श्रावस्ती नगरी का रोचक इतिहास
एक ऐसा तीर्थ जिसका वर्णन नव स्मरण के सातवे स्मरण श्री अजित शांति सूत्र में आता है. एक ऐसी भूमि जहाँ चरम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी भगवान अनेकों बार पधारे थे और वहां चातुर्मास भी किया था और जहाँ प्रभु पर उपसर्ग हुआ लेकिन समता भाव से जिस भूमि पर सहन किया था. एक ऐसी भूमि जहाँ सधार्मिक भक्ति से तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करनेवाले श्री संभवनाथ भगवान के च्यवन – जन्म – दीक्षा और केवलज्ञान ऐसे 4 कल्याणक हुए हैं और इस भूमि पर देवों द्वारा समवसरण की रचना भी की गई जहाँ तीर्थंकर परमात्मा ने विराजमान होकर देशना दी और धर्म तीर्थ की स्थापना भी की.
आइए जानते हैं श्री सावत्थी जिसे आज हम श्रावस्ती के नाम से भी जानते हैं ऐसे तीर्थ का इतिहास. पूरी जानकारी के लिए बने रहिए इस Article के अंत तक.
परमउपकारी श्री महावीर स्वामी भगवान के समय में यानी आज से लगभग 2500 – 2600 साल पहले उत्तर भारत के पांच महाशक्तिशाली राज्य कौशल – मगधवत्स – वज्र – अवंती में जिसकी गिनती होती थी और शास्त्रों में जिस देश के लिए ‘कोंसलानं पुरं रम्म’ लिखा गया है ऐसे रमणीय और मनोहर कौशल देश की राजधानी थी सावत्थी.
सावत्थी यानी क्या?
सावत्थी यानी सव्वं – अत्थि यानी जहाँ इंसानों के उपयोग में आनेवाले जितने भी साधन थे वे सभी इस नगरी में उपलब्ध थे. सोचिए कितनी समृद्ध और संपन्न होगी यह नगरी जहाँ हर साधन प्रसाधन उपलब्ध था. प्रभु वीर के समय में यह नगरी अचिरावती नदी के तट पर बसी हुई थी और अयोध्या से लगभग 7 योजन की दूरी पर थी. प्राचीन ग्रंथों में इस नगरी का नाम चंपकपुरी – चंद्रिकापुरी होने का भी उल्लेख मिलता है और जैनागम पन्नवणा (प्रज्ञापना) में 25 आर्य क्षेत्र के रूप में श्रावस्ती का कुणाल नगर नाम से उल्लेख किया गया है जो सम्राट संप्रति के पिता कुणाल की तरफ इशारा करता है.
आइए जानते हैं श्रावस्ती नगर में घटित हुई कुछ ऐतिहासिक घटनाएँ सिर्फ 10 Points में.
1. श्रावस्ती की पवित्रता
श्रावस्ती नगर में तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ भगवान के 4 कल्याणक हुए थे. 16वे तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान, 20वे तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान, श्री महावीर स्वामी भगवान आदि तीर्थंकर परमात्मा के पावन चरण इस भूमि पर पड़ने से यह भूमि अत्यंत पवित्र और पावन है.
2. गणधर केशीकुमारजी और गणधर गौतम स्वामीजी का मिलन
23वे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के गणधर केशीकुमारजी और महावीर स्वामी भगवान के प्रथम गणधर अनत लब्धि निधान श्री गौतमस्वामीजी का श्रावस्ती में मिलन हुआ था और उनके बीच जो भी चर्चा, विचारणा आदि हुआ वो उत्तराध्ययन सूत्र में अध्ययन के रूप में उपलब्ध है.
3. प्रभु महावीर का चातुर्मास
कल्पसूत्र में प्रभु वीर जिन जिन नगर में चातुर्मास किया उसका उल्लेख मिलता है और उसी से पता चलता है कि प्रभु वीर ने श्रावस्ती नगर में चातुर्मास किया था. प्रभु वीर ने इस भूमि पर अनेकों भव्य, धनाढ्य और विद्वान आत्माओं को दीक्षित किया. प्रभु के विशेष 10 श्रावकों में से 2 श्रावक श्रावस्ती नगरी के निवासी थे.
4. तेजोलेश्या उपसर्ग
श्रावस्ती नगरी के निवासी गोशालक ने इसी नगर में सुनक्षत्र और सर्वानुभुती मुनियों पर तेजोशेल्या छोड़कर उन्हें मार दिया था प्रभु वीर पर भी तेजोलेश्या छोड़ने का उपसर्ग यहीं किया था. तेजोलेश्या के कारण प्रभु वीर को खून के दस्त लगे थे तब श्रावस्ती नगरी की निवासी रेवती महाश्राविका ने प्रभु को बिजोरापाक वोहराकर तीर्थंकर नामकर्म का बंध भी यहीं किया था.
