आज हम एक ऐसी माँ के बारे में जानेंगे जिन्होंने अपनी 4 संतानों को जिनशासन के Main चार Pillars यानी साधु-साध्वी-श्रावक और श्राविका जिन्हें चतुर्विध संघ भी कहा जाता है, उन्हें समर्पित किया और वे चतुर्विध श्री संघ के चारों स्तंभों में रही 4 संतानों की माता के रूप में विद्यमान है.
पूरी जानकारी के लिए बने रहिए इस Article के अंत तक.
बेटी को दिया संयम जीवन का उपहार
चेन्नई निवासी शासन प्रेमी सुश्रावक श्री बादरमलजी कटारिया और उनकी धर्मपत्नी निर्मला बहन की 4 संतानें हैं. 2 बेटे नरेंद्र भाई और वीरेंद्र भाई और 2 बेटियां नीलकमल बहन और हेमलता बहन. निर्मला बहन के मन में धर्म के प्रति निष्ठा और वैराग्य भाव बहुत पहले से थे और उन्होंने अपनी संतानों को भी धर्म के उत्कृष्ट संस्कार दिए.
जब उनकी छोटी बेटी हेमलता 11 वर्ष की थी तब उन्हें दीक्षा लेने की इच्छा हुई. तब उनके परिवारवालों ने कह दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, हम इतनी छोटी बच्ची को दीक्षा की अनुमति नहीं दे सकते हैं.
लेकिन जिसके मन में स्वयं संयम के प्रति प्रेम व्याप्त हो, वह व्यक्ति किसी और को संयम मार्ग से कैसे दूर कर सकता है?
उस समय निर्मला बहन के मन में यही ख्याल आया कि अगर उन्होंने कुछ बोला नहीं तो उनकी बेटी की दीक्षा लेने की भावना अधूरी ही रह जाएगी और इसलिए उन्होंने परिवार के सभी लोगों से कह दिया कि ‘यदि आप सभी हेमलता को गुरु भगवंत के पास नहीं भेजेंगे तो मैं उपवास का पारणा नहीं करुँगी.’
निर्मला बहन के सुश्रावक यानी बादरमलजी ने भी इस बात में उनका पूरा Support किया. इसका Result यह था कि हेमलता बहन को प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय विक्रमसूरिश्वरजी म.सा. एवं प.पू. साध्वीजी श्री रत्नचूलाश्रीजी म.सा. के साथ चेन्नई के केसरवाड़ी तीर्थ से अहमदाबाद तक गुरु भगवंतों के साथ विहार में भेजा गया.
6 महीने के इस विहार यात्रा के दौरान हेमलता बहन ने पंचिंदिय सूत्र से लेकर पहले कर्मग्रन्थ का अध्ययन किया. उसके बाद वे 3 से 4 साल तक दीक्षा की Training लेने के लिए गुरुकुलवास में रहे जिसके दौरान उन्होंने कुल 5 हजार KM का विहार और 5 हजार गाथा कंठस्थ की. आज भी उन्हें अगर कोई भी गाथा कहीं से भी कुछ भी पूछी जाए तो वे सूत्र के नाम और अर्थ के साथ सम्पूर्ण श्लोक बोल सकते हैं.
दीक्षा की Training पूरी होने के बाद, अपने माता-पिता के आशीर्वाद और सहयोग के साथ हेमलता बहन संयम के मार्ग पर आगे बढे और आज से 38 साल पहले, तारीख 13 June 1986 के दिन उन्होंने प.पू. साध्वीजी श्री रत्नचूलाश्रीजी म.सा. के चरणों में अपना जीवन समर्पण किया और वे बने प.पू. साध्वीजी श्री मंदारयशाश्रीजी म.सा.
वीरेन्द्र भाई की दीक्षा
सुश्रावक बादरमलजी और निर्मला बहन, दोनों ही संयम प्रेमी माता-पिता ने हमेशा अपनी संतानों को मनुष्य जीवन की सार्थकता का मार्ग समझाया और दिखाया भी जिससे प्रेरित होकर उनके सुपुत्र वीरेंद्र भाई ने 17 वर्ष की उम्र में संयम जीवन ग्रहण किया.
