महासती मदनरेखा साध्वीजी को युद्ध भूमि में क्यों जाना पड़ा?
प्रस्तुत है, महासती मदनरेखा की कथा का Episode 03.
बने रहिए इस Article के अंत तक।
नमिकुमार
महासती मदनरेखा ने जिस बालक को जंगल में जन्म दिया था, वह मिथिला के राजा पद्मरथ को मिला था। राजा ने उसे अपने बेटे जैसा प्यार दिया और उसकी परवरिश करने लगा।
उस बालक के पुण्य प्रभाव के कारण सब दुश्मन राजा भी पद्मरथ के सामने सर झुकाने लगे। राजा ने उस बच्चे का नाम नमिकुमार रखा। धीरे‑धीरे नमिकुमार बड़ा हुआ और जवानी में पहुँचते‑पहुँचते वह शस्त्र और शास्त्र दोनों में Expert बन गया।
नमिकुमार का कई सुंदर राजकन्याओं से विवाह हुआ था। पद्मरथ राजा ने नमिकुमार को राजा बनने लायक समझकर एक शुभ दिन उसका राजतिलक कर दिया और राज्य को नमिकुमार को सौंपकर पद्मरथ राजा ने श्री ज्ञानसागर आचार्य भगवंत के पास दीक्षा ले ली और शुद्ध चारित्र धर्म का पालन करते हुए वे मोक्ष में गए।
नमिराजा की शान इतनी बढ़ गई कि कई राजा उसके सामने झुकने लगे। उधर जब लोगों को पता चला कि युगबाहु की हत्या हो गई और मणिरथ सांप के काटने से मर गया, तो अगले दिन दोनों भाइयों की अंतिम यात्रा निकाली गई।
लोग मणिरथ के बुरे काम को सुनकर उसे बुरा‑भला कहने लगे और युगबाहु की अकाल मौत पर उसके अच्छे गुणों को याद करके रोने लगे। दोनों भाइयों की मौत से सिंहासन खाली हो गया।
प्रजाजनों ने युगबाहु के बड़े बेटे चंद्रयश का राजतिलक करने का निश्चय किया। चंद्रयश राजा नहीं बनना चाहता था लेकिन उसे मजबूरी में राज्य लेना पड़ा। राज्य संभालने के बाद चंद्रयश ने न्याय और नीति से प्रजा की देखभाल की।
महायुद्ध का आगाज़
एक दिन नमिराजा का सबसे प्रिय हाथी आलानस्तंभ यानी हाथी को बांधने वाली जगह को तोड़कर विंध्या नाम के अटवी यानी जंगल में चला गया। उसी समय चंद्रयश भी उस अटवी में घूमने गया था।
उसे हाथी दिखा तो वह खुश हो गया और उसने हाथी को पकड़ लिया और अपने नगर ले आया। जब गुप्तचरों ने नमिराजा को बताया कि उनका प्रिय हाथी चंद्रयश राजा के कब्जे में है तो नमिराजा ने तुरंत दूत को चंद्रयश राजा के पास भेजा।
दूत ने सुदर्शनपुर जाकर कहा ‘हे राजन्। हमारे राजा का हाथी आपके राज्य में आया है। कृपया उसे लौटा दें।’
चंद्रयश ने कहा ‘मैं हाथी नहीं दूंगा। क्या तुम्हारे राजा को नीति नहीं पता? नीति में लिखा है कि राज्य या संपत्ति ना तो वंश से आती है और न ही लिखकर दी जाती है। तलवार के बल से ही राज्य मिलता है। यह धरती तो वीरों की है।’
दूत ने कहा ‘अगर आप हाथी नहीं देंगे तो मिथिला नरेश नमिराजा युद्ध में आपको हराकर उस हाथी को वापस ले ही लेंगे।’ चंद्रयश गुस्सा हो गया और दूत को अपमानित करके दरबार से निकाल दिया।
दूत ने जाकर नमिराजा को सब बता दिया और उसे युद्ध के लिए तैयार कर दिया।
नमिराजा अपनी विशाल सेना लेकर सुदर्शनपुर की तरफ बढ़ा। उधर जैसे ही चंद्रयश को यह खबर मिली, वह भी युद्ध के लिए तैयार हो गया।
लेकिन तभी उसके मंत्रियों ने कहा ‘नमिराजा की सेना बहुत बड़ी है। मैदान में लड़ेंगे तो हार निश्चित है। अच्छा होगा कि हम नगर के दरवाजे बंद कर लें और अंदर से ही युद्ध करें।’
चंद्रयश को यह बात सही लगी और उसने नगर के सारे दरवाजे बंद करा दिए। नमिराजा ने अपने बड़े सैनिक दल से पूरे नगर को घेर लिया।
मदनरेखा साध्वीजी का आगमन
इधर महासती मदनरेखा जो अब सुव्रता साध्वी बन चुकी थी, उन्हें यह खबर मिली कि उनके दोनों बेटे युद्ध करने को तैयार हैं।
वे सोचने लगी ‘अहो। इस नश्वर संसार को धिक्कार है। दो सगे भाई आपस में युद्ध करेंगे? इसमें लाखों लोग मर जाएंगे और नरक में जाएंगे। मुझे इस युद्ध को रोकना चाहिए।’
मदनरेखा साध्वीजी ने अपने गुरुमाँ से अनुमति ली और युद्धभूमि की और जाने लगी।
