गुटिका बाहर निकाल दी और उसके असली स्वरुप के अद्भुत रूप और लावण्य को देखकर देवदत्ता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.
देवदत्ता ने मूलदेव से कहा ‘आपकी अद्भुत Skills से आपने मेरे दिल को जीत लिया है, इसलिए अब आपके बिना मैं एक क्षण भी नहीं रह सकती हूँ.’ देवदत्ता के साथ मूलदेव आनंदपूर्वक दिन व्यतीत करने लगा.
अचल सेठ की इर्ष्या
एक दिन महाराजा की ओर से देवदत्ता को राजदरबार में नृत्य कला यानी Dance Skill दिखाने के लिए Invitation मिला. मूलदेव भी गुप्त वेश में राजदरबार में आया. देवदत्ता ने राजदरबार में अपनी अद्भुत नृत्यकला का प्रदर्शन किया और मूलदेव ने तबला बजाने का कार्य किया.
इसी बीच पाटलीपुर के राजा का द्वारपाल विमलसिंह आया और राजा को बोला ‘ऐसी अद्भुत कला तो मूलदेव की ही होनी चाहिए. मूलदेव को छोड़कर ऐसी अद्भुत कला अन्य किसी की नहीं हो सकती.’
राजा ने कहा ‘यदि ऐसा है तो वह अपना असली स्वरूप प्रगट करे. रत्न के जैसे मूलदेव के दर्शन में मुझे भी कौतूहल यानी Curiosity है.’ उसी समय मूलदेव ने अपने मुँह में से गुटिका बाहर निकाल दी और उसके असली स्वरुप में आ गया.
विमलसिंह ने मूलदेव को गले लगाया और मूलदेव भी राजा के चरणों में गिर पड़ा. राजा भी मूलदेव पर बहुत प्रसन्न हो गया. देवदत्ता के वहाँ रहते हुए भी मूलदेव जुएँ के व्यसन को नहीं छोड़ पाया. व्यसन पकड़ना बहुत आसान है लेकिन छोड़ना बहुत बहुत कठिन.
देवदत्ता ने भी मूलदेव को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन व्यसन नहीं छूटा. उसी नगर में अचल नाम का धनवान सार्थवाह रहता था. मूलदेव के पहले वह उस देवदत्ता गणिका में Interested था. गणिका को मूलदेव के साथ देखकर अचलसेठ को ईर्ष्या हुई, Jealousy हुई और वह मूलदेव को किसी भी तरीके से खत्म करना चाहता था.
एक दिन अक्का यानी गणिका के भवन की मालकिन ने देवदत्ता को कहा ‘बेटी, तू उस निर्धन और जुएँ के व्यसनी ऐसे मूलदेव को छोड़ दे. हर रोज अचल कितना धन देता है. उससे अपना फायदा भी होता है.’
देवदत्ता ने कहा ‘मुझे धन का नहीं, बल्कि मूलदेव के गुणों का आकर्षण यानि Attraction है.’ अक्का ने कहा ‘क्यों ना अचल सेठ और मूलदेव की परीक्षा की जाए?’ देवदत्ता ने अपनी स्वीकृति दी और उसी समय अक्का ने माधवी दासी को अचल के पास भेजकर कहलवाया कि ‘देवदत्ता को इक्षु यानी गन्ना खाने की इच्छा है, इसलिए आप इक्षु भिजवा दीजिए.’
अचल सेठ ने बैलगाड़ी भरकर इक्षु भिजवा दिए. उसके बाद वह माधवी दासी ने मूलदेव के पास जाकर इक्षु वाली बात कही. उसी समय मूलदेव कुमार ने गाँठ बिना के इक्षु यानी गन्ने के टुकड़े चांदी की थाल में व्यवस्थित तैयार करके माधवी दासी को दिए. देवदत्ता ने जब वे टुकड़े देखे तो वह खुश हो गई.
देवदत्ता ने अक्का को कहा ‘मेरु और सरसों की तरह मूलदेव और अचलसेठ में रहे अंतर को आपने देख लिया?’ अक्का ने सोचा ‘यह देवदत्ता मूलदेव के ऊपर लट्टू हो गई है, इसलिए किसी भी तरीके से मूलदेव को यहाँ से भगाना होगा.’
मूलदेव का अपमान
एक दिन अक्का ने अचलसेठ को कहा ‘तुम ऐसा कुछ करो जिससे वह मूलदेव यहाँ आए ही नहीं.’ अचलसेठ ने Plan बनाया और अन्य गाँव जाने का कहकर अचलसेठ गणिका के भवन से निकल गया.
