How To Win Without Putting Forth A Fight? : Friend or Foe – Episode 33

व्यक्ति का दिल जीतने की सबसे अद्भुत कला 🙏

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By Jain Media 13 Views 15 Min Read

‘मुझसे गलती हो गई’
प्रस्तुत है Friend or Foe का Episode 33 

भूल का स्वीकार 

किसी एक शहर के बाहर एक Beautiful Park था. शाम के वक्त कुछ लोग टहलने के लिये आते थे बाकि के समय दो चार लोग ही नज़र आते थे. एक आदमी अपने शिकारी कुत्ते को सुबह टहलने के लिए पार्क में लाता था. पार्क में कुत्ते को बिना पट्टे घुमाना मना था, लेकिन वह फिर भी ऐसा करता था क्योंकि वहाँ उस समय लोग कम होते थे.

एक दिन पुलिस ने उसे देख लिया और बोला, ‘क्यों भाई बिना पट्टे कुत्ते को घुमा रहे हो? यह तो नियम के विरुद्ध है.’ आदमी ने कहा, ‘मेरा कुत्ता किसी को नहीं काटेगा.’ पुलिस ने चेतावनी दी, ‘अगर किसी बच्चे को काट दिया तो? इस बार छोड़ रहा हूँ, अगली बार Court ले जाऊँगा.’

कुछ दिन उसने पट्टा बाँधा, लेकिन कुत्ते को पट्टा बिलकुल पसंद नहीं था. वह आदमी आखिरकार थक गया और फिर से बिना पट्टे अपने कुते को घुमाने लगा. एक दिन पुलिस ने फिर देख लिया. यह आदमी भागने की बजाय पुलिस के पास गया और बोला, ‘मैं गलत हूँ. आपने चेतावनी दी थी, फिर भी मैंने नियम तोड़ा है.’

पुलिस को आश्चर्य हुआ. पुलिसवाले ने सोचा था कि ‘वह बहाने बनाएगा, लेकिन आज तो इसे छोडूंगा नहीं’ लेकिन आदमी ने गलती मान ली. तो पुलिसवाला ठंडा पड़ गया और कहा कि ‘समझता हूँ, जब कोई न हो तो लालच हो जाता है.’ 

वह आदमी बोला, ‘हाँ, पर नियम तो टूटा ही.’ पुलिस को उसकी ईमानदारी अच्छी लगी. उसने कहा, ‘यह छोटा कुत्ता क्या नुकसान करेगा? फिर भी सावधान रहो. ऐसी जगह घुमाओ जहाँ मुझे न दिखे.’ यह कहकर पुलिसवाला वहां से चला गया.

एक School में Inspection चल रहा था. Inspector साहब ने एक Student को खड़ा किया और पूछा ‘बोल, कर्तरी प्रयोग किसे कहते है? और कर्मणि प्रयोग किसे कहते हैं?’ Student Smart था. 

उसने तुरंत जवाब दिया कि ‘सर, जिन कार्यों से अपनी तारीफ होगी, अपनी वाह-वाह होगी ऐसा लगता हो वैसे कार्यों को बताने के लिए मनुष्य सहज रूप से जिस वाक्य का प्रयोग करता है वह कर्तरि प्रयोग होता है और उससे Opposite जब व्यक्ति से कोई अपराध हो जाए तब उस अपराध को बताने के लिए मनुष्य सहज रूप से जिस वाक्य का प्रयोग करता है उसे कर्मणि प्रयोग कहते है’

‘इस वस्त्र की सिलाई मैंने की है, यह Painting मैंने बनाई है, हाँ आपकी प्रशंसा मैंने की थी’ इन वाक्यों में व्यक्ति जिस सहजता से कर्तरि प्रयोग करता है, उतनी ही सहजता से ‘यह वस्त्र मैंने फाड़ा है, यह Painting मैंने बिगाड़ी है, हाँ, आपकी निंदा मैंने की थी’ ऐसे वाक्यों का प्रयोग अपनी भूल बताने के समय नहीं किया जाता. 

