आखिर कौन है हमारा शत्रु?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 11
जिस खून में मैत्री बहती है
कई बार हमने अनुभव किया होगा, जैसे कि दो भाइयों के बीच लड़ाई हो गई, कभी कभार तू-तू मैं-मैं Extreme होने से भयानक झगडा हो गया. लेकिन मान लो इन्हीं भाइयों का पडोसी के साथ पंगा हो गया.
अब पडोसी से निपटने के लिए दोनों भाई अपनी Personal लड़ाई भूल जाएंगे और एक होकर पडोसी का सामना करेंगे, उसके छक्के छुडवा देंगे, क्योंकि वे इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं, मानते हैं और पहचानते हैं कि पडोसी हमारा बड़ा दुश्मन है. उसको मज़ा चखाना हो, छठ्ठी का दूध याद दिलाना हो तो आपसी लड़ाई को भूलकर एक होना ही पड़ेगा.
आए दिन होता है
मुंबई में तो ऐसा कई बार होता है, पानी के लिए या छोटी छोटी बात के लिए पडोसी के साथ कहा सुनी हो ही जाती है. लेकिन कभी कभी एक अलग दृश्य भी देखने को मिलता है. मकर संक्रांति के दिनों में सबकी नज़र आकाश पर है और पाँव ज़मीन पर टिके हैं.
पतंग उड़ाते समय ‘अरे, ये कटा, वो कटा’ इस तरह ये पडोसी ही एक होकर दूसरी छतवालों से पतंग काटने में मारामारी शुरू कर देते हैं. इस समय में आपस में लड़ने वाले पड़ोसी भी अपनी लड़ाई भूलकर Unite होकर दूसरों को मजा चखा देते हैं.
ये वे ही पडोसी हैं जो सुबह-शाम नल, पानी आदि को लेकर भयानक लड़ाईयां करते हैं. अब मान लो किसी गली-मुहल्लेवालों के साथ लड़ाई हो गई तो ये आपस में लड़नेवाले पड़ोसी ही एक हो जाते हैं. अब मान लो किसी अन्य शहरवालों से भिड़ना हो तो सारे गली-मुहल्लेवाले एक होकर लड़ेंगे. इसी तरह दो States की लड़ाई में ये अलग अलग शहर वाले लोग एक हो जाएंगे.
अब नदी के पानी को लेकर या कोई सीमा के विवाद को लेकर दो राज्यों की भले लड़ाई हो लेकिन बात राष्ट्र की आएगी तो? मान लो भारत के 2 States के बीच बहुत लड़ाई है लेकिन बात अगर पाकिस्तान से लड़ने की आएगी तो यह ही 2 States के लोग एक हो जाएंगे, In fact पूरा देश एक होकर सेना के पीछे खड़ा होगा.
America और Russia दोनों की बनती नहीं, बयानों में हमेशा कटाक्ष दिखता ही है इतना ही नहीं, जिस तरफ एक देश होगा, लगभग उसके Opposite Side ही दूसरा देश देखने को मिलेगा, लेकिन जब मानवजाति के ऊपर विनाश के बादल मंडराते हैं.
मान लो कोई AIDS CANCER, CORONA जैसी भयानक बीमारी हो, तो दोनों देश के वैज्ञानिक अपने देश की लड़ाई भूलकर हाथ मिलाते हैं और उन बीमारियों का इलाज ढूँढने के प्रयास करते हैं. जो देश की एक दूसरे से बनती नहीं, वही देश साथ में बैठकर पूरे मानवजाति के दुश्मन ऐसी बीमारियों से लड़ने के लिए साथ में बैठकर विचार करते हैं, Research करते हैं.
अब इन सारे अनुभवों से हम यह समझ सकते हैं कि जब कभी Common बड़े शत्रु से Fight करनी हो तब छोटे शत्रुओं को अपनी Personal दुश्मनी भूलकर Unite होकर आगे बढ़ना पड़ता है, तभी Common बड़े शत्रु के खिलाफ जीत हासिल की जा सकती है, वरना नहीं. चाणक्यनीति में सुना भी जाता है ‘शत्रु का शत्रु अपना मित्र.’
भारत के इतिहास में भी देखने जाए तो भारत के राजा महाराजा एक रहे होते तो बाहरी आक्रांताओं द्वारा भारत पर राज की तो बहुत दूर की बात रही, कभी भारत की ओर कोई देखते भी नहीं. आपस में एकता नहीं रही, Personal Ego, Personal वैर को Side में नहीं रखा तो बाहरी Common बड़े दुश्मन के आगे हारना पड़ा. यह हमारी History है और आज हमें हमारे इतिहास से सीखना है.
Inshort एक बात Clear है – Common बड़ा शत्रु हो तो आपसी लड़ाई भूलनी ही पड़ेगी, वरना Common बड़ा शत्रु हमें खा जाएगा.
अध्यात्म का चश्मा
अब इसी अनुभव को Spiritual Perspective से देखें-सोचें-अनुभवें तो संपूर्ण मनुष्यजाति को खतरे में डालनेवाले Aids जैसे भयानक रोगों को हराने के लिए मानव जाति एक Table पर बैठती है, सभी मनुष्य एक हो जाते हैं. उस समय सभी लोग अपनी Personal लडाइयां भूल चुके हैं ऐसा मित्रता का पूरा वातावरण खडा हो जाता है. एक दूसरे की मदद करने की तैयारी सभी के चेहरे पर देख सकते हैं.
कर्मसत्ता का वैर
एक School Teacher का एक Smart Student के साथ वैर बंध गया. ये Teacher बात-बात पर उस लड़के की हालत ख़राब कर देता. Class में थोडा Late आ गया, Homework नहीं करके आया, थोड़ी सी मस्ती कर दी या कोई Question का सही Answer नहीं दिया तो वो Student तो गया काम से.