5. जमाली और साध्वी प्रियदर्शनाजी
महावीरस्वामी भगवान के जमाई जमालि श्रावस्ती के निवासी थे. उन्होंने प्रभु से दीक्षा लेने के बाद इसी नगरी में प्रभु के विरुद्ध ‘बहुरत’ सिद्धांत की प्ररुपना की थी. प्रभु वीर की पुत्री और जमालि की पत्नी साध्वी प्रियदर्शनाजी अपना पत्नीधर्म निभाते हुए पति द्वारा बनाए हुए बहुरत मार्ग पर चल रही थे. श्रावस्ती में ही तत्त्वज्ञानी कुंभारढंक से प्रतिबोधित होकर साध्वी प्रियदर्शनाजी वापस प्रभु वीर के मार्ग पर लौटीं थीं.
6. जीवित स्वामी प्रतिमा
बृहत्कल्पसूत्र से पता चलता है कि श्रावस्ती में जीवंतस्वामी की प्रतिमा यानी जब प्रभु धरती पर विद्यमान होते हैं उस समय बनवाई हुई प्रतिमाजी श्रावस्ती में होने का उल्लेख मिलता है और यह नगरी जैन तीर्थ के रूप में प्रसिद्द थी.
7. महावीर स्वामी भगवान और गौतम बुद्ध
श्रावस्ती नगर में प्रभु वीर के विचरण के समय जैनधर्मी राजा प्रसन्नजीत राज करते थे. प्रभु वीर और गौतम बुद्ध समकालीन थे. एक बार श्रेष्ठी अनाथपिंडक के आमंत्रण से गौतम बुद्ध श्रावस्ती नगरी में पधारे थे. अनाथपिंडक ने श्रावस्ती के राजकुमार से गौतम बुद्ध का निवास स्थान बनाने के लिए श्रावस्ती में रहा जेतवन खरीद लिया. कई बौद्ध और जैन ग्रंथों में जेतवन और श्रावस्ती का वर्णन आता है.
8. श्रावस्ती में जैन राज्य
विक्रम संवत की 10वी शताब्दी में श्रावस्ती नगरी में जैन धर्मी राजा राज करते थे.
ई.स. 900 में सूर्यवंशी महाराजा मयूरध्वज, ई.स. 925 में महाराजा हंसध्वज, ई.स. 950 में महाराजा मकरध्वज जिसका दूसरा नाम महाराजा चंद्र भी था, ई.स. 975 में महाराजा सुधानध्वज ई.स. 1000 में महाराजा सुहिलध्वज जिन्हें सुहारिध्वज भी कहते हैं उनका वर्णन श्रावस्ती के जैनधर्मी राजाओं में अंतिम राजा के तौर पर मिलता है. राजा सुहिलध्वज के जाने के 40 साल बाद श्रावस्ती में जैन वंश ख़त्म हो गया और कुछ ही समय बाद श्रावस्ती नगरी भी नष्ट होने लगी.
9. सहेत – महेत
श्रावस्ती नगरी को सहेत – महेत के नाम से भी जाना जाता था लेकिन यह नाम कब और कैसे मिला इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है. कई लोग जेतवन के खंडरों को सहेत और श्रावस्ती के खंडरों को महेत के नाम से पहचानते थे.
10. श्रावस्ती की भव्यता
श्री जिनप्रभसूरीजी ने 14वी शताब्दी में रचित विविध तीर्थ कल्प पुस्तक में श्रावस्ती की उस समय कैसी स्थति थी उसका वर्णन किया है और यह भी लिखा है कि वहां के जैन मंदिर के द्वार यक्ष के प्रभाव से Sunrise यानी सूर्योदय के साथ स्वयं खुल जाते थे और Sunset यानी सूर्यास्त के साथ स्वयं मंगल यानी बंद हो जाते थे.
श्रावस्ती नगर में जिनालय की पुनः स्थापना और अंजनशालाका प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय भद्रंकरसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा की पावन निश्रा में और आचार्य श्री के करकमलों द्वारा आज से 36 साल पहले वि.सं. 2043 में वैशाख सुदि 6, 4 May 1987 के शुभ दिन हुआ था.
जिस भूमि पर श्री संभवनाथ भगवान के 4 कल्याणक हुए, श्री महावीरस्वामी भगवान का चातुर्मास आदि कई घटनां हुईं ऐसी भूमि पर हमारी आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए, हमारे अंदर रहे भावों को निर्मल बनाने के लिए, परमात्मा के स्पंदनों को महसूस करने के लिए परम पवित्र कल्याणक भूमि श्री श्रावस्ती तीर्थ पर जरुर पधारें.
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Ratanji Bhandari – 9341222211
Chandra Kumarji Sanghvi – 9448111409
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