स्कंदाचार्य की ऐसी कथा जो क्रोधी व्यक्ति के बहुत काम आ सकती है। क्रोध की एक छोटी सी चिंगारी भी पूरे जीवन को जलाकर राख कर सकती है।
वह कैसे?
तो आइए जानते हैं स्कंदाचार्य की अद्भुत कथा जिसमें क्रोध और वैर ने ना केवल व्यक्तियों को बल्कि पूरे नगर को तबाह कर दिया था। गुस्से पर Control नहीं करने पर क्या कुछ हो सकता है, कुछ ही समय में पता चल जाएगा।
बने रहिए इस Article के अंत तक।
इस Story का Analysis वैसे तो हमने Jailer Series में देखा ही था, आज हम खंधक सूरीजी या स्कंदाचार्यजी की पूरी Story जानेंगे।
परमात्मा की वाणी
एक बार दण्डक नाम के राजा ने अपने मंत्री पालक को श्रावस्ती नगर में भेजा। पालक मंत्री को जैनधर्म से बहुत नफरत थी। वह श्रावस्ती की राजसभा में पहुँचा।
वहाँ स्कन्दककुमार नाम का एक ज्ञानी राजकुमार था जो कि जैनधर्म को काफी अच्छे से समझता था और Jainism से Connected भी था।
मंत्री और स्कन्दकुमार के बीच जैनधर्म को लेकर बहस छिड़ गई और स्कन्दककुमार ने अनेकान्तवाद के सिद्धांत से पालक मंत्री को हरा दिया। मंत्री हार के कारण बहुत शर्मिंदा हुआ और उसके मन में स्कन्दककुमार के लिए ज़हर जैसा द्वेष भर गया।
क्रोध की आग, कई बार बाहर नहीं दिखती, लेकिन अंदर ही अंदर इंसान को जला देती है। जैसे एक छोटी सी चिंगारी पूरा जंगल जला देती है, वैसे ही मन का गुस्सा पूरे जीवन को बर्बाद कर सकता है।
गुस्से में इंसान सही और गलत की पहचान खो देता है। खैर..
कुछ समय के बाद 20वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान श्रावस्ती नगर में पधारे। प्रभु की देशना सुनकर स्कन्दककुमार को वैराग्य हो गया और उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया और जैन दीक्षा लेकर जैन मुनि बन गए।
समय के साथ वे महान विद्वान हुए, ज्ञानी हुए और आचार्य पद पर आरूढ़ हुए। उन्होंने 500 राजकुमारों को दीक्षित किया और उनके गुरु बने।
एक दिन स्कंदाचार्य को कुंभकारकटक नगर में रही अपनी बहन को प्रतिबोध करने की इच्छा हुई। उन्होंने श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान से विहार करने की आज्ञा मांगी। तब भगवान ने उन्हें कहा
स्कन्दक, वहाँ भयंकर संकट आएगा। सभी साधुओं पर भारी उपसर्ग होगा।
स्कंदाचार्य ने पूछा ‘प्रभु। हम सभी जिनशासन के आराधक बनेंगे या विराधक?’ प्रभु ने बताया ‘सिर्फ तुम्हें छोड़कर बाकी सभी आराधक बनेंगे।’ यह सुनकर स्कंदाचार्य ने कुंभकारकटक नगर की ओर विहार किया। विहार यानी पैदल यात्रा।
कुंभकारकटक नगर के राजा दण्डक को जब स्कंदाचार्य के नगर में आने का समाचार मिला तो वह बहुत खुश हुए लेकिन मंत्री पालक अभी भी द्वेष से भरा हुआ था। उसने अपनी हार का बदला लेने की योजना बनाई।
बदले की आग
उसने नगर के शस्त्रागार यानी Weapons की जो Room होती है उसमे से सैकड़ों हथियार निकलवाए और फिर उसी Weapon Room के भंडारी यानी Manager की हत्या कर दी ताकि सच्चाई सामने ना आ सके।
उसने हथियारों को उस उद्यान यानी Garden की जमीन में गाड़ दिया, जहाँ अगली सुबह स्कंदाचार्य आनेवाले थे। व्यक्ति जब स्वार्थ में आकर गुस्से से भर जाता है, तब उसका कोई सगा नहीं रहता है।
