मैत्री क्यों ज़रूरी है
प्रस्तुत है Friend or Foe पुस्तक का Episode 40.
इस पुस्तक के हिंदी Version का नाम है ‘हंसा तू झील मैत्री सरोवर में’
‘मित्ति मे सव्वभूएसु’
सभी प्राणियों के साथ मैत्री. ये भावना सबसे बड़ी है, जो पूरे विश्व को जोड़ती है. मैत्री भावना यानी हर जीव के हित की कामना-चाहे वो दोस्त हो, अनजान हो, या दुश्मन. कोई छूटना नहीं चाहिए.
चार भाव जो धर्म को ताकत देते हैं. मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ्य-ये चार भाव हमारे अनुष्ठानों को शक्ति देते हैं. जैसे खेत में खाद फसल को बेहतर बनाती है, वैसे ही ये भाव नवकार, पूजा, दान को असरदार बनाते हैं.
मैत्री: सभी जीवों के लिए अच्छा सोचो.
प्रमोद: अपने से बेहतर को देखकर जलन नहीं, खुशी.
करुणा: कमज़ोर को तिरस्कार नहीं, दया.
माध्यस्थ्य: जो अज्ञान में डूबे हों, उनके लिए गुस्सा नहीं, उपेक्षा.
पूज्य श्री कहते हैं कि मैत्री सबसे ज़रूरी है. इसे अपनाओ, बाकी तीन अपने आप आएँगे. बिना मैत्री के बाकी भाव आने मुश्किल हैं.
क्यों ज़रूरी है मैत्री?
आध्यात्मिक और भौतिक नज़रिए से देखें:
आध्यात्मिक: जो हमसे ऊँचे हैं, उनके लिए ईर्ष्या नहीं, उनकी तारीफ़ करो.
भौतिक: जो आगे हैं, उनसे जलन मत करो, खुश हो.
निम्न जीव: आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर के लिए करुणा, भौतिक रूप से कमज़ोर के लिए मदद.
उपेक्षा: जो मौके मिलने पर भी न सुधरें, उनके लिए गुस्सा नहीं, उनको छोड़ दो. जो अज्ञान या मूर्खता में डूबे हैं, उनके लिए तिरस्कार या गुस्सा नहीं, करुणा या उपेक्षा रखो. ये भाव धर्म को ताकतवर बनाते हैं.
‘शिवमस्तु सर्वजगतः’
सबका भला हो, हम सिर्फ चिल्लाते हैं. पर कहीं पड़ोसियों को तो इस प्रार्थना से बाहर नहीं रखते? कहीं विदेश में एक संस्था ‘We Love All’ चिल्लाती है. एक लड़की भी शामिल थी, पर पड़ोसी ने कहा, ‘सबको प्यार करती हो, माँ-बाप को क्यों नहीं?’ वो गुस्से में बोली, ‘उनसे तो बिल्कुल नहीं.’
हम भी ऐसा तो नहीं करते हैं, न? बाहर से सबको प्यार, पर दिल में कुछ के लिए नफरत. अपने दिल को टटोलने जैसा है. क्या किसी को नुकसान हो तो क्या हम खुश होते हैं? कोई Fail हो जाए तो क्या हम अंदर ही अंदर खुश होते हैं? क्या किसी की तकलीफ सुनकर मज़ा आता है?
जिसके साथ अनबन है उसका बच्चा फेल, अथवा वह परेशान, अथवा उसका व्यापार डूबा-और हम अंदर-अंदर खुश. ये शत्रुता है. इनके लिए ‘शिवमस्तु’ में जगह नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा है ना खुद से पूछना पड़ेगा.
मनमंदिर में परमात्मा
झांझण शाह ने कहा, ‘मेरे संघ का एक भी व्यक्ति अनामंत्रित हो, यानी एक को भी अगर आमंत्रण नहीं मिलेगा तो मैं राजमहल में नहीं जाऊँगा.’
वैसे ही परमात्मा कहते हैं, ‘तेरे दिल में एक भी जीव के लिए नफरत हो, तो मैं अंदर नहीं आऊँगा.’ दिल का दरवाज़ा सबके लिए खोलो, वरना परमात्मा भी बाहर रहेंगे.
चमत्कार का रास्ता
शत्रुओं की लिस्ट बनाओ. रोज़ उनके नाम याद करो और गुनगुनाओ, ‘भगवान इनका भला करे.’ चाहे बेटा तंग करे, बॉस परेशान करे, या कोई बेवजह सताए—दिल से कहो, ‘इन्हें सद्बुद्धि दे.’ ये रटन, ये प्रार्थना चमत्कार करेगी.
जैसे कपड़े का ज़िद्दी दाग ज़्यादा साबुन और मेहनत माँगता है, वैसे ही वैर वालों के लिए ज़्यादा मैत्री भाव चाहिए. रोज़ उनकी भलाई की कामना करने पर, कटुता धुल जाएगी, और आत्मा चमक उठेगी.
क्या शत्रु बदलेगा?
पूज्य श्री कहते हैं कि शंका मत करो कि ‘मैं मैत्री करूँ, पर वो तो दुश्मनी करेगा.’ हमारे शुद्ध भाव से उस पर ज़रूर असर होगा. एक माँ अपनी बेटी को पैदल ले जा रही थी. ऊँट वाले से बेटी को बिठाने को कहा, उसने मना किया.
थोड़ा आगे जाकर ऊँट वाले का मन बदला, मन में शैतान घुस गया कि सुंदर लड़की के साथ बैठने को मिलेगा. ख़राब भाव आए. उसने कुछ समय बाद कहा कि बेटी को बिठा दो लेकिन अब माँ को भी शक हो गया.
उसने कहा, ‘नहीं, अब पैदल ही चलेगी.’ दोनों के विचार एक-दूसरे तक पहुँचे. ऊंटसवार चौकन्ना हो गया, इस माँ को मेरे कुविचार की गंध आ गई क्या? वनस्पति भी भाव ग्रहण करती है.
अनेकों Scientists ने पौधों पर प्रयोग किए. स्नेह दिखाओ, पौधा खिलता है; तिरस्कार करो, मुरझाता है. तो इंसान पर क्यों नहीं असर होगा? बिलकुल होगा और होता है.
मैत्री से पुण्य
पूज्य श्री का सब के लिए संदेश है कि ‘ये मेरा मित्र है’-ऐसा सोचने से शत्रु मित्र बन जाता है. विश्व के हर जीव के लिए सद्भाव रखना, ये सबसे बड़ा पुण्य देता है. जिननामकर्म, सौभाग्यनामकर्म जैसे श्रेष्ठ पुण्य इससे मिलते हैं.
परमात्मा के जन्म से पहले ही इंद्र का सिंहासन हिलने लगता है, 56 दिक्कुमारियाँ नाचने लगती हैं. ये सब मैत्री और विश्वप्रेम की ताकत है.
क्या करें?
दिल के ताले तोड़कर, सबके लिए दरवाज़ा खोलना है. शत्रुओं की लिस्ट बनाकर, रोज़ उनके लिए प्रार्थना करनी है. छोटी-छोटी नफरतें छोड़कर, पड़ोसियों, रिश्तेदारों आदि को माफ करना है और माफ़ी मांगनी है.
हर अनुष्ठान में मैत्री, करुणा डालेंगे, तो वो ताकतवर बनेंगे. मैत्री भाव अपनाने पर, शत्रु मित्र बनेंगे, अनुष्ठान चमकेंगे, और परमात्मा हमारे दिल में बसेंगे. ये चमत्कार है, आजमाकर देख सकते हैं.
इस पूरी Series में प्रभु की आज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो मिच्छामि दुक्कडम्.
इस Series के माध्यम से हर जीव के प्रति मैत्री भाव जागृत हो और पूरे विश्व में अहिंसा, शांति एवं मैत्री की स्थापना हो यही प्रार्थना.