Shri Adeshwarji Jain Tirth, Rajpura’s Magnificent History

राजस्थान का एक ऐसा रहस्यमयी जैन तीर्थ जहाँ परमात्मा के संकेत द्वारा लिए जाते हैं निर्णय.

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एक ऐसा तीर्थ जहाँ मंदिर के सभी Decisions परमात्मा स्वयं लेते हैं! 

जी हाँ! बिलकुल सही सुना आपने. आज हम जिस प्राचीन जैन तीर्थ के बारे में जाननेवाले हैं, वहां मंदिर के निर्माण से जुड़े लगभग सभी Decisions Literally परमात्मा खुद ही करते हैं. लेकिन वह कैसे? 

तो आइए जानते हैं श्री आदिश्वरजी तीर्थ का Magnificent इतिहास. बने रहिए इस Video के अंत तक. 

Tirth’s History 

श्री आदिश्वरजी तीर्थ राजस्थान के उदयपुर से 70 KM दूर राजपुरा नामक एक छोटे से गाँव में मौजूद है. यहाँ के मुलनायक परमात्मा, प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा लगभग 2500-2600 साल से भी अधिक प्राचीन है यानी कि Imagine कीजिए, 24वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी भगवान के Time से भी पहले के प्रभुजी यहाँ पर विराजमान हैं. 

श्री आदिश्वरजी तीर्थ का इतिहास प्राचीन समय में खो गया है. इस तीर्थ के इतिहास से जुडा प्राचीन काल का कोई शिल्पवास्तु यहाँ पर नहीं मिलता है और ना ही मुलनायक श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमाजी के नीचे की पाटली है. 

पाटली, Basically, प्रतिमाजी का Base होता है जिस पर लिखा होता है कि प्रतिमा कब और किन आचार्य भगवंत द्वारा प्रतिष्ठा की गई थी. 

पाटली के Absence से हम Assume कर सकते हैं कि जिस प्राचीन समय में प्रभु की प्रतिमाजी प्रतिष्ठित की गई थी, तब पाटली रखने का System ही नहीं था और अगर ऐसा है, तो ये प्रतिमाजी संप्रतिकाल से भी पहले यानी लगभग 300 BC से भी प्राचीन है. 

यह प्रतिमाजी हैदराबाद के पास स्थित श्री कुलपाकजी तीर्थ के मुलनायक परमात्मा श्री आदिनाथ भगवान के जैसी ही अद्भुत है और ऐसा कहा जाता है कि Currently, India में ऐसी सिर्फ 10 प्रतिमाएँ ही देखने को मिलती हैं.

लोक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में राजपुरा-राजग‍‌ढ़ के नाम से Famous था. इस नगर में विराजित एक भव्य महात्मा ने देवों द्वारा यह प्रतिमाजी को मंदिर के साथ देव विमान में गुजरात की तरफ ले जाता देखकर अपने योग ध्यान-साधना के प्रभाव से प्रभु को विनती की और देव विमान से प्रतिमाजी को नीचे उतारा था. 

श्री आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी, अहमदाबाद के अनुसार इस तीर्थ की Last प्रतिष्ठा वि.सं. 811 में हुई थी.

मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने उसके Ruling Period में इस तीर्थ की भव्यता और संपन्नता को भारी नुकसान पहुँचाया था और तब उस समय में महात्माओं ने अपनी Spiritual Powers से प्रतिमाजी की रक्षा की थी. 

Miracles In Tirth

श्री आदिश्वरजी तीर्थ के प्राचीनता के कारण आज भी यहाँ दर्शन करनेवाले हर भक्त को तीर्थ के Powerful Vibrations और परमात्मा की Amazing Aura का अनुभव होता है. 

यहाँ के मुलनायक श्री आदिनाथ भगवान का प्रभाव इतना जोरदार है कि यहाँ पर कोई भी व्यक्ति अगर शराब-Non Veg आदि लेकर आता है तो वे कभी प्रभु की सेवा में या मंदिर निर्माण में कारीगरी का काम नहीं कर पाता है और ऐसा करनेवाले को Punishment भी उसी दिन शाम तक मिल जाता है. 

