Eye Opening Story of Mahapurush Naagdatt (Katha 02)

4 साँपों ने बदल दिया महापुरुष नागदत्त का जीवन !

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By Jain Media 11 Views 10 Min Read

नागदत्त मुनि की एक मतांतर वाली कथा हम जान चुके हैं (Naagdatt Muni Katha 01), अब आइए दूसरी कथा देखते हैं, बने रहिए इस Article के अंत तक.

नागदत्त का जन्म

दो राजकुमारों ने जैन भागवती दीक्षा ली. संयमधर्म का पालनकर वे दोनों मुनि देवलोक में गए और वहां उन दोनों देवों ने समझौता किया, एक तरह से Deal की कि जो भी देवलोक से पहले निकलकर मनुष्य बनेगा, उसे दूसरा देव प्रतिबोध करेगा यानी धर्म की समझ देने आएगा.

लक्ष्मीपुर नगर में धनदत्त नामक एक श्रेष्ठी रहता था और उसकी पत्नी का नाम देवदत्ता था. एक बार श्रेष्ठी ने पुत्र प्राप्ति के लिए नागदेवता की आराधना की. देव ने खुश होकर कहा ‘तुझे पुत्र प्राप्त होगा.’ इधर उन साथी देवताओं में से एक देव का आयुष्य पूर्ण हुआ यानी उम्र पूर्ण हुई और उस देव की आत्मा देवदत्ता के गर्भ में आई. 

गर्भकाल पूरा होने पर देवदत्ता ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया. पिता ने पुत्र का जन्म Celebrate किया और पुत्र का ‘नागदत्त’ नाम रखा गया. जब नागदत्त युवावस्था में आया तब उसने साँप के साथ खेलना शुरू किया और धीरे-धीरे उसको साँप के साथ खेलने का व्यसन यानी Addiction हो गया. 

इधर देवलोक में रहे उसके मित्रदेव ने अवधिज्ञान से नागदत्त की वर्तमान Condition को देखा. अवधिज्ञान यानी कि एक जगह पर ही रहकर नक्की किए गए Fix Distance वाले क्षेत्र की हर एक Visible चीज़ को देखने की आत्मा की शक्ति. वह नागदत्त को प्रतिबोध देने लगा लेकिन साँप से खेलने के Addiction के कारण उसे कुछ भी समझ नहीं आया. 

आखिर वह मित्रदेव साँपों के करंडों यानी Basket को लेकर उस Garden में आया. देव ने गारुड़िक का रूप किया. गारुड़िक यानी सांप को खेलानेवाले. नागदत्त ने पूछा ‘करंडे में क्या है?’ गारुड़िक देव ने कहा ‘साँप हैं. नागदत्त ने कहा ‘मेरे साँपों के साथ तुम खेल लो और तुम्हारे साँपों के साथ मैं खेल लेता हूँ.’

4 भयानक साँप

गारुड़िक देव नागदत्त के साँपों के साथ खेलने लगा. उन साँपों ने गारुड़िक देव को डस लिया लेकिन उनके डंक का कुछ भी जहर उस गारुड़िक को नहीं चढ़ा. यह देखकर Jealous हुए नागदत्त ने कहा ‘मैं तुम्हारे साँपों के साथ खेलता हूँ.’ उस देव ने कहा ‘मेरे साँपों के साथ तुम खेलोगे तो मर जाओगे.’ नागदत्त ने कहा ‘तुम अपने साँपों को छोड़ो, मैं उनसे खेलना चाहता हूँ.’

गारुड़िक देव ने कहा ‘यदि इन साँपों ने तुझे डंक मार लिया तो मुझे दोष मत देना. मेरा एक साँप दोपहर के सूरज की तरह लाल आँखवाला है. बिजली की चमक के जैसी इसकी जीभ बहुत ही चंचल है. इसकी दाढ़ों में भयंकर जहर भरा हुआ है. इस प्रकार का यह क्रूर यानी Cruel Snake है. इस साँप ने जिसको डस दिया, वह तुरंत बेहोश हो गया. इसलिए Invisible Death की तरह उन साँप को तुम क्यों चाहते हो?

मेरु पर्वत के ऊँचे शिखर यानी Peak की तरह यह दूसरा आठ फणवाला साँप है, जिसके मुँह में दो जीभ हैं. जिस मनुष्य को इस साँप ने डस लिया, वह अभिमानी बना हुआ इन्द्र की भी अवगणना कर देता है, यानी इंद्र का भी लिहाज-शर्म रखता नहीं है, इसलिए मेरुपर्वत समान उस साँप को तुम क्यों चाहते हो?

इस तीसरे करंडे में एक नागिन है, जो विचित्र यानी Weird चालवाली है, स्वस्तिक के लांछनवाली है और अत्यंत ही मायावी है. इधर चौथा लोभ नाम का साँप है. उस साँप का डंक लगने पर मनुष्य महासागर यानी Ocean की तरह कभी Satisfy नहीं होता है. 

तो फिर तुम इन साँपों से क्यों खेलना चाहते हो? ये चारों क्रोध, मान, माया और लोभ नाम के चार खराब साँप हैं. इनके जहर से मरे हुए व्यक्ति को नरक में ही जगह मिलती है. उसके पास बचने के लिए दूसरा कोई सहारा नहीं है.’ 

