How Long Should We Endure the Hardships ? | Friend or Foe – Episode 17 |

तकलीफों को कब तक सहन करना?

Jain Media
By Jain Media 33 Views 14 Min Read

हम अगर सहन करते रहेंगे तो हमारे साथ अन्याय होता रहेगा ना!
जो हमारे साथ गलत करेगा उसका क्या?

प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 17

Karma Satta : Nature’s Court

एक सज्जन व्यक्ति था, उसका पडोसी उसे बहुत परेशान करता था, मानो जब तक तंग नहीं करे तब तक उस पडोसी का खाना हज़म नहीं होता था. कभी घर के बाहर कचरा फेंक देता था, तो कभी सार्वजनिक नल से पानी भरते वक्त कुछ ना कुछ मस्ती करता था. 

इतना ही नहीं रात के 12-12 बजे तक वह पडोसी अपने दोस्तों के साथ शोर मचाता था, TV Music System आदि बजाकर आस पास रह रहे सभी लोगों की नींद हराम करता था. सब उसे हाथ जोड़कर विनंती करते थे कि ‘भैया! मेहरबानी करो, हम लोगों को चैन की नींद सोने दो” 

लेकिन उसे तो कोई फर्क नहीं पड़ता था, उल्टा लोगों को गालियाँ देकर सबका अपमान करता था. झगडा यानी उसकी Hobby समझ लीजिए. कभी तो सारी हदें पार करके इस सज्जन व्यक्ति की बेटी पर भी मज़ाक कर देता था. 

सज्जन व्यक्ति इस बदमाश पडोसी से पूरी तरह से परेशान हो चुका था. 

एक दिन ऐसे ही किसी कारण से सज्जन व्यक्ति और इस बदमाश पडोसी के बीच कहा सुनी हो गई और पडोसी को गुस्सा आ गया. पडोसी हाथ में लाठी लेकर आया. यह देखकर सज्जन व्यक्ति भी गुस्से में लाल हो गया. 

सज्जन व्यक्ति खुद की रक्षा के लिए और इस शैतान पडोसी को मज़ा चकाने के लिए हाथ में लाठी लेकर आया. सज्जन व्यक्ति Extreme क्रोध में था, ऐसा खतरनाक तरीके से पडोसी पर हमला किया कि वह पडोसी बेहोश होकर गिर पड़ा. 

आस-पास देख रहे लोगों ने तो खुशियाँ मनाई कि मोहल्ले की एक बड़ी तकलीफ मिट गई और सब नाचने लगे लेकिन कुछ भी देर में पुलिस वहां पर आ गई और बहुत बड़ा Case इस सज्जन व्यक्ति के खिलाफ दर्ज किया गया. 

Court में सज्जन को कठघरे में खड़ा किया और उसने अपनी पूरी बात बताई कि ‘किस तरह से वह शैतान पडोसी तंग करता था लेकिन फिर भी सब कुछ शांति से सहन किया लेकिन जब वह लाठी लेकर मारने आया, तब मैं भी आपे से बाहर हो गया और फिर ऐसा घातक हमला कर दिया’ 

सुनवाई पूरी हुई और Court ने सज्जन व्यक्ति की बातों को सुनकर फैसला दिया. 

सज्जन व्यक्ति की बातें सुनकर, अदालत को No Doubt यह सज्जन व्यक्ति लगा और यह भी स्वाभाविक है कि ऐसी परिस्थितियों में मनुष्य अपना संतुलन खो बैठता है. फिर भी Court इस सज्जन व्यक्ति को निर्दोष नहीं छोड़ सकती, क्योंकि उसने कानून अपने हाथ में लिया है. 

जंगलों में रहनेवाले डाकू आदि भी इसी तरह डाकू बनकर खून बहाते हैं. क्या वे सब निर्दोष है? और Practically ही सोचे और हम भले निर्दोष माने पर क्या कोर्ट इन लोगों को ऐसे ही छोड़ देगी?

अंधा कानून

देश में कायदा-कानून और व्यवस्था बनाए रखना और उसका पालन करवाना यह काम Court का है, नागरिक का नहीं. सुरक्षाकर्मियों का है, Police का है, अन्य का नहीं. किसी भी नागरिक को किसी अन्य नागरिक से Problem हो, तो उसे Court को-सरकार को-Police को Complaint करनी चाहिए. 

तब Court अपराध के लिए उसे दण्डित करती है और नागरिक के जानमाल की सुरक्षा करती है लेकिन पीड़ित नागरिक परेशान करनेवाले व्यक्ति को सज़ा नहीं दे सकता, उसको अधिकार नहीं है. 

क्योंकि यदि नागरिक ही सजा देने बैठ जाए, तो उसका सीधा अर्थ यह होता है उसने कानून को अपने हाथ में ले लिया. इस प्रकार यदि हर इन्सान कानून में Interfere करने लगेगा, तो देश में अराजकता फैल जाएँगी, चारों ओर आतंक का साम्राज्य खड़ा हो जाएगा. 

