हमारे घर के बड़े हमेशा हमें धार्मिक प्रसंगों में हिस्सा लेने के लिए, संघ में हो रहे Programs में शामिल होने के लिए कहते हैं? लेकिन ऐसा क्यों? क्योंकि कई बार हमारे द्वारा देखी गई छोटी सी चीज़ भी हमारे जीवन में मोड़ यानी Turning Point का काम कर सकती है.
आज हम एक ऐसे ही महापुरुष की कथा जानेंगे जिन्हें मात्र एक छोटा सा निमित्त मिलने पर उनकी Life में एक बहुत बड़ा Drastic Change आ गया. आइये जानते हैं राग को विराग में बदलनेवाले महापुरुष इलाचीकुमार की अद्भुत कथा.
बने रहिए इस Article के अंत तक.
इलावर्धन नामक एक भव्य नगर था. एक बार वहां कुछ नाट्य कला में प्रवीण नटों का आना हुआ यानी Dancers का आना हुआ. उन Dancers की Attractive Dancing Skills ने नगर के सभी लोगों को Attract कर लिया. उन Dancers में एक बहुत सुंदर Dancer भी थी जिसे देखकर उस नगर के एक सेठ के पुत्र इलाचीकुमार की मन में विकार पैदा हो गया.
इलाचीकुमार ने मन ही मन उस Dancer के साथ शादी करने का Decision ले लिया. इलाची ने उस Dancer के पिता से उनकी बेटी के साथ उसके विवाह की बात की लेकिन Dancer के पिता लंखिकर ने इस शर्त पर कन्यादान स्वीकार किया कि सबसे पहले इलाचीकुमार को Dancing Skills सीखकर किसी राजा को उस Skill से खुश करके इनाम प्राप्त करना होगा.
Dancer पर मोहित बने इलाची ने सभी शर्तें स्वीकार कर ली और खुद के माता पिता और Relatives का विरोध होने पर भी उसने घर छोड़ा और उन Dancers के Group के साथ रहकर Dancing Skill सीखने लगा. शादी की Over Excitement के कारण 12 साल में इलाची ने Dancing Skill में इतनी Expertise प्राप्त कर ली कि गुलाब के बगीचे की सुगंध की तरह चारों ओर तक उसके चर्चे होने लगे.
उसके Dance को देखने के लिए चारों ओर से लोग इकठ्ठा होने लगे. अनेक नगरों में अपने Dance Show के बाद उसने बेना नदी के किनारे आए हुए नगर के राजा को खुश करने का निश्चय किया. 12 साल की कठिन साधना के बाद इलाची के दिल में बहुत Excitement थी और पूरा विश्वास था कि वह राजा को खुश करके इनाम हासिल कर ही लेगा.
उस Dancer को भी इलाची से प्यार हो गया था और उसने Dance Show के लिए इलाचीकुमार को अच्छी तरह से तैयार किया और खुद भी Attractive कपडे पहनकर Dance Show के लिए तैयार हो गई. Show का Time होने पर राजचौक में राजा, मंत्रीगण, नगरवासी आकर अपने अपने स्थान पर बैठ गए.
इलाची और Dancer ने हाथ जोड़कर राजा को प्रणाम किया और मंगल गीत से Dance Show शुरू हो गया. Dancer ने पटह यानी ढोल बजाया और इलाची एक ही झटके में डोरी पर चढ़ गया और चारों ओर ‘वाह! वाह!’ की आवाज सुनाई देने लगी.
मात्र डोरी पर Dance ही नहीं, परन्तु Dancer के द्वारा फेंकी हुई ढाल और तलवार यानी Shield & Sword को लेकर रणभूमि के योद्धा यानी Warrior की तरह युद्ध का प्रदर्शन भी इलाचीकुमार ने शुरू कर दिया. राजचौक ‘शाबाश! शाबाश!’ की आवाजों से गूँज उठा.
इलाची ने अदभुत प्रदर्शन पूर्ण करके राजा को प्रणाम किया और इनाम की बात की लेकिन राजा ने उसे कहा कि ‘हे कुमार! तुम्हारी Dance के प्रदर्शन को मैंने अच्छे से नहीं देखा क्योंकि मेरा मन राज्य की चिंताओं में उलझ गया था, इसलिए कल मैं वापस तुम्हारा Dance Show देखूंगा.’
दूसरे दिन इलाची ने वापस दुगुने उत्साह से Dance का प्रदर्शन किया और आज तक नहीं देखी गई Skills का भी सुन्दर तरीके से प्रदर्शन किया लेकिन राजा ने सिरदर्द का बहाना निकालकर आज भी इलाचीकुमार को इनाम नहीं दिया. तीसरे दिन भी प्रदर्शन हुआ लेकिन राजा ने फिर से नया बहाना बनाकर इलाची को इनाम नहीं दिया.
इलाची ने कुछ सोचा और वह राजा के इनाम नहीं देने के पीछे का कारण क्या हो सकता वह सोचने लगा और उसे ख्याल आ गया कि जिस Beauty के राग में उसकी बुद्धि मोहित बनी है, उसी Beauty में राजा भी मोहित बना हुआ है और उसकी यह इच्छा है कि यदि वह नाच करता हुआ जमीन पर गिर जाए और उसकी मृत्यु हो जाए तो वह सुंदर Dancer राजा को मिल सकती है.
इसी कारण कोई न कोई बहाना निकालकर इनाम देने की बात को राजा टालता जा रहा है. यह बात इलाचीकुमार ने Dancer को बताई. तब उस Dancer ने इलाचीकुमार को समझाते हुए कहा ‘मैं आपकी ही हूँ और आप मेरे हैं! आप निश्चिंत रहें और एक बार वापस Try करके देखिए.’
इलाचीकुमार ने अगले दिन वापस अपनी Dancing Skill का भारी प्रदर्शन किया. इलाची एक के बाद एक नई नई Skill का प्रदर्शन करता जा रहा था और अचानक उसका शरीर रुक गया. उसकी नजर एक हवेली पर पड़ी जहाँ उसने एक महान् आश्चर्य देखा. उस आश्चर्य ने उसकी आँखें खोल दी.
डोरी पर नाचते हुए इलाचीकुमार ने देखा कि एक युवा साधु भगवंत जिनके मुख पर ब्रह्मचर्य का दिव्य तेज और आँखों में निर्विकारता है, वे भिक्षा के लिए उस हवेली में आए हैं और साधु भगवंत द्वारा धर्मलाभ की आशिष सुनने के बाद इस Dancer से भी बहुत सुंदर एक युवान कन्या हाथ में मोदक के थाल को लेकर मुनिराज को वहोराने के लिए लाइ है और वह बहुत ही भक्तिभाव से मुनिराज को वहोराने के लिए Request कर रही है लेकिन मुनिराज खप नहीं होने से मना कर रहे हैं.
इस पूरे Incident के दौरान उन मुनिराज की नजरें नीचे भूमि की तरफ ही थी. मुनिराज के जीवन में धन और वासना के त्याग और उनकी Detachment की भावना को देखकर इलाचीकुमार का मन बदल गया.
वह सोचने लगा कि ‘अहो! जिस युवती के लिए मैंने मेरे माता-पिता का त्याग किया, माँ के प्यार और पिता की आज्ञा की Insult की, घर छोड़ा, गाँव छोड़ा, व्यापार छोड़ा, अरे! जिस युवती के प्रति मुझे इतना Attachment था, उसी के प्रति Detachment के दर्शन मुझे हो गए हैं.
अहो! यह राजा भी इस युवती से Attach होकर मुझे मारने का Try कर रहा है. धिक्कार है मेरे इस बाहरी सुन्दरता से रंगे हुए उस Dancer युवती के प्रति रहे Attachment भाव को!’ इसी भावना में आगे बढ़ते हुए इलाचीकुमार को जातिस्मरण ज्ञान हो गया.
इलाची का मन भोग सुखों से मुक्त हो गया और वह शुभ ध्यान की सीढि पर चढ़ते गए और कुछ समय बाद रागी से वैरागी और वैरागी से वीतरागी बन गए यानी इलाचीकुमार को केवलज्ञान प्रगट हुआ. इलाचीकुमार के दिल पर से अज्ञान का पर्दा हट गया और वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी केवलज्ञानी बन गए.
उसी समय देवताओं ने वहां आकर पुष्पवृष्टि की और इन्द्र द्वारा दिया गया साधु वेष धारणकर इलाचीकुमार इलाचीमुनि बन गए. अपनी पवित्र देशना से अनेक जीवों का उद्धार करते हुए पृथ्वीतल को वे पावन करने लगे और अंत में मोक्ष में जाकर मुक्तिपद के स्वामी बन गए.
धन्य है उन महामुनि की विरक्तता को!
Moral of the Story
इलाचीकुमार की कथा के द्वारा हमारे समझने जैसी बहुत सी चीजें हैं.
1. आजकल अपने प्रेम के लिए पूरे परिवार को छोड़ने का Trend जबरजस्त चल रहा है. पर ये परिवार के साथ धोखा करनेवालों को पता नहीं होता कि आजकल लगभग हर Relation में Triangle होता है या Future में जाकर बनता है और उस कारण उस प्रेम से जिस प्रेम की यह व्यक्ति अपेक्षा रखता है वह निष्फल जाता है और उसके बाद उसके पास अपनी जीवनलीला समाप्त करने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचता है.
2. अच्छी चीजों को देखने की और उनकी अनुमोदना करने की दृष्टि अगर हमारे अंदर जीवंत है तो हम क्यों ना कितने भी नीचे उतर जाएं, वह दृष्टि इलाची कुमार की तरह हमारी सृष्टि बदल देगी.
बुरा होना नियति है पर बुरा रहना वह हमारी अपात्रता है, अयोग्यता है, अज्ञानता है.
3. साधु भगवन्तों के आचार ही ऐसे हैं कि जो भले भले जीवों को प्रतिबोध कर सकते हैं. हमने कितने ही Videos में देखा है कि जिसमें साधु भगवंतों की गोचरीचर्या, जीवनचर्या देखकर अजैन लोग भी नतमस्तक हो जाते हैं.
किसी भी स्त्री के मुख की ओर भी नजर नहीं करना हमें शायद Odd लगेगा पर इस Odd में ही God बनने का रास्ता छिपा हुआ है.
4. Actor, Dancer जैसा व्यक्ति भी अगर उसकी आत्मा की Quality अच्छी हो तो प्रतिबोध पा सकता है. तो हम जिन्हे जन्म से ही जैन कुल, अद्भुत परमात्मा, अच्छे संस्कारी माता-पिता मिले हैं, वह क्यों प्रतिबोध नहीं पा सकते? शायद हमारा पुरुषार्थ-हमारी मेहनत कम पड़ती है और इसलिए हमारे पास मंदिर-उपाश्रय-गुरु भगवंत सब कुछ होने के बाद भी हमारे पास कुछ नहीं होता.
हमारे सामने यदि कोई सुंदर शरीर का ढांचा आ जाए तो हम देखें बिना रह नहीं पाते, बार बार देखने का प्रयास करते हैं. सिर्फ आँखों से ही मन में और मन में क्या कुछ सोच लेते हैं, हदें भी पार कर लेते हैं और मिलता क्या है कुछ भी नहीं उल्टा नुकसान. हमें पता है वह शरीर का ढांचा हमें मिलने वाला नहीं है लेकिन फिर भी बार बार देखते हैं और दूसरी तरह यह मुनि भगवंत ने कितना भी सुंदर चेहरा क्यों ना हो नहीं देखना है तो नहीं ही देखना है.
NO Means NO!
ब्रह्मचर्य का पालन कोई मज़ाक नहीं है.