प्रस्तुत है,
Friend or Foe Book का Episode 06
खोजा परिवार की लड़की
खोजा यानी Traders अथवा व्यापारी वर्ग कह सकते हैं.
बात उस समय की है जब आज की तरह Flights की भरमार नहीं थी. एक खोजा Family, Business के हिसाब से Africa में बसा हुआ था, वह अपनी जन्म भूमि में आने के लिए Steamer से रवाना हुआ और Mumbai पहुँचा. Mumbai में अपने किसी परिचित के घर 3-4 दिन रुककर बाद में अपने गाँव जाने का प्रोग्राम था. आज दुनिया के देश नजदीक आ गए हैं, तभी तो आज ‘फट् गए हो चट् आए’ और बारबार लोग प्रवास करने लगे हैं, जब कि इंसानों के दिल दूर हो गए हैं, परंतु उस जमाने मे देशों के बीच अंतर बहुत था पर इंसानों के दिल नजदीक थे.
एक परिचित-Known Family Mumbai में थी, ऐसे कोई एक दम Close Relation नहीं था फिर भी Africa से आए मेहमानों की अच्छी खातिरदारी के लिए उन्हें 7 दिन तक रोका और Mumbai के अलग अलग जगहों पर घूमने का कार्यक्रम बनाया. एक दिन 5-6 घण्टों का Program था. Mumbai वाली Family की युवालडकी Health Issue के कारण घर पर ही रही और Coincidence से Africa से आए परिवार के जवान लड़के को बुखार आ गया था इसलिए वह भी घूमने नहीं गया और घर पर ही रुका रहा.
दोनों Families घूमने के लिए निकल पडे. बंगले में सिर्फ जवान लड़का और लड़की. वह लड़का बंगले के दीवान खाने में Sofa पर पडा-पड़ा कोई Book पढ़ रहा था. लड़की रूम के अंदर थी. एक डेढ घंटा हुआ होगा और वह युवती अकेले होने से Bore हो गई. वह लड़की दिखने में रूपवान थी. वह लड़की दीवानखाने में आई और युवक एकदम ही उठ बैठा. युवती Sofa के दूसरे End पर बैठ गई और वह जवान लड़का तो फिर से पुस्तक पढने में तल्लीन हो गया. दसेक मिनट बीती फिर भी वह कुछ नहीं बोला तब उस युवती ने हिम्मत करके पूछा ‘क्या आप Bore नहीं होते हैं?’ युवान ने कहा नहीं. युवती ने कहा कि लेकिन मैं तो बहुत ज्यादा बोर हो चुकी हूँ. चलिए, थोडीसी बातें कर, जी बहलाएँ जिससे आसानी से Time Pass हो सके. लड़के ने अलग ही उत्तर दिया कि मेरा Time Pass तो ऐसे भी इस पुस्तक से हो ही रहा है. युवती ने फिर Request की कि आप मुझसे थोडी बातें कीजिए न. मुझसे यह अकेलापन सहा नहीं जाता. युवक ने कहा कि नहीं बहन. आप जवान हो, मैं भी जवान हूँ. अपने लिए ऐसे बातें करना बिलकुल भी उचित नहीं.
युवती ने कहा कि ‘अरे! थोडी सी हँसकर दो-चार बातें करने में कौनसा तूफ़ान आ जाएगा?’
छोटी सी बातें
मनुष्य का मन दूर की नहीं सोचता. एक छोटे से परमाणु की आंतरिक संरचना में हुआ जरासा परिवर्तन विध्वंसकारी परिणाम प्रस्तुत कर देता है. छोटासा घाव नासूर बनकर शरीर को गलाने लगता है, छोटीसी खरोंच Tetanus जैसा Deadly रोग उत्पन्न कर देता है. छोटासा छेद बड़े जहाज को डुबो देता है, छोटीसी फुंसी बड़े से बडे पहलवान को मार सकती है.
प्रसिद्ध विचारक Bertrand Russell ने लिखा है ‘आदमी की परख बडी बातों से उतनी नहीं होती जितनी कि छोटी बातों से. अतः छोटी बातों को Ignore नहीं करना चाहिए. वे बड़ी से बड़ी बातों से भी बड़ी है. एक गेहूँ का दाना लगता है कितना छोटा मगर सारे विश्व का भरण-पोषण कर सकें उतना विराट हो सकता है. गणित से बात सिद्ध है कि एक दाने से वर्ष में 50 दाने होते हैं, अगले वर्ष 2500, तीसरे वर्ष 1,25,000, 13वें वर्ष 21,41,40,62,50,00,00,00,000 (21 शंख, 41 पद्म, 40 नील, 62 खरब 50 अरब). एक दाने का कमाल है यह.
आज तो दाना एक ही दिखता है कल उठकर वही दाना विराट स्वरुप लेता है. चिनगारी छोटी सी होती है मगर वही भीषणरूप धारण करके नगरों को भस्म कर देती है.
युवक का Mind Control
युवक जानता था. वह इस Mindset वाला नहीं था कि ‘दो बातें प्रेम से कर ली तो क्या हो गया?’ बिलकुल एकान्त यानी कोई और नहीं है, जवानी, सामने से चलकर आई रूपवान लड़की. अब यदि छोटीसी भी असावधानी रख ली तो भयंकर विनाश समझो. शालीन युवक ने Smartly काम लिया और कहा ‘देखो बहन. जब तुम्हारे माँ-बाप मेरे भरोसे पूरा घर छोडकर गए कि हमारी किसी भी वस्तु के साथ कुछ भी गड़बड़ नहीं करेगा तो मेरा आपसे दो पल ही सही पर, हँसकर बातें करना कितना उचित है?’
इतना कहकर प्रश्न के उत्तर की परवाह किए बिना युवक अपनी पुस्तक में खो गया. युवती तो दंग रह गई और बिना पलक झपकाएं उसे निरखती ही रही. पूर्ण एकान्त वातावरण में रूपवती नौजवान लडकी सामने बैठी है फिर भी न कोई इच्छा, न कोई नखरें या न कटाक्ष. सामने से युवती बोलने को उत्सुक है मगर वाह. उसका मन रह रह कर उसे कहने लगा ‘यह इस भूमितल का इन्सान नहीं है. यह तो साक्षात् देवात्मा है. ये लड़का तो किसी और ही मिट्टी से बना होना चाहिए.’ ऐसा उसे लगने लगा.
युवती आवर्जित हुई
युवक के संयम के प्रति, Self-Control के प्रति उसके दिल में बहुत Respect जगी और वह बहुत आकर्षित हुई. मन ही मन उसने Decision ले लिया कि शादी करूंगी तो इस गुणवान लड़के के साथ ही. वह लड़की अपनी जगह से उठी और अचानक लड़के के पास आकर बैठ गई और उसका हाथ पकड़ लिया, लड़का हैरान रह गया और कहा कि ‘अरे, अरे. यह आप क्या गजब कर रही हैं? यह हाथ तो उस व्यक्ति के साथ मिलाना है जिसका चयन आपके पिताजी जिंदगीभर के लिए करेंगे.” लड़की के दुःसाहस से युवक घबरा उठा था, और अपना हाथ छुडाने के लिए छटपटाने लगा.
लड़की ने कहा कि ‘जी हाँ. आप जो कह रहे हैं, मैं भी वही कर रही हूँ. आपका हाथ मैंने पकड़ा है बिलकुल सोच समझकर. मैंने Firm Decision लिया है कि पकडूंगी तो यही हाथ, दूसरा नहीं.’ कन्या की बात सुनकर एक बार तो युवक चौंक उठा, फिर भी उसके मन में शरारत करने की या दूसरी कोई छेडखानी करने की हरकत नहीं आई. यह देखकर लड़की के मन में गुणानुराग की और बढ़ौती हुई, सात दिन के बाद मेहमान परिवार तो अपने गाँव की ओर निकल गया.
लेकिन कुछ ही दिन में जब उस लड़की की शादी की बात घर में चलने लगी, तब उसने अपने पूज्य पिताजी को विनम्रतापूर्वक साफ-साफ कह दिया. उसका जिक्र था कि शादी करूंगी तो उस युवक के साथ ही. पिता ने कहा ‘पगली. उससे भी ज्यादा रूपवान और धनवान युवक तेरे लिए खोज लेंगे. बेकार ही उस Middle-class युवक के पीछे क्यों अपना जीवन बर्बाद कर रही है?’ युवती का निर्णय अडिग था, रूप और धन से भी अधिक उसके मन में गुण की, Quality की गरिमा थी.
आज की बात करें तो Trend बदल गया है, आज तो पैसों को 1st Priority पर रखा जाता है, लेकिन कौन नादान लोगों को समझाए कि यदि व्यक्ति गलत है तो महलों में भी रोना पड़ेगा और व्यक्ति गुणवान है तो सामान्य घर में भी हंसकर जीवन बीतेगा. खैर.
आखिर पिता ने पत्र लिखकर मंगनी की और वहाँ से युवक के पिता का निराश कर दे ऐसा उत्तर आया कि ‘युवक को TB हो गया है, इसलिए आपकी कन्या की जिंदगी उजाडने की तमन्ना उसे नहीं है. खुशी से वह किसी अन्य युवक के साथ शादी करके सुखी रहे.’