खुद से जब कोई भूल होती है तब उसको व्यक्त करने के लिए व्यक्ति ज़्यादातर कर्मणि प्रयोग जिंदाबाद ही करता है. जैसे ‘यह वस्त्र मेरे से फट गया, यह चित्र मेरे से बिगड़ गया, हाँ आपकी निंदा शायद मुझसे हो गई’ ऐसे ही वचन मुंह से निकलते हैं. 

Carelessness के कारण Cup फोड़ दिया हो लेकिन आदमी यही बोलेगा कि ‘मेरे से Cup फूट गया’ लेकिन उसकी जीभ यह बोलने के लिए तैयार ही नहीं होगी कि ‘मैंने Cup फोड़ दिया’. दोनों में Difference देखिए-‘मेरे से Cup फूट गया’ और ‘मैंने Cup फोड़ दिया’.

हाँ Exceptional Cases हो सकते हैं जिसे शर्म ना हो, विवेक ना हो तब शायद कर्तरि प्रयोग कर सकता है कि ‘हाँ, मैंने ही तुम्हारी निंदा की है बोलो, तुम क्या बिगाड सकते हो मेरा?’ लेकिन जहाँ व्यक्ति को अंतःकरण से लगे कि उसने भूल की है और उस कारण से बुरा भी लगता हो तब लगभग कर्मणि प्रयोग ही होता है.

कर्तरि प्रयोग : मैंने भूल की है.
कर्मणि प्रयोग : मेरे से भूल हो गई है. 

कमाल है ना, गलती हम खुद करते हैं और कहते हैं कि ‘मैंने की नहीं, मेरे से हो गई’ जैसे किसी ने गलती करने के लिए ज़बरदस्ती की हो. इसका कारण स्पष्ट है कि ‘मैंने Cup फोड़ दिया’-ऐसा बोलने से अपनी गलती बड़ी लगती है. 

जबकि ‘मेरे से Cup फूट गया ऐसा’ बोलने में अपनी गलती छोटी लगती है और क्षमा करने जैसी भी लगती है. गलती को Accept करने की हिम्मत रखनेवाले व्यक्ति की भी यह हिम्मत नहीं होती कि वह खुद की गलती को बड़ी माने. 

अपनी भूल छोटी लगती है 

एक व्यक्ति को पता चला कि उसके मित्र को Jail में डाल दिया है तो वो अपने मित्र को मिलने Jail गया.

‘दोस्त, तुझे जेल कैसे हुई?’ 
‘अरे यार, क्या कहूँ? एक छोटी-सी भूल हो गई और सरकार ने जेल की सजा ठोक दी.’

‘छोटीसी भूल?’
‘हाँ, हाँ. छोटी भूल, और क्या.’
‘कौनसी छोटी भूल थी?’ 

‘देख यार, क्या कहूँ तुझे? Bank में से Office के लाख रूपये उठाए और उन्हें Office में ले जाने के बदले पास में आए हुए मेरे घर पर लेकर चला गया और उस छोटीसी भूल के बदले सरकार ने कैद की सजा सुना दी. कैसा कलियुग आया है?’ 

अनादि की चाल 

यह भी हमारी अनादी की चाल ही है. जीव को खुद की पहाड़ जैसी भूल राई के दाने जैसी लगती है, और किसी दुसरे की राई जैसी भूल भी पहाड़ जैसी दिखती है. तभी तो जब किसी दुसरे से गलती होती है तब व्यक्ति कर्तरि प्रयोग करता है कि ‘तुमने Cup फोड़ दिया-तोड़ दिया’ तब कर्मणि प्रयोग नहीं करता कि ‘तुम से Cup फूट गया-टूट गया’. 

खुद से हो तो ‘मुझसे Cup टूट गया’ और सामनेवाले से हो तो ‘तुमने Cup फोड़ दिया’. यही कारण है कि जीव को खुद की गलती Neglect करने जैसी Forgivable लगती है लेकिन अन्य की गलती वैसी नहीं लगती है. 

