Shri Abu (Dilwara) Jain Temple : The Hidden Facts Revealed | Jain Tirth

आबू देलवाड़ा जैन महातीर्थ के पवित्र मंदिरों का अनकहा इतिहास

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श्री आबू (देलवाडा) महातीर्थ अद्भुत रहस्य.

अगर हमसे पूछा जाए कि जिनशासन के 5 महातीर्थों के नाम बताओं तो हम क्या कहेंगे?

अष्टापद, शत्रुंजय, गिरनार, शिखरजी.. पांचवा है आबूजी.

Note : महातीर्थ यानी ऐसे Powerful तीर्थ स्थान जहाँ पर छोटी सी साधना-आराधना करने का फल भी कई गुणा प्राप्त होता है. 

श्री आबू देलवाडा को श्री अबुर्दगिरी भी कहा जाता है. आबू भले सामान्य लोगों के लिए Tourist Spot हो लेकिन हमारे लिए वह महातीर्थ है. आज हम इस महा तीर्थ अबुर्दगिरी (आबूजी) के अद्भुत रहस्य जानेंगे. 

बने रहिए इस Article के अंत तक. 

तारीख 21st और 22nd March 2025 के दिन सेठ श्री कल्याणजी परमानंदजी पेढ़ी, सिरोही द्वारा आयोजित एवं भक्तियोगाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत श्री यशोविजयसूरीश्वरजी महाराज साहेब की निश्रा में 5 महातीर्थों में से एक श्री अबुर्दगिरी (आबूजी) स्पर्श यात्रा का आयोजन होने जा रहा है. 

सैंकड़ों के संख्या में लोग 22nd March 2025 के दिन विशेष इस तीर्थ की यात्रा करनेवाले हैं. बहुत सुंदर व्यवस्था भी की गयी है. अबुर्दगिरी स्पर्श यात्रा में जुड़ने के लिए इस QR Code को Scan करके अथवा नीचे दी गई Website Link पर जाकर अपना Registration करवा सकते हैं. पूरी Details आपको Website पर मिल जाएगी.

Website : https://arbudgirisparshyatra.com

शत्रुंजय, गिरनार, शिखरजी… ये नाम सुनते ही हमारी रगों में एक भक्ति की लहर दौड़ उठती है, लेकिन क्या यही लहर आबू के नाम से भी उठती है? शायद नहीं. 

जिन विशेष तीर्थों की Category में शत्रुंजय, गिरनार, शिखरजी तीर्थ आते हैं, उसी Category में राजस्थान के Mount Abu की पहाड़ियों में बसा यह सुंदर एवं भव्य आबू देलवाडा महातीर्थ भी आता है जो कि अब सिर्फ एक Tourism Spot बनकर रह गया है. 

प्राचीन समय में इस महातीर्थ की Spiritual Significance शत्रुंजय या गिरनार जितनी ही थी. इस महा तीर्थ के रहस्य जानकर शायद इस तीर्थ के प्रति हमारा Mindset बदल जाएगा.

आइए जानते हैं श्री आबूजी महातीर्थ से जुड़े कुछ अद्भुत रहस्य. 

प्राचीनता 

जैन धर्म के इतिहास में यह उल्लेख मिलता है कि आबू पर्वत पर 10 करोड मुनिओं ने साधना, तप-जप आदि किया था, 10 करोड संख्या को संस्कृत में ‘अबुर्द’ कहते है और इस कारण से यह तीर्थ अर्बुदगिरी के नाम से भी प्रसिद्ध है. 

कुछ शास्त्रकार भगवंतों का यह मानना है कि श्री आबूजी तीर्थ की पावन भूमि पर की गई साधना-आराधना-पूजा आदि का 10 करोड गुणा फल मिलता है और इस कारण से भी इस तीर्थ को अर्बुदाचल के नाम से जाना जाता है. 

