The Math of Love : Why Do We Forgive Our Loved Ones’ Mistakes ? | Friend or Foe – Episode 14

चौंका देनेवाला खुलासा : क्या हम सच में जीवों से प्यार करते हैं?

Jain Media
By Jain Media 32 Views 11 Min Read

हम मनुष्यों की एक भयानक Mistake क्या है?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 14.

कैसी भयंकर भूल

Episode 13 में हमने Clearly देख लिया कि ‘जड़ के प्रति अपनी आत्मीयता है’ अर्थात् Materialistic चीज़ों के साथ हमारी Bonding बहुत Strong है.’ 

हमारा Attraction Materialistic चीज़ों के प्रति इतना गहरा है कि हम आँख बंद करके भी जड़ पर विश्वास करते हैं. कुल मिलाकर हम जड़ की पार्टी को ही यानी कि Materialistic चीज़ों को ही हमारी अपनी पार्टी तय कर चुके हैं. 

इसके सामने, जीवों की पार्टी को हमने विपक्ष यानी कि Opponent पार्टी मानी है. इसलिए हमें न तो उनके प्रति आकर्षण है न उनके गुणों के प्रति आकर्षण है. यदि थोडा बहुत आकर्षण (Attraction) किसी जीव के प्रति हो तो भी वह उसकी पौद्गलिक समृद्धि के कारण ही, पौद्गलिक समृद्धि यानी संपत्ति, रूप, पद, प्रतिष्ठा आदि. 

पुद्गल और जीव के प्रति हमारे रुख में यह जो Difference है, उसके कारण हमारे दिमाग में एक अजीबोगरीब Calculation बैठ जाता है.

प्रेम का Calculation अलग है 

यह Calculation किसने बनाया पता नहीं, कब बनाया पता नहीं, किसने किसको सिखाया पता नहीं.. फिर भी एक बात Fix है व्यक्ति जब दुनिया में पहली बार अपनी आँख खोलता है तभी से वह इस सूत्र को, इस प्रेम के Calculation को पढ़ा हुआ ही होता है-यानी By Birth वह ये बात अपने दिमाग में लेकर आता है.

वह Calculation है-
‘अपनापन जितना अधिक, उसकी भूल उतनी अधिक क्षमा करने जैसी.’ 

अंग्रेजी में कहावत है ‘When the Love is thick, Fault is thin. When the Love is thin, Fault is thick.’ यह है प्रेम का अजीब Calculation. जब प्रेम बहुत होता है तब भूल छोटी लगती है और जब प्रेम कम होता है तब वही भूल बड़ी-बहुत बड़ी लगती है. 

इसे एक Situation के साथ समझते हैं.

एक व्यक्ति का Favourite Flower Pot अगर उसके किसी नौकर से फूट जाए तो वह क्या Punishment देगा? उसका एक पुत्र है जो अपने माता-पिता की बहुत Respect करता है, विनयशील पुत्र है और उससे अगर वह टूट जाए तो क्या सजा देगा? पत्नी-जिससे वह बहुत प्रेम करता है उससे चूर-चूर हो जाए तो किस तरह React करेगा? 

और यदि खुद उस व्यक्ति से ही वह टूट जाए तो वह क्या करेगा? गुनाह तो सबने एक जैसा किया. लेकिन क्या सभी गुनहगारों को एक ही न्याय मिलेगा? या कुछ Difference होगा? नुकसान तो सबने एक जैसा किया है लेकिन सज़ा में फर्क होगा Right? ऐसा क्यों? जवाब स्पष्ट है. 

नौकर की जितनी बड़ी गलती लगती है, पुत्र की उतनी नहीं लगेगी, पुत्री की जितनी बड़ी गलती लगती है उतनी पत्नी की नहीं लगेगी, और पत्नी की जितनी बड़ी गलती लगती है उतनी खुद की नहीं लगेगी. Right? यह एकदम स्वाभाविक है, Natural है. कभी न कभी तो ये Experience हुआ ही होगा.