इसी कारण से खुद की गलती के समय व्यक्ति खुद के बचाव की पूरी कोशिश करता है और अन्य की गलती के वक्त, गलती कबूल करवाने की तनतोड़ मेहनत करता है. उस वक्त व्यक्ति ऐसा नहीं सोचता कि अगर मैं यह Same गलती करता तो Negligible लगती, ठीक वैसे ही उसे भी अपनी गलती Negligible लगती ही होगी. 

तो फिर उसको गलती कबूल करवाने की कोशिश क्यों करूँ? मैं कोशिश करता रहूँगा और वह खुद का बचाव करता रहेगा और आखिर में होगा क्या? संघर्ष-संक्लेश और शत्रुता के सिवाय और कुछ भी नहीं. 

कुलमिलाकर शत्रुता से बचने के लिए इस अनादि की चाल को छोड़नी ही पड़ेगी. हमें अपनी भूल को छोटी नहीं बल्कि बड़ी माननी चाहिए, Negligible नहीं बल्कि Remarkable माननी चाहिए. 

अतः खुद का बचाव करने के बजाय, तुरंत भूल का स्वीकार कर लेना चाहिए और दुसरे की भूल को देखकर Opposite सोचना होगा कि गलती Accept करवाने की हठ नहीं पकडनी चाहिए, इससे शत्रुता तो होगी नहीं उल्टा Relations अच्छे होने के Chances बढ़ जाते हैं. 

यह मुश्किल नहीं, बहुत बहुत बहुत ज्यादा मुश्किल काम है क्योंकि खुद की भूल को स्वीकारने में अहंकार को तोडना पड़ता है. काय को यानी शरीर को एक बार कष्ट देना, तोडना, मोड़ना, सूखाना फिर भी सरल है लेकिन अहंकार को, मान को तोडना-सूखाना, झुकाना बहुत कठिन काम है.

Language Experts

एक बार अलग-अलग भाषाशास्त्रियों का एक जगह पर मिलन हुआ. Experts का एक बड़ा मिलन जैसा था, वहाँ प्रश्न निकला ‘हर एक भाषा में कठिन से कठिनतम वाक्य कोनसा है?’ तुरंत ही एक Expert ने उठकर कहा कि मेरी नज़र में मनुष्य को हर एक भाषा में जिसे बोलने में बहुत कठिनाई महसूस होती है, दिमाग पर जोर पड़ता है, वह कठिनतम वाक्य है-‘मेरी भूल हो गई’. 

पूज्य श्री कहते हैं कि अपनी भूल का स्वीकार कर लेना, यह बहुत ही मुश्किल कार्य है, जो व्यक्ति अपनी भूल का स्वीकार कर लेता है, वह महान बनता है. इसी कारण से अन्य जीवों के ह्रदय में ऐसे महान व्यक्ति के प्रति एक प्रकार का आकर्षण एवं सद्भाव देखने को मिलता है. 

कई बार ‘मेरी भूल हो गई’ इस वाक्य का चमत्कार भी देखने को मिलता है. क्योंकि Discussion इस वाक्य से पूरा हो जाता है. कट्टर विरोधी भी अपनी शत्रुता को छोड़ देते हैं. 

General Psychology 

A ने गलती की, B को वह गलती देख ली. A अब खुद का बचाव करने का पूरा प्रयास करेगा. B जैसे तैसे A से उसकी गलती कबूल करवाने का पूरा प्रयास करेगा. यह General Psychology होती है. 

दोनों अपना अपना प्रयास करते हैं और इससे शुरू होती है संघर्ष की या शत्रुता की भयानक आग. दोनों का यदि खुद के जीभ पर Control ना हो तो Unending Debate शुरू हो जाता है. 