वर्त्तमान में वे प.पू. गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय राजयशसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न, कार्य कुशल, युवा प्रतिबोधक प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय वीतरागयशसूरिश्वरजी म.सा. के रूप में विराजमान होकर जिनशासन की अद्भुत प्रभावना कर रहे हैं. पूज्यश्री जब मुमुक्षु अवस्था में थे तब 2 साल तक वे साधु जैसा जीवन ही जीते थे जैसे कामली के काल में कहीं भी बाहर जाते तो कामली ओढ़कर ही जाते थे, स्थंडिल भूमि के लिए बाहर जाते थे, जमीन पर संथारा करके सोते थे इत्यादि.
पूज्यश्री के दीक्षा के निमित्त से निर्मला बहन ने आजीवन चप्पल त्याग का और आजीवन बियाशना से नीचे कोई पच्चक्खान नहीं करने का नियम लिया था और वे पिछले 31 साल से इस नियम का कुशलतापूर्वक पालन कर रही हैं. इस तरह अपने 01 पुत्र और 01 पुत्री को जिनशासन को समार्पित करने के बाद और अन्य दो संतानों को गृहस्थ जीवन में श्रावक श्राविका के कर्तव्यों का शिक्षण दिया.
निर्मला बहन का पुरुषार्थ
निर्मला बहन को पिछले 25 सालों से दीक्षा लेने की तीव्र इच्छा थी लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिल रही थी. उनके सुश्रावक बादरमलजी संयम प्रेमी आत्मा थे लेकिन किसी दिव्या संकेत के मिलने से वे निर्मला बहन को दीक्षा की अनुमति नहीं दे रहे थे.
निर्मला बहन को दीक्षा लेने की तीव्र इच्छा होने पर भी उन्होंने अपना कर्त्तव्य रुपी धर्म का हमेशा पालन किया और अपनी इच्छा को कभी प्रधानता नहीं दी. निर्मला बहन अपने चारित्र मोहनिय कर्मों को तोड़ने के लिए सामायिक-पौशाध की आराधना करने में आगे बढ़ने लगे.
आइए जानते हैं श्राविका के तौर पर निर्मला बहन के साधना जीवन की कुछ Details.
A. संयम प्राप्ति के यानी दीक्षा मिले इस संकल्प से निर्मला बहन ने खाने में 20 ही Items खाने का नियम लिया और फिर आगे बढ़ते हुए सिर्फ 17 Items का सेवन करने का नियम लिया लेकिन आगे बढ़ते बढ़ते उनका संकल्प पूर्ण नहीं होने से उन्होंने सिर्फ 07 ही Items का सेवन करने का नियम लिया और इस नियम का पालन वे पिछले 8 सालों से कर रहे हैं.
B. इसके आलावा निर्मला बहन पिछले 30 साल से किसी भी सांसारिक प्रसंग में आते जाते नहीं हैं.
C. निर्मला बहन ने सिर्फ अपनी संतानों के जीवन को ही धर्म के संस्कारों से सुवासित नहीं बनाया. उन्होंने अपनी बहु वीणा बहन को भी धर्म के संस्कारों में इस तरह ढाल दिया कि वीणा बहन ने भी अपनी सुपुत्री प्रियंका बहन को शासन को समर्पित किया और आज वे प.पू. साध्वीजी श्री प्रेमलयशाश्रीजी म.सा. के रत्न कुक्षी माता बने.
D. निर्मला बहन ने संयम जीवन को पाने के लिए खूब पुरुषार्थ किया है, बहुत मेहनत की है निर्मला बहन हर साल गुरु भगवंतों की निश्रा में पर्युषण पर्व की आराधना करते थे और विहार के दौरान गुरु भगवंतों की अद्भुत भक्ति और वैयावच्च का भी सम्पूर्ण लाभ निर्मला बहन लेते थे.
कर्मराजा द्वारा परीक्षा
10 महीने पहले ही निर्मला बहन के सुश्रावक बादरमलजी का देहांत हुआ जिसके बाद निर्मला बहन ने यह निश्चय कर लिया कि वे सांसारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए हैं और अब उन्हें किसी भी हाल में संयम जीवन ग्रहण करना ही है और इसी दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने पिछले साल गुरु भगवंतों की निश्रा में भरूच तीर्थ में चातुर्मास की आराधना की.
