नागदत्त मुनि की कथाओं में 2 मतांतर आते हैं, हम दोनों कथाएं देखेंगे, बने रहिए इस Article के अंत तक. मतांतर कथा 2 हम अलग Article में जानेंगे.
प्रस्तुत है दृढ़ प्रतिज्ञ नागदत्त मुनि (मतांतर कथा 1) की कथा.
नागदत्त ने बचाए प्राण
वाराणसी नगरी में जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था. उस नगर में यज्ञदत्त नाम का जैन श्रेष्ठी रहता था और उसकी धनश्री नाम की पत्नी थी. जैन धर्म की आराधना-उपासना करते हुए उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. खूब उत्साह और उल्लास के साथ श्रेष्ठी ने पुत्र का जन्म Celebrate किया और अपने बेटे का नाम ‘नागदत्त’ रखा.
धीरे-धीरे नागदत्त बड़ा होने लगा और शस्त्र और शास्त्र में उसने Expertise हासिल कर ली. अपने पिता का परलोक प्रयाण होने के बाद Business करने के लिए नागदत्त किसी Waterways के रास्ते जहाज़ में बैठकर अन्य द्वीप पर गया. वहाँ पर बहुतसा धन कमाकर अन्य किसी के जहाज़ में बैठकर वापस लौट रहा था.
तभी अचानक Ocean में आए तूफ़ान में वह जहाज़ फँस गया और उसका बाहर निकलना मुश्किल हो गया. जहाज़ में रहे सभी लोग चिंता करने लगे कि अब क्या करेंगे? इस समस्या से बाहर निकलने का जब कोई उपाय सफल नहीं हुआ.
तब नागदत्त ने एक उपाय बताते हुए कहा कि ‘पास ही के Mountain पर भारंड नामक Birds हैं, यदि कोई Brave व्यक्ति वहाँ जाकर उन भारंड Birds को उड़ाए तो उनके पंखों से जो हवा चलेगी, उससे यह जहाज़ तूफ़ान में से बाहर निकल सकता है.’
Note: भारंड यानी Ostrich Type का बड़ा Bird या Dinosaur जैसा बड़ा जिसको 2 मुंह होते हैं.
जहाज़ के मालिक ने वहां मौजूद सभी लोगों से पूछा ‘वहाँ जाने के लिए कोई तैयार है? जो वहाँ जाकर उन भारंड Birds को उड़ाएगा, उसे मैं 100 दीनारें दूंगा.’ (दीनारें यानी उस समय रही हुई एक तरह की Currency.) आखिर नागदत्त ने वहाँ जाने के लिए हाँ कहा और उस Mountain पर जाकर नवकार महामंत्र का स्मरणकर नागदत्त ने उन भारंड Birds को उड़ाया.
उन Birds के Feathers से जो हवा चली उसके कारण समुद्र का पानी और तूफान दोनों शांत हो गए और वह जहाज़ उस तूफ़ान में से बाहर आ गया, लेकिन नागदत्त तो उसी Mountain पर रह गया. भूख से परेशान वह वहां Timepass करने लगा. वहाँ से बचने का दूसरा कोई Solution नहीं मिलने से उसने सोचा ‘अगर मैं आर्तध्यान यानी Bad Thoughts से परेशान होकर ऐसे ही मर गया तो मेरी दुर्गति हो जाएगी, इसलिए क्यों न नवकार महामंत्र का स्मरणकर समुद्र में गिरकर अपने जीवन को ख़त्म कर दूं.’ इस तरह सोचकर वह समुद्र में कूद पड़ा.
धनदत्त का धोखा
समुद्र में गिरने के साथ ही वह किसी बड़ी मछली के मुँह में चला गया. वह मछली समुद्र के तट पर यानी Seashore पर आई और वहाँ पर उस मछली ने अपना मुँह खोला. तुरंत नागदत्त उस मछली के मुँह में से बाहर निकल आया. बाहर निकलने के बाद एक Pond में जाकर उसने अपने शरीर को साफ़ किया और Fruits आदि खाकर वह थोडा Better Feel करने लगा.
कुछ देर बाद आगे बढ़ता हुआ नागदत्त अपने नगर में आ गया. अपने नगर में पहुँचने के बाद उस नागदत्त ने जहाज़ के मालिक धनदत्त श्रेष्ठी के पास जाकर उससे 100 दीनारें माँगी, तब Greediness के कारण धनदत्त ने वे दीनारें उसे नहीं दी. धनदत्त ने कहा ‘तुम कौन हो? मैं तुम्हें नहीं पहचानता हूँ.’
नागदत्त ने कहा ‘अगर तुम मुझे 100 दीनारें नहीं दोगे तो मैं राजा के पास जाकर तुम्हारी Complaint करूंगा.’ उसी नगर में प्रियमित्र नामक एक व्यक्ति की नागवसु नाम की पुत्री थी. नगर के कोतवाल यानी Police वसुदेव ने नागवसु से शादी करने की बात प्रियमित्र से की परंतु उसने अपनी बेटी वसुदेव को नहीं दी और उसने नागवसु की शादी नागदत्त के साथ कर दी.
वसुदेव का षड्यंत्र
नागवसु के साथ शादी नहीं होने से वसुदेव नाराज हो गया और उसके मन में बदले की आग भड़कने लगी. नागदत्त को फँसाने के लिए वह कोई तरकीब सोचने लगा. एक बार नगर के Rounds पर निकला हुआ था तब राजा के कुंडल यानी कान में पहनने के एक तरह के Ornaments रास्ते पर गिर गए.
नागदत्त ने अचौर्य व्रत यानी Non Stealing Vow लिया हुआ था. Coincidence से नागदत्त उसी रास्ते से निकला और उसने राजा के कुंडल देखे परंतु चोरी के त्याग का नियम होने से नागदत्त ने उन कुंडलों को लेने का सोचा भी नहीं. नागदत्त पास ही के रास्ते से आगे बढ़कर जंगल में चला गया और वहाँ जाकर ‘प्रतिमा’ नामक व्रत स्वीकार कर वह कायोत्सर्ग करने लगा.
Note: श्रावक की 11 प्रतिमा यानी कि विशेष प्रकार के अभिग्रह होते हैं कि जिसमें जंगल आदि में कायोत्सर्ग करना पड़ता है.
नागदत्त को Difficult Situation में फंसाने के लिए वसुदेव ने वे कुंडल उठा लिए और प्रतिमा ध्यान में रहे नागदत्त के पास जाकर उसके कपड़ों के साथ वे कुंडल बाँध दिए. राजा ने अपने कुंडल ढूंढें और कुंडल नहीं मिलने से राजा Tension में आ गया.
उसी समय वसुदेव ने आकर राजा से कहा ‘राजन्. रास्ते पर आपके पीछे नागदत्त गया था और बीच रास्ते में जमीन पर से कुछ उठाते हुए मैंने उसे देखा भी था.’ राजा की आज्ञा से कुछ Soldiers कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े नागदत्त के पास गए. वहाँ जाकर उन्होंने नागदत्त के कपड़ों की तलाशी की.
उसके कपड़ों में बंधे हुए राजा के कुंडलों को देखकर वो Soldiers गुस्से में आ गए और उन्होंने जाकर राजा को सब परिस्थिति बताई. गुस्से में आकर राजा ने order देते हुए कहा ‘इस प्रकार धर्म का भंग करनेवाले को तो शूली यानी फांसी पर ही चढ़ा देना चाहिए.’ राजा की आज्ञा होते ही Soldiers ने नागदत्त को पकड़ लिया. उसका मुंडन किया गया और उसके बाद उसका काला मुँह करके उसे गधे पर बिठाकर नगर में घुमाकर फांसी के पास ले गए.
फंदा बना सिंहासन
नागदत्त को जैसे ही फाँसी के फंदे पर चढ़ाया गया, वैसे ही वह फंदा सिंहासन में बदल गया और नागदत्त के शरीर पर लगायें हुए बंधन गहनों में बदल गए. उसी समय आकाश में रही शासनदेवी ने कहा ‘यह नागदत्त तो भाग्यशाली श्रेष्ठ पुरुष है. जीवन का नाश होने पर भी अदत्तादान नहीं ग्रहण करने की यानी चोरी नहीं करने के नियमवाला है. वसुदेव ने छल कपट करके इसे फँसाने की कोशिश की है. नागदत्त तो पर द्रव्य का यानी किसी और के सामान का त्याग करनेवाला है.’
इतना कहकर शासनदेवी Invisible हो गईं. उसके बाद राजा ने नागदत्त को पट्टहस्ती पर यानी Main हाथी पर बिठाकर उसका नगर में भव्य प्रवेश महोत्सव कराया और बहुतसा धन देकर उसका सम्मान किया. राजा ने धनदत्त श्रेष्ठी के पास से नागदत्त को 100 दीनारें भी दिलवाईं. वसुदेव को देश निकाले की सजा दी गई.
अंत में, जैन धर्म की निर्मल आराधना करके भागवती दीक्षा लेकर सभी कर्मों को ख़त्म करके नागदत्त ने केवलज्ञान प्राप्त किया. उसके बाद पृथ्वीतल पर विचरण कर अनेक भव्य जीवों को प्रतिबोध देकर शाश्वत अजरामर मोक्ष प्राप्त किया.
Moral of the Story
आइए देखते हैं इस कथा की Learnings.
1. नागदत्त बहुत ज्यादा धार्मिक था वैसा नहीं था, पर उसके Life में जो Principles थे वो ज़बरदस्त Strong थे, इसलिए फांसी की बात आने पर भी और फांसी लगने पर भी पूरा चमत्कार हो गया और देवी ने भी उसकी सहायता की
2. नागदत्त ने एक बहुत छोटा पर Important व्रत लिया था, वह था चोरी नहीं करने का.. आज तो चोरी बहुत ही Common हो गई है, दुनिया के सभी Relations इस चोरी के कारण टूट रहे हैं. बच्चे घर पर दारु, Status आदि के लिए चोरी कर रहे हैं, बड़े लोग Govt से चोरी कर रहे हैं. MCX आदि सट्टे में उठने के बाद लोगों से कुछ लोग चोरी कर रहे हैं पर नागदत्त ने सामने वस्तु होने के बाद भी उसे उठाया नहीं.
आज ऐसे लोग कितने मिलेंगे यह एक प्रश्न है?
3. नागदत्त के पास ताकत थी, फिर भी साथ ही साथ उत्कृष्ट कोटि का आचार भी था, जब इन दो चीज़ों का समन्वय = Combination होता है, तब ही सात्विक पुरुषों का जन्म होता है और व्यक्ति सही राह पर चल और चला सकता है.
4. नागदत्त की नवकार की आस्था ने क्या चमत्कार किया, उसकी भी यह घटना मिसाल है, सात्विक व्यक्ति के पास जब सात्विक मंत्र आता है, तब सब कुछ सात्विक ही उसके Life में होता है.
हमें तो जन्म से यह नवकार महामंत्र मिला है लेकिन इस महामंत्र नवकार पर हमारी श्रद्धा कितनी वह खुद से पूछना होगा.