Praying Inside Temple… Angry Outside? : The Truth About Real Religion | Alive Inside Book

हम धार्मिक हैं या सिर्फ़ दिखते हैं?

Jain Media
By Jain Media 199 Views 9 Min Read

कड़वा सच कहूँ तो हम में से ज़्यादातर लोग धर्म करते ही नहीं है। हम बस धार्मिक दिखते हैं। पूजा होती है, लेकिन Transformation नहीं। मंदिर जाना यानी अच्छा इंसान होना। 

लेकिन क्या ये Equation सही है?

अगर आप मानते हो कि सिर्फ Rituals, सिर्फ क्रियाएं काफी है तो ये Article आपको बहुत Uncomfortable करेगा। 

इतनी सारी धार्मिक क्रियाएं करनेवाला Ego में क्यों रहता है?
मंदिर में Jai Jinendra बोलनेवाला बाहर आते ही क्यों बदल जाता है?
हम धर्म कर रहे हैं या धार्मिक Act कर रहे हैं?

आज इस Article के दौरान हम आपसे 4 प्रश्न पूछेंगे If possible उन प्रश्नों के जवाब Comments में ज़रूर दीजिएगा। आज की जो Generation है। Modern Souls कह सकते हैं उनके दिमाग में इस तरह के Questions उठते रहते हैं। 

ऐसे प्रश्नों के Practical & Logical जवाब परम पूज्य पंडित प्रवर श्री त्रैलोक्यमंडन विजयजी महाराज साहेब ने Alive Inside Book में दिए हैं। हम आज Alive Inside Book के 1st Two Chapters को Short में समझने का प्रयास करेंगे। 

ज़रूर Life में एक ऐसा Point आया होगा कि भाई धर्म सच में है क्या? What is religion, really? ये पूजा वगैरह के पीछे सच में कोई रहस्य है या मैं सिर्फ इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि हमेशा से मुझे ये क्रियाएं करने को कहा गया। 

Just imagine एक घर में हमारा जन्म हुआ और हमें Do’s and Don’ts की एक Rulebook थमा दी गई कि इधर सर झुकाना है, ये पहनना है, ये खाना है, ये करना है ये नहीं करना है। हम करते गए.. करते गए.. करते गए और अचानक हमारे अंदर एक आवाज़ उठी। 

Why?
क्यों? 

अब यहाँ वहां पूछने पर शायद इस तरह के जवाब मिलते हैं कि ‘ऐ.. धर्म पर ऊँगली उठाता है? चुपचाप जा पूजा करके आ। ज्यादा दिमाग मत चला। Etc etc..’ लेकिन महात्मा कहते हैं कि Questioning faith is awakening, not Rebellion. 

Questioning Faith is AWAKENING, Not REBELLION.Alive Inside

How amazing! 

प्रश्न उठना या उठाना यानी विरोध या विद्रोह नहीं बल्कि व्यक्ति के जागने का 1st Step है। सच्चा धर्म अंधभक्ति नहीं मांगता सच्चा धर्म Questions को, जिज्ञासाओं को स्वीकारता है। 

जैन धर्म में तीर्थंकर परमात्मा ने कभी ये नहीं कहा कि ‘हे जीव, तुम आँख बंद करके मुझे Blindly Follow करो।’ नहीं.. बल्कि ये कहा कि ‘हे जीव, तुम मोह ग्रसित नींद से उठो.. जागो। अपने प्रश्नों के जवाब ढूंढो। सत्य को पहचानो और फिर सत्य के रास्ते पर चलने का प्रयास करो।’ 

In Jain Philosophy, Questioning is Sacred. 

गौतम स्वामी ने प्रभु महावीर से 36000 प्रश्न पूछे थे। अगर प्रश्न पूछने वाले को Rebellion माना जाता तो गौतम स्वामी को Extreme विनयवान क्यों माना गया? 

Question No.1
क्या आपने कभी धर्म की क्रिया को लेकर प्रश्न खड़ा किया है कि ये क्यों?

हमारा जन्म एक धर्म में हो गया। हमारे अंदर धर्म का जन्म हुआ या नहीं यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। हमने धर्म को एक Cultural Costume मान लिया है। Appearance के लिए पहन रहे हैं Transformation के लिए नहीं। 

हमने प्रक्षाल किया, पूजा की, सामायिक की, तपस्या की, प्रतिक्रमण किया सब कुछ किया लेकिन अंदर अगर कुछ भी बदला नहीं है तो समझना है कि “I have only performed a ritual, not practiced religion. Real religion is Transformation.” 

अगर इतनी क्रियाएं करने के बाद भी दिल में कुछ होता नहीं, हम और ज्यादा जागरूक नहीं बनते, हमारी अंदर की शांति बढती नहीं तो इसका मतलब यह सब हमारे लिए सिर्फ एक Routine हो गया बस Mechanical. 

Religion नहीं बल्कि Rituals का Addiction है बस। Religion is also like a Coconut, Tough on the outside but sweet inside. हम Coconut Shell घिसते जा रहे हैं, घिसते जा रहे हैं, लेकिन असली मिठास तक नहीं पहुँच पा रहे हैं।

Question No. 2
क्या आप कोई ऐसा Moment बता सकते हैं जब किसी धर्म क्रिया के कारण सच में अंदर कुछ Change आया हो?

मान लो हमने आलू प्याज खाने बंद किया लेकिन इस त्याग के बाद अगर अहंकार आए और हम यह सोचे कि ‘जो खाता हो वो पापी, हमसे नीचा, हम Superior, वो छोटा।’ 

हम उन्हें Judge करना शरू करें तो हमने Rule को तो Follow किया लेकिन Actual Reason तो हम भूल ही गए। त्याग Ego को बढाने के लिए नहीं है, त्याग Ego को ख़त्म करने के लिए हैं, आसक्ति ख़त्म करने के लिए हैं।

धर्म-क्या सब्जी खानी क्या नहीं खानी उसके लिए नहीं है। It’s about cultivating Sensitivity यानी संवेदनशील होने के लिए हैं। 

आलू प्याज वगैरह में अनंत जीव है।
भिंडी लौकी वगैरह में कम जीव है। 

The point is not the food.. It’s the Feeling. 

त्याग करने के बाद भी अगर Sensitivity की Feeling Develop नहीं हुई है तो इसका मतलब यह है कि हमने इन Habits को एक Purpose के साथ, उद्देश्य के साथ जोड़ा ही नहीं। हम Destination तक पहुंचे ही नहीं है। हम रास्ते में ही उलझ गए हैं। 

Real Religion Changes The Inner World.. Not Just Our Outer Habits. Alive Inside

हम क्रियाओं में उलझ गए और क्रियाओं के माध्यम से जो पाना था वो तो List में ही नहीं है। 

Question No. 3
धर्म खुद के लिए हैं या Comparison के लिए?

एक व्यक्ति रोज़ एक घंटा पूजा करता है लेकिन आज भी उतना का उतना ही Rude है जितना पहले था। Regularly तपस्या करनेवाला क्यों छोटी छोटी बात पर छिड़ जाता है। दान करनेवाला क्यों Ego को जेब में ही लेकर घूमता रहता है। 

This is the danger of rule-based religion without heart-based transformation. 

पूजा तपस्या दान वगैरह करना गलत है ऐसा नहीं, बिलकुल भी नहीं लेकिन किस कारण से करना बस वह हमने समझा ही नहीं। 

सच्चा धर्म हमें कठोर नहीं बल्कि कोमल बनाता है।
क्रोधी नहीं शांत बनाता है।
अहंकारी नहीं बल्कि नम्र बनाता है।
 

लेखक महात्मा ने 2nd Chapter में बहुत सुंदर Line लिखी है 👇

The Measure Of Religion is Not How Much You Follow, But How Much You Feel.Alive Inside

Question No. 4
कई बार Physically क्रिया करने के बाद भी Mentally Emotionally Spiritually कुछ भी फर्क नहीं पड़ता? इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है?

इस पुस्तक के बारे में एक चीज़ बहुत अच्छी लगी पूज्य श्री ने शुरुआत में लिखा है कि ये कोई Novel नहीं है कि फटाफट पढ़ ली और पुस्तक ख़त्म कर दी। धीरे धीरे Pause करते करते खुद को इसमें Involve करते हुए, खुद की Life से Relate करते हुए पढना है। 

अगर एक Target के साथ पढना है कि 5 दिन में ये पुस्तक पढ़कर ख़त्म करनी है तो हमें लगता है कि ये पुस्तक आपके लिए नहीं है। Sorry… 

So dear Modern Souls, This book is specially written for you.
Because your soul is not lost, It’s just waiting to be heard.

इस पुस्तक को आप Amazon, Flipkart, Notionpress वगैरह Website से अथवा इस QR Code को Scan करके प्राप्त कर सकते हैं। 

Get “Alive Inside” Book Here : https://amzn.in/d/1coIG52

अधिक जानकारी के लिए इस Contact Information पर संपर्क कर सकते हैं 👇
+91 78620 07078

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *