कर्मसत्ता के खिलाफ किस तरह लड़ना?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 12.
परम शांति-अमन का गुर
शत्रु कर्मसत्ता है कोई व्यक्ति या जीव नहीं, यह तो हमने Episode 11 में Clearly समझ लिया लेकिन इससे जीतना कैसे?
तो पूज्य श्री कहते हैं कि इस शत्रु को यदि सचमुच हराना है तो एक रास्ता है. सभी जीवों का कोई Common शत्रु है तो वह कर्मसत्ता है Right? तो कर्मसत्ता जिन सबकी शत्रु है, वैसी संपूर्ण जीवसृष्टि से मित्रता बांधनी ही पड़ेगी यानी सभी जीवों से मित्रता करनी ही पड़ेगी.
आपसी Personal वैर को, लड़ियों को भूलकर ‘शत्रु का शत्रु अपना मित्र’ इस चाणक्यनीति का सहारा लेना ही पड़ेगा और जिस तरह एक मुहल्लेवालों की दूसरे मुहल्लेवालों से कोई बात को लेकर भयंकर झगडे की नौबत आ जाती है, तब जिसके हाथ में जो आया वह उठाकर दौड़ता है, लाठी-पत्थर-इंट-Soda Water की Bottle आदि.
‘सब एक होकर चलो’ इस तरह चिल्लाती हुई एक भीड़ दूसरी भीड़ से टकराती है. इस धक्का-मुक्की में बहुत बार गिरना-पडना-अपने ही साथियों की चीजों से खरोंचें आना, पाँव छिल जाना, खून निकलना, चोट लग जाना यह सब Negligible बातें कहलाती हैं.
क्योंकि उस समय हर एक व्यक्ति जानता है कि ‘अरे भाई. यह तो अपना ही आदमी है. जानबूझकर थोड़े ही अपना आदमी मुझे मारेगा? थोड़ी बहुत चोट आ भी गई तो भी क्या? और यदि इन छोटी-मोटी चोटों को लेकर हम आपस में ही लड़ मरेंगे तो सामनेवाली Party बहुत आसानी से हम पर हावी हो जाएगी.’
इस प्रकार दंगे-फसादों में कभी कभार अपने खुद से भी लग जाए तो भी हम हमारे मन को मना लेते हैं, हँसते मुँह सहन भी कर लेते हैं. क्योंकि वहाँ अपनापन उभर रहा है कि ‘ये तो अपना ही आदमी है, Adjust कर लो’.
ठीक इसी प्रकार हमारे जीवन में इस अपनेपन का चमत्कार Create करना है और निहारना है.
जगत में मुख्यतया दो पार्टियाँ है, दो Opponents है. एक तरफ खड़ी है सभी जीवों की पार्टी और दूसरी तरफ है जडपुद्गलों की, Materialistic World की यानी कर्मसता की पार्टी. हिन्दुस्तान और पाकिस्तान जैसा ही समझ लो, दोनों की अपनी अपनी Borders हैं.
इसी तरह से एक तरफ कर्मसत्ता और दूसरी तरफ सभी जीव. कई बार व्यक्ति पुद्गलों को यानी Materialistc चीज़ों को अपनाने की छोटे बच्चों जैसी हरकत करता है और Materialistc चीज़ों उससे दूर भागती रहती है.
उदाहरण पैसा ही ले लो, मान लो उसके पास Materialistc चीज़ों का वैभव है और चीज़ों का राग, उसका Attachment वह व्यक्ति दिल में लेकर बैठा हो, और हो सकता है शायद उसके लिए वह अपने प्राणों का भी बलिदान कर दे यानी शहीद भी हो जाए फिर भी अगले अगले जन्मों में वह वैभव साथ में आता नहीं है, ये Materialistic चीज़ें साथ में नहीं आती है.
