Can You Reach Liberation Without the Robe? | Here’s The Brutal Truth | Updeshmala Granth – Episode 13

साधु वेश का असली मूल्य...

Jain Media
By Jain Media 16 Min Read

मन मस्त रखो बाकी सबकी क्या ज़रूरत है? क्योंकि अगर वेश का महत्व नहीं है तो फिर वेश पहनना ही क्यों? 

साधुवेश नहीं पहनेंगे और सिर्फ मन की शुद्धि रखेंगे, उससे ही आत्मा का हित होगा ना। 

प्रस्तुत है आगम ज्ञानी बनो Series के अंतर्गत उपदेशमाला ग्रंथ का Episode 13.

तो इस प्रश्न का जवाब गाथा 21st गाथा में दिया है।

धम्मं रक्खइ वेसो,
संकइ वेसेण दिक्खिओमि अहं।
उम्मग्गेण पडंतं,
रक्खइ राया जणवउव्व।। (21)Updeshmala Granth

हमने जाना था कि आचारों का पालन मन की शुद्धि को उत्पन्न करता है। मन की शुद्धि की रक्षा करता है। मन की शुद्धि को बढ़ाता है। 

इस तरह यह भी समझ लो कि साधु वेश भी मन की शुद्धि को उत्पन्न करने का-टीकाने का-बढ़ाने का काम करता ही है। 

जो भी पूजा करनेवाले हैं, उन्हें अनुभव होगा कि पूजा के कपड़े पहने हो, उस वक्त Consciously या फिर Subconsciously कोई भी पाप करने का मन नहीं होता। 

आत्मा में से ही आवाज आती है कि ‘मैंने तो पूजा के कपड़े पहने हैं। इन कपड़ों में मैं Movie कैसे देख सकता हूं? उसमें भी गंदी Movies कैसे देख सकता हूं?’ रास्ते में गंदे Posters हो तो अपने आप आँखें नीची हो जाती है। 

सामायिक के कपड़े पहने हो, ऐसे लोगों को भी यह ही अनुभव होता है, भले वह सामायिक में ना भी हो तो भी।

यही बात साधु के लिए है। जब भी कोई गलत काम करने का मन होगा तब वह साधु जीवन का वेश उसको रोकेगा। वह सोचेगा ‘मैं तो साधु हूं। मैं ऐसा काम कैसे कर सकता हूं भला?’ 

प्रसन्नचंद्र राजर्षि जो 7th नरक का आयुष्य बाँधनेवाले थे उनको बचाने का काम किसने किया? 

साधु वेश ने ही किया। 

उन्होंने अपने सर पर हाथ रखा तो अचानक ख्याल आया कि ‘अरे मैं ये सब क्या सोच रहा हूँ, मेरे सर का तो मुंडन किया हुआ है, मैं तो साधु हूँ!’ फिर तो उन्हें पश्चाताप होने लगा भावधारा में आगे बढे और सीधे केवलज्ञान… 

14 राजलोक में सबसे नीचे 7th नरक है, वहां जाने की तैयारी कर चुके थे और साधु वेश ने 14 राजलोक में सबसे ऊपर रहे सिद्धशिला का Reservation करवा दिया। 

साधु वेश Extra Ordinary निमित्त है। उस निमित्त का कैसा उपयोग करना वह हमारे ऊपर निर्भर करता है।

Doctor हो या वकील हो, Judge हो या Police हो, सबके अपने-अपने Special Uniforms है। वह Uniform उनको गलत काम करने से रोक सकते हैं और उनका खुद का काम करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं, उनको अपना Role याद दिलाते रहते हैं। 

आज का काल खराब है। वेश होने के बावजूद भी जीव गलतियां करता है, यह हकीकत है। जो जीव धर्म के लिए बिल्कुल लायक ही नहीं है, उसके लिए ज़रूर यह बात है लेकिन जो उत्तम जीव है, उनको तो वेश गलत काम करने से रोकेगा ही। 

भले वह उत्तम जीव हर 100 में से 5 होंगे, 10 होंगे या फिर एक ही क्यों ना हो… 

साधु वेश राजा जैसा है.. समाज जैसा है.. 

राजा अगर Strong है-Strict है तो चोरी-लूट-बलात्कार आदि पाप करनेवाले डरते हैं कि ‘हम कुछ भी करेंगे तो राजा हमें उसकी सजा भी दे सकता है और राजा किसी भी तरीके से हमको पकड़ ही लेगा।’ 

यह डर के कारण से वे लोग चोरी आदि करना ही छोड़ देते हैं। मान लो कि वे कभी चोरी वगैरह करेंगे तो भी डर-डर के करेंगे, खुल्लेआम नहीं। यह ही काम प्रजा करती है-समाज करता है। 

दुर्जन लोगों को डर लगेगा कि ‘हम चोरी-लूट-बलात्कार करेंगे और पकड़े गए तो पूरे समाज में हमको धिक्कारा जाएगा और यह हम बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।’ इस डर के कारण दुर्जन लोग खराब काम करेंगे ही नहीं और अगर करेंगे तो भी डर-डर के करेंगे, खुल्लेआम नहीं। 

साधु वेश राजा जैसा है। 

साधु वेश पहनने वाले को डर लगता है कि ‘अगर मैं हिंसा आदि पाप करूंगा तो मेरी साधुता को दाग लगेगा। तो मुझे दुर्गति में भारी दुख आएंगे। मैं साधु हूं, व्रतधारी हूं तो मैं पाप करके व्रत को तोड़ नहीं सकता।’ 

और वह साधु पाप करने से रुक जाते हैं। अगर करते भी है तो भी डर-डर के करते हैं और वह डर पाप को तीव्र बनने नहीं देता। यह सब प्रभाव साधु वेश का है। 

साधुवेश समाज और प्रजा जैसा है। 

साधु वेश पहननेवाले को डर लगता है कि ‘मैं अगर इस वेश में कुछ भी करूंगा तो समाज मुझे धिक्कारेगा ही।’ और वह साधु पाप नहीं करता या फिर पाप डर-डर के करता है। 

इस प्रकार साधु वेश या श्रावक वेश, साधु धर्म की या श्रावक धर्म की रक्षा करता है। इसलिए यह शुभ वेश को गौण नहीं मानना, कम नहीं समझना है। वह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

गाथा में तो यह बताया है कि ‘साधु वेश, उसे पहनने वाले साधु के धर्म की रक्षा कैसे करता है।’ 

अब हम यह देखेंगे कि साधु वेश दूसरों को कैसे काम आता है। 

आज जिनशासन में 18 हजार जितने साधु साध्वीजी भगवंत हैं। वह सब विहार करते रहते हैं। नई-नई जगह पर उनके परिचित जैन तो बहुत-बहुत कम होते हैं, लगभग सब अपरिचित होते हैं। 

ऐसे लाखों अपरिचित जैन सिर्फ वह साधु साध्वी को देखकर ही खुश हो जाते हैं, सर झुकाते हैं, ‘मत्थएण वंदामी’ बोलते हैं, घर में गोचरी के लिए आने की विनती करते हैं। 

घर पर साधु साध्वी आए तो बहुत भावों से वहोराते हैं, उपाश्रय में उनको वंदन करने आते हैं, यह सब प्रभाव सिर्फ और सिर्फ साधु वेश का है। 

लाखों जैन संयमियों को Personally तो जानते ही नहीं है, सिर्फ साधु वेश देखकर ही सद्भाव-अहोभाव-भक्तिभाव से भर जाते हैं और यह भावों से वंदन-गोचरी-दान आदि क्रियाओं से लाखों जैनों के अंदर मोक्ष का बीज आरोपित हो जाता है। 

मुंबई के एक भाई ने कहा था कि ‘मुझे मेरा पूर्व भव दिखा था। मैं उस भव में मुर्गा था। दूसरे मुर्गों की अपेक्षा से में हट्टा-कट्ठा था। मुझे उस बात का अभिमान था लेकिन मेरे Healthy शरीर की वजह से ही मैं काटने के लिए सबसे पहले पसंद किया गया। 

मैं उस वक्त भयंकर तड़प रहा था। कसाई ने मेरी गर्दन को मोड़ा उसी वक्त मेरी नजर वहां से गुजर रहे एक जैन साधु के ऊपर गई। कुछ शुभभाव ऐसी मौत की भयानक वेदना में भी मुझे उत्पन्न हुए और मरकर मैंने जैन परिवार में जन्म लिया।’

यह बनी बनाई बात नहीं है। 

आज अहमदाबाद में पूज्य आचार्य श्री जगच्चंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब विराजमान है, उनकी Age 96 है। उनके सग्गे भाई की यह कहानी है। 

उन्होंने कहा था कि ‘मैंने मेरे हट्टे-कट्ठेपन का अभिमान किया था। इस वजह से इस भव में मैं एकदम पतला बना हूं, कितनी भी मेहनत की लेकिन मैं Healthy नहीं बन पाया।’ 

बात इतनी है कि वह मुर्गा तो अज्ञानी है फिर भी साधु वेश के दर्शन मात्र से शुभ भाव को पाया और मरकर मनुष्य बना, जैन कुल में जन्म लिया। 

इसलिए ही कहा गया है-साधुनां दर्शनं पुण्यं… 

गुजरात के मंत्री वस्तुपाल और उदायन मंत्री को मरते वक्त साधु दर्शन की इच्छा थी। उस वक्त कोई भी साधु आसपास में नहीं थे तो एक सैनिक को साधु का वेश पहनाकर मंत्री के सामने उपस्थित किया गया। 

मंत्री ने उसको सच्चा साधु ही माना क्योंकि सच्चे साधु का जो वेश होता है, वह ही वेश उस सैनिक को पहनाया गया था। मंत्री ने बहुत भावों से वंदन किया और शुभभाव के साथ मरकर वे देवलोक में गए। 

उदायन मंत्री और गुजरात के महामंत्री और गुजरात की शक्ल बदल देनेवाले वस्तूपल मंत्री जैसी आत्मा का समाधिमरण भी साधु वेश के प्रभाव से ही हुआ। 

हमें प्रश्न उठ सकता है कि अगर मन मस्त है बाकी की ज़रूरत नहीं है तो चलेगा क्या? 

तो ज्ञानी गुरु भगवंत कहते हैं कि “बाकी की ज़रूरत नहीं है” इस मान्यता के साथ मन कभी भी मस्त नहीं हो सकता। करने की Capacity ना हो या कम हो वह अलग बात है लेकिन कुछ भी नहीं करने की Mentality जो है उसमें गड़बड़ है। 

और इसलिए यह “कुछ भी करने की ज़रूरत ही क्या है” वाली सोच हमारा मन अपवित्र कर देती है। 

हम कहेंगे कि ऐसे तो अनेकों आत्माएं हुई है जिनका बिना ज्यादा कुछ किए केवलज्ञान हो गया जैसे भरत महाराजा, मरुदेवा माता etc..

लेकिन जानकारी के लिए बता दें अगर भरत महाराजा की या मरुदेवा माता की यह सोच होती कि मन मस्त रखो बाकी कुछ भी करने की ज़रूरत ही नहीं है तो उनकी कभी भी मुक्ति हुई ही नहीं होती। वे आज भी संसार में ही भटकते। 

उनकी पूर्व भव की ज़बरदस्त साधना थी सिर्फ मन मस्त नहीं था क्रिया भी थी, आखरी भव में सिर्फ Winning Shot लगाया ऐसा कह सकते हैं, जैसे 300 Runs बनाने हो तो पूर्व भव में ही वे 299 Runs बनाकर आए थे, इस भव में सिर्फ एक Run बनान था।

इसलिए इस सत्य को पहचानना बहुत ज़रूरी है कि सिर्फ मन मस्त रखने से काम नहीं चलता। 

आजकल मन मस्त रखो बाकी कुछ भी मत करो ऐसा Trend चल रहा है लेकिन ये Trend Follow करनेवालों को पूछने जैसा है कि भोजन लेने की आवश्यकता क्या है सिर्फ मन मस्त रखो ना। 

सुबह उठकर काम पर जाने की क्या ज़रूरत है सिर्फ मन मस्त रखो ना। अरे, श्वास लेने की भी क्या ज़रूरत है मन मस्त रखो ना। अरे, नींद लेने की भी क्या ज़रूरत है, शरीर अपने आप तंदरुस्त हो जाएगा मन मस्त रखो ना। 

कुछ भी करने की क्या ज़रूरत है मन मस्त रखो ना… ऐसे लोग दुनिया भर की क्रियाएं करेंगे लेकिन धर्म की बात आए तब कहेंगे कि मन मस्त रखो ना बस है। 

क्यों? 

क्योंकि ऐसे लोगों की क्रिया के प्रति अरुचि होती है अलग अलग कई कारण हो सकते हैं। इस भाव के साथ हमारा कभी भी उद्धार नहीं हो सकता इतनी Clarity तो होनी ही चाहिए। 

क्रिया करने की Physical Capacity ना हो वह अलग बात है लेकिन Mental Clarity तो होनी ही चाहिए। आज भी अगर देखें तो यदि कोई गुंडा पीछे पड़ा होगा और लड़की के सामने Police का वेश पहन कर खड़ा हुआ कोई Police व्यक्ति दिखाई देगा तो उसे शांति होगी। 

वह तुरंत उसके पास जाकर कहेगी कि ‘वह गुंडा मुझे परेशान करता है, आप मेरी मदद कीजिए।’ यहां पर भी Police की पहचान Police के वेश से ही हुई है और उस वेश के कारण ही वह लड़की की जान में जान आई है। 

श्री आवश्यक निर्युक्ति नाम के शास्त्र में लिखा है कि साधु का कालधर्म (मृत्यु) हो जाए तो भी उनको साधु वेश पहनाकर ही रखना। उसके पास रजोहरण-मुंहपत्ती रखना क्योंकि वह साधु मरकर लगभग तो देव ही बनता है। 

तो संभावना है कि वह देवलोक में से देखें कि ‘मैं पूर्व भव में कौन था? मैंने क्या किया जिसकी वजह से मैं देव बना?’ 

उस वक्त पर उसे अपना मृत देह और साधु वेश दिखाई देगा तो वह समझ जाएगा कि ‘मैं पूर्व भव में साधु था। उसके प्रभाव से मैं देव बना।’ तो अब देव के भव में वह पहले से ही जैन धर्म की आराधना करने लगेगा। 

वहां पर वह जैन साधु तो नहीं बन पाएगा लेकिन ‘मैं अगले भव में वापस जैन साधु बनूँ।’ ऐसी तीव्र भावना तो उसके अंदर उत्पन्न हो ही जाती है और देव के भव में प्रभु के प्रवचन सुनना, साधुओं की भक्ति करना आदि यह सब तो वह करने लगता ही है शासन के कई काम होते हैं। 

इसके प्रभाव से अगले भव में वापस वह जीव मनुष्य बनकर-साधु बनकर इसी परंपरा से मोक्ष में जाता है। यह भी एक कारण है कि साधु साध्वीजी भगवंत Operation Theatre में भी राजोहरण और मुंहपत्ती अवश्य अपने पास में ही रखते हैं। 

अगर मौत हो जाए तो भी देवलोक में एक Second में पहुंच गए तब उनको अपना पूर्व भव साधु का दिखेगा तो बताए गए सभी फायदें, लाभ उनको मिलेंगे। 

अगर कालधर्म यानी मृत्यु के बाद उनका साधु वेश हटाया जाएगा तो उनको वह पता नहीं चलेगा कि ‘मैं पूर्व भव में साधु था।’ तो वह साधु धर्म के रागी नहीं बनेंगे, तो वह साधुओं की सेवा करनेवाले, अगले भव में वापस साधु बनने की भावना वाले नहीं बनेंगे। 

यह सब Loss अवश्य हो सकते हैं। इसी कारण मौत के बाद भी उनके मृत शरीर के पास रजोहरण रखा जाता है। साधु वेश अपने खुद के धर्म की रक्षा करता है और दूसरों के धर्म की भी रक्षा करता है। अरे, अगले भव की भी रक्षा करता है।

तो इन सभी बातों से स्पष्ट पता चलता है कि पवित्र भावों से ही मोक्ष आदि फल मिलता है No Doubtलेकिन पवित्र भावों को उत्पन्न करने का-टिकाने का-बढ़ाने का काम जैसे शुभ क्रियाएं करती है, वैसे ही शुभ वेश भी करता है। 

इस कारण से शुभ भावों की तरह ही शुभ क्रियाओं की और शुभ वेश की भी उतनी ही कीमत है। उसे बिल्कुल भी गौण नहीं समझना है। 

शुभ वेश के बिना संसार में रहनेवाले जीवों को शुभ भाव आने के Chances बहुत कम है, आ भी जाए तो टिकने के Chances और भी ज्यादा कम है। यह स्पष्ट बात है।

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