जितनी डांट नौकर को पड़ेगी उतनी बेटे को नहीं पड़ेगी, जितनी बेटे को पड़ेगी उतनी पत्नी को नहीं पड़ेगी, और जितनी पत्नी को पड़ेगी उतनी खुद को तो बिलकुल भी नहीं. अरे, खुद से यदि टूट जाए तो शायद दिल में दुःख जरूर लगता है कि अरे यार धत्त टूट गया, मगर ‘मैं अपराधी हूँ, मुझे सजा मिलनी ही चाहिए, डांट पड़नी ही चाहिए.’ ऐसा लगता ही नहीं. 

यही Calculation पुद्गल VS जीव में है. 

पुद्गल के ऊपर राग इतना ज्यादा है यानी Materialistic चीज़ों के ऊपर Attachment इतना ज्यादा है कि वह हजार गुनाह करे तो भी माफ है. वह लाख परेशानियां खड़ी करे, तो भी भूल दिखती ही नहीं है, इसलिए पुद्गल पर द्वेष या क्रोध उत्पन्न नहीं होता जबकि आज दिन तक जीव के ऊपर वास्तविक प्रेम-मैत्री उत्पन्न ही नहीं हुई. 

इसलिए उसकी एक भी भूल व्यक्ति सहन ही नहीं कर पाता. उल्टा उस पर आग उगलने लगता है, भयंकर द्वेष करने लगता है. 

1444 ग्रन्थों के रचयिता आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी महाराजा ने अपने अष्टक प्रकरण में बताया है कि ‘राग यानी कि Attachment, जीव और पुद्गल दोनों की ओर होता है, जब कि द्वेष यानी कि Hatred जीव पर ही होता है, पुदगल पर नहीं.’ 

इसमें भी बताया गया है कि जो राग जीवों पर होता है वह भी पौद्गलिक राग के कारण ही होता है, ऐसा लगता है. अर्थात् सही ढंग से सोचा जाए, तो एक ही बात Clearly नज़र आती है कि ‘पुद्गल पर राग… जीव पर द्वेष.’ जीव अनादी काल से यही करता आया है यह एक Fact है. 

इसलिए जैसे पिछले Episodes में हमने देखा है कि इस अनादी काल की हमारी चाल को बदलने की ज़रूरत है. इसके लिए Episode 05 ख़ास फिर से देख सकते हैं. हमें Neutral बनना है लेकिन उसके लिए Actions Opposite करने पड़ेंगे. 

Solution 

‘जड़ पर द्वेष = वैराग्य, जीव पर राग = मैत्री.’ पुद्गल का आकर्षण हटाए बिना जीव के प्रति आकर्षण पैदा नहीं हो सकता. पुद्गल और जीव दोनों Opposite है.

मान लो एक भाई बहुत ही धार्मिक है, धर्म में रूचि रखनेवाला है और दूसरा भाई धर्म के प्रति भयंकर द्वेषवाला है. ऐसे बिलकुल Opposite Nature वाले दो भाई एक घर में शायद साथ में रहते भी हो तो भी वह संबंध एक दम कच्चा होता है, कब टूट जाए कह नहीं सकते. दोनों यदि अपनी अपनी सोच पर कायम रहे तो आज नहीं तो कल उनका संबन्ध टूटने वाला ही है.

इसी प्रकार जीव और जड़, ये दोनों बिलकुल विपरीत (Opposite) स्वभाववाले हैं. जीव अमूर्त है, न उसमें रूप है, न रस, न गंध है, न स्पर्श. जबकि जड़ मूर्त है. उसमें रूप भी है और रस भी, गन्ध भी है और स्पर्श भी. 

जीव नित्य है, शाश्वत है.
जड़ अनित्य है, नश्वर है.
जीव में चेतना है.
पुद्गल में कोई चेतना नहीं है, सर्वथा ज्ञानशून्य जड़ है. 

सामान्यतौर पर आप यदि दुनिया में भी देखेंगे तो पता चलेगा कि जिसे जीवों पर सच्चा प्रेम है उसे पुद्गलों का राग अधिक नहीं होगा, और जिन्हें पुद्गल का राग अधिक है वह जीवों को सच्चा प्रेम नहीं कर पाएगा. 