जब साध्वीजी युद्धभूमि में पहुँचीं, तो सब लोग उन्हें देखकर हैरान रह गए। वो पहले नमिराजा के पास गईं। नमिराजा ने उन्हें वंदन किया और मदनरेखा साध्वीजी ने नमिराजा को समझाते हुए कहा
‘इस अनंत संसार में चार चीजें बहुत मुश्किल से मिलती हैं और वो हैं मनुष्य जन्म, जिनवाणी यानी तीर्थंकर परमात्मा की वाणी सुनना, धर्म में श्रद्धा और धर्म का पालन।
इसलिए मनुष्य जन्म जैसे दुर्लभ और कीमती चीज़ को एक हाथी के लिए युद्ध में नष्ट मत करो। राज्य के लालच में लोग नरक में चले जाते हैं और अपने ही बड़े भाई से युद्ध करना ठीक नहीं है।’
नमिराजा ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा ‘राजा चंद्रयश मेरे बड़े भाई कैसे हुए?’ तब मदनरेखा साध्वीजी ने नमिराजा के जन्म की सारी कहानी बताई। यह सुनकर नमिराजा सोच में पड़ गए।
उन्होंने पद्मरथ राजा की पत्नी यानी अपनी माँ पुष्पमाला से पूछा ‘माँ। सच बताओ, मैं किसका बेटा हूँ?’ पुष्पमाला रानी ने कहा ‘बेटा। मैं तुम्हारी जन्म देनेवाली माँ नहीं हूँ। मैंने तो तुम्हें सिर्फ पाला है।’
उसने युगबाहु के नाम की मुहर और जिस कपडे में वह लपेटा हुआ मिला था वह भी नमिराजा को दिखाया लेकिन सच्चाई जानने के बाद भी नमिराजा युद्ध रोकने को तैयार नहीं हुआ।
चंद्रयश से मिलन
तब मदनरेखा साध्वीजी अपने बड़े बेटे राजा चंद्रयश के पास गईं। चंद्रयश ने साध्वी वेष में अपनी माँ को पहचान लिया और उन्हें वंदन करके पूछा ‘माँ। आप यहाँ युद्धभूमि में क्यों आई?’
महासती मदनरेखा ने कहा ‘बेटा। जिसके साथ तुम लड़ने जा रहे हो, वह तुम्हारा छोटा भाई है। इस छोटे से हाथी के लिए हो रहा यह युद्ध तुम्हें रोक देना चाहिए और इसलिए ही मैं यहाँ आई हूँ।’
मदनरेखा साध्वीजी ने चंद्रयश राजा को भी पूर्व की सब घटना बताई।
चंद्रयश ने पूछा ‘माँ, मेरा भाई, नमिराजा कहाँ है?’ मदनरेखा साध्वीजी ने कहा ‘वह नगर के बाहर है।’
उस समय संसार की भयानकता को जानकर चंद्रयश राजा के मन में वैराग्य आ गया और उसने अपने हथियार छोड़ दिए और भाई से मिलने के लिए नगर के बाहर आया।
जैसे ही नमिराजा ने देखा कि उनके बड़े भाई बिना हथियार उनकी तरफ आ रहे हैं तो नमिराजा ने भी अपना घमंड छोड़ दिया और बड़े भाई के चरणों में झुक गया।
भाइयों का पुनर्मिलन
दोनों का आपस में प्रेम भरा मिलन हुआ। चंद्रयश राजा ने कहा ‘आओ भाई। अब मेरे साथ नगर में चलो।’ दोनों भाइयों का नगर में भव्य स्वागत हुआ।
फिर चंद्रयश राजा ने कहा ‘पिताजी के मरने के बाद कोई राज्य को संभालने वाला नहीं था इसलिए मैंने यह राज्य संभाला। मुझे पता नहीं था कि तुम मेरे भाई हो। अब माँ ने यह बात बताई है।
मैं राज्य का भार छोड़कर प्रभु महावीर के बताए मार्ग पर चलते हुए दीक्षा लेना चाहता हूँ। तुम इस राज्य को संभालो।’
यह सुनकर नमिराजा ने कहा ‘भैया। मुझे भी राज्य नहीं चाहिए। मैं भी दीक्षा ही लेना चाहता हूँ।’
चंद्रयश राजा ने कहा ‘लेकिन किसी को तो राज्य की जिम्मेदारी लेनी होगी इसलिए यही ठीक होगा कि बड़ा भाई राज्य छोड़कर दीक्षा ले और छोटा भाई राज्य संभाले।’
चंद्रयश राजा के समझाने पर नमिराजा ने राज्य संभालने के लिए हां कर दी। चंद्रयश ने राज्य नमिराजा को सौंप दिया और दीक्षा लेकर अपने गुरु के चरणों में खुद का जीवन समर्पित कर दिया।
मदनरेखा साध्वीजी ने भी सच्चे संयम धर्म का पालन करते हुए सारे कर्मों का नाश किया और मोक्ष को प्राप्त किया।
यहाँ पर महासती मदनरेखा की कथा पूरी होती है लेकिन सीखने जैसा बहुत कुछ है।
Moral Of The Story
1. युग के परिवर्तन और मानव की बुद्धि
युग के युग बदल जाते हैं लेकिन हम मानवों की बुद्धि वैसी की वैसी ही रहती है। उस समय हाथी को लेकर युद्ध होने वाला था, आज भाई‑भाई के बीच Property को लेकर Court में Cases चल रहे हैं..