सभी को पता है कि सब कुछ यही छोड़कर जाना है, लेकिन यह Attachment, यह आसक्ति मृत्यु के समय में और अगले अगले जन्म में उस जीव की हालत ख़राब कर देती है. इसलिए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि Materialistc चीज़ें यानी पुद्गल सभी जीवों की शत्रु पार्टी है.
क्योंकि जिसके हमारे Life में आने से हमें भयंकर नुकसान हो, वह शत्रु ही हो सकता है. जिसको भी इस Materialistic कर्मसत्ता रूप विपक्ष पार्टी के खिलाफ जीतना हो, जो कर्मसत्ता के खिलाफ जीतने की राह पर चल रहा हो, वह कभी किसी अन्य जीव से अपमानित या Injure हो भी जाए तो भी वह उसे Neglect करेगा.
क्योंकि जीव तो अपनी ही पार्टी का मेम्बर है ना. उस समय व्यक्ति यही सोचेगा कि ‘बिचारा अज्ञानी है तभी ऐसा कर रहा है. जान बूझकर तो व्यक्ति ऐसा करता नहीं है और उस व्यक्ति का ऐसा करना भी ठीक भीड़-भाड़ में एक दूसरे के ऊपर पाँव गिरने जैसा है.
बस, इतनी सी बात के लिए यदि मैं उसे शत्रु मान लूँ और उससे लड़ना-झगड़ना शुरू कर दूँ तो कर्मसत्ता के खिलाफ लड़ने की बात तो हम भूल ही जाएंगे और यदि हमारी पार्टी में ही उथल-पुथल हो जाए, हमारे अंदर की एकता ही यदि टूट जाए तो Opponent कर्मसत्ता जो है, वह तो ख़ुशी से उछलने लगेगी.’
याद रखना होगा कि सभी जीवों का Common और बहुत बड़ा शत्रु कर्मसत्ता है, अन्य जीव नहीं!
कई लोगों को लगेगा कि भाई ये कोई Practical बात तो नहीं है. लेकिन बता देते हैं कि अगर इस प्रकार के एकता के विचार यदि हम हमारे दिल में और दिमाग में रखते हैं तो शत्रुता के भावों से बचा जा सकता है, जिसका फायदा फिर से हमें ही होने वाला है.
इन सभी विचारों के Base में 2 बातों को Strongly भर लेना चाहिए कि
1. ‘जगत के सभी जीव मेरी ही Team के लोग है और
2. सबसे बड़ा और Common दुश्मन कर्मसत्ता है.
2nd Point को मन में अगर जमा लिया जाए तो 1st Point को टिकाना नहीं पड़ेगा वह बात मन में अपने आप बैठ जाएगी और हाँ! कर्मसत्ता के सामने जो जंग खेलने के लिए रणभूमि में कूद पड़ा है उसके लिए तो वैसे भी हर एक जीव मित्र रूप ही है क्योंकि अच्छा Behave करनेवाला यदि मित्र कहलाता है तो ख़राब Behave करनेवाला व्यक्ति परम मित्र कहलाना चाहिए.
क्योंकि वह अपने ख़राब अथवा ख़राब आचरण से हमारे कर्मों का नाश करवाता है इसलिए कर्म का नामोनिशान मिटाने में वह अपना अपूर्व योगदान देता है. वह जितनी तकलीफ देगा उतने जीव के कर्म ज्यादा नाश होंगे यदि समता से वह जीव सहन करेगा तो.
शत्रु या मित्र?
कोई परेशान करता हो तो सामान्य व्यक्ति उसे शत्रु समझेगा लेकिन साधक व्यक्ति उस परेशान करने वाले व्यक्ति को अपना सबसे बड़ा मित्र मानता है. वो तो वह सोचेगा कि यह परेशान करनेवाला व्यक्ति मुझे परेशान नहीं करेगा, तकलीफ नहीं देगा, परिषग-उपसर्ग खड़ा नहीं करेगा तो मेरे कर्म कैसे कटेंगे?