अचलसेठ के जाने के बाद देवदत्ता ने मूलदेव को बुला लिया और इधर अचानक ही अक्का ने अचलसेठ को बुला लिया. देवदत्ता को अचलसेठ के वापस आने का पता चलते ही उसने मूलदेव को अपने पलंग के नीचे छिपा दिया.
अचलसेठ पलंग पर बैठा और बोला ‘आज मैंने एक स्वप्न देखा. स्वप्न में संकेत हुआ कि अगर आज मैं पलंग पर बैठकर स्नान करूंगा तो मेरी पत्नी जीवित रहेगी, नहीं तो मर जाएगी.’
देवदत्ता ने कहा ‘अगर आप यहाँ बैठकर स्नान करोगे तो सारी गादी खराब हो जाएगी. अचलसेठ ने कहा ‘तुम इतनी छोटी सोच क्यों रखती हो?’ अचलसेठ ने पलंग पर बैठकर स्नान किया जिससे स्नान का गंदा पानी पलंग के नीचे छिपे हुए मूलदेव पर गिरा.
इस प्रकार कई तरीकों से अपमानित करते हुए मूलदेव को अचलसेठ ने हाथ पकड़कर गणिका के भवन से बाहर निकाल दिया. गणिका के भवन से निकलने के बाद मूलदेव बेन्नातट की ओर बढ़ा, जहाँ पहुँचने के लिए बीच में 12 योजन का जंगल आता था.
जंगल पार करने के लिए मूलदेव किसी साथी को ढूंढ़ रहा था और सद्भाग्य से एक ब्राह्मण उसे मिल गया. बातचीत करते हुए और Continuously चलते हुए उन दोनों ने वह जंगल पार कर लिया और एक तालाब में हाथ-पाँव धोकर मूलदेव पेड़ की छाया में बैठा.
सुपात्रदान का लाभ
वह ब्राह्मण अपने पास में रहे शंबल यानी भाथा में से खाने के लिए बैठ गया. नगर में प्रवेश करने के बाद मूलदेव को भूख लगी हुई थी. पास में ही किसी गाँव में से उसे खाने के लिए कुछ उड़द मिल गए. जैसे ही वह खाने के लिए बैठा, उसी समय सद्भाग्य से मासक्षमण के एक तपस्वी महात्मा उसे दिखे और वह खुश हो गया.
मासक्षमण यानी 30 उपवास यानी 30 उपवास पूरे करके महात्मा गोचरी के लिए जा रहे थे. खूब आदर और बहुमान के साथ उसने महात्मा को गोचरी वहोराई. उसकी उदारता और उत्कृष्ट भावना को देख वहीं पर आकाशवाणी हुई ‘आधे श्लोक यानी Half श्लोक द्वारा तुम्हें जो चाहिए, वह मांग लो.’
इस देववाणी को सुनकर मूलदेव ने कहा ‘देवदत्ता गणिका और 1000 हाथियों के साथ राज्य मुझे प्राप्त हो.’ मुनि को वंदनकर और भोजन कर मूलदेव आगे बढ़ा और वह नगर के बाहर पांथशाला यानी Travellers के लिए जो Restroom होता है, वहां पर सो गया.
रात्रि के अंतिम प्रहर में सपने में उसने पूर्ण चंद्र यानी Full Moon को अपने मुँह में प्रवेश करते हुए देखा.ऐसा ही स्वप्न उसी पांथशाला में सोए हुए कार्पटिक (ब्राह्मण) ने भी देखा. सुबह होने पर स्वप्न दर्शन के बाद मूलदेव बगीचे में गया और वहाँ से सुंदर फल फूल लेकर किसी निमित्तज्ञ यानी सपनों का फल बतानेवाले व्यक्ति के घर गया और सत्कार आदि के बाद अपने स्वप्न का फल पूछा.
स्वप्न की बात सुनकर निमित्तज्ञ खुश हो गया उसने कहा ‘पहले आप मेरी कन्या के साथ विवाह करो, उसके बाद ही मैं इस स्वप्न का फल आपको बताऊंगा.’
मूलदेव की स्वीकृति मिलने के बाद स्वप्न पाठक ने धूमधाम से अपनी कन्या का विवाह मूलदेव से कराया और उसके बाद स्वप्न का फल बताते हुए उसे कहा ‘सात दिन के अंदर तुम इस नगर के राजा बनोगे.’