आबू पर्वत पर देलवाडा, अचलगढ़, ओरिया में महावीर स्वामी का जिनालय ऐसे कई प्राचीन जिनालय अभी भी विद्यमान है और आबू की शान वर्तमान में देलवाडा है.

इस तीर्थ की प्राचीनता को बताते हुए एक उल्लेख यह मिलता है कि प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान की देशना सुनकर उनके पुत्र यानी भरत चक्रवर्ती ने आबू पर्वत पर 4 दरवाजे वाले सोने के चैत्य का निर्माण करवाया था, जिसमें श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमाजी को बिराजमान किया गया था. 

ऐसा कहा जाता है कि श्री आबूजी महातीर्थ 24वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी भगवान की विचरण भूमि भी है. प्रभु महावीर की साधना के Vibrations को आज भी यहाँ Feel किया जा सकता है. 

इस क्षेत्र में प्रभु महावीर के विचरण का उल्लेख कई शास्त्रों और शिलालेखों में मिलता है, आबूजी के आस-पास के क्षेत्रों में भी कई प्राचीन जिनालय एवं तीर्थों में प्रभु महावीर की प्रतिमाजी का होना इस बात को और Clear करता है. 

विक्रम की पहली शताब्दी में हुए पूज्य आचार्य श्री पादलिप्तसूरीश्वरजी महाराज साहेब आकाशगामिनी विद्या के बल से जिन 5 तीर्थों की यात्रा करते थे उनमें शत्रुंजय, गिरनार आदि के साथ श्री आबूजी महातीर्थ भी शामिल है, Imagine The Spiritual Power This Mahatirth Holds. 

साथ ही जैनधर्म के महान आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामीजी द्वारा रचित श्री बृहत्तकल्पसूत्र में भी श्री आबूजी महातीर्थ का उल्लेख मिलता है. 

5 जिनालय 

श्री आबू देलवाडा महातीर्थ में 5 भव्य जिनालय हैं. इन जिनालयों की यात्रा से शत्रुंजय, गिरनार, अष्टापद, सम्मेद शिखर और पावापूरी-इन पंच तीर्थों के दर्शन का लाभ यहाँ एक साथ मिल जाता है. 

1. प्रथम श्री विमलवसही जिनालय, जहाँ श्री आदिनाथ भगवान मूलनायक के रूप में विराजमान हैं. 

2. श्री लूणवसही जिनालय जहाँ श्री नेमिनाथ भगवान मूलनायक हैं. 

3. श्री पित्तलहार जिनालय में श्री आदिनाथ भगवान मूलनायक हैं.  

4. श्री खरतरवसही जिनालय, जहाँ श्री पार्श्वनाथ भगवान मूलनायक हैं. 

5. श्री महावीरस्वामी जिनालय जहाँ प्रभु महावीर मूलनायक स्वरुप विराजमान हैं. 

श्री आबू देलवाडा के विमलवसही जिनालय में अंदर एक श्यामवर्णी आदिनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है. यह चमत्कारिक प्रतिमा विमलशाह मंत्री को भूगर्भ से मिली थी. यह प्रतिमाजी अति प्राचीन मानी जाती है. 

यहाँ पर परमात्मा के सामने प्रभु को देखने से ऐसा अनुभव होता है कि जैसे साक्षात प्रभु ही हमारे सामने विराजमान हों. 

विमलवसही जिनालय का इतिहास 

आबू देलवाडा के 5 जिनालयों में से सबसे विशिष्ट और प्राचीन जिनालय है-विमलवसही जिनालय. विमलवसही जिनालय का निर्माण मंत्रिश्वर श्री विमलशाह ने करवाया था और इस जिनालय की प्रतिष्ठा आज से लगभग 992 वर्ष पहले हुई थी. 

प्रभु महावीर के शासन के प्राचीन जिनालयों में विमलवसही जिनालय का नाम विशेष जिनालयों की Category में आता है. 