इस तरह सावधान करके उस गारुड़िक देव ने नागदत्त की ओर वे चारों साँप छोड़े. उन साँपों के डंस से नागदत्त तुरंत बेहोश हो गया. नागदत्त के साथियों ने कहा ‘यह क्या कर दिया गारुड़िक तुमने?’ गारुड़िक ने कहा ‘मैंने तो इसे पहले रोका ही था लेकिन इसने मेरा कहना माना नहीं, तो इसमें मेरा क्या दोष है?’ 

देव ने दिया प्रतिबोध

नागदत्त के साथियों ने खूब इलाज किया लेकिन नागदत्त ठीक नहीं हुआ. आखिरकार नागदत्त के साथी उस गारुड़िक के पैर में गिर पड़े और बोले ‘आप इस पर दया करें और किसी भी उपाय से इसे जीवनदान दें.’ 

गारुड़िक देव ने कहा ‘अगर यह मेरी कही हुई चीज़ करेगा तो वापस जी सकेगा, नहीं तो इसका जीना Possible नहीं है. भविष्य में भी मेरी कही बात को अगर टालेगा तो वापस मर जाएगा. इन चार साँपों ने पहले मुझे भी डसा था, उसके इलाज के लिए मैंने भी यही निर्णय किए थे. 

जो व्यक्ति हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन यानी अब्रह्म और परिग्रह के पाप का पूरी तरह से त्याग करता है, वह वापस नया जीवन पाता है लेकिन जो व्यक्ति इन पापों का वापस सेवन करता है, वह फिर से मर जाता है.’

गारुड़िक देव के इन Solutions को सुनकर वह नागदत्त खड़ा हो गया. उसी समय उसके माता-पिता बोले ‘अहो. यह तो खुद ही उठ गया है.’ लेकिन उसी समय नागदत्त वापस से गिर पड़ा और बेहोश हो गया. नागदत्त के माता-पिता ने कहा ‘किसी भी उपाय से तुम इसे ठीक कर दो.’ 

गारुड़िक देव ने नागदत्त को वापस जीवित किया और उसे अपना पूर्व भव यानी Previous Birth सुनाया. उसी समय नागदत्त को भी जातिस्मरण ज्ञान हो गया. जातिस्मरण ज्ञान यानी कि जिस ज्ञान से पूर्व के भव यानी जन्म दिखते है वो. उसे अपना पूर्व भव दिखाई दिया. सारी हकीकत जानने के बाद माता-पिता की अनुमति लेकर नागदत्त ने भागवती दीक्षा ग्रहण की. 

नागदत्त ने सभी को समझाया ‘क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों साँप की तरह है. जो इन साँपों से बचता है, वह परम पद यानी मोक्ष प्राप्त करता है. पूर्व भव के इस मित्र देव ने मुझे Alert करके इन साँपों से मुझे बचाया है. इसलिए इन क्रोध आदि साँपों के Under में हमें नहीं रहना चाहिए.’ 

उसके बाद वह देव देवलोक में चला गया और नागदत्त मुनि भी क्रोध आदि शत्रुओं को जीतकर सभी कर्मों को ख़त्म करके मोक्ष में चले गए.

Moral Of The Story

आइए देखते हैं इस कथा की Learnings.

1. Friends कैसे होने चाहिए, उसकी यह घटना एक बहुत बड़ी सूचक है. Friends ऐसे होने चाहिए कि जो हमको मारकर भी, कूटकर भी सच्ची राह दिखाएँ, जो Friend हमें Party-Sharty, व्यभिचार आदि करवाकर नरक में ले जाएँ, वह Friend-Friend नहीं Enemy है, दुश्मन है. 

Friendship Bond इतना मज़बूत होना चाहिए कि वह हमें इस ही नहीं, अगले भव में भी Track में लाने में मदद करें.. 

2. बहुत बार हमें ये ही पता नहीं होता कि हम कौन कौन से दोषों में फंसे होते हैं, उनका दर्शन, उनका बोध करवाने वाला भी हमें चाहिए और उसी को कल्याणमित्र बोलते हैं. हमारी भूल बतानेवाला मित्र सच्चा मित्र है और हमारी भूल को ही बढ़ावा देनेवाला मित्र Fraud है, स्वार्थी है.

3. और एक महत्त्व की चीज़ तो यह बताई गई है कि यदि चारों कषायों पर यानी क्रोध मान माया लोभ पर विजय पाना हो तो संसार छोड़ना पड़ेगा और यदि शक्ति हो तो संयम की राह पर चलना पड़ेगा, पांच महाव्रतों को अपनाना पड़ेगा.

चार कषाय हमें भवोभव मारे उससे तो अच्छा है कि हम उन्हें एक ही भव में मार डाले. हम ले पाए ना ले पाए वह अलग विषय है लेकिन Mind में Clarity एक दम पक्की होनी चाहिए.

4. जीवन में संपत्ति सिर्फ पैसा ही नहीं होती, कल्याण मित्र भी एक तरह से संपत्ति ही है, हमारे कितने कल्याण मित्र है? खुद से पूछ सकते हैं. यदि एक भी नहीं है तो करोड़ों रुपये होने के बाद भी हम एक नंबर के भिखारी है.

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