इस घटना के पाँचवें दिन मूलदेव चंपक नामक पेड़ के नीचे आराम से सोया हुआ था. Coincidently उसी दिन उस नगर के राजा की मृत्यु हो गई, जिसका कोई पुत्र नहीं था. नए राजा को चुनने के लिए पट्टहस्ती, कलश चामर आदि पंच दिव्य किए गए जिसमें हाथी की सूंड में मंत्रित जल से भरा कलश रखा गया.
यह हाथी जिस पर कलश ढोलेगा, उसे बेन्नातट नगर का राजा बनाया जाएगा. वह हाथी पूरा नगर घुमने के बाद नगर के बाहर आया और चंपक वृक्ष के नीचे सोए हुए मूलदेव के ऊपर उसने अभिषेक कर दिया.
उसी समय मूलदेव को हाथी पर बिठाया गया और राजभवन में ले जाकर उसका विधिपूर्वक राज्याभिषेक किया गया. उसी समय आकाशवाणी हुई ‘दिव्य प्रभाव से यह विक्रम राजा के जैसा राजा होगा, अत: इसका दूसरा नाम विक्रमराज हो. जो व्यक्ति इनकी आज्ञा का भंग करेगा, उसे कठोरतम सजा की जाएगी.’
विक्रमराजा यानी मूलदेव राजा न्याय व नीतिपूर्वक प्रजा का अच्छी तरह से पालन करने लगे.
अचल का देश निकाला
इस तरफ, मूलदेव से बिछड़ने के बाद देवदत्ता ने अचलसेठ को कह दिया कि ‘मैं तुम्हारे साथ संबंध नहीं करूंगी. यदि तुम बलात्कार करोगे तो आत्महत्या कर लूंगी. तुमने मूलदेव का अपमान करके अच्छा नहीं किया.’ इतना कहकर उसने अचलसेठ को अपने भवन से निकाल दिया.
देवदत्ता, जितशत्रु राजा के पास गई और बोली ‘मूलदेव ही मेरे पति हो, मूलदेव को छोड़कर अन्य पुरुष मेरे पास नहीं आएं.’ राजा ने उसका कारण पूछा तो उसने अचलसेठ द्वारा मूलदेव के अपमान की बात बताई.
जितशत्रु राजा अचलसेठ को बुलाकर उसे ठपका देते हुए बोले कि ‘मूलदेव तो नगर के रत्न समान है. उसके अपमान के बदले में तो तुझे मौत की ही सजा होनी चाहिए. तू मूलदेव को सम्मान सहित लेकर आ, अन्यथा तेरी मौत ही होगी.’
राजा की यह आज्ञा सुनकर अचल सेठ मूलदेव की खोज में निकल पड़ा. मूलदेव ने जितशत्रु राजा के पास अपना दूत भेजकर कहलवाया कि ‘देवदत्ता पर मुझे बहुत राग है इसलिए देवदत्ता की इच्छा हो तो तुरंत उसे यहाँ भिजवा दो.’
मूलदेव राजा के संदेश को प्राप्तकर देवदत्ता तुरंत ही बेन्नातट जाने के लिए तैयार हो गई और बेन्नातट पहुँचने के बाद देवदत्ता को पाकर मूलदेव राजा खुश हो गया.
एक शुभ दिन बेन्नातट नगर में परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री धर्मघोषसूरिश्वरजी म.सा. का आगमन हुआ. मूलदेव राजा आचार्य भगवंत की देशना सुनने के लिए उद्यान में गया और आचार्य भगवंत की भवननिर्वेदिनी यानी संसार पर वैराग्य लानेवाली धर्मदेशना को सुनकर मूलदेव राजा ने सम्यक्त्व सहित बारह व्रत स्वीकार किए.
एक दिन अचलसेठ पारसी लोगों के देश में से बहुत सारी संपत्ति प्राप्त कर बेन्नातट में आया. अचलसेठ मूल्यवान मोती आदि से भरा हुआ थाल लेकर राजा को भेंट देने के लिए राजदरबार में आया. मूलदेव राजा ने अचलसेठ को तुरंत ही पहचान लिया लेकिन अचलसेठ राजा को पहचान नहीं पाया.
अचलसेठ ने कहा ‘मेरा नाम अचलसेठ है. मेरे वाहनों में रहे हुए माल को देखने के लिए आपको विनती करता हूँ.’ यह सुनकर राजा अन्य राजकर्मचारियों के साथ समुद्र तट पर आया और अचलसेठ किराणे की सामग्री बताने लगा.
राजा ने पूछा ‘क्या यही माल है या दूसरा भी है? हमारे राज्य में जो शुल्क यानी Tax की चोरी करता है, उसे मौत की सजा दी जाती है.’ राजा ने अपने सेवकों को कहा ‘यह सेठ सत्यवादी है, इसलिए इसका आधा Tax माफ कर दिया जाए लेकिन इसके सामान की बराबर तलाशी ली जाए.’
अचलसेठ के माल की Checking करते हुए राजकर्मचारीयों को अचानक उस सामान में से अनेक कीमती चीजें मिली. राजसेवकों ने अचलसेठ की खूब पिटाई की और उसे बाँधकर राजा के सामने उपस्थित किया.
राजा ने कहा ‘अचल, तुम मुझे पहचानते हो?’ अचल ने कहा ‘जगत प्रकाशक सूर्य की तरह आपको कौन नहीं जानता है?’ उसी समय देवदत्ता भी वहाँ आ गई और बोली ‘कर्म की गति बड़ी विचित्र है.
ये मूलदेव हैं, जिनका तुमने अपमान किया था. ये अभी तुम्हें तुम्हारे अपराध के लिए मार डाले तो भी तुम क्या कर सकते हो? लेकिन ये तुम्हारे जैसे हल्के नहीं हैं. तुम तो दुर्जन हो, तुमने जो व्यवहार किया है उसके लिए तो तुम्हे मौत की ही सजा होनी चाहिए.’
अचलसेठ ने क्षमा की भीख मांगी और मूलदेव के चरणों में गिरकर बोला ‘मैं भयंकर अपराधी हूँ. आपके साथ मैंने जो अपराध किया उसके लिए जितशत्रु राजा ने मुझे उज्जयिणी नगरी से निकाल दिया.’ मूलदेव की अनुमति से जितशत्रु राजा ने अचलसेठ को वापस उज्जयिणी में आने की अनुमति दी.
राजा बने चोर
एक बार प्रजाजनों ने आकर मूलदेव राजा को शिकायत की ‘नगर में चारों ओर घर-घर चोरियाँ हो रही हैं, लेकिन चोर पकड़ा नहीं जा रहा है. नगर के आरक्षक यानी Police भी चोरों को पकड़ने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं लेकिन वे चोर विद्या के प्रयोग से अदृश्य यानी Invisible बनकर चोरी कर रहे हैं, इसलिए पकड़ा नहीं जा रहे हैं.’
राजा ने मन में Decide किया कि ‘मैं स्वयं चोर को ढूंढ़ने का कार्य करूंगा. एक दिन रात के समय नीले कपडे पहनकर राजा खुद चोर को ढूंढने निकल पड़ा. राजा ने चारों ओर खोजा लेकिन चोर राजा के हाथ नहीं लगा.
आखिर राजा एक खंडहर में गया और ‘चोर यहाँ आ सकता है” मानकर मूलदेव राजा खंडहर में सो गया. रात को मंडिक नाम का चोर उसी खंडहर में आया. चोर द्वारा परिचय पूछने पर राजा ने बताया कि ‘मैं कपड़े का व्यापरी हूँ.’
चोर ने कहा ‘तुम्हे धनवान बनना हो तो मेरे साथ चलो.’ व्यापारी के वेष में रहे राजा ने तुरंत हाँ भर दी और चोर के साथ एक घर में घुसा. वहाँ से कीमती चीजें लेकर अपने मस्तक पर धन के भार को उठाकर राजा उस चोर के साथ उद्यान में आया और किसी गुफा में प्रवेश किया.
चोर ने अपनी बहन रूपसुंदरी को आदेश देते हुए कहा ‘इस अतिथि के पाँवों का प्रक्षालन करो.’ रूपसुंदरी राजा को कुएँ के किनारे ले गई और राजा के पाँवों का प्रक्षालन करते हुए श्रेष्ठ चिन्हों को देखकर रूपसुंदरी का दिल दया से भर आया.
राजा के रूप में मोहित बनी रूपसुंदरी ने कहा ‘पादप्रक्षालन के बहाने से यहाँ कई श्रीमंतों को कुएँ में फेंक दिया गया है. चोरों के दिल में दया कहाँ से हो? इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप यहाँ से जल्दी भाग जाओ.’
रूपसुंदरी के कहने से राजा तुरंत ही वहाँ से भाग गया और राजा के भाग जाने के बाद रूपसुंदरी जोर से चिल्लाई ‘भाई! जल्दी आओ! अपना अतिथि तो भाग गया है.’ उसी समय म्यान में से नंगी तलवार लेकर वह चोर राजा के पीछे भागा.