वचन नहीं, वज्रलेख
ऐसा उत्तर सुनकर लड़की और ज्यादा Attract हुई. उस लड़के पर फिदा हो गई, पूरी तरह से कायल हो चुकी थी वह कन्या. मन ही मन उसने उस गुणवान लड़के को प्रणाम किया. उसके पिता ने उसे बहुत समझाया कि ‘तुम अपना निर्णय बदल लो.’ पर कन्या ने युवक को जो वचन दिया था वह वज्रलेख था. लड़की ने कहा कि ‘सूर्य पश्चिम में उग आए तो भी अपना वचन नहीं तोडूंगी. शादी करूंगी तो उस गुणवान लड़के के साथ ही, सुंदर में सुंदर उनकी सेवा करूँगी, उन्हें रोगमुक्त बनाऊँगी और सुखी बनूँगी.’ अंत में कन्या की विजय हुई और शादी हो गई.
काल को कुछ और ही मंजूर था. 6 महीने बीते और रोग ने अपना पंजा कसा और युवक चल बसा. जब पिता ने Taunt मारते हुए दो शब्द सुनाए तब उस सन्नारी का जवाब था
‘पिताजी, मुझे उनके मिट्टी के शरीर का परिचय नहीं करना था बल्कि उनकी Qualities, उनके गुण, उनके संस्कार को पहचानना था और वह कार्य 6 महिने में मैं बहुत आसानी से अच्छी तरह कर चुकी हूँ. उनकी Presence मैं मेरे आस पास महसूस कर पाती हूँ क्योंकि वे अपनी Qualities के जरिए अभी भी हाजिर है, मौजूद है. अपने गुणों से मेरे मन में वे मरे नहीं है, अमर है. उनके गुण, उनकी Qualities काल-यम की पहुँच से पर है. पिताजी. आप अपनी लाडली की चिंता से बिलकुल मुक्त रहिए. व्यर्थ ही दुःखी मत बनिएगा, मैं तो अब से निरंतर उनके गुणों का स्मरण करती रहूँगी और इसी माध्यम को उनका संपर्कसूत्र मानकर सुखी रहूँगी और समाजसेवा के कार्यों में लग जाऊँगी.’
इस आकर्षण में पौद्गलिक इच्छाओं का, Materialistic इच्छाओं की Priority नहीं दिखती है, स्वार्थ भी नहीं दिखता है, इसलिए यह राग नहीं. पर यह तो है जीव के गुणों के प्रति असाधारण आकर्षण, लगाव, आत्मीयता की घनिष्ठता.
प्रेम, जो बाधक नहीं
पूज्य श्री कहते हैं कि मैत्री तो हमें सभी जीवों के साथ स्थापित करनी है. फिर भी ऐसा महसूस होता है कि किसी एक जीव के प्रति भी रखा हुआ ऐसा प्रेम प्राथमिक भूमिका में बाधक नहीं है. अतः छोड़ने जैसा नहीं पर उसे पाने जैसा माना जा सकता है जिसमें Materialistic Attraction की Priority न हो. ऐसा Relation किसी Particular व्यक्ति के साथ बांधा भी गया हो और शायद वह आने वाले जन्मों में भी चलता रहे, तो भी वह बाधक नहीं बनता है, अपितु दोनों के लिए हित करनेवाला और साधना के रास्ते में प्रगति करानेवाला ही ज़्यादातर देखा गया है.
इसके अनेक उदाहरण शास्त्रों में मिलते हैं. मिसाल के तौर पर श्री ऋषभदेव भगवान और श्रेयांसकुमार, श्री नेमिनाथ भगवान और राजिमती, पृथ्वीचंद्र और गुणसागर. एक भी दृष्टांत शास्त्रों में ऐसा पढने में नहीं आया जिसमें दो जीवों का भवपरंपरा में चल रहा स्नेहसंबंध उन दोनों को जन्म-मरण के चक्कर में या दुर्गति में भटकाने वाला बना हो.
पौद्गलिक आकर्षण (Materialistic Attraction)
अभी जिनकी हमने बात की वो सब दुर्गति को नहीं पाए इसका कारण स्पष्ट है कि जिस संबंध में पौद्गलिक स्वार्थ की Priority हो, वह Weak ही होता है. उसमें वास्तविकता या दृढता की बात ही नहीं होती इसलिए Next Next जन्मों में उसका साथ चलने की संभावना कम ही रहती है क्योंकि व्यक्ति की भौतिक Achievements Permanent तो रहनेवाली नहीं है. आज का राजा कल का भिखारी हो सकता है. अरे, जीवनभर साथ निभा भी लिया तो भी मृत्यु तो आनी ही है. इस जन्म की सभी Achievements इधर की इधर ही रहनी है. अब उन Achievements के Base पर जो Attraction खड़ा हुआ हो तो वह टिक भी कैसे सकता है? और अगले अगले जन्म में साथ भी कैसे चलेगा? बांस ही नहीं तो बांसुरी बजेगी भी कैसे? सवाल ही नहीं. Clear बात यह है कि अगले अगले जन्म में जो चलता है, उस संबंध में स्वार्थ के लिए कोई स्थान ही नहीं है. No Vacancy For It.
हमारा प्रेम शुद्ध प्रेम है या शुद्ध प्रेम के नाम से भ्रम? जानेंगे अगले Episode में.