वह Teacher उस लड़के की इतनी पिटाई करता कि उस लड़के को अपनी नानी याद आ जाती. और हाँ सबको Equal Punishment नहीं, दूसरे विद्यार्थियों को उन्ही Mistakes के लिए एक दम हलकी फुलकी या ना के बराबर सजा मिलती लेकिन जिस पर यह Teacher नाराज़ हुआ वह बच्चे की तो खैर नहीं. कड़क से कड़क सजा मिलती.
ठीक इसी तरह कुदरत कहो या कर्मसत्ता कहो, इस कर्मसत्ता की भी हम जीवों से भयंकर शत्रुता बंधी हुई है. जीव थोड़ी से भूल करता है और उसके लिए कर्मसत्ता द्वारा कड़ी से कड़ी सजा तैयार है. राई जितनी सजा भी यह कर्मसत्ता, यह कुदरत कम नहीं करती.
एक विधवा महिला और उसके पुत्र की बात आती है. वह पुत्र मेहनत-मजदूरी करके आया और घर आते ही रोटी नहीं देखी. भूख से अपने Patience खो बैठा और जैसे ही काम से थककर माँ आँगन में आई वैसे ही अपनी Limit भूल गया, अपनी मर्यादा भूल गया और बोल उठा कि ‘कहाँ तू सूली पर चढ़ने गई थी, पता नहीं तेरा यह पुत्र भूखा मर रहा है.’
माँ भी अपना विवेक, संयम, संतुलन खो बैठी और वह भी बोल उठी ‘कहाँ तेरे हाथ कट गए थे? रोटी अंदर रखी थी, लेने में कितनी देर लगती?’ बस क्रोध में, आवेश में बोले गए यह शब्द इन दोनों को बहुत भारी पड़ गए.
कर्मसत्ता ने इन दोनों को इन शब्दों की भयानक सजा दी. अगले भव में यानी अगले जन्म में उस लड़के को बिना कारण ही सूली पर चढ़ना पड़ा और इस माँ को भावांतर में हाथ कटवाने की भयानक सजा मिल गई. ऐसे देखें तो बोली थी सिर्फ एक-एक लाइन लेकिन सजा कितनी भयानक. यह ही कर्मसत्ता का Working Style है.
इसी तरह एक और व्यक्ति की बात आती है, दीक्षा का पालन तो सुंदर किया, सिर्फ इतना ही मन में सोचा ‘गुरु भगवंत ने दीक्षा दी, बहुत अच्छा किया, परंतु जबरन दी यह अच्छा नहीं किया.’ बस, इतना छोटा-मामूली सा गुरु के प्रति दुर्भाव और मेतारज के भव में दुर्लभबोधि की सज़ा पकड़ा दी. दुर्लभबोधि अर्थात दीक्षा, सम्यक्त्व, वैराग्य इत्यादि जल्दी से जिन्हें मिलता भी नही और पसंद भी नहीं आता ऐसी आत्मा समझ सकते हैं. धर्म पसंद नहीं आना, यह भी सजा ही है.
चावल जितनी Size वाला बिचारा तंदुलिया मत्स्य. मुँह फाडकर बैठे हुए मगरमच्छ या बड़ी मछली की आँख पर रहकर पानी की Waves के कारण हजारों छोटी मछलियों को बड़ी मछली के मुंह में जाते हुए और फिर से जीवित बाहर आते हुए देखता है और मन से मात्र इतना विचार करता है कि ‘ओह! यह कैसा मूर्ख! मैं अगर इसकी जगह पर होता तो एक को भी नहीं छोड़ता, सबको खा जाता.’
कर्मसत्ता उस चावल जितने छोटे से प्राणी को, उस तंदुलिया मत्स्य को लेकर सातवीं नरक में भेजती है. जी हाँ 7th नरक. शरीर तो उसका चावल की साइज़ जितना, लेकिन सिर्फ मन से किए गए बड़े पाप की भी भयानक सजा. बिचारा चावल की Size जितना छोटा सा जीव. उसकी एक छोटीसी भूल और 33 सागरोपम की भीषण यातना.
कर्मसत्ता ना दया करती है और ना ही रिश्वत लेती है. कर्मसत्ता के Accounts में Carry Forward ज़रूर होता है लेकिन कुछ भी गड़बड़ नहीं होती. कदम कदम पर जीवों की, आत्मा की हालत ख़राब करनेवाली और क्रूर मज़ाक करनेवाली यह कर्मसत्ता, क्या आत्मा की भयंकर शत्रु नहीं है? गंभीरता से सोचना होगा. कौन है जो कर्मसत्ता से बच सकता है? कोई नहीं!
छोटे से छोटे जीव को भी कर्मसत्ता नहीं छोड़ती. इसलिए इस दुनिया के हर जीव, हर प्राणी का भयंकर से भयंकर और बड़े से बड़ा Common शत्रु और कोई नहीं बल्कि-कर्मसत्ता है. यदि हमें दुखों से मुक्त होना है तो हमें इस कर्मसत्ता पर जीत हासिल करनी ही होगी. कर्मसत्ता हम सभी का Common शत्रु है और बड़ा शत्रु है. कर्मसत्ता से लड़ने के लिए हमें एक होना ही होगा.
तो Finally हमें यह तो पता चल गया कि असली दुश्मन कोई जीव, कोई व्यक्ति नहीं है, जिसके साथ छोटे बड़े झगड़े हुए हैं, वह हमारा दुश्मन नहीं है, असली शत्रु तो कर्मसत्ता है.
लेकिन इस कर्मसत्ता नामक शत्रु से लड़ना किस तरह, इसके खिलाफ जीतना कैसे?
जानेंगे अगले Episode में.