हर कोई अपने हिसाब से अन्य को सजा देगा और ऐसा हुआ तो फिर सरकार देश को कैसे चला पाएगी? हम खुद कहेंगे ना भाई ना ऐसा Freedom हम नहीं दे सकते!

देखिए Criminal तो Criminal ही है. उसको तो Court सज़ा देगी ही लेकिन कोई नागरिक कोर्ट से ऊपर जाकर के गुनेहगार को स्वयं सज़ा करने लग जाए तो वह नागरिक भी Court की दृष्टि से गुनेहगार है, दण्डनीय है. फिर चाहे वह सज्जन व्यक्ति ही क्यों ना हो. 

इसीलिए इस सज्जन को भी Court उचित सजा फरमाती है.

प्रकृति की अदालत 

Court अपने कार्यों में किसी ऐरे गैरे व्यक्ति का Unauthorized Interference पसंद नहीं करती और यदि कोई उसमें Interfere करें तो सहन करने की बजाय उस नागरिक को सजा देती है. जिस तरह देश के तंत्र के लिए Court है. उसी तरह विश्व का भी तंत्र है. 

आखिर विश्व का तंत्र किसके हाथ में हैं?
कौन चलाता है?

विश्व का तंत्र चलानेवाले का नाम है कुदरत.
जी हाँ! कुदरत – कर्मसत्ता. 

सभी के सभी जीव इस कर्मसत्ता के प्रजाजन है, नागरिक है. कोई भी जीव किसी अन्य जीव के साथ अनुचित बर्ताव करें तो उसे Punish करने के लिए, सजा देने के लिए प्रकृति की सरकार ने कर्मसत्ता नामक Court की स्थापना की हुई है.

यानी कोई भी प्राणी मिथ्यात्व का आसेवन आदि अयोग्य बर्ताव करे या अन्य प्राणी को गाली गलौज़, अपमान आदि अनुचित रूप से पीडित करे, या कोई चोरी करे, खून- डकैती करे या किसी भी तौर-तरीके से तंग करे तो कर्मसत्ता नाम की यह Court उस प्राणी के गुनाह को देखकर दण्डित करती है. 

इसी रूप से ‘कानून की ऐसी तैसी, कानून क्या करेगा?’ बोलनेवालों को दिन दहाडे तारे दिखाकर कायदा-कानून और व्यवस्था रखती है. इसलिए तो हम कहते हैं कर्म किसी को नहीं छोड़ते! तीर्थंकरों को नहीं छोड़ा तो हम क्या चीज़ है? 

जो बेगुनाह हो, Innocent हो, उसे इस अदालत में इन्साफ के जरिए बाइज्जत बरी कर दिया जाता है. मगर जो व्यक्ति परेशान या तंग करने के बदले अन्य व्यक्ति को सजा देने के लिए निकल पड़ता है, कर्मसता उसे माफ नहीं करती. 

कर्मसत्ता को यह मंजूर नहीं कि ‘मेरे इस कार्य में कोई व्यक्ति अपना दिमाग लगाए या माथापच्ची करे.’ जो व्यक्ति कर्मसत्ता के कार्य को अपने हाथ में लेने की गलती करता है, उस व्यक्ति को कर्मसत्ता अपराधी मानती है.

कभी तो ऐसा भी हो सकता है कि मान लो एक अच्छे व्यक्ति के खिलाफ गुनाह हुआ और वह अच्छा व्यक्ति परेशान होकर उस गुनाहगार के खिलाफ खुद मैदान में उतरकर बदला लेता है तो कर्मसत्ता इस हस्तक्षेप को अपराध मानती है और इस अपराध को बड़ा और अक्षम्य मानकर कड़क से कड़क सज़ा फटकार देती है और हो सकता है यह सजा उस गुनाह से भी बड़ी हो. 

इसे Example के साथ समझते हैं तो Clear हो जाएगा.

A ने B को एक थप्पड़ मारा.
A ने तो गुनाह किया. A को सजा देने का अधिकार B के पास नहीं था फिर भी B ने खुद मैदान में उतरकर A को 2 थप्पड़ मारे. 

कर्मसत्ता को यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं आई इसलिए कर्मसत्ता ने B को अपराधी माना और सजा सुनाई कि B को 5 थप्पड़ पड़ेगी. यानी B एक थप्पड़ के खिलाफ मैदान में उतरा था, लेकिन अब कर्मसत्ता ने 5 थप्पड़ और Add करवा दिए. 

तो जो गुनाह होता है उससे भी बड़ी सजा कर्मसत्ता दे सकती है इसलिए Interference तो बिलकुल भी Allowed नहीं है.

Bitter Medicine 

यह एक कड़वा सच है. जिसको भयंकर सजा नहीं चाहिए उसे इस सत्य को बराबर घूंट-घूंटकर Accept कर लेना चाहिए. इसलिए कोई व्यक्ति गाली-गलौज दे, चार लोगों के बीच हमारा मज़ाक बना दे, कोई हमारी वस्तु बिगाड़ दे, मित्रों स्वजनों के साथ हमारे मीठे संबन्धों को तोड़ने के लिए पंचायती करे, आक्रोश करे, मज़ाक करे, मार मारे इत्यादि एक या अनेक रीति से तंग करे तब ऐसे विचार करना कि 

तू मुझे गाली देता है, मेरी भी जीभ कोई कटी हुई नहीं है, मैं भी सुना सकता हूँ!

ऐसे विचार करके उसके अपराध को खुद सजा देने की इच्छा रखना यह भी कर्मसत्ता अनुसार कोई कम अपराध नहीं है. 

उस वक्त ऐसा सोचने के बजाय यदि ऐसा सोचा जाए कि 

वह तो बिचारा अज्ञानी है इसलिए गुनाह कर भी दे, तो भी मुझे उसे सजा देकर या सजा देने की सोचने पर खुद के लिए नई Problems खड़ी नहीं करनी है, वरना मैं भी कर्मसत्ता के कायदे और कानून के विषय में Interfere करनेवाला Criminal कहलाऊँगा और उसकी सजा मुझे भी भुगतनी पडेगी.

ऐसा सोच-समझकर सहन करने में ही मेरी भलाई है, परेशान करनेवाले को मारना-पीटना यह काया से, शरीर से की गई सजा है. गाली-गलौज करना, कोसना, तू तू मैं मैं करना-यह वचन से की गई सजा है. दुश्मनी के पौधों को मन ही मन उगाना, पनपने देना आदि मन से की गई सजा है. 

अपने हित को चाहनेवाला बुद्धिमान व्यक्ति यह तीनों कार्यों से दूर रहेगा. यह बहुत ज़रूरी Point है. मन से भी शत्रुता यदि की जाए तो भी कर्मसत्ता को यह बिलकुल भी पसंद नहीं है. 

मन से की गई शत्रुता को भी कर्मसत्ता अपने कार्यों में, अपने Justice में Interference मानती है और ऐसा करनेवालों की कर्मसत्ता पूरी खबर ले लेती है और उस बेचारे जीव को भयंकर दुखों की खाई में धकेलते हुए संसार भ्रमण की भीषण सजा फटकार देती है. 

कोई शक्तिशाली व्यक्ति यदि हमें परेशान करें तो हम Normally शरीर से या वचनों से शायद उसका कुछ बिगाड़ ना पाए लेकिन हाँ मन से ज़रूर उससे वैर बाँध लेते हैं और मन में अपने हिसाब से शायद उसे पीटते हैं, मारते हैं शत्रुता खड़ी कर देते हैं. 

ये कर्मसत्ता को पसंद नहीं है, किसी भी हाल में पसंद नहीं है! मन वचन काया तीनों से शत्रुता Allowed नहीं है वरना दुखों के लिए हमें तैयार रहना पड़ेगा.

इसलिए यदि हमें इन भयानक दुःखों से बचना है तो हमें एक बात दिल में बिठा देनी होगी कि ‘किसी भी जीव के प्रति दिल में शत्रुता खड़ी न हो परंतु सभी जीवों के प्रति मैत्री बहती रहें, यही इच्छनीय है, इसी में खुद का और सभी का हित समाया हुआ है. 

बाकी जो व्यक्ति छोटी या बड़ी, एक बार या अनेक बार, सहन कर पाए वैसी या सहन नहीं कर पाए वैसी, किसी कारण से या बिना किसी कारण से की गई परेशानी को समभाव से सहन नहीं करता और कर्मसत्ता की नज़रों में अच्छे या बड़े स्थान पर बैठा कोई आराधक, साधक व्यक्ति ही क्यों ना हो. 

अगर वह व्यक्ति भी सजा देने के लिए अपने दिमाग खपाने लगे या खुद सजा देने का प्रयास करें, वह व्यक्ति फिर चाहे साधुता का सुंदर पालन भी क्यों ना करता हो, आराधक भी क्यों ना हो फिर भी At any cost कर्मसत्ता उसे भी माफ़ नहीं करेगी. 

उस उच्च कोटि की आत्मा को भी कटघरे में खड़ा करके भयानक से भयानक सजा कर्मसत्ता दे सकती है!’ यह बात दिल में बिठाने में भी हमारा फायदा लगता है. 

हो सकता है यह विषय समझ तो आया होगा लेकिन Apply करने के लिए मन नहीं मान रहा होगा. 

अगले Episode को देखने के बाद मन भी Apply करने की बात को Accept करेगा. 

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *