Mirror VS Print
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 27
हमारी आँखों के सामने कई घटनाएं घटती है और दिल में उन घटनाओं का Reflection भी पड़ता है. Reflection Mirror में भी होता है और Print में भी लेकिन दोनों में ज़मीन-आसमान का फर्क है. Mirror ऐसा है कि जैसे ही घटना पूरी हो गई और दूर हो गई तो वह फिर से वैसे का वैसा Neat and Clear बन जाता है.
उसमें फिर घटना की थोड़ी सी भी झलक नहीं रह पाती है. इस कारण से जब कोई दूसरी घटना घटती है तब उसके Reflection को भी आसानी से उभरने देता है. जब कि Print में ऐसा नहीं होता. Print में तो जो घटना की छवि एक बार पड़ गई वह हमेशा के लिए Fix हो जाती है, दूसरा चित्र फिर उस पर उभर नहीं सकता. दुसरे चित्र के लिए जगह ही नहीं रहती.
हमारी आँखों के सामने आई किसी दूसरे की भूल को हमारा दिल अगर Mirror की तरह पकड़ता है तो हमारा दिल तुरंत स्वच्छ भी हो जाता है, इस स्वच्छ दिल में, जब भी वह भूल करने वाला व्यक्ति कोई अच्छा काम करता है, तब हमारा दिल अच्छे कार्यों का भी Impression, Reflection झेल सकता है.
परंतु जब हमारे दिल पर अन्य की भूल जब Print की तरह Reflect होती है तो वह कभी मिट नहीं पाती है. एक बार Print हो गया तो हो गया वैसी बात हो जाती है. अब चाहे वह भूल करनेवाला व्यक्ति कैसा भी, कितना भी अच्छा काम क्यों ना करे, हमारा दिल उसे ग्रहण ही नहीं कर पाता.
ज़्यादातर लोगों का मन और दिल अन्य की भूलों को देखने पर Print की तरह आचरण करते हैं अर्थात् एक बार किसी की भूल को ह्रदय ने पकड़ लिया तो पकड़ लिया, फिर चाहे कुछ भी हो जाए, बस खेल ख़त्म.
First Impression is Last Impression. ऐसा भी कह सकते हैं कि Faulty Impression Becomes Permanent Impression.
No Entry का बोर्ड हमारा दिल साफ़ साफ़ इनकार कर देता है. अंत तक वह Impression बना रहता है. X व्यक्ति सामने से आ रहा था और किसी ने हमारे कान में कह दिया कि ‘यह चोर है’, बस फिर तो उसकी हर एक गतिविधियों पर हम CCTV Camera बन जाते हैं, वो हज़ार अच्छे काम करता होगा लेकिन फिर भी शक की दृष्टी से ही हम उसे देखेंगे.
कारण क्या? Simple यही कि हमारे दिल ने First Impression में ही उसे चोर के रूप में देख लिया है. एक चिंतक ने कहा है ‘एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को तो पहली बार ही मिलता है फिर तो जब-जब उस व्यक्ति से मुलाकात होती है तब मनष्य उसकी Image अथवा Impression को ही मिलता है’ अर्थात् यह कि उस व्यक्ति की अपने दिल में जो छाप बनी हुई है उस छाप से ही वह मिलता है.
For Example,
गोपीचंद सेठ और अमीचंद सेठ मिलते हैं. उनकी मुलाकात पहली बार ही हो रही है. गोपीचंद सेठ के दिल में एक कल्पना उठती है ‘अमीचंद सेठ Double Game Type व्यक्ति है, ‘मुँह में राम बगल में छुरी’ जैसा इंसान है, बाहर से बहुत मीठा बोलता है मगर अंदर से कुछ और ही है.
बाहर से दोस्त जैसा और अंदर से सांप जैसा खतरनाक ‘देखना जरा, इस व्यक्ति से बातें करने में और काम करने में थोड़ा संभल कर चलना. कैसा भी मीठा क्यों न बोले, फँसना नहीं.’ अब अमीचंद सेठ लाख कोशिश क्यों न करें, कितने ही अच्छे कार्य क्यों ना करें फिर भी गोपीचंद सेठ के Print वाले दिल में से Impression जाता ही नहीं.