स्वार्थ में आया हुआ व्यक्ति नीच से नीच कार्य करने के लिए भी तैयार हो जाता है और ऐसा ही कुछ पालक मंत्री ने भी किया।
अगली सुबह स्कंदाचार्य नगर के बाहर उस Garden में आए। राजा ने खूब उत्साहपूर्वक स्कंदाचार्य का स्वागत किया और वंदन आदि कर महल लौटा।
उस समय पालक मंत्री ने अपनी चाल चलनी शुरू की राजा को भड़काते हुए कहने लगा ‘महाराज। अभी अभी गुप्तचरों से पता चला है कि हमारे नगर पर आक्रमण होनेवाला है और शत्रु हमारे नगर में ही है।’
राजा ने आश्चर्यचकित होकर पालक मंत्री से पूछा ‘कौन है वह शत्रु? और कैसे करेगा वह आक्रमण?’ पालक मंत्री ने कहा ‘राजन्। वह शत्रु और कोई नहीं बल्कि स्कंदाचार्य ही हैं। आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होगा लेकिन मेरे पास सबूत है।
अभी कुछ समय पहले हमारे शस्त्रागार के भंडारी की हत्या होने की सुचना मिली है और स्कंदाचार्य जिस उद्यान में रुके हुए हैं वहां की जमीन में उन्होंने शस्त्र छुपाकर रखें हैं। आप मेरे साथ चलिए, अभी सब बात सामने आ जाएगी।’
राजा तो वैसे भी कान के कच्चे होते हैं। दंडक राजा भी पालक मंत्री की बातों में आ गए और उसके साथ उस Garden में पहुंचे जहाँ स्कंदाचार्य रुके हुए थे।
राजा के आदेश से Garden को खोदा गया और जमीन में गढ़े हुए हथियार देखकर राजा Shock हो गया। उसे लगा कि उसके साथ धोखा हुआ है और गुस्से में आग बबूला होते हुए राजा ने पालक मंत्री को स्कंदाचार्य एवं अन्य साधुओं को उसके हिसाब से सजा देने की Permission दे दी।
भयानक सजा
पालक मंत्री स्कंदाचार्य के पास गया और उन्हें घाणी में पीले जाने की सजा सुनाई।
घाणी यानी तेल निकालनेवाली Machine और पीलना यानी पीसना यानी तेल निकालने वाली Machine में स्कंदाचार्य और अन्य साधुओं को डालकर उन्हें पीसने की क्रूर सजा सुनाई गई।
यह सुनकर स्कंदाचार्य ने पालक मंत्री से कहा ‘मंत्री, यह तुम क्या बोल रहे हो? हमें हथियारों से क्या लेना-देना?’ लेकिन पालक मंत्री ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।
स्कंदाचार्य को उस समय श्री मुनिसुव्रतस्वामी प्रभु की वाणी याद आ गई कि ‘वहाँ मारणान्तिक उपसर्ग होगा’ अतः उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और भयानक उपसर्ग में भी Patience और समभाव रखने का उपदेश दिया।
पालक मंत्री के आदेश से तुरंत नौकरों ने उस Garden के पास ही घाणी तैयार करा दी और स्कंदाचार्य को कहा ‘तैयार हो जाओ, तुम्हें अपने अपराध के बदले इस घाणी में पील दिया जाएगा।’
स्कंदाचार्य ने सभी शिष्यों को सावधान करते हुए कहा ‘शेर की तरह हमने यह दीक्षा जीवन का स्वीकार किया है इसलिए मौत के कष्टों से हमें डरना नहीं है। एक बात ध्यान रखना कि आत्मा अजर है, अमर है।
आग आत्मा को जला नहीं सकती है, पानी उसे गला नहीं सकती है और घाणी में उसे पीला नहीं जा सकता। अपने ही अशुभ कर्मों के कारण यह उपसर्ग आया है इसलिय इसमें किसी का दोष नहीं है।
जीव ही अपने सुख दुःख का कारण है, अन्य जीव तो सिर्फ उसके निमित्त यानी Medium है। पूर्ण धैर्य और मैत्री के साथ अपनी आत्मा को शुभ व शुद्ध ध्यान में लगाये रखना।’
