Is “Tit For Tat” – The Right Policy? Friend or Foe – Episode 02

क्या "जैसे को तैसा" सही है?

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जैसे को तैसा? Tit for Tat? क्या यह सही है?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 02.

पूज्य श्री कहते हैं “वैर की शांति, वैर से नहीं!”

हमें तो यह सोचना है कि जिस व्यक्ति के साथ हमारे अंतर में शत्रुता खडी हो गई है और एक दूसरे के सामने भी देखने को तैयार नहीं है, वैसे व्यक्ति के प्रति भी यदि हम दिल से सद्भावना का चिंतन करे तो हमारा भी ऐसा सौभाग्य आदि खडा हो सकता है जिससे शत्रु के मन में घुसपेठ कर चुकी शत्रुता खतम हो जाए और अपने साथ मित्रता के लिए वह अपने आप हाथ बढाए क्योंकि वैर से वैर तो कभी शांत होता हुआ न देखा है और न दिखाई देता है. 

आग को शांत करना है तो पानी ही डालना होगा, पेट्रोल तो बिलकुल भी नहीं. वरना आग और भडकेगी, प्रलय आदि का भीषण रूप भी धारण कर सकती है और हर एक को उस आग में जलाकर ख़ाक कर देगी. उसी प्रकार वैर के सामने वैर रखो तो वह और बढ़ेगा. 

एक गुजराती गीत की कडी है

“वैर थी वैर शमे नहीं जगमां, 
वैर थी वैर वधे जीवन मां.” 

हमें अपने दिल और दिमाग की Diary में यह बात Note करके रखनी होगी कि “आग से आग कभी शांत नहीं होती, उसके लिए पानी चाहिए. शत्रुता से शत्रुता कभी नष्ट नहीं होती, उसके लिए मैत्री चाहिए. 

इसीलिए क्या 

  • लाख मूल्यवाली धर्मक्रियाओं का लाख मूल्य करना है? 
  • सृष्टि के हर एक जीव के प्रति मैत्री से हमें अपने आप को वासित करना है? 
  • परमात्मा को दिल में प्रतिष्ठित करना है? 
  • किसी व्यक्ति विशेष के प्रति दिल में पैदा हुई कटुता दूर करनी है?  
  • हर एक के लिए दिल के दरवाजे पर (द्वार पर ) ‘Welcome’ का Board लगाना है? 

तो जिस किसी भी व्यक्ति की Physical, Mental, Social, Financial आदि Problems के कारण यदि हमारे दिल के किसी कोने में आनंद उभरने लगे, मज़ा आने लगे तो उन-उन व्यक्तिओं की एक List इसी समय तैयार कर सकते हैं और फिर हर दिन एक कार्यक्रम बना सकते हैं. 

उस लिस्ट को सामने रखकर और हर एक नाम को पढ़कर, व्यक्ति का चेहरा याद करके उस व्यक्ति के प्रति सद्भावना यानी अच्छी भावना, शुभ भावना व्यक्त कर सकते हैं, उसके कल्याण की कामना कर सकते हैं. हो सके तो तीन बार इस Process को Repeat करना है, नहीं तो एक बार तो अवश्य कर ही सकते हैं. एक बार Try करना है. 

पूज्य श्री पूछते हैं कि एक बार अजमाकर देखने में क्या दिक्कत है? कटुता, शत्रुता आदि रखकर बहुत संक्लेश, अंदर ही अंदर लड़ाई की, उसे ना जाने कितनी बार मार भी दिया लेकिन अब कुछ मीठापन जीवन में  ला सकते हैं! दिल से शुभ भावना भाते रहे तो हम कोई छोटे बाप के नहीं हो जाएँगे. 

क्रिया से भाव 

प्रश्न उठ सकते है कि ‘पर दिल में ऐसी सद्भावना उठती ही नहीं.’ ऐसा यदि हमारा कहना हो तो Solution तैयार है. पूज्य श्री कहते हैं ‘दिल से शत्रु के प्रति सद्भावना खडी न हो तो भी सद्भावना रखनी शुरू करो. चाहे बेमन से ही सही और परमात्मा के पास जाकर अन्तर्मन से प्रार्थना करो कि

हे परमात्मन्! मेरे दिल में कटुता, शत्रुता, कडवाहट कम हो और उस व्यक्ति के प्रति सच्चे दिल से सद्भावना रख सकूँ ऐसी दया कीजिए. उसको भी सदबुद्धि मिले और उसका भी भला हो ऐसी कृपा कीजिए.

ऐसा हर दिन करने से वह भावना, वह Feeling साहजिक हो जाएगी. जिस भाव से, Intention से हम क्रिया करते हैं, वह क्रिया उन भावों को अभिवृद्ध करती है, बढ़ाती है, Increase करती है. अगर सच्ची सद्भावना यदि हमारे दिल में उठी नहीं है फिर भी हम उस क्रिया को चालू रखते है तो एक न एक दिन अवश्य ही सच्ची सद्भावना प्रकट हो जाएगी. 

लगभग हर एक व्यक्ति ने अपने जीवन में अनुभव किया ही होगा कि मान लो दो Shirts हो, दोनों Shirt सुंदर धोए हुए हैं, पर एक Shirt को Press किया और दूसरे Shirt को नहीं किया तो रोनक में फर्क पडता ही है. Press किया हुआ Shirt ज्यादा सुंदर लगता है, सीधी से बात है. लेकिन ऐसा क्यों? First Class Detergent, साबुन और पानी से धुलाई तो बिना Press किए हुए Shirt को भी मिली तो फिर? 

कारण Simple है Wrinkles, सिलवटें. Right? और Press किए हुए Shirt में Wrinkles निकल गए हैं, इसलिए उसकी शोभा बढी हुई नजर आती है. ठीक उसी तरह हम पूजा करते हैं, सामायिक करते हैं, दान देते हैं और विविध सुंदर अनुष्ठान भी करते हैं परंतु यदि किसी एक व्यक्ति के प्रति भी वैरभाव की सिलवट, Enmity का Wrinkle रह जाता है तो आत्मा का अपूर्व तेज और सौन्दर्य जगमगा नहीं उठता है, अविकसित ही रह जाता है. 

अन्य व्यक्ति के प्रति दिल में जमकर बैठी हुई उस सद्भावना को निकालने का एक सुंदर और सरल उपाय यही है कि बार-बार उस व्यक्ति को मित्र मानना और उसी दिशा में चिन्तन करना, उसका Positive सोचना, उस व्यक्ति के हित की कामना हर दिन करते रहना. 

मुठ्ठी बंद करके चलनेवाला इंसान कभी हाथ खुल्ले नहीं कर सकता है और इसीलिए न तो वह किसी को नमस्कार भी कर सकता है और न ही किसी से Handshake भी कर सकता है. तो फिर वह दूसरों को मित्र कैसे बनाएगा? यदि मित्र हैं भी तो उनकी मित्रता को वह कैसे टिका पाएगा? 

इस तरह जो व्यक्ति अपने दिल में गांठ लगाकर घूमता है, वह अपने दिल को कही भी खोल नहीं सकता है तो वह दिल में अन्य को प्रवेश कैसे कराएगा? और मित्र कैसे बनाएगा? पितल का कलश इतना घन होता है, यानी Dense होता है कि वह अपने भीतर पानी की एक बूँद भी आने नहीं देता इसीलिए न तो वह खुद ठंडा बन पाता है और न ही पानी को ठंडा बनने का Chance भी देता है. 

अरे! और तो और Ice Cold ठंडा पानी डाला हो उसमें तो घड़ी दो घड़ी बीते उसके पहले उसे गरम भी कर देता है. जब कि मिट्टी का मटका सूक्ष्म छेदवाला होने से पानी को अपने भीतर उतरने देता है जिससे खुद भी ठंडा बनता है और पानी को भी शीतलता देता है. 

पूज्य श्री कहते हैं कि उसी तरह हम भी अपने शत्रु को अपने दिल में बिठाकर देख सकते हैं. हम भी शीतल बनेंगे, शांत बनेंगे और वह भी शीतल और शांत बनेगा. क्लेश-संक्लेश का ताप दूर हो जाएगा. इससे बढकर और कौनसा चमत्कार हो सकता है? 

शत्रु के ख़त्म होने से शत्रुता ख़त्म नहीं होती, लेकिन शत्रुता यदि ख़त्म हो जाए तो शत्रु भी ख़त्म, शत्रु शत्रु ही नहीं रहे तो शत्रु ख़त्म समझना है. Simple!

An eye for an eye makes the whole world blind.

हम गुलाम है या आज़ाद है? हम किसकी सुनते हैं? धर्मराजा की या मोहराजा की? जानेंगे अगले Episode में.

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