Who Exactly Built The Jain Marvel – “Karnavihar Prasad” On Girnar Tirth? | Episode 03

गिरनार जैन तीर्थ के "कर्णविहार प्रासाद" का अद्भुत इतिहास

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By Jain Media 3 Views 18 Min Read

वर्तमान श्री नेमिनाथ जिनालय का रोचक इतिहास

गिरनार महातीर्थ के इस मुख्य जिनालय में बैठकर हम में से कईयों ने नेमिनाथ प्रभु का अद्भुत पक्षाल देखा होगा। इस मुख्य जिनालय के बाहर Line में खड़े भी रहे होंगे कि कब बारी आएगी और कब प्रभु को स्पर्श करने का मौका मिलेगा। 

यह वही स्थान है, जहाँ कदम रखते ही एक भक्त अपनी सारी Problems भूल जाता है। आज हम इसी मुख्य जिनालय की कुछ रोचक जानकारी जानेंगे।

पिछले Episode में हमने जाना था कि किस तरह वर्तमान में जो नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा है वह रत्नसार श्रावक द्वारा गिरनार महातीर्थ पर लाइ गई। 

आज हम जानेंगे कि आखिर किस तरह The Famous King & Minister Duo राजा सिद्धराज जयसिंह और सज्जनमंत्री द्वारा गिरनार के जिनालयों का जीर्णोद्धार हुआ और मेरकवसही टुंक का निर्माण कैसे हुआ? 

साथ ही यह भी जानेंगे कि यह जिनालय का नाम ‘कर्णविहार प्रासाद’ कैसे रखने में आया।

तो, प्रस्तुत है Girnar History का Episode 03. बने रहिए इस Article के अंत तक। 

संघ को लुटने की योजना

लगभग 900 वर्ष पहले की बात है। एक बार गुजरात के पाटण नगर में कलिकाल सर्वज्ञ पू. आचार्य श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. के उपदेश से पाटण से गिरनार और शत्रुंजय महातीर्थ का छ’री पालित पैदल यात्रा संघ निकला था। 

श्री संघ आचार्य भगवंत सहित वंथली नामक गाँव के बाहर ठहरा था। संघ के सभी यात्री स्नान आदि करके, उत्तम वस्त्र, गहने आदि पहनकर परमात्मा की सेवा – पूजा आदि करने में Busy थे। जिसने यह संघ निकाला था, उस संघपति के पास भी बहुत पैसे थे। 

यह सब देखकर सोरठ राज्य के राजा रा’खेंगार की नीयत बिगड गई। बंदर को सीढ़ी मिल जाए, उसी तरह राजा के मित्रों ने उसे बढ़ावा देते हुए कहा ‘महाराज। इस संघ को लूट लो जिससे आपका धनभंडार भी भर जायेगा।’ 

मित्रों की बातों को सुनकर राजा संघ को लूटने का Plan करने लगा लेकिन राजमर्यादा का भंग और अपमान होने का डर सता रहा था। 

राजा संघ को लूटने की Trick सोचने लगा और संघ को एक दिन और रोकने का Try करते हुए उसने संघपति को खबर भिजवाई कि ‘राजकुटुंब में किसी बड़े की मृत्यु हो गई है, इसलिए अच्छा शुकन ना होते हुए संघ एक दिन और वंथली में ही रुक जाए।’ 

पू. आचार्य श्री को रा’खेंगार की खराब नियत का पता चल गया इसलिए उन्होंने संघ को वहां से रवाना होने को कहा। वहाँ से रवाना होकर संघ श्री शत्रुंजय महातीर्थ की यात्रा करके वापस पाटन नगर आया।

उस समय पाटन के राजा सिद्धराज जयसिंह थे। जैसे ही राजा सिद्धराज को रा’खेंगार द्वारा संघ को लुटने की नियत का पता चला, वैसे ही राजा ने सोरठ देश पर आक्रमण करके वि.सं. 1170 में रा’खेंगार को हराकर कैद कर लिया। 

उस समय महाराज सिद्धराज के मंत्री सज्जन जो कि जैन धर्म के दृढ़ अनुयायी यानी Follower थे, वे उंदिरा से खंभात जा रहे थे। तभी बीच में सकरपुर नामक एक गाँव में वे भावसार के घर पर रुके। 

भावसार के घर में कडाई में सोनामोहरें यानी Gold Coins भरी हुई थी फिर भी किसी कारणवश उसे भावसार कोयला यानी Coal ही समझता था। सज्जनमंत्री ने पूछा ‘भाई। ये सोनामोहरें उसमें क्यों रखी हैं?’ 

