कर्मसत्ता की भयानक नीति क्या है?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 15
Divide and Rule
हिन्दुस्तान के राजा कमजोर नहीं थे, शक्तिशाली थे. डरपोक नहीं, शूरवीर थे. राजाओं के पास ज़बरदस्त सेना थी. Weapons भी भरपूर थे. युद्ध को लेकर भी पूरे Trained और जानकार थे. फिर भी हजारों KM दूर से कम संख्या में आए अंग्रेज़ कैसे जीत पाए? आखिर कैसे उन्होंने पूरे भारत को गुलामी के बंधनों में जकड़ा?
भारत में राजाओं की सेना और अंग्रेजों की सेना का Comparison करो तो ऐसा लगेगा-कहाँ हिमालय और कहाँ राई, कहाँ हाथी और कहाँ चींटी. ऐसी Situation में अंग्रेजों के जीतने के 10% Chances भी नहीं थे. फिर भी वे जीते यह Fact है. आखिर किस बल पर?
शत्रु पर फतेह पाने का तरीका
अंग्रेजों ने ‘Divide and Rule’ यही Method अपनाया था. जिससे ‘भारतीय आपस में एक दुसरे से लड़-झगड़कर कमज़ोर बन जाएँ, फिर उन पर राज करो’. इस कातिल भेदनीति के चलते मुट्ठीभर अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान का हर रूप से शोषण किया, Exploitation किया.
ज्ञानीभगवंत कहते हैं ‘कर्मसत्ता शक्तिशाली नहीं है. कर्म की शक्ति से बढ़कर है जीव की शक्ति. जब जीव वह शक्ति प्रकट करता है तब सभी कर्म नष्ट हो जाते हैं और प्राप्त होता है केवलज्ञान और मोक्ष.’ अर्थात् कर्मसत्ता से भी जीव की शक्ति कई गुना ज्यादा Powerful है.
इसके बावजूद कमज़ोर कर्मसत्ता शक्तिशाली जीव पर अपना राज चलाती है. कारण ‘Divide and Rule’. यह कर्मसत्ता जीवों में ‘आपस में मैत्री ना रहे, एकता ना हो जाए’ इसलिए शत्रुता की भयंकर दीवार खड़ी कर देती है और फिर मज़े से राज करती है. अनंतकाल तक जीव को मोक्ष जाने नहीं देती इधर उधर पटकती रहती है.
कर्मसत्ता जानती है कि ये जीव आपस में जब तक लड़ते रहेंगे तब तक मेरा राज चलता रहेगा.
जिस प्रकार अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान के राजाओं को छोटे बड़े लालच दिए, मदद करने की तैयारी बताई, हर तरीके से Brainwash किया और फिर अंग्रेजों के लिए रास्ता Clear हो गया. East India Company ने इन अकेले-छोटे राजाओं को देखते ही देखते मसल दिया, निचोड़ दिया.
अरे कर्मसत्ता ने जीव को कब लालच दिया?
कर्मसत्ता ने कई प्रकार के लालच से जीवों को फंसाया है. किसी को धन का, किसी को सत्ता, मान-सम्मान का, किसी को पाँच इन्द्रियों के वैषयिक सुखों का तो किसी को समाज में स्थान प्रतिष्ठा यशकीर्ति आदि का लालच. कर्मसत्ता द्वारा इसी लालच में जीव हमेशा फंसता आया है और आज भी फंस ही रहा है.
जीव कर्मसत्ता द्वारा दिए गए इन Materialistic चीज़ों के लालच में फंस जाता है और इन चीज़ों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता है. धन प्राप्ति में कोई रूकावट बन रहा हो तो उस अन्य जीव के प्रति कट्टर शत्रुता पैदा कर देता है.