विमलमंत्री और उनकी पत्नी चंद्रवतीजी, उनके पूर्व भव में ज्यादातर समय अचलगढ क्षेत्र में ही रहते थे. एक बार वहां पर पूज्य आचार्य श्री धर्मघोषसूरीश्वरजी म.सा. पधारे. विमलमंत्री ने पूज्यश्री को वहां चातुर्मास करने के लिए विनंती की और पूज्यश्री ने वहां चातुर्मास किया. 

पूज्य आचार्यश्री के उपदेशों का विमलमंत्री पर बहुत प्रभाव पडा. 

एक बार विमलमंत्री ने आचार्यश्री से कहा कि ‘गुरुदेव! राजमहल में और युद्ध भूमि में मुझे बहुत पाप करना पड़ा है, बहुत जीवों की हिंसा भी करनी पड़ी है. इन सभी के कारण मैंने असंख्य पाप कर्मों का बंध किया है. आप कृपा करके मेरे इन सभी पापों का नाश हो ऐसा मुझे प्रायश्चित दीजिए.’ 

तब आचार्यश्री ने विमलमंत्री को समझाया कि

जानबूझकर-चाहकर किए हुए पापों का प्रायश्चित नहीं होता है लेकिन फिर भी अगर आप सच्चे दिल से पश्चाताप करते हुए प्रायश्चित मांग रहे हो तो मैं आपको यह प्रायश्चित देता हूँ कि आप ‘श्री आबूजी तीर्थ का उद्धार करवाओ.

विमलमंत्री ने तुरंत ही आचार्यश्री की आज्ञा को स्वीकार किया. 

विमलवसही जिनालय की जमीन को खरीदने के लिए विमलमंत्री ने पहले तो जितनी जमीन चाहिए थी, उतनी जमीन पर सोने के सिक्के बिछाकर जमीन खरीदी थी लेकिन बाद में सोने के सिक्कों के बीच जो जगह रह गई थी, जो Gap रह गया था उसे भी न्यायपूर्वक खरीदने के लिए विमलमंत्री ने फिर से पूरी जमीन पर सोने की Square Shape की स्वर्ण मुद्राएँ बिछाई ताकि बीच में Gap ना रहे और फिर उतना मूल्य चुकाकर जिनालय के लिए जमीन खरीदी. 

This is not Just a Story,
This is our History. 

विमलशाह मंत्री को संगमरमर में जो कि एक Type का कीमती पत्थर है, उसमें कलाकृती यानी नक्काशी करवाने की प्रेरणा प्राचीन सातवीं सदी संगमरमर के पत्थर में भव्य नक्काशी से बने 108 पार्श्वनाथ भगवान के जिनालयों में से एक श्री मीरपुर तीर्थ के जिनालय को देखकर मिली थी. 

ऐसा कहा जाता है कि राणकपुर तीर्थ के निर्माता श्रेष्ठी धरणाशाह को राणकपूर के जिनालय में विशिष्ट कारीगरी एवं कलाकृती का निर्माण करवाने की प्रेरणा आबू देलवाडा के जिनालयों की कारीगरी को देखकर ही मिली थी.

 All Are Interconnected ऐसा कह सकते हैं.

महातीर्थ की महत्ता 

जैसे पोष वदि दशमी यानी श्री पार्श्वनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक के समय श्री शंखेश्वर तीर्थ में अट्ठम यानी तेला करने का महत्त्व है उसी तरह आबू महातीर्थ में श्री आदिनाथ भगवान के जन्म कल्याणक के दिन छट्ठ यानी बेला करने का महत्त्व है. 

जिस तरह से वर्षीतप का पारणा हस्तिनापुर या शत्रुंजय में किया जाता है, उसी तरह शास्त्रों में श्री अर्बुद कल्प-वस्तुपाल चरित्र-अष्टम प्रस्ताव के अनुसार श्री आदिनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक यानी चैत्र वदि 08 के दिन छट्ठ यानी 2 उपवास साथ में करके वर्षीतप की शुरुवात एवं आदिनाथ प्रभु का जन्माभिषेक आबू महातीर्थ पर ही करना चाहिए. 

73 Years के दीर्घ दीक्षा पर्यायवाले श्रुत स्थविर मुनि सम्राट श्री धुरंधरविजयजी महाराज साहेब के अनुसार भी वर्षीतप का प्रारंभ एवं श्री आदिनाथ भगवान का जन्माभिषेक श्री आबू महातीर्थ में करना चाहिए. इससे हम इस महातीर्थ की Importance समझ सकते हैं.

एक समय में आबूजी के ऊपर के पहाड़ी इलाके में 12 गाँवो में जैनों की बस्ती थी. वो गाँव तो आज भी वहां पर ही हैं पर जैनों की बस्ती ना के बराबर है. 

पहले के समय में आबू देलवाडा में चैत्र वदि 08 के दिन यानी श्री आदिनाथ भगवान के जन्म एवं दीक्षा कल्याणक के दिन बहुत बड़ा मेला लगता था और उसमें सिर्फ जैन ही नहीं, बल्कि आसपास के गाँवों से परमात्मा के अन्य भक्त जैसे ठाकोर, खेडूत, भील और अन्य बहुत लोग बड़ी संख्या में मेले में शामिल होने आते थे. 

सभी लोग भक्तिभाव से जिनालय में जाकर भगवान के दर्शन करते और शक्ति अनुसार परमात्मा के चरणों में द्रव्य भी अर्पण करते थे. लेकिन यहाँ की Condition फिलहाल ऐसी है कि अजैन तो क्या, कुछ अज्ञानी जैन लोग भी यहाँ Tourist जैसे ही आते हैं. 

एक समय में आराधना और साधना की जाहोजलाली से भरपूर यह महातीर्थ, आज उस साधना आराधना को खोज रहा है. जहाँ कभी भक्तों की भीड़ उमड़ती थी, आज वहाँ सिर्फ नक्काशी की Curiosity का शोर है, जहाँ कभी प्रभु भक्ति की गूंज चारों ओर सुनाई देती थी, वहाँ आज भौतिक Conversations सुनाई देती हैं. 

जिनशासन के इस ऐतिहासिक महातीर्थ को आज हमारे Attention की जरुरत है. उस साधना और आराधना को वापस जगाने का समय आ चुका है.

अबुर्दगिरी स्पर्श यात्रा 

इसी उद्देश्य से श्री आदिनाथ भगवान के जन्म कल्याणक के दिन यानी चैत्र वदी 8 – 21st & 22nd March 2025 को अबुर्दगिरी (आबूजी) स्पर्श यात्रा होने जा रही है. श्री आदिनाथ दादा से लेकर श्री महावीर प्रभु के स्पंदनों को महसूस करने के लिए देश भर से कई भक्त अर्बुदगिरी स्पर्श यात्रा में जुड़ रहे हैं. 

इतिहास के पन्नों में भक्तिस्थल की पहचान खो चुके इस महातीर्थ को एक बार फिर भक्तों की गूंज से भरने के लिए हम सब इस यात्रा से जुड़ सकते हैं. 

अबुर्दगिरी स्पर्श यात्रा से Related अन्य जानकारी के लिए नीचे दिए गए Contact Information पर संपर्क कर सकते हैं अथवा https://arbudgirisparshyatra.com/ – इस Website पर जान सकते हैं. अगर आप भी यात्रा में जुड़ रहे हैं तो इसी Website पर जाकर Register कर सकते हैं.  

Contact : +91 92653 19326

Location :
https://maps.app.goo.gl/vPQbVpLmPZwf8VNCA 

Image Credits : Prasham Shah (Mashgul), Paras Maru (Cinekatha)

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