अब सोचने जैसी बात है कि एक है East, दूसरा है West. इन दोनों का मेल हो भी तो कैसे? और हो भी जाए तो टिकेगा कब तक? आज नहीं तो कल टूटेगा जरूर और आत्मा जितनी जितनी उस जड़ को चिपकने के लिए जाएगी उतनी ही उसकी दुर्दशा होगी. 

इसलिए तो ज्ञानी सलाह देते हैं कि ‘भैया! पुद्गल का आकर्षण तोड़ो और जीवों से मैत्री जोड़ो.’

हमें अब पुद्गल को Opponent पार्टी मानना है और जीवों को अपनी पार्टी मानना है. किसी भी जीव की ओर से परेशानी-ख़राब बर्ताव हो तो Let go का सुवर्ण सूत्र पकड़ना ही होगा क्योंकि यह बर्ताव अपनी ही पार्टी के व्यक्ति के द्वारा हुआ है. बस, यह सोचा नहीं कि आपका सर बरफ जैसा ठंडा बन जाएगा, न झगडा होगा न टंटा. शत्रुता के भाव भी परिवर्तित हो जाएँगे. 

कहते है न ‘United we stand, Divided we fall.’

‘संप त्यां जंप- संहतिः कार्यसाधिका’

ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि ‘जीवों के साथ संघर्ष को नहीं, Fights को नहीं, मैत्री को विकसित करो. सभी जीवों के साथ अच्छा Relation खड़ा करो तो ही कर्मसत्ता के छक्के छुड़वा सकोगे. जीवों के साथ यदि ख़राब Relation होगा तो आपको मुँह की खानी ही पड़ेगी.’ 

तभी तो गाना है ‘जिस खून में मैत्री बहती है, उस खून में शक्ति रहती है.’ 

एक पिता अपने अंतिम समय में है, चेहरे पर थोड़ी सी Tension साफ़ साफ़ दिख रही है. सभी बेटे विनीत और पिता की सेवा करनेवाले थे. पुत्रों ने देखा कि पिताजी के चेहरे पर साफ़ Tension दिख रही है तो कारण पूछ लिया. पिताजी बुद्धिमान थे. 

पुत्रों को अलग ढंग से शिक्षा देना चाहते थे. लडखडाती आवाज़ में बोले ‘प्यारे पुत्रो. एक काम करो, सामने जो Room है, उसमें से लकडी की गठरी उठा लाओ.’ चारों पुत्र आज्ञाकारी थे, उठे-दौड़े और पलक झपकते ही लकडी की गठरी हाज़िर. 

पिताजी ने कहा कि ‘अब इस गठरी के दो टुकड़े करो’. सबने कोशिश की लेकिन टुकड़े नहीं हुए. अब पिताजी ने मुस्कुराते हुए Order दिया कि ‘गठरी खोलो और एक-एक लड़की तोड़ो’. लड़कों ने हाथ में ली एक एक लकड़ी और चट् यह टूटी पट् वह टूटी. बस, सबकी सब टूटकर दो हो गई. 

पिताजी ने ज़बरदस्त सलाह दी कि ‘याद रखो, जब तक तुम चारों भाइयों में एकता होगी तब तक कोई तुम्हारा बाल बांका नहीं कर पाएगा और जिस दिन तुमने अलग-थलग अपनी खिचड़ी पकानी शुरू की उसी दिन तुम्हारा विनाश है. यह बात दिमाग और दिल में बिठा देना.’ 

Experienced आदमी की यह बात हमारे लिए भी Diary में Note करके रखने जैसी है. जीव यदि मैत्री भावना से सारी जीवसृष्टि से जुड़ा रहता है तो मज़ाल है कर्मसत्ता की कि वह जीव को तंग कर सके? और ठीक इससे विपरीत यदि जीव शत्रुता की दीवार खडी कर संपूर्ण जीवसृष्टि से अलग-थलग हो जाए तो विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो अकेले पड़े हुए उस व्यक्ति को कर्मसत्ता की मार से बचा सके. 

इसलिए बार बार यह लाइन खुद से कहनी है
‘जिस खून में मैत्री बहती है, उस खून में शक्ति रहती है.’ 

कर्मसत्ता को Tackle करना इतना Easy नहीं है.
कर्मसत्ता की भयानक नीति क्या है?
जानेंगे अगले Episode में.

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