चोर को आते हुए देखकर राजा एक स्तंभ के पीछे छिप गया और चोर उस स्तंभ को ही व्यापारी समझकर स्तंभ पर ही तलवार का प्रहार कर रवाना हो गया. चोर को पहचानने की निशानी कर राजा अपने महल में आ गया.
दूसरे दिन राजा उस चोर को पकड़ने के लिए चल पड़ा और कपड़े की दुकान से कपड़ा खरीदते हुए उस चोर को राजा ने पहचान लिया. राजा ने अपने राजसेवकों को भेजकर उस चोर को पकड़वा लिया. राजा ने चोर के पास से मिला हुआ सारा धन नगर में घोषणा कर उनके मालिकों को सौंप दिया.
जुए से मोक्ष तक की यात्रा
एक बार बेन्नातट नगर में महाज्ञानी गुरु भगवंत का आगमन हुआ. राजा भी उनके उपदेश श्रवण हेतु गुरु भगवंत के चरणों में उपस्थित हो गया. गुरु भगवंत ने कहा ‘जल में पैदा होनेवाली Waves की तरह सारी संपत्ति चंचल है.
यह यौवन तो जल्द ही विदाई लेनेवाला है. शरद ऋतु के बादलों की तरह यह आयुष्य अस्थिर यानी Unstable है. पूज्यों की पूजा, दया, दान, तीर्थयात्रा, जप, तप, श्रुतज्ञान का अभ्यास और परोपकार की आराधना में ही मानव-जन्म की सफलता है.’
इस प्रकार धर्मोपदेश का श्रवणकर मूलदेव राजा भी धर्म आराधना के लिए Excited हुआ और उसने श्री शत्रुंजय गिरिराज, गिरनारजी आदि तीर्थों की यात्रा की. उसने उत्तम सात क्षेत्रों में अपनी संपत्ति का सद्व्यय किया और अंत में अपने पुत्र रणसिंह को राजगद्दी सौंपकर भागवती दीक्षा अंगीकार की.
निर्मल संयम धर्म की साधना कर मूलदेव मुनि स्वर्ग गए. वहाँ से च्यवकर वे मानव भव प्राप्त करेंगे और फिर से संयम की साधना कर शाश्वत मोक्ष प्राप्त करेंगे. इस प्रकार जो मनुष्य शुद्ध भाव से दान देता है, वह अवश्य ही स्वर्ग और मोक्ष के सुख को प्राप्त करता है.
Moral Of The Story
1. ‘Every man has his past and Every man has his future.’ हर व्यक्ति का भूत और भावी होता है यानी कि आज का कितना भी खराब व्यक्ति कल अच्छा बन सकता है. सुधर सकता है. सिर्फ उसे सद्गुरु का सत्संग करना पड़ता है.
2. दान धर्म का बहुत महत्त्व है. जब देनेवाले के भाव पूरे हो और लेनेवाले महात्मा के गुण पूरे हो, तब ऐसा पुण्य बंधता है जो मोक्ष तक समृद्धि, शांति एवं अनासक्ति देता है और व्यक्ति को अच्छे + सच्चे मार्ग पर चलाता है.
3. एक गणिका भी अच्छे पात्र को पाकर सभी अन्य पुरुषों को छोड़ने की क्षमता रखती है और आज Love Marriage करने के बाद भी वापस Love Marriage करने की इच्छा कुछ लोगों को होती है, यह धोखा नहीं तो क्या है?
क्या आज की Generation उस गणिका से भी गई-गुजरी है? कपड़ों को Change करते हैं वैसे Husband-Wife को Change करने का Trend अब तो America आदि देशों में भी कम होता जा रहा है, जबकि India में इस Trend की शुरुआत हो रही है.
4. जुआँ यानी Gambling आज सच में बहुत बाद दूषण बन गया है. एक समय सिर्फ Entertainment के लिए खेली जाती चीज़, आज धंधा बन गई है और ऐसा धंधा करनेवालों का भविष्य कैसा गंदा होगा, वह कहने की जरुरत नहीं है. सभी को उन धंधोंवालों की गंदगी पता ही है.
5. “Knowledge Can Conquer Anything”
आज 21st Century Information Century है. आज Knowledge का बहुत ही ज्यादा Power है और इसलिए धर्म + समाज + Lifestyle की सही Knowledge लेना बहुत जरुरी है. Ad या Bed में पड़े पड़े जो Knowledge आता है , वह होशियार नहीं पागल ही बनाता है. मेहनत बहुत ही आवश्यक है.