भूल के विषय में, बुरे कार्यों के विषय में तो हमारा दिल Print जैसा बन जाता है. किन्तु सामनेवाले इंसान के अच्छे कार्यों का Reflection लगभग मनुष्य का मन झेलता नहीं है. उसका Impression इतना दृढ़ नहीं बनता है, दिल में उसका Reflection भी उतना ज़ोरदार पड़ता नहीं है.
कुलमिलाकर दूसरों के अच्छे कार्यों के लिए हमारा मन Mirror जैसा बन जाता है, और बुरे कार्यों के लिए Print जैसा.
चटनी
हम सब अगर हमारा खुद का अनुभव याद करेंगे तो Reality पता चल जाएगी. एक बहुत बड़ा भोजन का कार्यक्रम था, हम हमारे 5-25 मित्रों को लेकर गए, भोजन करने बैठे और एक के बाद एक Varieties आने लगी.
गुलाब जामुन, कलाकंद, रसगुल्ला, चमचम आदि मिठाई के साथ इडली ढोसा आदि भी पिरोसे गए. मसालेदार चटनी आई. हमने हमारी थाली में ली और थू..थो..थू… भूल से रसोइये ने उसमें Double नमक डाला हुआ था. पूरा भोजन का मज़ा किरकिरा हो गया. Mood Off हो गया.
किन्तु उसके बाद और भी कई चीज़ें खाई, पेट भरकर भोजन किया और घर लौट रहे थे और दोस्तों में एक ही बात हो रही थी कि ‘यार. चटनी क्या खिलाई, खाने का Mood Off कर दिया. चलो उस दिन तो फिर भी ठीक है, लेकिन 5-25 दिनों के बाद भी जब कभी उस भोजन की बात निकलेगी, तो उस समय हमें कौनसी Item याद रहेगी?
दिल में से किस Item की Photoprint बाहर निकलेगी? चटनी. है ना कमाल की बात. एक से बढ़कर एक ऐसी अनेकों Varities थी, पेट भरकर खाया भी फिर भी याद तो चटनी ही रही. किसी व्यक्ति ने हमारी प्रशंसा करते हुए 100 वाक्य ऐसे बोले हो जिसमें हमारा गुणगान हो, लेकिन सिर्फ दो वाक्य ऐसे बोले हो जिसमें हमारा अपमान हो अथवा कटाक्ष हो तो कौनसे वाक्य याद रहेंगे?
पूज्य श्री कहते हैं कि ऐसे तो हम बुद्धिमान, धनवान, दयावान, धर्मात्मा लेकिन मक्खीचूस है. 100 वाक्य भूल जाएंगे और वही दो कडवे वाकया ज़िन्दगीभर खटकते रहेंगे. क्या जीवनभर संक्लेश ही खड़े करने हैं? क्या हमेशा दुखी ही रहना है?
जब तक जीव मोहराजा की आज्ञा उठाता रहेगा, तब तक मोहराजा जीव के पास ऐसे ही काम करवाएगा. यही हमारा अनादी काल का Routine रहा है जिससे हम खुद का विनाश कर रहे हैं. कैसी विपरीत चाल चलाता है यह मोहराजा?
किसी के प्रति हमने Imagine करके हमारे मन में गलात Impression खड़ा कर दिया, फिर उस व्यक्ति के हज़ार अच्छे कामों को देखने पर भी यह Impression मिटाने के लिए हम तैयार नहीं होते. यही हमारी कमजोरी है.
जबकि एक व्यक्ति ने कोई अच्छा काम किया और हमारे मन में उस व्यक्ति का अच्छा Impression पड़ भी जाए, तो भी उसके बाद एक बार उसके किसी बुरे व्यवहार अथवा बर्ताव को देखकर, देखकर तो क्या सिर्फ कल्पना करके भी हमारा मोहराजा हमारे मन में रही वह अच्छी छाप की ऐसी-तैसी कर उसका नामोनिशान मिटा देता है.
इस विषय पर भी भगवान महावीर के समय की रानी चेलना को लेकर एक घटना जानेंगे अगले Episode में.