इसलिए परेशान करने वाला, तकलीफ देनेवाला व्यक्ति, त्रास देने वाला व्यक्ति, शत्रु नहीं बल्कि मित्र है. अपने Goal को Achieve करने में जो Help करता है, उसे हम परम मित्र ही कहते हैं Right? अपना Goal क्या है?
कर्मों को नाश करना और कर्मों को नाश करने में जो हमारी सबसे ज्यादा Help करें वह तो परम मित्र ही हुआ. कर्मों को नाश करने में सबसे ज्यादा Help परेशान करनेवाला, तकलीफ देने वाला, त्रास देनेवाला व्यक्ति ही करता है. लेकिन Condition यही है कि समता से सहन करना होगा.
एक स्कंदकाचार्यजी की कथा आती है जिसमें पालक ने स्कंदकाचार्य के 500 शिष्यों को घानी में पीसकर ख़त्म करने का कार्य किया, लेकिन उन 500 शिष्यों ने उस पालक को शत्रु नहीं माना, परममित्र माना तो उन्हें केवलज्ञान मिल गया.
यानी केवलज्ञान का Goal Achieve करने में उस पालक ने तो एक Angle से Help ही की है.
एक खंधक ऋषि की कथा आती है जिसमें एक व्यक्ति खंधक ऋषि की जीतेजी चमड़ी उतारने का भयानक कार्य कर रहा है, लेकिन कोई Extra ordinary विचारधारा में खंधक ऋषि चमड़ी उतारने वाले व्यक्ति को कहते हैं कि ‘भाई. तुम्हारे हाथ को तकलीफ न हो वैसा मैं खड़ा रहूँ.’
खुद की चमड़ी उतारनेवाले व्यक्ति को भी अपना मित्र माना.
गजसुकुमाल मुनि की कथा आती है. विवाह के बाद नेमिनाथ प्रभु की देशना सुनी, वैराग्य हुआ और दीक्षा ली. सोमिल ससुर क्रोधित हुआ और गजसुकुमाल मुनि के सर पर मिटटी की पाल में धधकते जलते अंगारे डाल दिए लेकिन गजसुकुमाल मुनि सोच रहे हैं कि अरे मैं तो जमाई के तौर पर अच्छा काम कर रहा हूँ, मुक्ति से विवाह कर रहा हूँ.
ससुरजी ने तो आकर शाबाशी दी है, लाल चुनरी की पगड़ी मेरे सिर पर बाँधी है. सर पर अंगारे डालनेवाले अपने ही ससुर को अपना सहयोगी माना, मित्र माना. बस इन सात्विक विचारों ने काम कर दिया और उन्हें केवलज्ञान हो गया, कर्मसत्ता को घुटने टेकने पड़े और हार माननी ही पड़ी.
दुनिया के व्यवहारों में डूबा हुआ व्यक्ति जो तत्त्वों को नहीं समझता, धर्म, आत्मा आदि को नहीं समझता, कर्मसत्ता को नहीं समझता, वह व्यक्ति भले अपने 25-50 करीबियों को ही अपना मानता है और दूसरों को वह भले पराया माने.
लेकिन जो व्यक्ति धर्म को, आत्मा को, तत्त्वों को समझा है, कर्मों को समझा है, कर्मसत्ता की तकलीफों से परेशान है, कर्मसत्ता के Concept को समझा है और धर्मसत्ता की शरण स्वीकार कर जिसने कर्मसत्ता को Challenge किया है, उसको तो यह मानना ही चाहिए कि हर एक जीव मेरे मित्र है और किसी भी व्यक्ति को वह पराया नहीं मानेगा.
युधिष्ठिर का Calculation
युधिष्ठिर का Calculation काम में लेना चाहिए. दुर्योधन की पत्नी भानुमती ने विनती की ‘दुर्योधनादि को किसी व्यक्ति ने बंदी बना दिया है. आप उन्हें छुड़वाइए, मैं सहाय की भीख माँग रही हूँ.’
