क्या हमने कभी सोचा है कि इस जीवन में हमारे पास सबसे कीमती चीज़ क्या है? रूप? दौलत? सत्ता? नहीं। सबसे कीमती चीज़ है – शील, Character, पवित्रता और यही साबित किया महासती मदनरेखा ने।
शील रक्षा के लिए मदनरेखा महासती ने किन परिस्थितियों का सामना किया? और आखिर क्यों जाना पड़ा एक साध्वीजी को युद्धभूमि में?
तो आइए जानते हैं, भरहेसर सज्झाय की महासती मदनरेखा की अद्भुत कथा का Episode 01।
बने रहिए इस Article के अंत तक।
राजा मणिरथ का लालच
भरत क्षेत्र में सुदर्शनपुर नाम का नगर था। वहाँ के राजा का नाम मणिरथ था। उसके छोटे भाई का नाम युगबाहु था। युगबाहु की पत्नी का नाम मदनरेखा था और उनका एक बेटा था जिसका नाम चंद्रयश था। मदनरेखा बहुत सुंदर थी और उसमें अच्छे गुण भी थे।
वासना में डूबे पुरुष रूप के ही प्यासे होते हैं, वे गुण की तरफ नहीं देखते। जैसे जुगनू आग की तरफ आकर्षित होकर जल जाता है, वैसे ही वासना में अँधा आदमी रूप के पीछे भागकर अपना जीवन बर्बाद कर देता है।
मणिरथ एक राजा होते हुए भी ऐसे ही रूप का लालची था। राजा को अच्छा और न्यायप्रिय होना चाहिए लेकिन मणिरथ राजा में ये गुण नहीं थे। जबसे राजा मणिरथ ने अपने छोटे भाई की पत्नी मदनरेखा को देखा था तब से उसका मन मदनरेखा पर ललचा गया था।
उसकी यह इच्छा थी कि मदनरेखा उसकी पत्नी बन जाए। एक बार मणिरथ ने सोचा ‘मुझे किसी भी तरह मदनरेखा को अपना बनाना है। अगर मैं उसे महंगे तोहफे भेजूँगा तो वह धीरे – धीरे मेरी हो जाएगी।’
ऐसा सोचकर राजा को जो भी कीमती चीजे मिलती गई, वो मदनरेखा को भिजवाता गया। मदनरेखा भी उन Gifts को आदर भाव से लेती थी। उसके मन में कोई बुरा खयाल नहीं था।
वह यह सोचती थी कि ‘मेरे बड़े भाई जैसे राजा मुझे ये चीजें दे रहे हैं तो मुझे लेनी चाहिए।’ लेकिन मदनरेखा की यह सोच बहुत जल्द टूट गई।
मदनरेखा का दृढ़ निश्चय
एक दिन राजा की दासी बहुत कीमती Gifts लेकर आई और बोली ‘महाराज मणिरथ आपके रूप पर बहुत मोहित हैं। उन्होंने ऐसा रूप कभी नहीं देखा। वे आपके रूप की तारीफ करते हैं।
अब वे आपका साथ चाहते हैं। अगर आप मान लोगे तो वे आपको अपनी पटरानी बना देंगे। बताइए आपकी क्या इच्छा है?’ यह सुनकर मदनरेखा चौंक गई।
उसने सोचा ‘यह क्या? राजा तो मेरे लिए पिता जैसे हैं। वो ऐसी बुरी इच्छा कैसे कर सकते हैं? राजा अगर ऐसा पाप करेगा तो प्रजा का क्या होगा? जैसा राजा होता है, वैसी प्रजा भी होती है। अगर राजा अच्छा हो तो प्रजा भी अच्छी होती है। अगर राजा ही गलत काम करे तो प्रजा भी वैसी ही बनती है।’
ऐसा सोचते हुए मदनरेखा ने दासी से कहा ‘तू जाकर राजा मणिरथ से कह देना कि लोक और परलोक दोनों में बुराई फैलाने वाला ऐसा काम आप कैसे कर सकते हैं? क्या आपको अपनी बदनामी का डर नहीं है?
