The Concept Of Attachment And Hatred : Friend or Foe – Episode 05

राग और द्वेष गलत ही है ऐसा क्यों?

Jain Media
By Jain Media 6 Views 10 Min Read

पति अथवा पत्नी, परिवार आदि पर राग यानी Attachment सहज है और शत्रु पर द्वेष यानी Hatred सहज है, तो यह Simple दृष्टी आत्मा के लिए रोग ही है क्या और आत्मा के लिए ख़राब ही होता है क्या जिससे उसको छोड़ना पड़े?

प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 05.

बगीचा और कचरा

उत्तर में पूज्य श्री कहते हैं कि जी हाँ, जिसको उत्पन्न करने के लिए कोई ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती और जो सहज ही उत्पन्न हो जाए. फिर सिर्फ टिककर रहे इतना ही नहीं, पर Opposite Situations खड़ी न हो तो दिन दुगुने रात चौगुने बढ़ता ही रहे, वह गंदगी अथवा कचरे का स्थान ही हो सकता है, बगीचा नहीं. 

बगीचा कोई Mushroom नहीं है कि जहाँ तहाँ उग आए, उसको अस्तित्व में लाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, तब कहीं जाकर उसका नक्शा सामने आता है. जमीन को समतल यानी Level करो, फिर उसे जोतो, फिर उसमें बीजारोपण करो, योग्य खाद डालो, पानी पिलाओ न ज्यादा न कम. 

पेड-पौधे तैयार हो जाए फिर फूलों को सड़ने न दो, सड़े हुए पत्तों को पौधों पर न रखो आदि Gardening Science के अनुसार ध्यान रखो तब कहीं जाकर बगीचा बनता है, नहीं तो बना बनाया गुड गोबर होते भी देर नहीं लगती. बगीचा तो सुंदर बन गया मगर इसको बाद में भी नहीं संभालो तो गए काम से. 

पौधों के आसपास कचरे का ढेर इकट्ठा हो गया, इधर-उधर घास उग आई, पतझड में सूखे पत्ते गिरने लगे और हम चैन की नींद सोते रहे तो फिर तो 2-3 दिनों में बगीचा उजड़ गया समझो. ध्यान रखने में आए तो ही बगीचा बगीचे के रूप में रह सकता है वरना घूरा बनते यानी गंदगी होते देर नहीं लगती. 

Summary यह है कि जो सहज ही पैदा हो, टिके और वृद्धि को पाए वह घूरा ही होता है, गंदगी ही होती है, बगीचा नहीं. अथवा तो ऐसा कह सकते हैं कि कुछ प्रयत्न विशेष के बिना पानी जिस गति से चल रहा हो वह अधोगति ही हो सकती है, ऊर्ध्वगति नहीं. यानी पानी बिना किसी सहारे नीचे की ओर ही बहेगा, ऊपर की ओर नहीं. पानी ऊपर की तरफ बहे उसके लिए Pump के Force की जरूरत रहती है यानी विशेष प्रयत्न करना पड़ता है.

मोहराजा की आज्ञा क्या त्यागने जैसी है?

ठीक पानी की तरह, किसी भी तरह की साधना के बिना जो Angle सहज Naturally स्वीकारा जाता है वह कचरा होगा, बगीचा नहीं. उससे दुर्गंध ही फैलेगी, सुगंध नहीं. वह Angle आत्मा की दुर्गति ही कराएगा, सद्गति नहीं. इसलिए वह Angle खराब और त्यागने जैसा ही कहा जाएगा क्योंकि वह मोहराजा की आज्ञा का ही रूप है. 

मोहराजा का मुख्य अंश-Agent जिसे मिथ्यात्व कहा जाता है, उसके नाम का विचार करें तो पता चलता है कि उसके प्रभाव से जो भी कुछ हो वह मिथ्या यानी असत्य ही होता है. काश, अनादि के इस Routine में हित हो ऐसा कुछ होता अथवा सम्यक्त्व निर्मल हो यानी Belief सही हो ऐसा कुछ हुआ होता लेकिन ‘न भूतो न भविष्यति’ वाली यह बात है, ऐसा ना कभी हुआ है और ना ही कभी होगा. 

यदि इसमें हमारा कुछ हित होगा तो वह तीर्थंकर परमात्मा की आज्ञा ही होती. तब मानना पड़ता कि अनगिनत भवों से आत्मा के हृदय सिंहासन पर तारक परमात्मा अधिष्ठित है और यदि ऐसा ही होता तो आत्मा की भवभ्रमणा मिटे बिना रहती नहीं यानी संसार टिक ही नहीं सकता. न रहता संसार, न चलती दुःखों की परंपरा.

इसलिए लगता है कि भगवान हृदय में आज दिन तक प्रतिष्ठित ही नहीं थे, इसलिए सहजरूप से अंदर से उठनेवाली हर एक आवाज मोहराजा की आज्ञा है, इसलिए खराब है और त्यागने जैसी है. 

यहाँ एक प्रश्न खडा हो सकता है कि ‘पति/पत्नी आदि को देखकर यदि हर पल ऐसा सोचे कि ‘ये सभी स्वार्थी है, स्वार्थ के साथी हैं’ आदि तब, आज नहीं तो कल वे शत्रु नहीं लगेंगे क्या? और यदि शत्रु लगने लगे तो हर जीव को मित्र माननेवाली मैत्री भावना गायब नहीं हो जाएगी क्या?’ 