भावसार ने सज्जन मंत्री को पुण्यवान समझकर सब सोनामोहरें उसे दे दी लेकिन सज्जनमंत्री ने भी पराए धन को नहीं लेने का संकल्प किया था और इसलिए मंत्रिश्वर ने वो मोहरें ले जाकर राजा सिद्धराज को दे दी।

राजा सिद्धराज, सज्जन मंत्री को उनके नाम जैसे ही गुणवाला और पवित्र भावनावाला श्रावक मानकर बहुत खुश हुआ और राज्य में ऊँचा पद देने का Decide किया। रा’खेंगार की मृत्यु के बाद, महामंत्री बाहड के कहने पर सज्जनमंत्री को सौराष्ट्र का दंडनायक बनाया गया। 

यह वही महामंत्री बाहड़ हैं, जिनकी Story हमने पहले की प्रस्तुति में जानी थी। वो Episode आप फिर से देख सकते हैं 👇

जीर्णोद्धार का प्रारंभ

सज्जनमंत्री ने जूनागढ़ को अपना Capital बनाया था और खूब मेहनत करके सज्जनमंत्री ने सोरठ देश को बहुत अच्छे से Develop किया था। 

कुछ समय बाद एक बार सज्जन मंत्री जूनागढ़ में स्थित श्री गिरनार महातीर्थ की यात्रा पर गए। वहां उन्हें पूरी तरह जीर्ण यानी टूटे फूटे जिनालयों को देखा। 

एक के बाद एक जिनालय खंडर बनते जा रहे हैं यह देखकर, सज्जन मंत्री को बहुत दुःख हुआ कि ‘महाराजा सिद्धराज के राज में जिनेश्वर परमात्मा के जिनालयों की, महातीर्थ के जिनालयों की इतनी बुरी हालत।’ 

उस समय राजगच्छ के पूज्य आचार्य भगवंत श्री भद्रेश्वरसूरिजी म.सा. के उपदेश से सज्जन मंत्री ने जीर्ण हालत में रहे हुए, लकड़े के बने हुए श्री नेमिनाथ परमात्मा के मुख्य जिनालय का नींव के साथ यानी Foundation के साथ संपूर्ण जिर्णोद्धार करवाने का यानी Redevelopment करवाने का Decision लिया।

एक दिन शुभ मुहूर्त पर गिरनार महातीर्थ के जिनालय का जीर्णोद्धार शुरू हुआ। Talented कारीगर यानी Artists अपनी Skills का कमाल दिखाने लगे। एक समय खंडर जैसे दिखनेवाले मंदिर, महल जैसे दिखने लगे। 

सज्जन मंत्री अपनी पूरी शक्ति जिनालय के Redevelopment में लगा रहे थे। एक तरफ सोरठ देश का काम और दूसरी तरफ जिनालय का जीर्णोद्धार। इन दो महत्त्वपूर्ण कार्यों में हमेशा Busy रहनेवाले सज्जन मंत्री को जीर्णोद्धार के लिए जो आवश्यक पैसे लगेंगे उसकी चिंता सताने लगी। 

सज्जन मंत्री चाहते तो वे सौराष्ट्र के गाँव – गाँव में घूमकर खूब सारे पैसे इकट्ठे कर सकते थे लेकिन राज्य की जवाबदारी की वजह से यह काम Possible नहीं था। इसलिए सोरठ देश की 3 Years की जो आमदनी, राजभंडार में जमा करानी थी, वह उन्होंने जीर्णोद्धार के काम में लगा दी। 

उन्होंने यह सोचा कि वे कुछ समय बाद सौराष्ट्र के गाँव – गाँव से वह रकम इकठ्ठा करके राजभंडार में जमा करवा देंगे। ऐसा Decide करके सज्जन मंत्री ने 72 लाख द्रम जितनी रकम जीर्णोद्धार के कार्य में लगा दी। 

Please Note : द्रम यानी उस समय की Currency. 

लेकिन कुछ भी अच्छा काम करो तब थोड़ी बहुत मुश्किलों का सामना तो करना ही पड़ता है और ऐसा ही कुछ सज्जन मंत्री के साथ भी हुआ। 

राजा सिद्धराज को भड़काया गया

सज्जन मंत्री द्वारा गिरनार के जिनालयों के जीर्णोद्धार का पुण्यशाली कार्य इस सर्वोत्तम कार्य को कुछ लोग सहन नहीं कर पाए। 

उन्होंने पाटण के महाराजा सिद्धराज के कान भरने शुरू किए ‘राजन्। सौराष्ट्र के सज्जनमंत्री ने 3 साल से सोरठदेश की आमदनी में से एक कोडी भी राजभंडार में जमा नहीं की है, जरूर दाल में कुछ काला है।’ 

ऐसी शंका राजा के मन में पैदा करके राजा को भडकाने का षड्यंत्र शुरु किया गया। राजा तो वैसे भी कान के कच्चे होते हैं। महाराजा सिद्धराज भी गुस्से में आग बबूला हो गए और उन्होंने खुद जूनागढ़ जाकर सज्जन मंत्री से हिसाब लेने का निर्णय किया। 

राजा सिद्धराज को सज्जन मंत्री पर अविश्वास हो गया। 

महामंत्री बाहड ने Situation को जानकर, राजा के जूनागढ़ आने के समाचार तुरंत ही सज्जनमंत्री तक पहुँचाए। Incredibly Intelligent सज्जन मंत्री Situation को समझ गए और सोरठ देश की आमदनी की रकम कैसे भरी जाए? वह सोचने लगे। 

सोचते सोचते उन्हें वंथली तीर्थ का ध्यान आया। वंथली तीर्थ में सुखी समृद्ध और श्री गिरनारजी तीर्थ के लिए अपना तन – मन – धन न्योछावर करनेवाले श्रावकों का उत्साह उन्हें याद आया। 

कुछ सोचकर सज्जन मंत्री वंथली नगर में आए और वहां के श्रेष्ठियों को इकट्ठा करके गिरनार के जिनालयों के जीर्णोद्धार की रकम की बात बताई। गाँव के श्रेष्ठियों के बीच अपनी ओर से जितनी हो सके उतनी रकम लिखवाने के लिए भीड़ उमड़ने लगी। 

भीमा साथरिया का अद्भुत योगदान 

उस समय श्रावकों की भीड को दूर करता हुआ, मैले – फटे पुराने कपड़े पहना हुआ एक आदमी आगे आने की कोशिश कर रहा था। 

तब भीड़ Disturb होने के कारण गुस्से में आया हुआ एक श्रेष्ठि उस व्यक्ति पर चिल्लाया कि ‘अरे, तेरे लिए वहाँ क्या खाने का रखा है? गिरनार के जीर्णोद्धार के लिए धन राशी इकट्ठा कर रहे हैं। उसमें बीच में तू कहाँ जा रहा है? दो पैसे देने की भी तेरी औकात है?’ 

वह आदमी ऐसी Negative बातों को Ignore करते हुए चुपचाप आगे बढ़ता हुआ सज्जनमंत्री के पास पहुंचा और सज्जनमंत्री के कान में कहा कि 

मंत्रीश्वर। इस महाप्रभावक गिरनार तीर्थ के लिए मैं मेरा सब कुछ देने को तैयार हूँ, तो फिर आप सोरठ देश की तीन साल की आमदनी जितनी रकम के लिए क्यों इतनी मेहनत कर रहे हो? इस गरीब पर दया करके इसका लाभ मुझे लेने दो।

सज्जनमंत्री तो 2 Minute के लिए रह Shock हो गए। ‘ऐसे मैले – फटे पुराने कपड़ोंवाला व्यक्ति और संपूर्ण रकम देने को तैयार? यह कौन है?’ ऐसा सोचते हुए सज्जन मंत्री ने उस व्यक्ति से उसका नाम पूछा। 

उस व्यक्ति ने कहा ‘मेरा नाम भीमा साथरिया है। मंत्रीश्वर, गाँव के समृद्ध श्रावक तो बहुत भाग्यशाली है, उनको तो दान-पुण्य का मौका मिलता ही रहता है। आज इस गरीब को दो पैसे का पुण्य कमाने का मौका दे दो, तो मेरा जीवन भी धन्य बन जायेगा।’ 

ऐसे कहते हुए उस व्यक्ति ने पूरी सभा के सामने अपनी भावना बताई और सज्जनमंत्री के चरण छूकर अपनी झोली फैलाई। सज्जनमंत्री भी भीमा साथरिया की इस भावना का मान रखते हुए सभा में आए हुए सभी श्रावकों की राशी वापस लौटा देते हैं। 

राजा सिद्धराज का आगमन 

भीमा साथरिया से जीर्णोद्धार के लिए रकम देने का वचन लेकर सज्जन मंत्री वापिस जुनागढ़ आते हैं। अगले दिन सुबह महाराज सिद्धराज के जुनागढ़ महल में आते ही सज्जन मंत्री सर झुकाकर, बहुत ही विनम्रता के साथ उनका स्वागत करते हैं और कुशल मंगल पूछते हैं। 

तब सज्जनमंत्री के ख़राब नियत की झूठी बातों से भडके हुए महाराज के अंदर का गुस्सा फूटता है और वो कहते हैं कि ‘आपके जैसा विश्वासघाती और राजद्रोही इस सौराष्ट्र में ऊँचे पद पर रहे, वहाँ सब कुछ ठीक कैसे हो सकता है? सोरठ देश के 3 साल की आमदनी का हिसाब कहाँ है?’ 

महाराज की चिंता को जानकर सज्जन मंत्री शांत मन से जवाब देते हैं कि ‘महाराज। राज्य के आमदनी की एक – एक पाई का हिसाब तैयार है। आप लंबा सफ़र करके आए हैं, थोडा आराम कर लीजिए, फिर हिसाब देख लीजिएगा।’

सज्जनमंत्री के Confidence से भरे हुए इस जवाब को सुनकर महाराज सिद्धराज का गुस्सा दो पल में ठंडा हो गया और फालतू में गुस्सा करने का उन्हें पश्चात्ताप होने लगा। 

सिद्धराज ने पुरे दिन जूनागढ़ के लोगों से सज्जन मंत्री के अच्छी तरह कार्य करने और सज्जनमंत्री द्वारा गिरनार के जिनालयों के जिर्णोद्धार के बारे में भी सुना। 

तब महाराज ने सज्जन मंत्री को कहा कि अगले दिन सुबह वे गाँव से होते हुए श्री गिरनार तीर्थ की यात्रा करना चाहते हैं। अगले दिन सुबह राजा सिद्धराज और सज्जन मंत्री गिरिराज की यात्रा कर रहे थे। 

राजा को मिला Reality Check

उस समय गिरनार के शिखर पर सुंदर जिनालय और आकाश को छुती हुई ध्वजा का अद्भुत नजारा देखकर महाराज सिद्धराज पुछते है ‘कौन भाग्यवान माता-पिता हैं वो, जिनके पुत्र ने ऐसे सुंदर, अद्भुत जिनालयों को बनवाया है?’ 

सज्जन मंत्री कहते हैं कि ‘राजन्। वो पुण्यशाली आपके माता-पिता ही है जिनके सौभाग्य से आप जैसे महापुण्यशाली के द्वारा यह जिनालयों का निर्माण हुआ है।’ महाराज Shock हो जाते हैं और इस बात का रहस्य सज्जन मंत्री को पुछते हैं। 

तब सज्जन मंत्रिश्वर बताते हैं कि ‘महाराज। आपके पुण्यप्रभाव से ही यह जिनालयों का निर्माण हुआ है और आपके पिता कर्णदेव और माता मीनलदेवी भाग्यशाली है कि आप जैसे शूरवीरपुत्र और गुजरात नरेश ने आपके पूज्य पिताजी की याद में ऐसे अद्भुत जिनालयों का निर्माण करवाया है। 

सोरठ देश की 3 साल की आमदनी इस जिनालय के नवनिर्माण में खर्च हुई है जिसके प्रभाव से ये मंदिर इतने अद्भुत स्वरुप में बने हैं। 

आप ही सोरठ देश के भी महाराज हो इसलिए आपके पिता कर्णदेव और माता मीनलदेवी धन्य बने है क्योंकि “कर्णप्रासाद” नामक इस जिनालय से गिरनार की शोभा और भी बढ़ गई है जो आपके पिताजी की स्मृति को कभी ना भुलाने के लिए काफी है। 

फिर भी अगर आप कहें तो सोरठ देश की 3 साल की आमदनी मैं तुरंत ही राजभंडार में जमा करवानी हो तो एक-एक पाई के साथ रकम भंडार में जमा करने के लिए नजदीक के ही वंथली गाँव के एक उत्तम श्रावक भीमा साथरिया, अकेले ही पूरी रकम भरने के लिए तैयार हैं। 

और अगर जिर्णोद्धार का महान लाभ लेकर आप आपके आत्मा के खाते में पुण्य जमा करवाना चाहते हो तो यह Option भी आपके लिए खुला है।’

सज्जनमंत्री की यह बातें सुनकर महाराज सिद्धराज बहुत खुश होते हैं और कहते हैं ‘ऐसे अद्भुत और सुंदर जिनालयों के जीर्णोद्धार का ऐसा लाभ मिलता हो तो मुझे उन 3 साल की रकम की कोई चिंता नहीं है। 

मंत्रिश्वर। आपने तो कमाल कर दिया। आपकी बुद्धि, काम करने का तरीका और वफादारी के लिए मेरे दिल में आपके लिए बहुत सम्मान है। सज्जन मंत्री। आपके लिए मुझे जो शंका हुई उस के लिए मैं क्षमा माँगता हूँ।’

मेरकवसही टुंक का निर्माण 

इस तरफ सज्जन मंत्री के समाचार का इंतेजार करते हुए भीमा साथरिया बेचैन हो रहा था कि ‘अभी तक सज्जनमंत्री के कोई समाचार क्यों नहीं आए? क्या मेरे मुँह तक आया हुआ पुण्य कमाने का यह सुनहरा अवसर चला जायेगा?’ 

इस तरह चिंता करते हुए वह सज्जन मंत्री से मिलने के लिए जूनागढ़ आता है। 

जब भीमा साथरिया को सज्जन मंत्री ने पूरी घटना बताई कि कैसे महाराज ने ही जीर्णोद्धार का लाभ ले लिया है, तब भीमा को बहुत बड़ा धक्का लगा कि उसके हाथ में आया हुआ पुण्य कमाने का Golden Chance चला गया और थोड़ी देर के लिए वह बहुत दुखी हो गया। 

वापस Normal होते ही उसने कहा की ‘मंत्रीश्वर। जीर्णोद्धार दान के लिए रखी हुई रकम अब मेरे कुछ काम की नहीं, इसलिए आप इस रकम को स्वीकार करके उसका योग्य उपयोग कीजिए।’ और यह कहकर भीमा वहां से चला गया।

कुछ ही समय में वंथली गाँव से भीमा साथरिया के धन की बैलगाडियाँ सज्जन मंत्री के महल के बाहर आकर खड़ी हुई। Incredibly Intelligent सज्जन मंत्री ने इस रकम से गिरनार की एक टुंक ‘मेरकवसही’ नामक जिनालय का निर्माण करवाया। 

भीमा साथरिया की ही उदारता और महानता हमेशा लोगों के दिलों में बसी रहे इसलिए Main जिनालय के पास ‘भीमकुंड’ नामक एक विशाल कुंड भी बनवाया। 

तो इस तरह महाराजा सिद्धराज जयसिंह के पिता कर्णदेव की स्मृति में गिरनार के Main मंदिर का नाम ‘कर्णविहार प्रासाद’ रखा गया था क्योंकि जिनालयों के Redevelopment के पूरे खर्च का लाभ राजा ने ले लिया था। 

भीमा साथरिया जैसे महान श्रावक की स्मृति में भीमकुंड और मेरकवसही जिनालय का निर्माण करवाया गया। 

अगले Episode में हम जानेंगे कि आखिर किस तरह गिरनार की अधिष्ठायिका देवी अंबिका की उत्पत्ति हुई। 

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