पराई स्त्री की इच्छा करना बहुत बड़ा पाप है। ऐसा पाप सोच भी कैसे लिया? अभी भी अपने मन से यह बुरा विचार निकाल दीजिए। यही आपके लिए अच्छा रहेगा।’
दासी ने जाकर सारी बात राजा को बता दी लेकिन मदनरेखा के रूप में अंधा बना मणिरथ अपनी बात से हटने वाला नहीं था। उसने सोचा ‘आज नहीं तो कल, मैं मदनरेखा को अपनी बना ही लूँगा। पहले उसने मना किया है तो क्या? मैं कोशिश करता रहूंगा। एक दिन जरूर सफल हो जाऊंगा।’
कुछ दिन बाद मणिरथ ने फिर से दासी को मदनरेखा के पास भेजा। इस बार मदनरेखा ने दासी को खूब डांटा और कहा ‘तू भी इस पाप में साथ देकर अपना नुकसान कर रही है। एक सती स्त्री हमेशा एक ही पुरुष को पति मानती है। बाकी सब उसके लिए भाई जैसे होते हैं।
पराई स्त्री से रिश्ता रखने वाला आदमी नरक में जाता है और परपुरुष से रिश्ता बनाने वाली स्त्री भी नरक में जाती है। अगर स्त्री भी धर्म और शील का पालन नहीं करती, तो नरक में जाती है। दासी, जाकर अपने महाराज से कह दो कि “विनाशकाले विपरीतबुद्धिः” यानी विनाश के समय बुद्धि उलटी हो जाती है और वही उनके साथ भी हो रहा है।
अगर वे अभी भी इस गलत रास्ते से नहीं हटेंगे, तो याद रखिए कि वे मेरे जीते जी मुझे नहीं पा सकेंगे। वे मेरे मुर्दे को पा सकते हैं, लेकिन जीवित मदनरेखा को नहीं।’ दासी ने जाकर राजा को सब कह दिया।
मणिरथ ने सोचा ‘जब तक युगबाहु जिंदा है, मदनरेखा मेरी नहीं हो सकती। अगर मैं युगबाहु को मार दूँ तो वह मेरी हो जाएगी। फिर उसे चाहें अनचाहें, मुझे मानना ही पड़ेगा।’
ऐसा सोचकर मणिरथ, युगबाहु की हत्या का Plan बनाने लगा। वह उसकी कमजोरियों को ढूंढने लगा लेकिन उसे कोई सही मौका नहीं मिल रहा था।
युगबाहु की हत्या
सोचने जैसी बात है कि वासना में डूबा आदमी कितना अंधा हो जाता है। अपने सगे भाई को भी मार डालने के लिए एक व्यक्ति तैयार हो जाता है। मणिरथ की आंखें तो खुली थी लेकिन उसका विवेक मर गया था। वासना ने विवेक को ढक दिया था।
एक रात मदनरेखा ने सपने में पूरा चांद देखा। सुबह होते ही मदनरेखा ने यह बात अपने पति युगबाहु को बताई। युगबाहु ने कहा ‘प्रिये, तुम चांद जैसे उज्ज्वल और शांत स्वभाव वाले बेटे को जन्म दोगी।’ यह सुनकर मदनरेखा बहुत खुश हुई और उसका मन आनंद से भर गया।
तीन महीने बीतने पर उसे गर्भ के अच्छे दोहद हुए। दोहद यानी Pregnancy के समय में होनेवाली इच्छाएँ। उसे तीर्थंकर परमात्मा की पूजा करने, अंगरचना करने, गुरु-भक्ति और जिनवाणी यानी प्रवचन सुनने की इच्छा होने लगी और युगबाहु ने वे सभी इच्छाएं पूरी की।
एक दिन युगबाहु अपनी पत्नी मदनरेखा के साथ उद्यान में गया। दिन भर खेल-कूद कर शाम को दोनों एक पेड़ के नीचे बैठकर बातें कर रहे थे। उधर मणिरथ युगबाहु को मारने के नए – नए तरीके सोच रहा था। तभी उसके मन में एक खयाल आया।
उसने कटार यानी चाकू छुपाया और चुपचाप उद्यान में पहुंच गया। उसने सोचा ‘आज दोनों अकेले हैं, तो यह मौका अच्छा है।’ जैसे ही युगबाहु और मदनरेखा ने उसे आते देखा, वे खड़े हो गए। युगबाहु ने कहा ‘भैया। अचानक कैसे आना हुआ?’