जैसे ही शत्रुता पैदा हुई नहीं कि कर्मसत्ता अपनी चालबाजी से दोनों जीवों की लड़ाई में मज़ा लेती है. दोनों को कर्मसत्ता के खिलाफ लड़ना था, Common शत्रु कर्मसत्ता थी, लेकिन आपस में लड़ पड़े तो Common बड़ा शत्रु हावी होगा ही, फिर कर्मसत्ता नाच नचाती है और दोनों जीवों को इधर उधर पटककर भटकाती है.
अब ठंडे दिमाग से सोचने जाए तो कर्मसत्ता ने लालच किसका दिया? Materialistic चीज़ों का, पुद्गलों का. ये Materialistic चीज़ें न कभी जीव की हुई है, ना जीव की है और ना जीव की कभी होनेवाली है.
सबको पता ही तो है आखिर में सब राख हो जाना है, फिर भी जो वस्तु जीव की है नहीं और कभी हो सकती नहीं, उस वस्तु के लिए जीव आपस में लड़ते हैं और हावी होती है कर्मसत्ता. कुछ इस तरह से कर्मसत्ता जीव को लालच देकर महामूर्ख बना देती है.
ये तो ऐसा हुआ जैसे छुट्टियों के दिन थे, सेठ जी अपने परिवार के साथ Train से Travel कर रहे थे. भयंकर भीड़-भाड़ थी तो अन्य Passengers के कारण थोड़ी धक्का-मुक्की हो गई, और पागल सेठ अपने ही परिवार से हाथापाई करने लग जाते हैं. जीव भी इस सेठ की तरह ही मूर्ख है. सेठ जी को कौन समझाए कि अरे भाई अन्य Passengers तो 2-4 घंटे ही Train में रहेंगे, पूरा जीवन तो अपने परिवार के साथ गुजारना है तो परिवार के साथ क्यों लड़ रहा है भाई?
इसी तरह Materialistic चीज़ें तो Max to Max इस भव में हैं, इस जन्म में है, अगले जन्म में कुछ भी साथ आनेवाला नहीं है, ये शरीर भी नहीं, लेकिन अनंतकाल तो जीवों के साथ गुजारना है, तो Temporary Materialistic चीज़ों के लिए जीवों के साथ शत्रुता कहाँ की समझदारी है? ये चीज़ें तो साथ में नहीं आएगी लेकिन शत्रुता अनंतकाल तक भटका सकती है.
ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि आत्मगुणों के कारण कभी भी किसी भी जीव के साथ शत्रुता नहीं होती, कम-ज्यादा Materialistic चीजों के कारण ही शत्रुता होती है. कम-ज्यादा, अच्छा-बुरा देना यही तो कर्मसत्ता के द्वारा जीवों को आपस में लड़ाने का कातिल शस्त्र है.
एक के पास महंगा फ़ोन, एक के पास सस्ता फ़ोन, एक के पास 4 BHK Flat with extraordinary furniture, एक सीधा सादा 2 BHK में. एक के पास करोड़ों रुपये तो दुसरे की जेब में मुश्किल से 500 रुपये. एक बहुत ही ज्यादा Beautiful और दूसरा बिलकुल भी Beautiful नहीं.
बताई गई इनमे से एक भी चीज़ Permanent रहनेवाली नहीं है फिर भी एक दुसरे की ये चीज़ें देखकर, Temporary Status देखकर, ऐसी चीज़ें जो साथ में आनेवाली नहीं है, फिर भी ये देख देखकर Comparison करते रहते हैं और किसी ना किसी के प्रति इर्ष्या, शत्रुता करते रहते हैं.
कर्मसत्ता को यही तो चाहिए कि जीव लड़ते रहे. जब तक जीव लड़ते रहेंगे तब तक कर्मसत्ता के अधीन रहेंगे, कर्मसत्ता का राज चलेगा. In short-कर्मसत्ता ने Divide and Rule करने के लिए पुद्गलों को, Materialistic चीज़ों को मोहरा बनाया है, और हम सब इसमें फंसते जा रहे हैं.
दो भाई जब आपस में लड़ते हैं तब क्या होता है? यह हम Episode 16 में देखेंगे.