महासती सुभद्रा की रोंगटे खड़े कर देनेवाली कथा
किसी सती स्त्री को सबसे ज्यादा दुःख तब लगता है जब उसकी पवित्रता पर सवाल उठे, Character पर सवाल उठे। महासती सुभद्रा की पवित्रता पर जब प्रश्न उठाया गया तब उन्होंने ऐसा क्या किया कि उनकी सत्य और सतीत्व की शक्ति से पूरा नगर हिल गया।
एक सती स्त्री की आँखों में जब आँसू आए तब पूरी प्रकृति उसके साथ रो पड़ी।
क्या कुछ हुआ था? आइए जानते हैं महासती सुभद्रा की रोचक कथा।
बने रहिए इस Article के अंत तक।
सुभद्रा का जन्म
वसंतपुर नगर में जितशत्रु नाम का राजा राज करता था। राजा का एक मंत्री था-जिनदास।
वह जैन धर्म का गहरा जानकार था। उसकी पत्नी थी तत्त्वमालिनी।
वह भी एक सुश्राविका थी। उनकी एक बेटी थी-सुभद्रा। वह रूपवान भी थी और गुणवान भी थी।
उसके माता-पिता ने उसे बहुत अच्छे संस्कार दिए थे।
जब वह यौवन में पहुँची तब मंत्री जिनदास सोचने लगे ‘अब मुझे अपनी बेटी के लिए एक अच्छा और योग्य वर (लड़का) खोजना चाहिए। एक ऐसा वर जो जैन धर्म का उपासक (Follower) हो और विवाह के बाद भी धर्म का पालन कर सके।’
बुद्धदास का आगमन
एक दिन चंपापुरी का एक युवा व्यापारी बुद्धदास वसंतपुर आया। वह अन्य धर्म को मानने वाला था।
जब उसने सुभद्रा को देखा तब उसके मन में सुभद्रा के प्रति गहरा आकर्षण (Attraction) पैदा हुआ।
बुद्धदास ने लोगों से पूछा ‘यह कन्या कौन है? किसकी बेटी है?’
लोगों ने कहा ‘यह जिनदास मंत्री की बेटी है। वे अपनी बेटी का विवाह ऐसे व्यक्ति से करेंगे जो जैन धर्म का उपासक हो।’
यह सुनकर बुद्धदास ने सोचा ‘मुझे जैन धर्म सीखना ही होगा। मुझे किसी भी तरह सुभद्रा से विवाह करना है।’
इस संकल्प के साथ बुद्धदास ने जैन धर्म को जानना शुरू कर दिया।
थोड़े ही समय में वह जिनधर्म का ज्ञानी बन गया।
अब वह हर रोज जिन-पूजा करता, कंदमूल यानी जमीकंद और रात्रि भोजन का त्याग करता और जैन धर्म के नियमों का पालन करता था। सब लोग उसकी भक्ति देखकर प्रभावित हो गए।
धोखे की शुरुआत
कुछ समय बाद बुद्धदास फिर वसंतपुर आया। वहाँ उसने जिनेश्वर भगवान की पूजा की और फिर उपाश्रय जाकर गुरु भगवंत का प्रवचन सुना।
मंत्री जिनदास ने जब उसका आचरण देखा यानी Behaviour देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बुद्धदास को अपने घर मंदिर में पधारने के लिए Invitation दिया।
भोजन के समय जब जिनदास मंत्री अलग-अलग आइटम परोसने लगे तब बुद्धदास ने कहा ‘आज मुझे घी और दही का त्याग है। और दो सब्जी से ज्यादा मैं कुछ नहीं लूंगा।’ उसके त्याग और रसनेंद्रिय पर Control को देखकर मंत्री ने सोचा ‘वाह, यह तो बिलकुल वैसा ही लड़का है जैसा मुझे अपनी बेटी के लिए चाहिए था।’
भोजन के बाद मंत्री ने कहा ‘बुद्धदास, मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी बेटी सुभद्रा से विवाह करो।’ बुद्धदास को तो यही चाहिए था, उसने तुरंत कहा ‘मंत्रीवर, यह तो मेरा सौभाग्य होगा।’ और फिर एक शुभ दिन सुभद्रा और बुद्धदास का विवाह बड़े धूमधाम से हो गया।
धर्म की अडिगता
शादी के बाद सुभद्रा ससुराल पहुँची और वहां सभी के साथ प्रेम एवं विनयपूर्वक रहने लगी। सुभद्रा हर दिन मंदिर जाकर तीर्थंकर परमात्मा की पूजा करती, भक्ति करती और धर्म में मग्न रहती।
