Shocking Truth : Why 14 Qualities Are Must in Acharya / Guru? Updeshmala Granth – Episode 10

गुरु / आचार्य में 14 गुण क्यों ज़रूरी हैं?

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By Jain Media 5 Min Read

प्रश्न: आचार्य में 14-14 गुणों की अपेक्षा क्यों रखनी? सिर्फ आचार्य पद लेकर बैठे हो तो नहीं चलता? एक-दो गुण हो तो नहीं चलता?

प्रस्तुत है आगम ज्ञानी बनो Series के अंतर्गत उपदेशमाला ग्रंथ का Episode 10

गुरु इस 11th गाथा के माध्यम से उत्तर देते हैं

कइयावि जिणवरिंदा,
पत्ता अयरामरं पहं दाउं।
आयरिएहिं पवयणं,
धारिज्जइ संपयं सयलं।। (11)Updeshmala Granth

ऋषभदेव-अजितनाथ आदि तीर्थंकर तो मोक्ष का मार्ग बातकर कबके मोक्ष में चले गए। वर्तमान काल में तो आचार्य ही पूरे प्रवचन को धारण करते हैं। यह इस गाथा का संक्षिप्त अर्थ है। 

अब विस्तार से अर्थ समझते हैं। 

प्रवचन शब्द के दो अर्थ है-45 आगम आदि स्वरूप भगवान के वचन भी प्रवचन है और प्रभु के वचनों को श्रद्धा से माननेवाला, शक्ति के अनुसार जाननेवाला और पालनेवाला साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका वर्ग भी प्रवचन है, जिसका दूसरा नाम संघ है। 

जब भगवान खुद जीवंत थे, तब तो जिनागम और जैन संघ दोनों प्रभु के प्रभाव से ही एकदम सुरक्षित थे। लेकिन आज तो प्रभु तो साक्षात है नहीं तो जिनागमों को याद रखने का काम और बराबर याद कराने का काम कौन करेगा? 

आचार्य ही करेंगे। 

जैन संघ को मर्यादा में रखने का काम, स्वच्छंदी-पापी-बेकाम नहीं होने देने का काम कौन करेगा? आचार्य ही करेंगे। उस संघ को जिनवचन देने का काम, ज्ञानी बनाने का काम कौन करेगा? आचार्य ही करेंगे। 

प्रभु की Absence में प्रभु के सभी कार्यों की जिम्मेदारी आचार्य के ऊपर आ जाती है। उनको खुद को जिनागमों को याद रखना है, जिनागमों के पदार्थ को उपस्थित रखना है, साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाओं को भी उनकी पात्रता के अनुसार जिनवचन देने हैं। 

उन सभी को जिनवचनों की मर्यादा में रखना है, वह गलत रास्ते पर ना चले जाए उसका ध्यान रखना है। यह जो कार्य है, वह 14 गुणों से संपन्न, ऐसे ही आचार्य कर पाएंगे। 

जो गुणों से रहित है, वह आचार्य यह महान कार्य कभी नहीं कर पाएंगे। इसी कारण से आचार्य के लिए यह 14 गुण बताए गए हैं। 

प्रश्न: अगर 14 गुण न दिखे तो? 

गुरु: शास्त्रों में कहा है की संपूर्ण गुणवान उत्तम है, 75% गुणों का धारक मध्यम है, 50% गुणवान जघन्य है, उससे कम हो तो वह अयोग्य है। यहां 14 गुण बताएं हैं। 

जो 14 गुणों के धारक है, वह उत्तम है। जो 11 गुणों के या 10 गुणों के धारक है, वह मध्यम है। जो 7 गुणों के धारक है, वह जघन्य है। उससे कम गुणोंवाले अयोग्य है। 

श्री धर्मरत्न प्रकरण में और श्री 350 गाथा के स्तवन में यह बात बताई गई है। 

यहां पर 14-11-7 यह जो संख्या के आधार पर विभाग बताया है, वह सामान्य से समझना चाहिए। बाकी तो गुणों की Quality के आधार पर निर्णय करना है। 

किसी के पास सिर्फ चार गुण हो लेकिन महत्व के हो तो वह 11 गुणों वाला भी कहा जा सकता है। किसी के पास 10 गुण है लेकिन महत्व के चार गुण ना हो, तो वह सिर्फ चार गुण वाला भी कहा जा सकता है यानी कि अयोग्य भी कहा जा सकता है। 

इसमें कौन से गुण महत्व के हैं और कौन से गुण Normal है, वह तो ज्ञानी गुरु भगवंत ही कह सकते हैं। 

सभी के अभिप्राय अलग-अलग भी हो सकते हैं, तो भी 

  • 1. युगप्रधानागम यानी उस काल में दूसरों की अपेक्षा से अधिक ज्ञान वाले।
  • 2. उपदेशपरः यानी सुंदर वचनों के द्वारा मोक्ष मार्ग में प्रवृत्ति करवानेवाले।
  • 3. अप्रतिश्रावी यानी गुप्त बातों को किसी को भी नहीं करनेवाले।
  • 4. प्रशांतहृदय यानी क्रोध आदि कषायों से रहित मन वाले।

यह चार गुण अधिक मूल्यवान लगते हैं। बाकी के गुण भी अपनी अपनी अपेक्षा से मूल्यवान है ही फिर भी इन चार गुणों को अधिक महत्व देना उचित लगता है।

जिनशासन को और जैन संघ को संभालने का काम, ऐसे गुण संपन्न आचार्य ही कर सकते हैं। साधु इन गुणों को प्राप्त करके ही आचार्य पद ग्रहण करें, तो जिनशासन की रौनक ही बदल जाए, ऐसा हमें लगता है। 

11 गाथा तक का अर्थ यहाँ सम्पूर्ण होता है जिसमें हमने जाना कि ‘शिष्य गुरु का विनय करे और गुरु 14 गुणों से संपन्न बने।’ 

अगला Episode बहुत ही ज्यादा Interesting और Important होनेवाला है क्योंकि अगला Episode ‘पुरुष प्रधानता’ पर है। बहुत Clarity मिलेगी।

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