You Might Be Thinking कि हम ऐसे ही हवा में बोल रहे हैं, But No. ऐसे 10-12 Incidents इस तीर्थ में Already हो चुके हैं. Recently, तीर्थ के जीर्णोद्धार के दौरान भी ऐसे Incidents यहाँ पर हुए हैं. आइए कुछ घटनाएं जानते हैं. 

एक बार एक भाई तीर्थ में प्रभुजी की सेवा-पूजा आदि करने के बाद भंडार में पैसे डालकर चले गए लेकिन गलती से वे उनकी चाबी मंदिर में ही भूल गए थे जिसे लेने के लिए जब वे वापस मंदिर में आए तब उन्होंने देखा कि एक कारीगर भंडार में से पैसे निकालने की कोशिश कर रहा था. 

उन भाई ने यह बात ट्रस्टीगण को बताई और अगले ही दिन जब उस कारीगर को इस बारे में बात करने के लिए बुलाया गया तब पता चला कि वह पिछली रात से बुखार में तप रहा था. उस कारीगर ने माफ़ी मांगी और अपने गाँव चला गया. 

एक बार एक अन्य मत के संत यहाँ पर प्रतिमाजी को कोई अनुचित इरादे से Check करने के लिए आए. परमात्मा के Main गर्भगृह यानी गंभारे में Enter होने से पहले ही गंभारे के Gate पर ही बिना किसी Wire या Electric Connection के ही उन्हें जोरदार Current लगा, झटका लगा और वे Immediately बाहर आ गए. 

इस संत ने ही बाद में गाँव के सभी लोगों को बताया कि यह प्रभु की प्रतिमाजी बहुत चमत्कारी है. 

मुलनायक आदिनाथ भगवान के आजू बाजू श्री पार्श्वनाथ भगवान की काउसग्ग मुद्रा में 2 प्राचीन प्रतिमाजी हैं. यह प्रतिमाजी भी अत्यंत चमत्कारी हैं. अगर इन प्रतिमाजी के आस पास कुछ भी Changes करने का Try करते हैं तो साँप निकलने लगते हैं या फिर कारीगर की Machine ही बंद हो जाती है. 

इस तीर्थ की एक और बहुत ही विशेष बात यह है कि यहाँ पर मंदिरजी के निर्माण यानी Construction Related सभी Decisions परमात्मा खुद करते हैं. 

परमात्मा से ही Questions पूछे जाते हैं और परमात्मा जो भी संकेत देते हैं वो ही Final Decision होता है. आपको शायद लग रहा होगा कि ऐसा कैसे हो सकता है? लेकिन सच यह है कि यहाँ पर ऐसा होता है.

2025 Pratishtha Mahotsav

At Present, इस तीर्थ के जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है. 

यह मंदिर शिला-वास्तु और Engineering-हर Angle से बेजोड़ और Top Notch है. आबू देलवाडा के मंदिरों की याद दिला दे, वैसी कोरनी एवं नक्काशी का काम श्री आदिश्वरजी तीर्थ के भव्य मंदिर में किया गया है. 

ऐसे भव्य मंदिर में विराजित प्रभु आदिनाथ के दर्शन करके यात्रिकों को ऐसा अनुभव होगा कि वे किसी भव्य राजमहल में विराजमान राजाधिराज के दर्शन कर रहे हैं. मकराणा Marble नामका पत्थर जिसे Usually बहुत महंगे होने के कारण प्रतिमाजी में भी हर जगह Use नहीं किया जाता है, वह पत्थर इस पूरे मंदिर के निर्माण में Use किया गया है. 

Use किए गए हर पत्थर का Lab Test भी किया गया है. यह मंदिर के निर्माता उदयपुर निवासी शा ललितजी बसंताबेन जारोली के सुपुत्र सुश्रावक श्री कमलेशजी जारोली है. राजपुरा गाँव इनका वतन है. 

कमलेश भाई के श्री आदिश्वरजी तीर्थ के प्रति अत्यंत भक्ति भाव हैं. इन्होने अपनी संपत्ति को सद्व्यय करके इस तीर्थ के निर्माण में समर्पित किया है. कमलेश भाई ने पिछले 18 साल में लगभग 790 से भी ज्यादा Sunday के दिन उदयपुर से 70 KM दूर रहे श्री आदिश्वरजी तीर्थ में आकर तीर्थ की देखभाल की है. 

