Why Did Gautam Swami Ask Questions He Already Knew the Answer To? Updeshmala Granth – Ep 05

गौतमस्वामीजी ने प्रभु महावीर से इतने प्रश्न क्यों पूछे?

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By Jain Media 69 Views 12 Min Read

प्रस्तुत है आगम ज्ञानी बनो Series के अंतर्गत उपदेशमाला ग्रंथ का Episode 05

भद्दो विणीयविणओ,
पढम गणहरो समत्त-सुअनाणी।
जाणंतोवि तमच्छं,
विम्हिअहियओ सुणइ सव्वं।। (05)Updeshmala Granth

इस गाथा में गणधर भगवंत गौतम स्वामी का उदाहरण देकर हम सबको उपदेश देते हैं कि हमें भी विनय करना चाहिए।

यह Short में अर्थ था। अब आइए इस गाथा को In Depth समझने का प्रयास करते हैं।

1. गणधर भगवंत गौतमस्वामी भद्र थे यानी खुद तो हमेशा प्रसन्न रहते ही थे, साथ-साथ में उनके दर्शन-वंदन करनेवालों को भी प्रसन्नता की भेंट देनेवाले थे। 

उनकी Smile, उनके चेहरे की खुशी, उनका Behavior, उनका जीवन यह हर एक चीज ऐसी थी कि उनके Contact में आनेवाला दुखी से दुखी जीव भी खुश हो जाता था। 

2. गौतमस्वामी ने विनय गुण यानी Respect का गुण पाया था। खुद 50 हजार केवलज्ञानी शिष्यों के गुरु थे, प्रभु वीर के बाद सबसे बड़े पद पर वो विराजमान थे। 

लाखों लोग उनका विनय यानी Respect करते थे लेकिन वे बिना किसी अहंकार के प्रभु महावीर का विनय करते थे।

3. प्रभु वीर के कुल 11 गणधर थे। गणधर यानी मुख्य शिष्य। उसमें सबसे प्रथम गणधर गौतम स्वामी थे। 

गौतमस्वामी संपूर्ण श्रुतज्ञान के मालिक थे यानी कि तमाम शास्त्रों के ज्ञानी थे। जैन या Non Jain, हर एक शास्त्रों का 100% ज्ञान उनके पास था। 

4. सबसे महत्व की बात यह है कि वे हर एक पदार्थ को जानते थे यानी उन्हें हर Topic की Knowledge थी फिर भी वे इतने परोपकारी थे कि वो सभी के लिए सोचते थे कि 

जब प्रभु महावीर उपदेश देते हैं तब करोड़ों लोग आते हैं। लेकिन उन लोगों के पास इतना ज्ञान नहीं है कि क्या प्रश्न पूछना, क्या नहीं पूछना और क्या ज्ञान पाना चाहिए?

उतना भी ज्ञान उन लोगों के पास नहीं है। तो चलो उनके लिए मैं ही प्रश्न पूछता हूं।

मेरे प्रश्नों का जवाब प्रभु देंगे तो वह सुनकर सब लोगों को अपने हित के लिए जो ज्ञान पाना चाहिए वह मिल जाएगा।

यह सोचकर गौतम स्वामी एक के बाद एक प्रश्न पूछते ही रहते थे। वह प्रश्न का जवाब उन्हें तो 100% पता ही होता था फिर भी वे पूछते जाते थे। 

उन्होंने यह कभी नहीं सोचा कि ‘इसमें मुझे क्या लाभ? मुझे कुछ नया ज्ञान तो मिलता ही नहीं है। मेरा तो Time Waste हो रहा है।’ 

ऐसी Negative सोच एक सेकंड के लिए भी उनके मन में नहीं आई। 

वे तो ऐसा सोचते थे कि ‘सब को लाभ होता है ना तो मुझे मेरा Time देकर भी सबको लाभ करनेवाले प्रश्न पूछने ही है। सबके भले में मेरा भी भला हो ही जाएगा।’ 

यह एक ही सोच उनके मन में थी। 

5. सबके लिए प्रश्न तो पूछ लिए लेकिन अभी उसका जवाब सुनने में गौतमस्वामी को मजा आएगा क्या? उनको तो सब Answers पता ही है ना। तो फिर जो चीज 100% पता हो वह सुनने में कंटाला ही आएगा ना। 

जो Story हम जानते हो, अगर वही Story महाराज साहेब प्रवचन में बोले, तो हम सुनेंगे तो भी कैसे सुनेंगे? हमारे Face पर क्या Expression होगा? हम शायद बीच-बीच में कुछ ना कुछ बोलते भी रहेंगे ना?