इसके बदले A यदि अपनी भूल स्वीकार कर लेता है तो इसका) अर्थ यह हुआ कि A खुद B की Side में, B के पक्ष में जाकर बैठ गया. अब B को लगेगा कि ये तो अब मेरी Side आ गया है. इससे थोड़ी भावुकता पैदा होती है और उसे लगने लगता है कि Normally तो कोई भी अपनी गलती Accept नहीं करता है इसने तो इतनी नम्रता से Accept कर लिया, अर्थात् ये महान व्यक्ति है. 

B को लगता है कि भाई गलती Accept करवानी थी, A ने तो कर ली है. इससे B का A के प्रति झुकाव तो हो ही गया होता है. इससे ना तू-तू मैं-मैं होती है और ना ही कोई संघर्ष. ऊपर से प्रेम-सद्भाव और Respect A के प्रति बढ़ता है. 

कुलमिलाकर गलती Accept करने में ही फायदा है. Discussion या Debate भले A हार गया लेकिन वास्तविकता यह है कि A ने B को ही जीत लिया. इतना समझ आता है कि या तो बहस जीत सकते हैं या तो व्यक्ति को. Smart इंसान व्यक्ति को जीतने का सोचेगा. 

गम खाओ गम 

इसी तरह एक और Situation देखते हैं. 

A ने गलती की, B को वह गलती देख ली. A को पता चल गया कि B ने मेरी गलती देख ली है. लेकिन B गम खा लेता है, गलती को Ignore कर देता है. गलती को जानते हुए भी A को स्वीकार कराने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करता है. 

इतना ही नहीं B उस गलती के विषय में कोई सवाल जवाब भी करता नहीं है, ऐसा Behave करता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. B का ऐसा बर्ताव देखकर A के दिल में B के प्रति एक प्रकार का अहोभाव, Respect, आदर, सद्भाव उत्पन्न होता है. 

सास के ठीक नाक के नीचे जब किसी बहू से कोई गलती हो जाती है उस वक्त बहू की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं, उसका जी घबराने लगता है. ‘अब सास कुछ कहेगी तो मैं अपना बचाव कैसे कर पाऊँगी?’ इस चिन्ता में वह मग्न हो जाती है. 

उस वक्त जानते हुए भी जब सास कुछ बोलती नहीं या कडवे बोल नहीं सुनाती, तब उस डरी हुई बहू के दिल में अजूबे के साथ अत्यंत बहुमान के भाव सास के प्रति प्रकट होते हैं कि ‘मेरी सास गंभीर है, उदारदिल है, हर छोटी छोटी बात को लेकर धमकाने लगे, वैसी मेरी सास नहीं है.’ 

ऐसा सद्भाव बहू के अंतर में पैदा हो जाता है. ऐसे में बहु खुद आगे से माफ़ी मांग लेती है. अब इसमें भूल कबूल करवाने का कार्य भी हो गया, बहु गंभीरता से सोचेगी भी कि अगली बार ध्यान रखूंगी, सास के प्रति Respect भी बढ़ गया, रिश्तों में कडवाहट भी नहीं आई, दुर्भावना या वैर का प्रश्न तो दूर-दूर तक नहीं है. 

खुद की भूल तुरंत स्वीकार करने से जैसे आपस में Respect की, सद्भावों की वृद्धि होती है वैसे ही सामनेवाले की गलती को चुपचाप Digest करने में भी Same फायदा देखने को मिलता है. थोडा Patience तो रखना ही होगा. 

जीवन अगर शांति से बिताना हो तो इस Golden Rule को Apply करने जैसा है.

खुद की भूल का तुरंत स्वीकार करना और औरों की भूल को कबुलाने के पीछे समय बरबाद नहीं करना… 

हमें लगेगा कि भाई बोलना बहुत आसान है, लेकिन Real Life में ये सब Possible ही नहीं है. अगले Episode में इसी के Related एक ऐसे ससुराल की घटना जानेंगे जहाँ बहु को मौका मिला फिर भी वह सास से अलग नहीं हुई. आखिर क्यों? अगले Episode का Wait करना होगा.

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