भानुमती की बात को सुनते ही युधिष्ठिर खड़ा हो गया. भीम और अर्जुन इस बात पर उनसे सहमत नहीं थे कि ‘जब दुर्योधन अपना शत्रु ही है तो क्यों उसे दुःख से छुड़वाया जाए, अपने पाप वह भुगतेगा.’
तब युधिष्ठिर कहते हैं ‘घर में भले हम पाँच ही हैं मगर जब कभी बाहरी शत्रु का आक्रमण होता है तब हम पाँच नहीं, पूरे एक सौ पाँच हैं. दुर्योधन आदि आख़िर हमारे भाई ही है.’ और यह कहकर युधिष्ठिर ने दुर्योधन वगैरह को मणिचूड विद्याधर से छुड़वा दिया.
यह गणित था युधिष्ठिर का.
Common बड़ा शत्रु है तो उसके खिलाफ सबको एक होना ही पड़ता है.
जब जनता Party आई थी
श्रीमती इंदिरा गांधी करीबन 16 वर्षों तक Prime Minister रही. इस बीच 2.5 वर्ष तक श्री मोरारजी देसाई की जनता सरकार सत्ता में आई. जनता पार्टी की जीत हुई, मुख्य कारण था इंदिरा सरकार द्वारा Emergency, महंगाई आदि.
जनता परेशान हुई और नए चुनावों में इंदिराजी का स्थिर सिंहासन अस्थिर कर दिया. इंदिरा सरकार को आखिरकार हटना पड़ा और जनता सरकार आई और हर चीज़ सस्ती हो गई. 6 से 7 रुपये पहुँची हुई शक्कर ढाई रुपये की हो गई.
अन्य चीजों में भी भावों को घटाया गया और महँगाई को काफी हद तक Control किया गया. इतना हुआ फिर भी जनता सरकार ने अपने पाँच वर्ष को पूरे नहीं किए, बीच में चुनाव करना पड़ा और Congress के सामने हार का सामना करना पड़ा. ऐसा क्यों?
इसलिए कि एकता की नींव हिल गई.
इसलिए कि कुर्सी के लालच ने हर एक को विचलित कर दिया.
अंदर ही अंदर आग लग गई. कईयों को विचार आने लगा कि ‘मैं प्रधानमंत्री बनूँ’, ‘मैं प्रधानमंत्री बनता हूँ’. एक Fact को सभी भूल ही गए कि ‘हमारी मुख्य Opponent पार्टी कांग्रेस है. लड़ना तो उससे था मगर लड़ने लगे अंदर ही अंदर, एक दूसरे की टांग पकड़कर खींचने का सिलसिला शुरु हो गया.
ऐसा कहते हैं कि खुद का ही घर फूंक दिया. खुद तो बने नहीं लेकिन खुद के सदस्यों को भी नीचे ला दिया. अब सोचिए इस Personal लड़ाई में फायदा किसे हुआ? ऐसा आज की राजनीति में भी होता ही है, हम देखते ही है.
हमें तो इससे यह सीखना है कि जो Main Enemy यानी Main Common Opponent को भूलकर आपसी झगड़े से बाज़ नहीं आते उन्ही का ऐसा परिणाम होता है. याद रखिए कि Common शत्रु के सामने सभी को एक होना ही पड़ेगा. वरना जीतना Impossible हो जाता है.
कुलमिलाकर हमारा असली शत्रु कर्मसत्ता है, और कर्मसत्ता के खिलाफ लड़ने के लिए हर जीव को अपना मानना ही होगा, तकलीफ नहीं देनेवाला भी अपना है और तकलीफ देनेवाला भी अपना ही है. Personal Fights को भूलना ही पड़ेगा, वरना कभी भी कर्मसत्ता के खिलाफ जीत नहीं पाएंगे.
देखने जाए तो हम एक बहुत बड़े भ्रम में फंसे हुए हैं, इस भ्रम का Analysis Depth में देखेंगे अगले Episode में.