इतना ही नहीं, मंदिर के निर्माण कार्य के लिए भी पत्थर आदि लाने के लिए 200 बार लगभग 800 KM तक का Travel कमलेश भाई ने किया है यानी लगभग 3 लाख KM तक का Record Breaking Travel कमलेश भाई ने तीर्थ निर्माण के कार्य के लिए किया, इससे तीर्थ के प्रति क्या भाव होंगे उनके, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है. 

धन संपत्ति तो फिर भी एक बार कोई दे देता है लेकिन समय देना, Time देना वह ही बहुत Rare बात है.

तिथि माघ सुदि 10, तारीख 07 February 2025 के दिन श्री आदिश्वरजी तीर्थ की भव्य प्रतिष्ठा पूज्य भुवनभानुसूरीजी समुदाय के मेवाड़ देशोद्धारक प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय जीतेंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब, जिनकी Life Story हमने कुछ समय पहले ही देखी थी, उनके शिष्यरत्न प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय पद्मभूषणरत्नसूरीश्वरजी महाराज साहेब एवं प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय निपुणरत्नसूरीश्वरजी महाराज साहेब की पावन निश्रा में होगी. 

जानकरी के लिए बता दें कि जिनालय का जीर्णोद्धार किया जा रहा है लेकिन मुलनायक श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमाजी को हटाए बिना, इसलिए मुलनायक परमात्मा की प्रतिष्ठा नहीं है. 

पास में ही 2 अन्य परमात्मा की प्रतिमाजी एवं मुलनायक परमात्मा के Just सामने गर्भगृह के बाहर समवसरण में चौमुख प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा की जाएगी. 

Nearby Tirth Location

श्री आदिश्वरजी तीर्थ, राजपुरा से 70 KM की दूरी पर उदयपुर है और उदयपुर में प्रायः पूरे भारत में आनेवाली चौविसी के प्रथम तीर्थंकर श्री पद्मनाभस्वामी भगवान की एक मात्र मुलनायक रूप में प्रतिष्ठित जिनालय है. 

उदयपुर में ही प्राचीन 108 पार्श्वनाथ में से श्री चंदा पार्श्वनाथ भगवान और श्री समीना पार्श्वनाथ भगवान का जिनालय भी है और लगभग 30 से अधिक प्राचीन जिनालय और 40 नए जिनालय उदयपुर शहर में स्थित है और इन सभी के दर्शन, पूजा, भक्ति का लाभ भी श्री आदिश्वरजी तीर्थ यात्रा के दौरान लिया जा सकता है. 

चित्तोड़गढ़ किले पर जो प्राचीन जैन मंदिर है वह राजपुरा से 80 KM की दूरी पर है और मेवाड़ के शंखेश्वर समान, प्राचीन 108 पार्श्वनाथ में से एक अति प्राचीन श्री करेडा पार्श्वनाथ भगवान का तीर्थ यहाँ से 56 KM की दूरी पर स्थित है. 

मंत्री दयाल शाह द्वारा निर्मित दयाल शाह किल्ला, राजसमंद जिसे राजस्थान का शत्रुंजय भी कहा जाता है, वह श्री आदिश्वरजी तीर्थ, राजपुरा से 100 KM की दूरी पर स्थित है. 

इस तरह से इन अति प्राचीन तीर्थों की यात्रा का लाभ भी श्री आदिश्वरजी तीर्थ, राजपुरा यात्रा के साथ लिया जा सकता है. 

श्री आदिश्वरजी जैन तीर्थ, राजपुरा की Location की Link नीचे दी गई है ताकि कोई भी Confusion ना हो.
इस भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव में जाने जैसा है, ऐसा हमें लगता है.

Location Link : https://maps.app.goo.gl/ejcGNAWsNJb3GWtKA 

तीर्थ से जुडी अन्य जानकारी के लिए इस Contact Information पर संपर्क कर सकते हैं. 
Contact : +91 94146 83273

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