लेकिन गौतमस्वामी जैसे श्रोता यानी Listener आज तक कभी हुए नहीं और होंगे भी नहीं। अगर होंगे तो वो भी गौतमस्वामी ही कहलाएंगे, उससे कम या ज्यादा नहीं। 

जब गौतमस्वामी सुनते थे, तब सब कुछ पता होने के बावजूद भी उनका हृदय सुनते वक्त Curiosity से, Enthusiasm से, Excitement से भरा हुआ ही रहता था। 

  • उन्हें शरीर पर Goosebumps आ जाते थे।
  • उनकी आँखों में Spark आ जाता था।
  • उनके Face पर अद्भुत Happiness छा जाती थी। 

मानो एक लड़के ने CA की Exam दी और Result आया। तब किसी ने आकर सबसे पहली बार उसे कहा ‘तेरे लिए Surprise है। तू CA में Pass तो हुआ ही है लेकिन पूरे भारत में First Rank पर आया है।’ 

तो वह सुनकर उसका Reaction कैसा होगा? उसे Goosebumps आ जाएंगे ना? आँखों में अलग सी चमक आ जाएगी ना? और उसके चेहरे पर बेहिसाब ख़ुशी छा जाएगी ना? 

एक सामान्य इंसान ने 100 रूपए की Lottery की Ticket पर अगर 1 Crore की Lottery लग जाए तो खरीदी हो तो उसकी खुशी की क्या हद होगी? 

गौतमस्वामी को प्रभु के हर एक वचन सुनते वक्त इससे भी Extra Ordinary अनुभव होता था। 

हमको इसमें से क्या सीखना है?

1. महाराज साहेब के पास ज्ञान तो बहुत होता है लेकिन प्रवचन में तरह-तरह के लोग आते हैं। 

तो नए लोगों के लिए, अज्ञानियों के लिए महाराज साहेब General बातें भी बताएं, तो उस वक्त अगर हमारे पास उस चीज का ज्ञान हो तो भी हमें एकदम उत्साह से सुनना है। उसमें कंटाला नहीं आने देना है। 

हमारे जाने से, सुनने से सब का उल्लास बढ़ेगा ही। 

2. कभी ऐसा नहीं सोचना या बोलना है कि ‘महाराज साहेब के प्रवचन में कोई दम नहीं है, वो तो General Topic ही लेते हैं। कोई Interesting बात तो बताते ही नहीं।’ 

भले हमारे लिए वह General Topic हो, जरूरी नहीं हो लेकिन बाकी सबको इसकी जरूरत है तो महाराज साहेब तो वही चीज बताएंगे ना। 10-20% के लिए 80-90% लोगों को Avoid करना उचित नहीं है। 

3. जो ज्ञान पाकर बैठे हैं, ऐसे ज्ञानिओं को कोई भी प्रश्न पूछने हैं तो उन्हें सोच समझकर प्रश्न पूछने हैं। जो प्रश्न का जवाब सबको काम में आनेवाला हो वैसा ही प्रश्न सभा में पूछना है। 

जो प्रश्नों का जवाब सबको काम में आनेवाला ना हो वह प्रश्न महाराज साहेब को Personal में जाकर ही पूछने चाहिए। 

नहीं तो कठिन प्रश्नों के कठिन जवाब सामान्य लोगों को समझ नहीं आएँगे तो उनको कंटाला आना Start हो जाएगा। 

कठिन प्रश्न पूछकर हम सबके सामने ज्ञानी जरूर दिखेंगे लेकिन हम ऐसे ज्ञानी बनकर क्या करें जिसमें विवेक ना हो, परोपकार की भावना ना हो। 

‘मैं कुछ ज्यादा ज्ञानी हूं।’ ऐसा सबको बताने का अहंकार पड़ा हो तो क्या मतलब। 

कई बार तो हम जिज्ञासा से प्रश्न पूछते नहीं है, परोपकार की भावना से भी प्रश्न नहीं पूछते, लेकिन ‘मुझे अच्छा Knowledge है’ ऐसा दिखाने के लिए प्रश्न पूछते हैं या कभी तो सिर्फ एक Comment Pass करने के लिए प्रश्न पूछते हैं। 

आत्मा का हित करने के लिए प्रवचन में जाकर आत्मा का ही अहित कर देते हैं। 

4. आज से 12-13 साल पहले की एक घटना है। अहमदाबाद नारणपुर Area में सुश्रावक ललितभाई धामी के घर पर घर मंदिर की प्रतिष्ठा का महोत्सव था। 

परम पूज्य गच्छाधिपति श्री जयघोषसूरीश्वरजी महाराज साहेब आदि विशाल श्रमण समुदाय वहां पर उपस्थित था। उसमें रविवार के दिन सभी साधु भगवंतों ने जब सुबह पूज्यश्री को वंदन किया तब साहेबजी ने सबको कहा कि 

आज परम पूज्य आचार्य श्री महाबोधिसूरीश्वरजी म.सा. का माता पिता के Topic पर 108वां रविवारीय शिविर है तो आप सभी साधु उसमें जाओ, ऐसी मेरी भावना है।

भले आपको उस प्रवचन से विशेष कुछ लाभ हो या ना हो लेकिन इतने सारे साधु प्रवचन में जाएंगे तो जो शिविरार्थी युवान-युवतियां हैं, उनके ऊपर गहरा असर होता है।

उनका प्रवचनकार के ऊपर बहुमान बढ़ जाता है और इसलिए प्रवचनकार की बातों का उन पर ज्यादा असर होता है। 

सोचने जैसा है कि साधुओं को तो माता-पिता का प्रवचन कुछ काम का नहीं है फिर भी Listeners के भाव बढ़ें इसलिए एक गच्छाधिपतिश्रीजी ने सब साधुओं को माता-पिता के विषय की शिविर में जाने को कहा। 

तो हम तो श्रावक हैं। हमारे पास ज्ञान हो तो भी कितना? अगर हम General Topic वाले प्रवचन में भी जाए, जानते हुए भी अच्छे से सुनें, तो साधु भगवंत का भी उल्लास बढ़ेगा और नए Listeners का भी उल्लास बढ़ेगा। 

प्रवचन सुनने जानेवालों को कुछ बातें ध्यान रखना चाहिए। 

1. प्रवचन के Time से 5 मिनट पहले पहुंच जाना चाहिए। दूसरे आए या ना आए, हमको पहुंच जाना चाहिए। Railway Station या Airport पर हम हमेशा Before Time ही पहुंचते हैं, उसी तरह यहां भी Before Time पहुंचना चाहिए। 

प्रवचन के दौरान Chair आदि हटाने की आवाज बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए। प्रवचन में आगे आने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और अगर Late हो जाता है तो जहां पर जगह मिले, वहीं पर बैठ जाना चाहिए। 

बीच में से घुसकर आगे आने से सबको Disturb होने की संभावना होती है। 

2. प्रवचन में Mobile लेकर नहीं जाना। अगर लेकर जाना पड़े तो Flight Mode अथवा Silent कर देना और प्रवचन में Mobile में कुछ भी देखना करना नहीं। 

3. प्रवचन में माला नहीं गिननी चाहिए। आज भी कई लोग एक तरफ व्याख्यान चल रहा हो तो दूसरी तरफ माला गिनते हैं, यह नहीं करना है। 

प्रवचन के दौरान किसी के साथ कुछ भी बात, आधि मिनट के लिए भी नहीं करनी चाहिए और दूसरा कुछ पढ़ना भी नहीं चाहिए। 

प्रवचन में आजू-बाजू-ऊपर-नीचे देखना नहीं चाहिए, सिर्फ और सिर्फ महाराज साहेब के सामने ही नजर रखनी, सिर्फ और सिर्फ प्रवचन सुनना और हो सके तो उसकी Notes लिख सकते हैं। 

4. प्रवचन शुरू हो जाने के बाद सामायिक मन में ही लेना। करेमि भंते सूत्र भी खुद ही बोलना, खड़े नहीं होना, बैठकर ही विधि करनी। 

अच्छा तो यह ही है की प्रवचन शुरू होने से पहले ही आकर विधिपूर्वक सामायिक लेकर प्रवचन सुनना शुरू करना चाहिए। 

5. प्रवचन यानी प्रभु के वचन। उस के दौरान हंसी मजाक करना, Comments Pass करना, फालतू के प्रश्न पूछना आदि यह सब बिल्कुल भी उचित नहीं है।

यह सिर्फ प्रवचन की ही बात नहीं है। School-College में, कोई भी Lecturer के Lecture में, Online Classes में आदि हर जगह पर Discipline का पालन करना चाहिए। 

इंसान अगर Discipline में रहेगा तो उसका विकास फटाफट होगा। प्रवचनकर महात्मा का कर्तव्य क्या? ट्रस्टियों का कर्तव्य क्या? यह तो ज्ञानी महात्मा ही बता सकते हैं। 

गौतमस्वामी का उदाहरण हमको सुनना सिखाता है। 

कान तो है और आज तक उनसे बहुत कुछ सुना भी है लेकिन अब से गौतमस्वामी की तरह सुनना है यह इच्छा हम हमारे अंदर जगा सकते हैं। 

घर के बड़ों की हितशिक्षा हो या कड़वे वचन, सब उसी तरह सुनने हैं। 

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