Why Was King Shrenik Suspicious About Queen Chelna? Friend or Foe – Episode 28

आखिर क्यों किया महाराजा श्रेणिक ने चेलणा रानी पर शक?

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By Jain Media 14 Views 7 Min Read

भगवान महावीर के समय की एक घटना.
प्रस्तुत है Friend or Foe का Episode 28.

भगवान महावीर के समय में मगध के सम्राट श्रेणिक थे, और उनकी महारानी चेलना. दोनों ही प्रभु महावीर को वंदन आदि कर लौट रहे थे. नगरी के बाहर नदी के किनारे जैसे Location पर, एक महात्मा कायोत्सर्ग में खड़े थे. दोनों ने बहुत भावों के साथ उन्हें वंदन किया. 

राजमहल लौटकर शाम के कार्य निपटाकर दोनों सो गए. ज़बरदस्त ठंडी का समय था. रानी चेलना गहरी नींद में सो रही थी, जैसे ही उनका हाथ रजाई से बाहर निकला वैसे ही वह जग गई. राजमहल में होते हुए भी, इतनी सुविधाओं के बीच भी ठंड के कारण बुरा हाल हो गया था. 

तब रानी चेलना को वे नदी के किनारे कायोत्सर्ग में जो मुनि खड़े थे वे याद आए और रानी के मुंह से शब्द निकले कि ‘उनका क्या होता होगा?’ Coincidence यह हुआ कि श्रेणिक राजा उस पल जग रहे थे और उनके कानों में ये शब्द पड़ गए और चौंक उठे. 

श्रेणिक राजा को चेलना रानी पर Doubt हुआ कि वो किसी परपुरुष के बारे में सोच रही है, श्रेणिक राजा सोचते हैं कि ‘दिल में और वाणी में कोई और एवं काय से किसी और को अपना माननेवाली ऐसी नारी को धिक्कार हो. जिसे मैं सती मान रहा था, वह भी किसी और के विचारों में डूबी रहती है’

इस विचारधरा ने बरसों के अनुभव पर जो छाप खड़ी हुई थी कि ‘चेलना महारानी सती है, पतिव्रता है’, यह Impression एक घटना में हुई कल्पना से साफ़ हो गई. एक झटके में अपार प्रेम एवं विश्वास ख़त्म हो गया और Opposite Impression की छाप खड़ी हो गई, और फिर श्रेणिक राजा अंतःपुर को जलाकर ख़ाक करने का फरमान भी निकाल देते हैं. अंतःपुर यानी वह स्थान जहाँ रानी रहती है. 

यह पूरी घटना हम बुद्धिनिधान अभयकुमार की Series में देख चुके हैं, वो Series आप फिर से देख सकते हैं. 

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यह तो जब भगवान महावीर प्रभु के मुख से जब इस विषय को लेकर Doubt Clear हुआ तब अपने इस निकाले गए फरमान पर श्रेणिक राजा को बहुत दुःख हुआ. 

पूज्य श्री कहते हैं कि मोहराजा का यही Game है कि ‘हर तरह से जीवों को परेशान करना, उलटी पुलटी सलाह देना, और उसके अनुसार उलटे-सुलटे काम करवाना और अंत में जीव को हैरान परेशान करना. मोहराजा की हर एक सलाह विपरीत ही होती है. 

एक और Situation Imagine करते हैं. X से कोई भूल हो गई. Y ने वह भूल देख ली अथवा जान ली. भरी सभा या चार आदमियों के बीच खड़ा होकर Y अगर उस भूल को बिना नाम लिए Generally बोल दिया कि ‘आज दुनिया कैसी हो गई है? कई लोग ऐसे भी होते हैं जो ऐसी-ऐसी भूलें करते हैं’. 

X भी उस सभा में था जिसने वह भूल की थी. बस अब X यही मान बैठेगा कि ‘भरी सभा में Y ने मेरी बेइज्जती की है, जानबूझकर की है. उसने लोगों को नहीं बल्कि मुझे सुनाने के लिए ही इतना कुछ बोला है’ इन विचारों में बहकर वह दिन-ब-दिन दुःखी होता जाएगा. 

इसी Situation को अलग तरीके से Imagine करते हैं. X ने एक बार कोई अच्छा काम किया. Y ने वह अच्छा काम देख लिया अथवा जान लिया. Y ने भरी सभा में खड़े होकर Generally बिना नाम लिए बोल दिया कि ‘आज भी कई ऐसे जीव है इस दुनिया में जो ऐसे ऐसे अद्भुत सुंदर कार्य कर रहे हैं’. 

यह सुनकर क्या X सच में खुश हो जाएगा कि Y ने मेरी प्रशंसा की है. क्या X को संतोष हो जाएगा? नहीं, उस समय तो X यही सोचेगा कि ‘ठीक है, Y ने अच्छे काम की प्रशंसा जरूर की है लेकिन वह अच्छा काम मेरे नाम के साथ जोड़कर कहाँ बोला है? लोगों को कैसे पता चलेगा कि यह अच्छा काम मैंने किया है और ये प्रशंसा के पुष्प मेरे लिए हैं? अर्थात् मेरा नाम नहीं बोला है तो यह अच्छा काम मैंने किया यह कैसे पता चलेगा?’ यही तो मोहराजा का कमाल है.

कैसी विचित्रता है. कोई व्यक्ति एक भूल को बिना नाम लिए Generally कहे तो अपने सर पर टोपी पहनकर दुखी होने के लिए हम तैयार और ठीक वैसे ही अच्छे काम की प्रशंसा अगर Generally बिना नाम के की गई हो तो खुश होने को तैयार नहीं, संतुष्ट नहीं और एक तरह से थोड़े दुखी ही.

पूज्य श्री पूछते हैं कि क्या जब भी जीव को दुखी करने की मोहराजा की चालबाजी नहीं है. ऐसी ही मोहराजा की एक और चालबाजी है. हमारा मोहराजा हमसे Expectations बंधवाता है कि ‘मेरी भूल कोई बताए नहीं, बोले नहीं, याद कराए नहीं’. 

जब कोई हमारे जैसा ही स्वभाववाला व्यक्ति सामने मिलता है और वह हमारी भूल कहता है, याद दिलाता है अथवा कबूल कराने का प्रयास करता है तब हम उसके साथ शत्रुता खड़ी करते हैं, वैरभाव मन में आ जाता है. वह सामनेवाला व्यक्ति कितना भी प्रिय क्यों न हो, धीरे धीरे कड़वा लगने लगता है. 

हमारी भूल कोई याद न कराये ऐसी Expectations खुद के दिल में हम रखते हैं लेकिन जब दूसरों की भूल देखते हैं तब उस भूल को सुनाने का, याद दिलाने का अथवा कबूल करवाने के लिए इतने उतावले हो जाते हैं कि रहा ही नहीं जाता. इन सबसे होता क्या है? 

अंत में तो शत्रुता खड़ी होती है और एक दिन हम उस व्यक्ति के लिए अप्रिय बन जाते हैं. 

इसी विषय को लेकर Foreign का एक किस्सा है जहाँ एक पत्नी हर तरह से पति की सेवा करती है फिर भी पति उसे चाहता नहीं है. कारण क्या है जानेंगे अगले Episode में.

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