लड़ाई वैसी की वैसी ही बस अब तरीका बदल गया है।
लड़ाई वही, तरीका नया।
2. मान‑अहंकार का “हाथी”
Ego एक ऐसी चीज है जो भलभलों को अंधा बना देती है। हाथी के लिए इंसान लड़े ऐसा मूर्ख तो इंसान है नहीं पर युद्ध हाथी के लिए नहीं बल्कि सर पर चढ़े मान रूपी हाथी के कारण होता है।
‘मुझे उसने ना कैसे कहा? मेरी बात क्यों नहीं मानी?’
यह मान हाथी बहुत ही Dangerous है।
नमि राजा युद्ध रोकने के लिए तैयार नहीं हुआ लेकिन जब चंद्रयश राजा सामने से आया तो युद्ध अपने आप रुक गया। जब घर में या कहीं पर भी लड़ाई हो रही हो तब एक पक्ष को शांत करने में आता ही है..
क्योंकि एक पक्ष भी अगर शांत हो जाए तो दुसरे पक्ष के शांत होने की संभावना बढ़ जाती है। एक पक्ष वाला झुक जाए तो विवाद ख़त्म हो सकता है, भरत‑बाहुबली में भी ऐसा ही हुआ था, बाहुबली रुके तो युद्ध समाप्त हो गया था।
3. साध्वीजी भगवंतों की करुणा
एक साध्वीजी भगवंत में कितनी करुणा होती है उसका यह साक्षात उदाहरण है। संसार छोड़ दिया, दीक्षा ले ली लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनके ही दोनों संस्कारिक पुत्र एक हाथी के लिए युद्ध करनेवाले हैं और युद्ध में सैंकड़ों की संख्या में लोग मरेंगे तब उनसे रहा नहीं गया।
आज भी कई मंदबुद्धि वाले लोग पूछते हैं कि जैन साधु‑साध्वीजी ऐसा तो समाज के लिए क्या ही करते हैं। एक साध्वीजी ने एक बहुत बड़ा भीषण युद्ध रोक दिया।
आज भी सैंकड़ों लड़ाइयाँ Court में जाने से पहले, उपाश्रय में ही गुरु भगवंत के समक्ष ख़त्म हो जाती है और ख़त्म भी इस तरह से होती है कि दोनों पक्ष में रहे लोग आँखों में आंसू लेकर जाते हैं।
और एक चीज यहां ये भी पता चलती है कि साध्वीजी भगवंतों में शक्ति कितनी होती है।
4. स्त्री‑शक्ति का अद्भुत उदाहरण
महापुरुष हल्ल‑विहल्ल की कथा में हमने देखा था कि कोणिक राजा की पट्टरानी पद्मावती, हाथी के पीछे हुए इतिहास के एक महायुद्ध का कारण बनी थी।
यहाँ पर महासती मदनरेखा हाथी के ही पीछे इतिहास में होने जा रहे एक और महायुद्ध को टालने का कारण बनीं।
इसलिए ही कहा गया है कि एक स्त्री लोगों के बीच, राज्यों में, देशों में बवंडर लाने की ताकत भी रखती है और वही एक स्त्री लोगों के बीच, राज्यों में और देशों में बवंडर को आने से रोकने की भी ताकत रखती है।
इसलिए स्त्रियों को कमजोर मानने या समझने से पहले 100 बार सोचना चाहिए।
5. संयम और वैराग्य का सत्य
पहले के राजा महाराजाओं में सच में सत्व था ऐसा मानना पड़ेगा। “हाथी के लिए हम दो भाई लड़ने वाले थे। धत्त। ये है संसार।”
ऐसा जाना तो तुरंत राज्य, इन्द्रियों का सुख, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा आदि सब कुछ एक क्षण में छोड़कर संयम के मार्ग पर निकल जाते थे।
धन्य है ऐसी महान आत्माओं को..
तो यह थी महासती मदनरेखा की अद्भुत कथा।
आज, जब हर जगह शील से ऊपर Reel को रखा जा रहा है, तब ऐसी महासतियों की कहानी से प्रेरणा लेने जैसी है। आज के जमाने में ऐसी महासतियों की ज्यादा ज़रूरत है ऐसा लगता है।
हर श्राविका में, हर नारी में ऐसी महासती का जन्म हो, यही परमपिता परमात्मा से प्रार्थना।