पूज्य श्री कहते हैं कि एक Steel की Rod लीजिए, Right Side Bend कीजिये. अब अगर उसे फिर से सीधा करना हो तो क्या करना होगा? Simple है हम कहेंगे कि अब उसे Left Side Bend करना होगा, तभी वह Rod Neutral हो पाएगी अथवा सीधी हो पाएगी. 

इस Experiment में Note करने जैसा यह है कि इच्छा तो उसे सीधी करने की है, न तो उसे Right Side Bend रखनी है और ना ही Left Side. लेकिन हमने सलाह तो यही दी ना कि Rod को Left Side Bend करनी होगी! 

क्योंकि हम जानते है कि Right Side Bend रहने से उसमें जो संस्कार है, वे अब Left Side Bend करने पर, Left Side Bend करने से Left Side Bend होने के रूप में परिवर्तित होने की तैयारी करते हैं और वहीं Neutrality खड़ी हो जाती है और Steel की Rod एकदम सीधी बन जाता है. Right की तरफ Bend हो चुकी Rod को Straight करने के लिए Left Side मोड़नी होगी.

इसी तरह यही मैत्री अपना Main Goal है लेकिन यह हमारा जीव दुनिया में आँखें खोलता है और दो बातों में Active बन जाता है. कुछ जीवों पर राग का कलश उंडेलता है और किन्हीं जीवों पर द्वेष के अंगारे बरसाता है यानी हमारा जीव राग-द्वेष करता है. इन दोनों का इलाज करना है, Steel की Rod को सीधी करनी है, न उसे Left में मुडा रखना है न Right. 

इसलिए जिनके प्रति राग है उनके प्रति अनित्यादि वैराग्य वाली भावनाओं के सहारे द्वेष तो नहीं लेकिन द्वेष जैसी दिखने वाली प्रक्रिया की जाए और जिनके प्रति शत्रुता के कारण द्वेष है उनके प्रति मैत्री आदि भावनाओं के सहारे स्नेह का, प्रेम वातावरण-माहौल बना दिया जाए. ऐसा करने से राग-द्वेष के संस्कारों में परस्पर Neutrality खडी हो जाती है. Neutral होने का यही Simple Solution है. 

घडी का लोलक

एक ओर रागपरिणाम है दूसरी ओर द्वेषपरिणाम है और मध्यमें है वीतरागता. घडी का लोलक यानी Pendulum जब तक दाएँ-बाएँ झूलता रहता है तब तक छोटे-बडे काँटे का भी घूमना चालू ही रहता है. Pendulum अपना हिलना-डुलना बंद करके मध्य में स्थिर हो जाता है तो काँटों का भी घूमना रुक जाता है. 

जब तक मन राग-द्वेष के बीच झूलता ही रहता है तब तक जीव का संसार परिभ्रमण चलता ही रहेगा और जब यही मन राग-द्वेष के Ends को छोडकर बीच में स्थिर हो जाएगा यानी Neutral हो जाएगा तब जीव के जन्म-मरण के भवभ्रमण की Ending हो जाएगी. उस पर Full Stop लग जाएगा. Opposite अथवा Contradictory लग रही इन भावनाओं से मध्यस्थता Neutrality की प्राप्ति ही हमारा Goal है. 

यहाँ पर एक और प्रश्न उठता है कि राग और मैत्री में फर्क क्या? Attachment और मैत्री में फर्क क्या?

राग-मैत्री का Difference 

स्थूलदृष्टि से व्याख्या की जाए तो कहेंगे कि जिस आकर्षण में स्वार्थ का Angle हो, उसे राग कहते हैं और जिसमें स्वार्थ का पुट न हो उसे मैत्री कहते हैं. 

Materialistic लाभ
Materialistic सुख प्राप्ति की इच्छा यही स्वार्थ है, राग का Starting Point है. तात्पर्य यह है कि एक जीव का दूसरे जीव के प्रति Attraction, Close Relation, Attachment आदि Mainly उस जीव के रूप-स्वर-धन-स्थान-प्रतिष्ठा आदि कारणों पर Depend होता है तो वह राग हैं. 

उसमें Priority उस जीव की नहीं बल्कि उस जीव के आसपास घिरे पुद्गलों की, Materialistic विषयों की हुई. अब Situation बडी ही Sensitive है, मनपसंद रूपरंग बदला नहीं कि Attachment कम पड़ा ही समझो. पुद्गल यानी सरल भाषा में कहे तो Materialistic चीज़.

‘भावाः परिवर्तनशीलाः’ पुद्गल है तो बदलाव आएगा ही और फिर Attraction छू. जिस Attraction, Close Relation, Attachment आदि में सामनेवाले जीव के रूपरंगादि पौद्गलिक तत्त्वों की Importance न हो उसे मैत्री कहते हैं. इस Close Relation में या तो व्यक्तरूप से उस व्यक्ति के क्षमा, नम्रता, संयम आदि आत्मिकगुणों की Priority होगी या सीधी ही जीवद्रव्य की प्रधानता होगी. 

यानी व्यक्ति के पौद्गलिक व्यक्तित्व का इसमें कोई लेना देना नहीं रहता है. इसलिए जब कभी उनमें भारी Change भी आ जाए तो भी उस Attraction में कमी या हीनता नहीं आती क्योंकि वह Attraction आत्मा से हैं, Selfishness की गंदगी से दूर है. 

एक खोजा Family की ज़बरदस्त कथा देखेंगे अगले Episode में.

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *