वड़ोदरा जिल्ले के एक गाँव की रोंगटे खड़े कर देनेवाली घटना.
इस गाँव में एक श्राविका नियमित तौर पर पौषध लेती थी. पौषध को सरल भाषा में समझ लेते हैं फिर घटना देखेंगे.
पौषध शब्द पोषण शब्द में आनेवाले ‘पुष् Verb से बना है, जिसका अर्थ पुष्ट करना, मज़बूत करना होता है. जो आत्मा को, उसके गुणों को मज़बूत करें-Strong करे, उसे पौषध कहते हैं. पौषध के Totally 4 प्रकार है :
1. आहार पौषध
या तो एक बार भोजन लेना जिसे देश-आहार (Part) पौषध कहते हैं या तो उपवास करना यानी सर्व आहार पौषध यानी Completely खाना बंद.
2. शरीर सत्कार पौषध यानी शरीर को Make-up लगाना, स्नान करवाना आदि का त्याग.
3. अव्यापार पौषध यानी Business करने का या घर के कार्य करने का त्याग
4. ब्रह्मचर्य पौषध यानी Complete ब्रह्मचर्य पालन करना.
Opposite Gender को राग से देखना भी नहीं और Touch भी नहीं करना.
अब ये पौषध 2 Types के होते हैं :
A. Day & Night-जिसे अहोरात्र कहते हैं.
B. Only Day जिसे दिवसं और Only Night जिसे शेष रत्तं कहते हैं.
पौषध में आधे दिन या आधी रात या पूरे दिन-रात के लिए श्रावक साधु जैसे बन जाते हैं. सामाइयवयजुत्तो सूत्र में ‘समणो इव सावओ’ इसी का निर्देश करते हैं.
तो यह श्राविका ने एक बार पूरे दिन और रात दोनों का पौषध लिया था. इस हिसाब से अगले दिन वे पौषध पारने वाले थे. पारना यानी कि पूर्ण करना, End करना. अचानक कुछ लोग उपाश्रय आए और यह श्राविका बहन को तुरंत पौषध पारने को कहने लगे.
यह पौषधव्रती श्राविका ने पूछा कि ‘आखिर ऐसा क्या हो गया है कि आप मुझे पौषध पारने को कह रहे हो? मैंने पूरे दिन का पौषध लिया है, अब कल सुबह में ही पौषध पार पाउंगी ना, तो इस तरह आप मुझे रात को 8 बजे पौषध पारने के लिए आग्रह क्यों कर रहे हो, मुझे समझ नहीं आ रहा है, आखिर कारण क्या है?’
लोगों ने कहा कि कोई ख़ास कारण होगा तभी तो कह रहे हैं, आपको सब कुछ शान्ति से बताएंगे, लेकिन फिलहाल आप पौषध पार लीजिए और चलिए. आए हुए स्वजनों ने गोल-गोल बातें की, समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह सुश्राविका टस से मस होने के लिए तैयार नहीं हुए.
यह श्राविका ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि ‘देखो, मैं किसी भी हाल में इस तरह से व्रतभंग नहीं करुँगी.’
सच कड़वा होता है, ऐसा कहा जाता है. अंत में जब स्वजनों को लगा कि अब यह बहन माननेवाले नहीं है तो हिम्मत करके कड़वा सच बता दिया कि
बहन, आपके बेटे का आज 5 बजे भयानक Accident हो गया है और उसकी मौत हो गई है, पार्थिव शरीर गाँव में आ चुका है, आप आकर एक बार अपने बेटे को देख लीजिए क्योंकि कल सुबह होते ही उसका अग्नि संस्कार कर दिया जाएगा. पार्थिव शरीर को ज्यादा समय तक रखना उचित नहीं और आप सुबह में पौषध पारकर आएंगे तब तक बहुत देर हो जाएगी.
यह दुखद खबर उस श्राविका बहन के सर पर बिजली की तरह गिरी, पीड़ादायक समाचार सुनकर कुछ क्षण के लिए तो वह स्तब्ध रह गई. यह बेटे की शादी दो वर्ष पहले ही हुई थी, कुछ ही समय पहले पुत्रवधू की गोद भराई हुई थी, अर्थात् पुत्रवधू Pregnant थी.
कोई भी माँ इस तरह के आघात को सहन नहीं कर पाएगी वह स्वाभाविक है लेकिन यह सामान्य माँ नहीं थी, जिनशासन की माँ थी, प्रभु महावीर के शासन की श्राविका थी.
उसके रग-रग में प्रभु के वचन बहते थे ‘संसार असार है, जो बना है वह टूटनेवाला ही है’,
तुरंत जिनवचन का सहारा लेकर कुछ ही क्षणों में घटना को पचा लिया. यह श्राविका ने दबी आवाज़ में कह दिया कि ‘व्रतभंग तो मैं नहीं करुँगी, जो होना था वह हो चुका है, जिसे जाना था वह चले गया है, क्या अब कुछ भी करना किसी के भी हाथ में है?’
स्वजनों ने कहा कि बहन आप बाद में प्रायश्चित ले लेना, दो पौषध बाद में Extra कर देना, बेटे का चेहरा अंतिम बार देख लो. स्वजनों ने बहुत कोशिश की लेकिन श्राविका ने शांति से और दृढ़ता से खुद का अटल निर्णय बता दिया. स्वजनों को लौटना पड़ा.
आखिरकार सुबह में प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, देववंदन आदि क्रिया करने के बाद यह सुश्राविका घर पर गई और अपने पुत्र के अग्नि संस्कार के बाद की बाकी की क्रियाएं पूर्ण की.
एक श्राविका Sorry सुश्राविका, पौषधव्रत की रक्षा के लिए कितनी दृढ़ हो सकती है, है ना आश्चर और दूसरी तरफ हम जो रात में यह सोचकर सोते हैं कि कल सुबह में पूजा करने जाऊँगा और सुबह होते ही…..