उसके इस आचरण को देखकर एक दिन उसकी सास ने कहा ‘यहाँ तो हमारे धर्म के जो भगवान हैं उनकी पूजा होती है इसलिए अब से जैन मंदिर में जाने की कोई जरूरत नहीं है।’
उस समय तो सुभद्रा चुप रही लेकिन उसने मन में सोचा ‘अरे, ये सब तो अन्य धर्म को माननेवाले हैं। मेरे पति ने मुझसे छल से विवाह किया है। लेकिन अब जो होना था वह तो हो गया लेकिन मैं किसी भी हाल में जिनधर्म का त्याग तो नहीं करुँगी।’
इस तरह दृढ़ संकल्प करने के बाद सुभद्रा मेरु पर्वत की तरह जिनधर्म में अडिग रही और सास के मना करने पर भी मंदिर जाती रही, गुरु भगवंत के प्रवचन सुनती रही और इसी तरह समय बीतने लगा।
एक तिनके से उठा तूफ़ान
एक दिन मासक्षमण के एक तपस्वी महात्मा गोचरी लेने आए।
उस समय सुभद्रा ने देखा कि महात्मा की आँख में एक तिनका गिर गया है। महात्मा की आँख में गिरा वह तिनका… आनेवाले तूफ़ान की शुरुआत थी।
महात्मा तो समता के सागर थे इसलिए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन सुभद्रा सोचने लगी ‘अगर यह तिनका नहीं निकाला गया तो मुनिवर की आँख को नुकसान हो जाएगा।’
महात्मा को तकलीफ ना हो जाए इस भावना के साथ सुभद्रा ने किसी तरह से अपवाद मार्ग के द्वारा वह तिनका निकाल दिया। ऐसा करते समय उसके माथे पर लगा हुआ कुंकुम का तिलक महात्मा के मस्तक पर लग गया।
झूठा आरोप
उसी समय सुभद्रा की सास बाहर आई और उसने महात्मा के मस्तक पर लगे हुए कुंकुम को देखा और उस Situation को गलत तरीके से सोचकर सुभद्रा पर आरोप लगाते हुए अपने बेटे यानी बुद्धदास से कहा ‘देख बेटा, तेरी पत्नी का चरित्र कैसा है। इसे तो यह साधु पसंद है।’
महात्मा के मस्तक पर लगे कुंकुम को देखते ही बुद्धदास ने भी अपनी माँ की बात पर विश्वास कर लिया। पूरा परिवार इकट्ठा हो गया, सास ने सुभद्रा को बुरी तरह से बदनाम किया और कहा ‘यह तो कुलटा है, Characterless है। अपने कुल को कलंकित करने वाली है।’
खुद पर लगे इतने भयानक आरोप को सुनकर सुभद्रा की आँखों में आँसू आ गए और वह सोचने लगी ‘मैंने तो महात्मा की आँख से तिनका निकाला, उनका भला चाहा और ये लोग मुझे बदनाम कर रहे हैं।’ तभी उसके मन में एक विचार आया और वह शांति से कायोत्सर्ग ध्यान में खड़ी हो गई।
उसका सत्त्व देखकर शासनदेवी प्रकट हुईं और बोलीं ‘हे सती, कायोत्सर्ग पूर्ण करो और जो भी इच्छा हो, बताओ।’
सुभद्रा ने कहा ‘हे देवी, मुझ पर लगे इस झूठे आरोप को दूर करो।’ शासनदेवी ने कहा ‘आप चिंता मत करो। कल सुबह तक आप पर लगा यह आरोप दूर हो जाएगा।’ यह कहकर देवी अदृश्य हो गईं।
चमत्कार
अगले दिन सुबह नगर में आने-जाने के चारों तरफ के चारों दरवाजे अपने आप बंद हो गए। कोई भी दरवाज़ा खुल नहीं रहा था। पूजा-पाठ सब विफल रहे।
तभी आकाशवाणी हुई ‘जो स्त्री सती हो और वह अगर छलनी से कुएँ में से पानी भरकर नगर के दरवाजों पर वह पानी छिड़केगी तभी यह दरवाजे खुलेंगे।’
राजा ने घोषणा की ‘जो सती स्त्री यह काम करेगी, उसका राज्य में सम्मान होगा।’
चंपापुरी नगर की अनेक स्त्रियाँ कुएँ पर पहुँचीं लेकिन कोई भी छलनी से जल नहीं ला सकी। इस बीच सुभद्रा ने अपनी सास से कहा ‘माताजी, आपकी अनुमति हो तो मैं नगर के दरवाजे खोल दूँ?’
सास ने कहा ‘पहले ही तो तूने कुल को कलंकित किया है और अब ये…।’ सुभद्रा ने कहा ‘माताजी, आप चिंता मत कीजिए। मुझे विश्वास है कि मैं नगर के दरवाजे खोल सकूंगी।’
सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में सुभद्रा ने छलनी से कुएँ में से पानी बाहर निकाला और नगर के तीन दरवाजों पर पानी का छिड़काव किया और तुरंत ही वे दरवाजे खुल गए।
सत्य की जीत
उस समय शासनदेवी ने आकाशवाणी की ‘यदि कोई सुभद्रा की तरह सती स्त्री हो तो वह चौथा दरवाजा खोल दे।’
लेकिन कोई भी अन्य स्त्री नहीं खोल पाई।
आखिर सुभद्रा के पानी के छिड़काव से ही वह चौथा दरवाजा खुला।
फिर शासनदेवी ने कहा ‘जो भी इस महासती सुभद्रा के खिलाफ विचार भी करेगा तो उसे कड़ी सजा होगी।’
सभी की शंकाएँ दूर हो गईं। सुभद्रा के सतीत्व की सर्वत्र तारीफ़ हुई। सास-ससुर ने क्षमा मांगी और पूरा परिवार जैन धर्म में दीक्षित हुआ।
अंततः सुभद्रा ने जैन दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया।
आखिरकार सत्य की जीत हुई।
Moral Of The Story
1. धर्म की प्राथमिकता
जिनदास मंत्री ने अपनी बेटी के लिए वर ढूँढते समय धर्म को प्रथम रखा, जबकि आज यह बहुतों की आखिरी प्राथमिकता बन चुका है। धर्म का त्याग जीवन में ठोकरें लाता है, और अंततः वही लोग धर्म में शरण लेते हैं।
2. बाह्य व्यवहार से धोखा
मंत्री जिनदास जैसा बुद्धिमान व्यक्ति भी बुद्धदास की बाहरी भक्ति से धोखा खा गया। यह सिखाता है कि व्यक्ति की सच्चाई पहचानने में समय लगाना चाहिए। सिर्फ आचरण नहीं, अंतर देखना जरूरी है।
3. महासती सुभद्रा की दृढ़ता
जैन धर्म से बाहर जाकर हुए विवाह के बावजूद सुभद्रा सत्य के साथ थीं। इसके पीछे चार कारण हैं:
- A. माता-पिता की सहमति से विवाह हुआ था।
- B. धर्म का कभी त्याग नहीं किया-धर्मो रक्षति रक्षितः।
- C. कर्म सिद्धांत में विश्वास था-“जो होना था वह तो हो गया।”
- D. React नहीं, Respond किया-शांति से समय को समय दिया।
अंततः उसी धैर्य से उन्होंने पूरे परिवार को धर्ममार्ग पर ला दिया।
4. बिना समझे Judge करना मूर्खता है
महात्मा के माथे पर कुंकुम देखकर बुद्धदास और उसकी माँ ने जल्दबाजी में निर्णय लिया। कभी भी दृश्य देखकर निष्कर्ष न निकालें; पहले पूरी सच्चाई जान लें।
5. अच्छा करते हुए दुःख आना–एक भ्रम
कभी-कभी हम अच्छा करते समय दुखी हो जाते हैं और सोचते हैं कि अच्छाई का परिणाम बुरा निकला। वास्तव में यह पुराने कर्मों का फल होता है। अच्छा करना और दुःख आना–दोनों असंबंधित घटनाएं हैं।
6. प्रतिक्रिया के बजाय समता
सुभद्रा ने बदला नहीं लिया, द्वेष नहीं किया, बल्कि कायोत्सर्ग में स्थिर रहीं। सत्य को साबित करने के लिए आवाज़ नहीं, शांति और समता चाहिए। अंततः जीत सत्य की हुई “सत्यमेव जयते।“
7. धर्म के मार्ग पर अकेला भी समर्थ होता है
जो सत्य और धर्म के साथ खड़ा रहता है, उसे परेशान करने से पहले हज़ार बार सोचना चाहिए। सत्य मार्ग पर अकेला व्यक्ति भी कभी अकेला नहीं होता-कुदरत उसके साथ होती है।
8. श्रद्धा बनाम तर्क
छलनी में पानी भरना तर्क से असंभव था, पर श्रद्धा से संभव हुआ। जहाँ तर्क रुकते हैं, वहीं से अध्यात्म शुरू होता है।महासतियों के लिए असंभव भी संभव हो जाता है।
9. धर्म पालन के स्तर
- जब वातावरण Supportive हो और हम धर्म करें-Level 1
- जब वातावरण Supporting ना हो और हम धर्म करें-Level 2
- जब वातावरण Against हो-Level 3
- जब वातावरण Supportive हो फिर भी धर्म ना करें-Level 0
महासती सुभद्रा का स्तर Level 3 था — विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग।
10. घर का दिशा नियंत्रण नारी के हाथों में
घर किस दिशा में मुड़ेगा-यह नारी तय करती है। सुभद्रा दृढ़ रही, तो पूरा घर जैन धर्म मार्ग पर आया। आज की नारी को “जगत” नहीं, “घर” जीतने की कोशिश करनी चाहिए।
11. शुद्धता के विरुद्ध आरोप निष्फल
Cicero ने कहा —
“As fire when thrown into water is cooled down and put out, so also a false accusation when brought against a man of the purest and holiest character, vanishes immediately.”
यदि हम शुद्ध हैं, तो कोई भी झूठा इल्ज़ाम टिक नहीं सकता।
12. सच्चा धर्म किसके लिए?
कुछ लोग प्रेम के लिए धर्म अपना लेते हैं, त्याग कर लेते हैं पर यही प्रयास अगर आत्मा और जिनशासन के लिए किया जाए, तो वास्तविक साधना होती है।
सच्ची सती वही है जो अपनी समता से पूरी सृष्टि को हिला दे।
ऐसी थी महासती सुभद्रा – सत्य, श्रद्धा और समता की जीवंत प्रतिमा..