अपने गुरु स्कंदाचार्य की देशना सुनकर 500 शिष्य इस तरह से तैयार हुए जैसे उन्हें कोई मौत का ही ना हो। किसी ने भी आनाकानी नहीं की और पालक मंत्री ने एक महात्मा को घाणी में कूदने के लिए आदेश दिया।
उन साधु भगवंत ने अरिहंत आदि की शरणागति स्वीकार की और घाणी में कूद पड़े। घाणी घूमने लगी और महात्मा का शरीर चकनाचूर होने लगा, शरीर में से खून के फव्वारे निकलने लगे। भयानक दृश्य का सर्जन हो गया।
लेकिन सभी के आश्चर्य के बीच उन्होंने शरीर का तो त्याग किया ही और साथ ही उनके सभी कर्मों का भी त्याग किया यानी वे महात्मा के अत्यंत शुभ भावों में मृत्यु होने से उनके सभी कर्म ख़त्म हो गए और वे सीधा मोक्ष में चले गए।
घातक नियाणा
इसी तरह देखते ही देखते 499 साधुओं को पीस दिया गया और वे सभी सीधा मोक्ष में गए। अंत में रह गए एक बालमुनि। छोटी उम्र और मासूम सा नाज़ुक सा शरीर। बालमुनि को पीले जाने की सिर्फ कल्पना से ही स्कंदाचार्य का मन काँप उठा।
उन्होंने सोचा ‘बालमुनि की इस वेदना को मैं देख नहीं सकूंगा।’ और उन्होंने पालक मंत्री से कहा ‘मंत्री! बस, मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर ले। इस बालमुनि की वेदना को मैं देख नहीं सकूंगा इसलिए इसके पहले मुझे घाणी में कूदने दो।’
मंत्री को तो वही चाहिए था जिससे स्कंदाचार्य को ज्यादा दुःख हो, कष्ट हो और इसलिए उसने स्कंदाचार्य को मना कर दिया।
तब स्कंदाचार्य ने बालमुनि को हिम्मत देते हुए कहा ‘मुनिवर। आप उम्र से छोटे हो, आपका शरीर भले ही छोटा है लेकिन आपकी आत्मा छोटी नहीं है, आपकी आत्मा तो अजर है, अमर है और अनंत है। आप इस दुःख को स्वीकार कर पाओगे ना?’
बालमुनि ने कहा ‘चिन्ता मत कीजिए, गुरुदेव। मुझे आपकी हर सीख याद है और इसलिए मुझे इस शरीर की कोई परवाह नहीं है।’
बालमुनि ने समताभाव बनाए रखा और घाणी में कूदते ही उनके सभी कर्म नष्ट हो गए और वे भी मोक्ष के निवासी बन गए। अब बारी आई गुरु यानी स्वयं स्कंदाचार्य की लेकिन उनके चहरे पर क्रोध की झलक दिखाई दे रही थी।
बालमुनि की ऐसी दशा को वो सहन नहीं कर पाए और उनका दिल वैर की भावना से गुस्से में धधकने लगा। उन्होंने नियाणा यानी संकल्प किया ‘मेरे तप का अगर मुझे कोई फल मिले तो मैं दण्डक राजा, पालक मंत्री व इस नगर को नष्ट करनेवाला बनूँ।’
‘क्रोधे क्रोड़ पूरवतणु संयम फल जाय’ यानी करोड़ों वर्ष की तप-साधना भी क्रोध से नष्ट हो जाती है।
सबको समता का पाठ पढ़ानेवाले स्कंदाचार्य खुद उस पाठ को नहीं स्वीकार कर पाए। जब अंत समय आया तब खुद ही उस पाठ को भूल बैठे और आचरण में नहीं ला पाए और गुस्से में लिए गए उस भयानक नियाणा का, भयानक संकल्प का भयानक Result आया।
नगर भस्म
घाणी में पीले जाने के बाद वे मरकर अग्निकुमार देव बने और उन्हें ज्ञान के उपयोग से तुरंत पूर्व भव का वैर और पालक मंत्री के प्रति गाढ़ द्वेष याद आ गया।
उसी समय खून से लतपत स्कंदाचार्य के रजोहरण को किसी पक्षी ने उठाकर स्कंदाचार्य की बहन पुरन्दरयशा के महल के ऊपर वस्त्र समझकर उसे छोड़ दिया। खून से लतपत रजोहरण देखते ही पुरन्दरयशा का दिल काँप उठा।
महारानी तत्काल दौड़ती हुई महाराजा के पास आई और जोर-जोर से रोनी लगी ‘अहो। मेरे राज्य में मेरे ही भाई मुनि की हत्या। किसने की? क्यों की? ऐसा भयंकर अपराध? कौन है वह महापापी?’
उसी समय शासनदेवता ने पुरन्दरयशा को वहाँ से उठाकर मुनिसुव्रत स्वामी भगवान के पास पहुँचा दिया और भगवान की वाणी का श्रवणकर पुरन्दरयशा शान्त हुई और उन्होंने प्रभु के पास दीक्षा जीवन स्वीकार किया।
शुद्ध चारित्र जीवन का पालन कर वह देवलोक में गई और केवली परमात्मा के अनुसार उनकी आत्मा देवलोक से अगले जन्म में मोक्ष में जाएगी।
इस तरफ पूर्व भव में करे हुए भयानक संकल्प के परिणाम से स्कंदाचार्य का जीव जो कि अग्निकुमार देव बना था, उसने कुंभकारकटक नगर को जलाकर भस्म कर दिया, जिसमें पालक मंत्री और दंडक राजा की भी जलकर मृत्यु हो गई।
इस तरह भयानक गुस्से में आकर पालक मंत्री और स्कंदाचार्य ने एक दूसरे से वैर का बदला लिया और दोनों ने अपना संसार असंख्य समय के लिए बढ़ा लिया।
सिर्फ जानकारी के लिए बता दें नियाणा राग-द्वेष के कारण ही बांधा जाता है अर्थात् स्कंदाचार्य ने बालमुनि के प्रति राग और बाकी सबके प्रति द्वेष किया और नियाणा कर लिया और नियाणा दुर्गति में ले जाता है।
Moral Of The Story
स्कंदाचार्य की कथा से हमें बहुत कुछ चीजें सीखने जैसी है। आज के समय में जहाँ लगभग हर व्यक्ति में छोटी छोटी बातों पर भयानक क्रोध आता है, ऐसे सभी जीवों के लिए यह कथा एक Warning Bell जैसी है।
1. ‘क्रोध ऐसा जहर है जो दूसरों से पहले खुद को मारता है।’
स्कंदाचार्य जैसे महान तपस्वी जिनका जीवन समता और ज्ञान से भरा था, उन्होंने जीवनभर संयम जीवन का पालन किया लेकिन एक पल के गुस्से में उन्होंने वह सब गवाँ दिया जो कि इतने सालों की साधना से उन्होंने पाया था।
क्रोध एक पल का होता है पर उसका नुकसान पूरी जिंदगी भुगतना पड़ता है, पूरी ज़िन्दगी ही नहीं ज़िन्दगी के बाद भी अगले अगले भव में भी भुगतना पड़ता है।
घर में हो या समाज में, अगर हम क्रोध को काबू करना सीख जाए तो ज़्यादातर झगड़े अपने आप ही खत्म हो सकते हैं। इसलिए हर बार जब गुस्सा आए, तब याद करना है कि मैं अपना ही नुकसान कर रहा हूँ।
2. ‘जो मौत के सामने भी मुस्कुरा सके, वही सच्चा वीर है।’
जब 500 मुनियों को घाणी में डाला गया तब किसी ने भी आर्तध्यान नहीं किया, कोई भी रोया नहीं क्योंकि वे सब एक ही भाव में थे ‘हमारा शरीर मिट सकता है पर आत्मा नहीं।’
आत्मा की ताकत का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? आज जब छोटी-छोटी बातों पर हम बेचैन हो जाते हैं, तब इन मुनियों का उदाहरण हमें सिखाता है कि धर्म और प्रभु वचन ही हमें अंदर से Strong और शांत बनाते हैं।
समता यानी दुख-सुख दोनों में एक जैसा रहना। यही जीवन की सबसे बड़ी जीत है।
3. ‘जो बोओगे, वही काटोगे।’
पालक मंत्री ने बदले की भावना से स्कंदाचार्य को फसाने का जाल बुना और साधु हत्या का पाप किया। इसका फल उसे क्या मिला? अंत में उसका अपना ही नगर जलकर खाक हो गया।
धोखा देकर, झूठ बोलकर, किसी की भलाई रोककर कोई सच्ची सफलता नहीं पा सकता क्योंकि जो जैसा करेगा, वह वैसा ही पाएगा। यही कुदरत का नियम है और यही कर्म का सिद्धांत है।
इसलिए हमेशा सोच-समझकर बोलना ही हितकर है और चाहे सामनेवाला कैसा भी क्यों ना हो लेकिन उसके पीछे हमें अपने भाव नहीं बिगाड़ने हैं।
4. ‘जिसने आत्मा को जान लिया, उसे किसी चीज़ से डर नहीं लगता।’
मुनियों को पता था कि उन्हें पीसा जाएगा, शरीर को दर्द होगा लेकिन उन्होंने न डर दिखाया और ना ही विरोध किया। क्यों? क्योंकि उन्होंने खुद को शरीर नहीं आत्मा समझा था।
जब हम धर्म को सिर्फ किताबों में नहीं, जीवन में जीते हैं, तो हमारे भीतर ऐसी ही अटूट शक्ति प्रकट होती है।
5. कुछ जीव ऐसे होते हैं, जो नियति के आधीन होते हैं।
श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान ने स्कंदाचार्य को Warning दी, पर प्रभु की Warning को भी ध्यान में ना लेकर स्कंदाचार्य ने विहार किया और उसका फल क्या आया? वह हम सभी को दिख सकता है।
श्रावक जीवन और साधु जीवन में भी प्रभु ने हमें बहुत सी Warnings-लाल झंडियाँ बताई है पर जन हम उन Warnings को Waste या Nonsense मानकर ध्यान नहीं देते तो क्या हो सकता है, उसका यह ज्वलंत उदाहरण है।
दूसरा यह कि, मौत आदमी को पुकारती है और वह बात भी यहां हमें पता चलती है।
6. ‘जिनशासन पर हमारी श्रद्धा कितनी?’
पहले के श्रावक यानी राजकुमार आदि कितने पढ़े-लिखे होते थे और उन्हें धर्म का भी कितना उमदा ज्ञान होता था, वह हमें स्कंदकुमार के वाद से पता चलता है।
आज तो हमें Jainism के लिए कोई दो प्रश्न पूछ ले, तो हमारी श्रद्धा हिल जाती है। हम उसके पक्ष में बैठ जाते हैं कि Jainism Logical नहीं है। उसमें हमारे Jainism के ज्ञान की कमी है।
Jainism Illogical नहीं है।
7. ‘Jainism Teaches A Balanced Life’
सच्चा धर्म वही है जो हमें क्रोध से शांत और कठिनाइयों में भी Balanced रहना सिखाए। गुरु खुद के क्रोध पर काबू नहीं रख पाए लेकिन शिष्य महात्माओं ने गुरु आज्ञा को सहजता से स्वीकार किया तो उनका तो कल्याण हो गया।
इस Story की Ending भले हमें अच्छी ना लगी हो लेकिन इस कथा से यदि हम बोध प्राप्त करते हैं तो हमारे जीवन की Ending ज़रूर अच्छी होगी ऐसा लगता है।