चातुर्मास के बाद निर्मला बहन साध्वीजी भगवंत के साथ विहार कर वणछरा तीर्थ आए. वहां पर मौन ग्यारस के दिन निर्मला बहन ने उपवास किया और अगले दिन ‘प्रभु पूजा किए बिना कुछ खाना नहीं’ इस नियम का पालन करते हुए निर्मला बहन मंदिर में प्रभु पूजा करने गए और पूजा करते करते चक्कर आने से गिर गए.
वहां पर उपस्थित सभी लोग डर गए और उन्हें लगा कि इतनी उम्रवाले हैं तो उन्हें कहीं कुछ हो तो नहीं गया. मंदिर में तुरंत साध्वीजी भगवंत को बुलाया गया और उन्होंने निर्मला बहन को नवकार आदि सुनाया. निर्मला बहन थोड़े हिले और उन्होंने सभी से कह दिया कि ‘मुझे कुछ नहीं हुआ है. आप लोग चिंता मत कीजिए. मैं ठीक हूँ, ये तो भगवान मेरी परीक्षा ले रहे हैं.’
फिर से 2 दिन बाद उपश्रय में गुरु भगवंत को वंदन करते समय चक्कर आने से निर्मला बहन गिर गए. Primary Treatment करवाने के बाद उन्हें तुरंत Vadodara ले जाकर वहां के Hospital में Admit करवाया गया. उस समय Doctors ने बताया कि ‘एकदम Right Time पर निर्मला बहन को Hospital लाया गया था क्योंकि उनकी Heartbeat में बहुत ज्यादा Fluctuation थी जिसके कारण अगर उन्हें सही Time पर Treatment नहीं मिलता तो शायद कुछ भी हो सकता था.’
जब यह निर्मला बहन के परिवारवालों को पता चली तो सभी ने उन्हें संयम जीवन अंगीकार करने की इच्छा छोड़ देने के लिए कहा लेकिन निर्मला बहन मेरु पर्वत के सामान एकदम अडिग रहे. निर्मला बहन ने कह दिया कि ‘चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन मैं साधु वेश में ही इस संसार से विदाई लूंगी.’
उनकी इस अटल और तीव्र भावना के आगे आखिरकार सभी को झुकना पड़ा निर्मला बहन के दिल में रही संयम जीवन की उत्कृष्ट भावना के प्रत्यक्ष प्रभाव से इतनी Critical Condition होने के बाद भी वे Treatment की Help से धीरे धीरे स्वस्थ हो गए.
Retirement की उम्र में New Innings
इतना ही नहीं, कर्मराजा ने भी निर्मला बहन की कठिन परीक्षा में उनके Flying Numbers के आगे घुटने टेक दिए और उनके बरसों का संकल्प, उनके मन में रही दीक्षा ग्रहण करने की प्रबल इच्छा देव-गुरु-धर्म की कृपा से पूर्ण होने जा रही है.
तारीख 16 June 2024, तिथि ज्येष्ठ सुदि 10, रविवार के दिन गुजरात की धर्मनगरी अहमदाबाद में स्थित मणि भवन में प.पू. तप्पागच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री मनोहरकीर्तिसागर सूरिश्वरजी म.सा. एवं कल्याणक भूमि सह अनेक तिर्थोद्धारक, श्री लब्धि-विक्रम गुरुकृपा प्राप्त प.पू. गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय राजयशसूरिश्वरजी म.सा. के कर कमलों से 77 वर्ष की उम्र में निर्मला बहन को विरती वैभव का उपहार यानी रजोहरण की प्राप्ति होगी.
Retirement की उम्र में निर्मला बहन अपने जीवन की एक नई Innings की शुरुवात करने का रहे हैं ! निर्मला बहन उनका शेष जीवन शासन प्रभाविका, प्रवर्तिनी प.पू. साध्वीजी भगवंत श्री वाचंयमाश्रीजी म.सा. की निश्रा में संयम जीवन की आराधना-साधना-उपासना में व्यतीत करेंगे.
निर्मला बहन का संयम जीवन निष्कंटक बने और वे मोक्ष लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहें यही परमात्मा से प्रार्थना है.
Mumukshu ki jai ho
Diksharthi No Jay Jaykar 🙏🏻🙏🏻
Diksharthi Amar Raho ✨🙏🏻