मणिरथ ने कहा ‘मदनरेखा गर्भवती है। ऐसे में यहाँ रात रुकना ठीक नहीं। मैं तुम्हें महल ले जाने आया हूँ।’ दोनों भाइयों में बातें चल रही ही रही थी कि तभी मणिरथ ने अचानक कटार निकाली और युगबाहु के सीने पर वार कर दिया। युगबाहु जमीन पर गिर पड़ा, उसके सीने से खून बहने लगा।
अपना पाप छुपाने के लिए मणिरथ उद्यान के दूसरे कोने में चला गया।
वासना कितनी भयानक चीज़ है ना.. जिस मणिरथ के पास पहले से ही बहुत स्त्रियाँ थीं, वही मणिरथ अपने भाई की पत्नी के लिए भाई का खून करने को तैयार हो गया और वार भी कर दिया।
पापी आदमी पाप में सफल होकर खुश होता है पर उसे नहीं पता होता कि यह पाप उसे ही खत्म कर देगा। ऐसा ही मणिरथ के साथ भी हुआ।
उद्यान में कुछ दूर जाकर मणिरथ एक पेड़ के नीचे सो गया लेकिन उसी वक्त एक जहरीले सांप ने उसे डस लिया और वह वहीं मर गया। मणिरथ को मदनरेखा तो नहीं मिली लेकिन उसके पाप का फल उसे मौत से मिल गया।
समाधि मरण
इधर, युगबाहु के सीने में कटार लगी थी और वह दर्द में तड़प रहा था। अपने बड़े भाई मणिरथ द्वारा हत्या की बात उसके दिमाग में थी। गुस्से के कारण उसकी आंखें लाल हो गई। वह कुछ कर नहीं सकता था पर अंदर से गुस्से में जल रहा था।
मदनरेखा ने यह देखा और सोचा ‘अगर स्वामी गुस्से में मरेंगे, तो उनकी आत्मा की दुर्गति होगी। मुझे इन्हें शांत करना ही चाहिए।’
एक सच्ची पत्नी वही होती है जो पति को धर्म के रास्ते पर लाए और टिकाए। आर्य देश में पति-पत्नी का रिश्ता केवल शरीर का नहीं होता। दोनों एक-दूसरे के धर्मसाथी होते हैं, कल्याण मित्र होते हैं। सिर्फ सुख में ही नहीं दुःख में भी साथ देना होता है। दोनों को एक दूसरे को बड़े पापों से बचाना होता है।
मदनरेखा ने गुस्से से आग बबूला हुए युगबाहु को समझाते हुए कहा ‘हे स्वामी। क्रोध छोड़ दो। मृत्यु पास आ गई है। जो अंतिम समय में विचार होते हैं, आत्मा की गति वैसी होती है। आप अपने भले के लिए क्रोध छोड़ दें।
सच यह है कि मणिरथ ने आपको नहीं मारा। वह तो सिर्फ निमित्त है। असली कारण आपके पुराने पाप कर्म हैं। यह समय आत्मा की परीक्षा का है। मन को शांत करें। मणिरथ अज्ञानी है। वह नहीं जानता कि मुझे कभी नहीं पा सकेगा।
हे स्वामी। जो कर्म आपने पिछले जन्म या इस जन्म में किए हैं, वही फल दे रहे हैं। दूसरों को दोष मत दीजिए। मोह आत्मा को दुख देता है। जो धन, रूप और परिवार है, उन पर मोह मत रखो। वे आत्मा को कुछ नहीं दे सकते।
धर्म ही आत्मा की सच्ची शरण है। बाकी सब नष्ट हो जाते हैं। आप अभी तक किए हुए अपने सारे पापों के लिए मिच्छामी दुक्कड़म् कहिए, सभी जीवों से क्षमायाचना कीजिए।’
मदनरेखा की इन बातों को सुनकर युगबाहु की आँखों की लालाश कम होने लगी, गुस्सा शांत हो गया और उसने मणिरथ के प्रति का वैर छोड़ दिया।
मदनरेखा ने आगे कहा ‘इस दुनिया में कोई शत्रु या मित्र नहीं है। सब अपने कर्म ही हैं। हमने पाप किए, इसलिए हमें सजा मिल रही है। इस सजा को हंसते – हंसते स्वीकार कीजिए। सबके साथ क्षमा मांग लीजिए। चाहे वे मित्र हों या शत्रु, सबको क्षमा कर दीजिए।
पिछले जन्मों में जो भी जीवों को दुख दिया, उन सबसे भी क्षमा मांगिए। मनुष्य जीवन अस्थिर है। यौवन, धन, रूप ये सब थोड़े समय के हैं। धर्म ही सच्चा सहारा है। अपने मन में यह दृढ़ कर लीजिए “एगो अहं नत्थि मे कोई” यानी मैं अकेला हूं। मेरा कोई नहीं और मैं किसी का नहीं।’
यह सुनकर युगबाहु शांत हो गया। उसने शुभ ध्यान किया और समाधि पूर्वक प्राण छोड़े। सद्गति हुई और वह पाँचवें ब्रह्मदेव लोक में देव बना।
मदनरेखा ने अपने पति को समाधि देकर जो उपदेश दिया, उसी का कवि पद्मपराग ने गुर्जर भाषा में भावानुवाद किया है।
Moral Of The Story
लेकिन क्या कहानी यहीं खत्म हो जाती है? नहीं। मदनरेखा की असली परीक्षा तो अभी बाकी है। यहाँ पर Episode 01 पूरा होता है लेकिन सीखने जैसा बहुत कुछ है।
1. इस दुनिया में कुछ भी Free नहीं है। अगर कोई व्यक्ति बिना कोई कारण के Gifts दे रहा है तो समझ लेना है कि वह Investment कर रहा है, वह जाल बिछा रहा है, वह आज नहीं तो कल शिकार करनेवाला है।
उससे बचना और बुद्धि लगाकर लेन देन के पीछे का आशय समझना बहुत ज़रूरी है.. याद रखिए, एक आँख विश्वास की तो एक आँख शक की होनी बहुत जरुरी है।
2. वासना कितनी भयानक चीज़ है ना। आज चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ वासना के निमित्त मिल रहे हैं। वासना की गंदगी व्यक्ति को अपराधी भी बना सकती है।
आज Schools Colleges में छोटी छोटी बच्चियां भी Safe नहीं है, कई Cases हो रहे हैं हम देख ही रहे हैं।
विडंबना यह है कि जब अपराध होता है तब तो सब सड़क पर उतर जाते हैं लेकिन जब वासना की गंदगी फैलाई जाती है तब बहुत कम विरोध होता है।
3. गुणों को Side में रखकर सिर्फ Income के Basis पर Life Partner Choose करनेवालों को मदनरेखा की कथा संदेश दे रही है कि इस दुनिया में शील से ऊपर कुछ नहीं है।
मदनरेखा को पटरानी बनने का Offer मिला फिर भी इस शीलवान महासती ने उस Offer को ठुकरा दिया। ठुकराया ही नहीं बल्कि लात मारी है ऐसा कह सकते हैं।
आज की नारियां भी इस कथा से प्रेरणा ले सकती है कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों, शील से समझौता तो नहीं ही करेंगे। इतना सत्व तो हम में होना ही चाहिए।
4. सती स्त्री के ऊपर बुरी नज़र डालनेवाले का बहुत ही भयानक हाल होता है। जो शीलवान नारी को भ्रष्ट करने का प्रयास करता है उसका अंत मणिरथ के जैसा हो तो कोई आश्चर्य नहीं।
भले इस जन्म में नहीं तो अगले अगले जन्म में तो उसे भयानक सजा के लिए तैयार रहना चाहिए। इस तरह की Teachings हर माता-पिता को अपने बेटों को बचपन से ही देनी चाहिए, यदि सब माता-पिता अपना Role अच्छे से निभाए तो स्त्रियों के लिए हम सब मिलकर एक Safe Society बना पाएंगे।
सड़क पर उतरकर Candle पकड़ना गलत नहीं है लेकिन क्या ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए कि Candle पकड़ने की ज़रूरत ही ना पड़े।
5. अगर किसी व्यक्ति की पत्नी सच्चे धर्म के मार्ग पर चल रही है, तो उस पुरुष को अपना सौभाग्य मानना चाहिए। पति–पत्नी में मतभेद और बहस होना यह तो आम बात है, जीवन का एक हिस्सा होता है।
लेकिन अगर पत्नी हर हाल में अपने पति के प्रति वफादार रहती है और कभी किसी पर-पुरुष के बारे में सोचती तक नहीं, तो उस पति को अपनी पत्नी की इस निष्ठा पर, Loyalty पर गौरव करना चाहिए और उसे उचित सम्मान देना चाहिए।
यह बात पति और पत्नी दोनों के लिए Equally लागू होती है। बाकी आज कल क्या हो रहा है सब हम देख ही रहे हैं।
6. हमारे पूरे जीवन की साधना की सबसे बड़ी परीक्षा कोई होती है तो वह होती है मृत्यु। मृत्यु के समय में हम समाधि रख पाएंगे या नहीं यह भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
आज लगभग मृत्यु Hospital में ही होती है और पास में कोई परिवारवाला भी नहीं होता है। ऐसे में व्यक्ति खुद से समाधि रख पाए इसके Chances बहुत कम होते हैं।
कई बार यह Clearly पता चल जाता है कि व्यक्ति का अंतिम समय है, वह जीनेवाला नहीं है फिर भी उसे Hospital भेज देना कितना उचित है यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
7. LIFE INSURANCE POLICY आज लगभग हर एक व्यक्ति बना ही लेता है लेकिन क्या ऐसी कोई Setting हमने की है कि हम मरनेवाले हो और वह व्यक्ति हमारे कान में नवकार मंत्र सुनाएं?
चार शरण स्वीकार करवाएं? हमें हमारे पापों की क्षमा याचना करने को कहे? हमें धर्म ध्यान में जोड़े? Life Insurance Policy तो ठीक है लेकिन Next Life Insurance Policy का क्या?
8. सच्ची पत्नी वह कहलाती है जो अपने पति की मृत्यु के समय भी उसके परलोक की चिंता करे। पति मरनेवाले ये जानते हुए भी उसकी समाधि की चिंता करनेवाली और अपने Loss पर नहीं रोनेवाली पत्नी ही सच्ची पत्नी है। क्योंकि रोने से वो नहीं हो सकता, जो बिना रोए होता है।
अपने पति को धर्म का उपदेश देकर धर्मपत्नी का कर्तव्य निभा चुकी मदनरेखा को खुद अपने शील की रक्षा के लिए ऐसी भयंकर परीक्षा से गुजरना पड़ा, जो सुनकर हम सभी के रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
लेकिन क्या वो बचा पाई अपना शील? जानेंगे अगले Episode में।


