हम इतना धर्म करते हैं लेकिन Changes क्यों नहीं आते?
क्यों लंबा फायदा नहीं दिखता?
प्रस्तुत है Friend or Foe पुस्तक का Episode 39
इस पुस्तक के हिंदी Version का नाम है ‘हंसा तू झील मैत्री सरोवर में’
धर्म क्रिया का Tonic
एक पिता ने बेटे चिंटू को Mathematics में कमज़ोर देखकर Tuition रखा. Master रोज़ पढ़ाते, दो महीने बीते. पिता ने सोचा, ‘चिंटू ने कितना सीखा है Check कर लेता हूँ’
Master के सामने ही पूछा कि ‘चिंटू, 6 + 6 कितने?’
चिंटू बोला कि ‘पापा, आसान है, 6 + 6 = 10.‘
पिता का गुस्सा फटा, ‘Master, ये क्या सिखाया?’ Master ने सफाई दी, ‘शांत हो जाइए. चिंटू तरक्की कर रहा है. पहले वो 6 + 6 = 8 कहता था, अब 10 कहता है. दो महीने और दीजिए, 12 कहेगा.’
पिता ने Master को निकाल दिया. पढ़ाई का मतलब अज्ञान मिटाना और ज्ञान बढ़ाना है. अगर ऐसा न हो, तो पढ़ाई बेकार. ये सिर्फ़ पढ़ाई की बात नहीं—हर क्षेत्र में यही है. लोग मेहनत नहीं, नतीजा देखते हैं.
मरीज़ गोलियों की गिनती नहीं गिनता, बल्कि देखता है कि बीमारी कितनी गई, सेहत कितनी बढ़ी. ढेर सारी गोलियाँ बेकार हों, अगर फायदा न हो, तो मरीज़ सोचता है, ‘आखिर माजरा क्या है?’
एक नग्न सत्य
हर क्षेत्र में इंसान होशियारी से नफा-नुकसान देखता है, मगर धर्म में आँख मूंद लेता है. दान, तपस्या, मंत्र-जाप, अनुष्ठान की गिनती देखकर खुश हो जाता है, ढोल पीटकर अपनी छोटी-मोटी उपलब्धियाँ गिनाता है.
पर ये नहीं सोचता कि इनसे पाप कितना मिटा? पुण्य कितना बढ़ा? राग-द्वेष कितने कम हुए? हर धार्मिक क्रिया की कीमत लाखों-करोड़ों है. फिर भी कई लोग थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं.
पूज्य श्री कहते हैं कि ऐसे धार्मिक व्यक्ति पर शक होता है कि क्या वो सचमुच व्यापारी बुद्धि वाला है? व्यापारी बुद्धि वो है, जो कहीं नुकसान दिखे, वहाँ भी मुनाफा कमा ले. जैसे बबूल के काँटों को ‘नेचुरल पिन’ कहकर अमेरिका में बेच दिया और लाखों कमा लिया.
लेकिन धर्म के क्षेत्र में Transactions तो बहुत किए, Turnover बहुत लेकिन Profit कितना? वह बड़ा प्रश्न है.
वणिक्बुद्धि
एक पवित्र पर्वत पर मंदिर था, 100 सीढ़ियाँ चढ़नी थीं. तलहटी में पेढी थी, जहाँ से भक्त नोटों के बंडल ले सकते थे. नियम था: हर सीढ़ी पर जितने बंडल पास हों, उतने रुपये रखो.
For Example
अगर 2 बंडल पास में हो तो हर सीढ़ी पर 2 Note रखने. एक डॉक्टर, इंजीनियर और व्यापारी गए. तीनों ने एक-एक रुपये के दो-दो बंडल लिए. ऊपर पहुँचे, तो डॉक्टर, इंजीनियर के पैसे ख़त्म हो गए थे. व्यापारी के पास 50 रुपये बचे.
दोनों दोस्त हैरान. ‘कैसे?’ पूछा. व्यापारी मुस्कुराया, ‘नियम कहता है, पास के बंडलों के हिसाब से रुपये रखो, लिए हुए बंडलों से नहीं. मैंने पहले एक बंडल से ही 2-2 नोट रखने का काम किया.
वो बंडल खत्म हुआ, फिर मेरे पास 1 ही बंडल रहा तो उस हिसाब से मुझे हर सीढ़ी पर 1 Note ही रखना था तो 50 रुपये बच गए.’ दोस्त दंग-ये है व्यापारी बुद्धि. वणिक बुद्धि 100 में 105 कमाती है.
एक लड़के ने 95 अंक लाकर पिता को रिज़ल्ट दिखाया. पिता ने थप्पड़ मारा, ‘बस 95? वणिक का बेटा 100 में 105 लाएगा.’ यही वणिक वृत्ति है. फिर धर्म में हम लाख-करोड़ के अनुष्ठान कर सिर्फ़ 5 रुपये की कमाई में क्यों संतुष्ट हो जाते हैं?
नवकार जपते हैं, पर शास्त्रों जितना फल क्यों नहीं मिलता? अनुष्ठान तो करते हैं, पर गुणवत्ता भूल गए. शरीर कमज़ोर हो, टॉनिक है. मन कमज़ोर हो, हर्बल दवा है. पर अनुष्ठानों को ताकतवर बनाने की टॉनिक क्या? शास्त्रकारों ने इसका रास्ता बताया है.
टॉनिक का फार्मूला
मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ्य-धर्मध्यान को तगडा बनाने की अद्भुत दवा.
इन भावनाओं से मन को भावित कर चमत्कार देख सकते हैं. दिल में मैत्रीभाव का पवित्र झरना बह रहा हो और धर्मानुष्ठान करें तब और झरना सूखकर नामशेष रह गया हो और कोई अनुष्ठान करें तब, दोनों के Results में जमीन-आसमान का फर्क पड़ता है.
एक आदमी.35 Calibre (Revolver) की गोली हाथ में लेता है, सिर्फ 2 फुट की दूरी पर एक इंसान खडा है उसकी छाती पर वह Bullet फेंकता है. Result कुछ भी नहीं आता है. शत्रु मूँछ में ताव देकर खडा-खडा हँसता है.
अब वह आदमी अपनी भूल को जान जाता है. Revolver के बिना Bullet कुछ काम की नहीं. उसी Bullet को उठाता है, Revolver में Fit करता है, घोडा दबाता है और यह लो. शत्रु लहू-लुहान होकर ओंधे मुँह गिर पडता है. गोली आर-पार निकल गई थी.
आखिर यह हुआ कैसे? बडी ही अजीब बात है. Bullet वह की वह, दूरी उतनी की उतनी और शत्रु भी The Same Man. पहले Bullet से मामुली-सी ना के बराबर चोट और अब उसी बुलेट से जीते-जागते इंसान की मौत?
होता यह है कि Revolver के अंदर के भाग में एक Spring होता है. उसका काम होता है Push करना जिससे Bullet की Speed बढ जाने से वह व्यक्ति में से आर-पार हो जाती है. मैत्री आदि भाव Revolver में रहे Spring जैसा है.
प्रत्येक अनुष्ठान को यदि इन भावों का Push मिल जाए तो कर्मों का नाश होता है और जिन्हें यह Push न मिले वैसे अनुष्ठानों में खास दम भी नहीं होता.
टूटती कडी
हम जन्म से नवकार मंत्र सुनते और गिनते हैं. पूजा, दान, सामायिक, प्रतिक्रमण करते हैं. नवकार के पाँच परमेष्ठियों को दिल से मानते हैं. मुसीबत में, जैसे प्लेन क्रैश की घड़ी में, नवकार का जाप ज़ोर-शोर से करते हैं.
पर एक कमी है—मैत्री और करुणा की. सालों से पूजा-प्रतिक्रमण करते हैं, महावीर प्रभु के तप, त्याग, वैराग्य को देखकर उनके जैसे बनने की इच्छा जागती है. पर अफसोस, उनके एक खास गुण को भूल जाते हैं.
महावीर प्रभु ने सबसे बुरे शत्रुओं को भी शत्रु नहीं माना बल्कि मित्र माना, अपराधियों के लिए आँसू बहाए. हम इस ओर ध्यान ही नहीं देते, तो वो इच्छा और कोशिश कैसे जागे? पर्युषणा, संवत्सरी आती-जाती है.
दान दे देते हैं, पर दिल में वैर की गाँठ नहीं खोलते. अनजान लोगों को, जिनके साथ पूरे वर्ष में शायद मुश्किल से एक बार मिलना हुआ हो उनको फ़ोन कर करके क्षमा मांगते हैं लेकिन पड़ोस में ही रह रहे भाई-भाभी, माँ-बाप को माफ नहीं कर पाते.
छोटी-छोटी बातों को भूल नहीं पाते. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?
मैत्री आदि की आवश्यकता
कडवी वास्तविकता यह है कि हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में वो ताकत नहीं, क्योंकि उनमें मैत्री जैसे भावों की कमी है. पूज्य श्री कहते हैं कि खेत में खाद डालने से फसल बेहतर होती है, वैसे ही ये भाव अनुष्ठानों को शक्तिशाली बनाते हैं.
आचार्य हरिभद्र सूरी ने कहा, मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ्य-भाव धर्म की नींव हैं. असली योग वही, जिसमें परोपकार, करुणा और शुद्ध भाव हों. अध्यात्म योग की पहली सीढ़ी भी मैत्री से शुरू होती है. बिना इन भावों के हम पहली मंज़िल तक नहीं पहुँच सकते.
फिर लाखों की क्रिया भी पाँच रुपयें का फल दे, तो आश्चर्य क्या? मैत्री सबसे ज़रूरी है. पूज्य श्री का सभी के लिए संदेश है कि इसे अपनाओ, बाकी भाव आसानी से आएँगे. मैत्री यानी सभी प्राणियों के हित की कामना. प्रमोद यानी गुणी लोगों को देखकर जलन नहीं, खुशी.
करुणा यानी कमज़ोर को तिरस्कार नहीं, दया. माध्यस्थ्य यानी जो जीव अज्ञान में डूबे रहें, उनके प्रति गुस्सा नहीं, उपेक्षा. इन भावों को अपनाओ, अनुष्ठान ताकतवर बनेंगे, और धर्म का असली फल मिलेगा.
मैत्री क्यों ज़रूरी है? जानेंगे अगले और इस Friend or Foe Series के अंतिम Episode में.